जब इम्तियाज़ अली के भीतर घुस गए करण जौहर...
लगता है इस बार इम्तियाज ने अपने उलझे घुंघराले जीवन जैसे बालों को किसी सस्ते शैम्पू से धोया है, जिसकी महक ने नाक में दम कर दिया है.
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इम्तियाज़ अली एक मधुर बांसुरी हैं...मस्ती, मुश्किल, दुविधा, दर्द, पश्चाताप, प्रेम, सूफ़ियत की सतरंगी बांसुरी जो इस बार पीपनी की तरह कर्कश बजी है. 'हैरी मेट सेजल' इतनी काम चलाऊ फिल्म है कि देखने के फौरन बाद ही आप फिर चेक करेंगे कि वाकई इम्तियाज़ अली ने इसे बनाया है? या फिर करण जौहर अय्यार हैं, जो 'हैरी मेट सेजल' बनते वक्त वेष बदलकर इम्तियाज़ अली में घुस गए?
उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए इम्तियाज़
क्योंकि फिल्म में देखने लायक ऐसा कुछ नहीं है जो इम्तियाज़ अली के नाम को 'रॉकस्टार' की तरह काबिल बनाये, 'तमाशा' की तरह फलसफी बनाये और 'जब वी मेट' की तरह मधुर बनाये. अक्सर इम्तियाज की फिल्मों में प्यार थोपा हुआ नहीं होता है, किरदार दर्शक को बताता नहीं और पर्दे पर दुविधाओं से भरी रुमानियत...ढाई अक्षर के रोम-रोम को अभिव्यक्त कर देती है.
याद कीजिये रॉकस्टार का वो सीन जब जॉर्डन ढींगरा साहब बने पीयूष मिश्रा के पीछे पड़ता है कि किसी भी शर्त पर पराग (प्राग) भेज दीजिये. ये सीन जॉर्डन के प्यार का इजहार है और फिर हीर का जॉर्डन को कहना...मुझे गले लगा सकते हो? सब कुछ अनकहा, निःशब्द, मौन प्रेम का सबसे पवित्र अध्यात्म रूप. मगर 'हैरी मेट सेजल' में शाहरुख-अनुष्का प्यार करने की थोपी हुई जल्दबाजी में दिखते हैं, जो इम्तियाज़ की गहराई से अलग, सोच की सतह का उथलापन दिखाता है.
शाहरुख और अनुष्का भी अपना जादू न बिखेर सके
नाव के सीन में छुपते हुए शाहरुख-अनुष्का एक दूसरे को देखते हैं, इस कामयाब सीन के बाद फिल्म पूरी तरह मझधार में छूट जाती है. एडिटर आरती बजाज को कई दृश्यों में ज्यादा एडिटिंग करनी थी मगर....!
High Hopes शब्द का अनुष्का फिल्म में कई बार इस्तेमाल करती हैं. जाहिर है इम्तियाज़ अली के लिए की गई High Hopes का ही नतीजा है कि शाहरुख खान और अनुष्का की सामान्य एक्टिंग के बावजूद सब हॉल में इम्तियाज़ अली का सिनेमा तलाश रहे थे. जब वी मेट, तमाशा, लव आजकल, रॉकस्टार के जरिये इम्तियाज़ ने जो दिया है उसके चलते उनकी 50 खराब फ़िल्म माफ की जा सकती हैं. मगर जब रसोगुल्ला खाने से मीठे की तलब मिट सकती है तो कोई चीनी क्यों खाए?
फिल्म में माथा चूमने का सीन इम्तियाज ट्रेंड दार्शनिक सिनेमा का अक्स है, मगर शाहरुख इतनी फिल्मों में माथा चूम चुके हैं कि पता नहीं चल पाता इसका क्रेडिट इम्तियाज़ को दें या शाहरुख को? अपने उलझे घुंघराले बालों की तरह इम्तियाज़ की फिल्मों का पैनोरमा दुविधा का दर्शन समेटे हुए होता है. मगर लगता है इस बार इम्तियाज ने अपने उलझे घुंघराले जीवन जैसे बालों को किसी सस्ते शैम्पू से धोया है, जिसकी महक ने नाक में दम कर दिया है.
इम्तियाज़ अली को 'जब वी मेट' की गीत की तरह खुद का favourite बनना चाहिए नाकि निर्माता गौरी खान का. इम्तियाज़ अपने दिल के पिंड में मौजूद नूरमहल (फ़िल्म में शाहरुख का गांव) में उतर कर देखें और तमाशा के पीयूष मिश्रा की तरह खुद से पूछें कि आखिर चाहता क्या है तू ???????
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