Dial 100 Movie Review in Hindi: मनोज बाजपेयी-नीना गुप्ता की फिल्म बहुत निराश करती है!
रेंसिल डिसिल्वा के निर्देशन में बनी फिल्म 'डायल 100' (Dial 100 Movie) लोगों की उम्मीदों पर औंधे मुंह गिर गई है. यह फिल्म मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) और नीना गुप्ता (Neena Gupta) के लिए एक इमरजेंसी अलार्म है, कि ऐसी फिल्में करने से दोनों ही कलाकारों को भविष्य में बचना चाहिए.
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'द फैमिली मैन' फेम एक्टर मनोज बाजपेयी हों या 'बधाई हो' फेम एक्ट्रेस नीना गुप्ता, इन दोनों की शानदार अदाकारी के कायल लोग इनकी फिल्मों या वेब सीरीज का बेसब्री से इंतजार करते हैं. इनकी दूसरी पारी की सफलता का परिणाम दर्शकों को इस बात का भरोसा देता है कि मनोरंजन में कोई कमी नहीं रहने वाली है. लेकिन इस बार दोनों ही उम्दा कलाकारों ने दर्शकों को निराश कर दिया है. फिल्म 'डायल 100' जिस शोर के साथ रिलीज हुई, उसी तरह लोगों की उम्मीदों पर औंधे मुंह गिर गई है. यह फिल्म मनोज बाजपेयी और नीना गुप्ता के लिए एक इमरजेंसी अलार्म है, कि ऐसी फिल्में करने से दोनों ही कलाकारों को भविष्य में बचना चाहिए. वरना इतिहास के गर्त में ऐसे कई अभिनेता-अभिनेत्री गुम हो गए, जिन्होंने सफलता मिलने के बाद फिल्मों के चयन में सावधानी नहीं बरती.
'जब 100 नंबर डायल करते हैं लोग, कहीं न कहीं मदद की उम्मीद होती है लोगों में'...ये डायलॉग रेंसिल डिसिल्वा द्वारा निर्देशित इसी फिल्म का है, जिसे पुलिस अफसर निखिल सूद (मनोज बाजपेयी) अपने एक जूनियर से बोलता है. फिल्म मेकर को ये तो पता है कि लोग डायल 100 मदद की उम्मीद से करते हैं, लेकिन उनका क्या जिन्होंने मनोरंजन के लिए 'डायल 100' देखी? उनके लिए तो मनोज बाजपेयी और नीना गुप्ता जैसे कलाकारों की ये फिल्म महज प्रैंक कॉल साबित हुई है. माफ कीजिएगा. ओटीटी का दर्शक बहुत समझदार है. वो केवल कलाकार और उनके नाम पर फिल्में नहीं देखता. उसे इंटरेस्टिंग कंटेंट चाहिए. उसे कहानी ऐसी चाहिए, जो अंतिम सीन तक बांधे रखे. वो जमाना गया जब सलमान, आमिर या शाहरुख खान जैसे अभिनेताओं के नाम भर से फिल्में हिट हो जाया करती थीं.
अपनी दमदार अदाकारी के लिए मशहूर मनोज बाजेपयी ने रॉन्ग नंबर डायल कर दिया है. पहले ज्यादतर फिल्में एक फॉर्मूले पर बना करती थीं. ऐसी फिल्मों की रेसिपी सबसे पहला नंबर होता था हीरो और हीरोइन का. उस वक्त जो बॉक्स ऑफिस पर हिट होता था, उसकी पूछ ज्यादा होती थी. उसके बाद फिल्म में एक विलेन, एक कॉमेडियन और एक आइटम नंबर के लिए हॉट एक्ट्रेस ली जाती थी. इस तरह कुछ अच्छे गानों और आइटम नंबर के साथ हीरो या हीरोइन के नाम पर फिल्म हिट हो जाती थी. सिनेमाघर भी तालियों से गूंज उठता था. लेकिन अब जमाना बदल चुका है. सिनेमा के डिजिटलाइज होने के बाद दर्शकों का एक अलग वर्ग सामने आया है. यह दर्शक ज्यादातर मीडिल क्लास से ऊपर का है, जो पढ़ा-लिखा है, समझदार है, फिल्में देखकर मनोरंजन तो करता ही है, लेकिन सोचता भी है. ऐसे में अब फिल्म मेकर्स को फॉर्मूले पर फिल्में बनाने की बजाए, अच्छे कंटेंट पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए.
कहानी
फिल्म की कहानी एक रात में ही शुरू होकर खत्म हो जाती है. कहानी के केंद्र में तो वैसे पुलिस अफसर निखिल सूद (मनोज बाजपेयी) है, लेकिन नीना गुप्ता और साक्षी तंवर के किरदार भी मनोज के समांतर ही मजबूती से आगे बढ़ते हैं. जैसा कि सबको पता है कि एक पुलिसवाले की जिंदगी बहुत कठिन होती है. पुलिसकर्मी अपने परिवार से लेकर सेहत तक पर ध्यान नहीं दे पाते. यही वजह है कि इनका परिवार अक्सर परेशानियों का सामना करता हुआ नजर आता है. कुछ ऐसा ही हाल पुलिस इंस्पेक्टर निखिल सूद (मनोज बाजपेयी) का भी है. उसके घर में बीवी (साक्षी तंवर) और एक बेटा है. वह दोनों पर ही ध्यान नहीं दे पाता. इसकी वजह से बेटा उसके हाथ से निकला जा रहा है. वो देर रात तक अपने दोस्तों के साथ घूमता और पार्टियां करता है. परेशान बीवी पति को फोन करके उसे भी अक्सर परेशान करती रहती है.
बरसात की एक रात निखिल सूद अपने दफ्तर में अपनी समस्याओं से दो-चार होते हुए ऑफिस का काम कर रहा होता है. उसी वक्त उसके पास एक महिला की कॉल आती है. महिला बहुत परेशान होती है. वो बताती है कि उसके बेटे की मौत एक रईसजादे की वजह से हो गई है. ड्रग्स की नशे में धुत उस रईसजादे ने अपनी कार से उसके बेटे को कुचल दिया है. वो उससे बदला लेना चाहती है. यदि ऐसा नहीं हुआ तो वो खुदकुशी कर लेगी. वो निखिल से मदद मांगती है. वो चाहती है कि निखिल उसके बेटे के हत्यारे को सजा दिलाने में उसकी मदद करे. निखिल सूद उससे सवाल करता है कि क्या ऐसा करने से दर्द कम हो जाएगा और यदि मरना-मारना ही है तो 100 नंबर क्यों डायल किया. कोई भी यह नंबर तब डायल करता है, जब हादसे की तरफ बढ़ते हुए उसमें कहीं न कहीं उम्मीद होती है क्योंकि जिंदगी खूबसूरत है.
समीक्षा
'डायल 100' को सस्पेंस क्राइम थ्रिलर जेनर की फिल्म बताया जा रहा है, लेकिन इसमें सस्पेंस क्या और कहां है, ये पूरी फिल्म खत्म हो जाने के बाद भी नहीं पता चलता. रही बात थ्रिल की, तो वो गधे के सिंग जैसी है, जो सिर्फ कहावतों में है, असलियत में नहीं. असली बेड़ा गरक किया है निर्देशन विभाग ने, रेंसिल डिसिल्वा उम्मीद के मुताबिक कुछ नहीं कर पाए हैं. यहां तक कि इतनी अच्छी स्टारकास्ट होने के बावजूद भी सफलता तो छोड़िए संतुष्टी के स्तर तक की फिल्म भी नहीं बना पाए हैं. वरना जिस फिल्म में मनोज बाजपेयी, नीना गुप्ता और साक्षी तंवर हों, उसकी सफलता गारेंटेड मानी जाती है. कमजोर कहानी के साथ ही पटकथा, संवाद और संपादन कसावट की मांग करता है. कथा-पटकथा में हमेशा नयापन होना चाहिए, जिसका यहां अभाव बहुत खटकता है. पहले ही पता चल जाता है कि आगे क्या होने वाला है.
जहां तक कलाकारों के प्रदर्शन का सवाल है, तो अपने टैलेंट के मुताबिक मनोज बाजपेयी और नीना गुप्ता ने सकारात्मक कोशिश की है, लेकिन उनको फिल्म के बाकी विभागों का साथ नहीं मिल पाया है. एक मां और पत्नी के किरदार में साक्षी तंवर मजबूत दिखाई देती हैं, खासकर उनके ऊपर जब दुखों का पहाड़ टूटता है, तो वो दुखद घटना बारीकी से बयां करने में सफल रहती हैं. बाकी कलाकारों ने अपने-अपने हिस्से का काम संतोषजनक किया है. अनुज राकेश धवन का कैमरा वर्क अच्छा है. उनकी तरफ से एक छोटा सा प्रयोग कमजोर कहानी में भी गहराई ला देता है. संपादक आसिफ अली शेख ने फिल्म को केवल दो घंटे के रनटाइम के साथ छोटा रखा है. शुक्र है कि मेकर्स ने इस क्राइम थ्रिलर में कोई भी गाना नहीं डाला है. बैकग्राउंड स्कोर डिपार्टमेंट के रेसुल पुकुट्टी के पास भी करने के लिए कुछ भी नहीं है. कुल मिलाकर, एक बहुत ही निराश करने वाली फिल्म है डायल 100, यदि आप नीना गुप्ता और मनोज बाजपेयी के मुरीद हैं, तो ही आप इस फिल्म को देख सकते हैं.
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