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Updated: 07 मार्च, 2022 09:20 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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उत्तर प्रदेश में सोमवार को सातवें फेज के मतदान के साथ ही देश के पांच प्रमुख राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों का सफर समाप्त हो गया है. उत्तर प्रदेश के साथ उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए हैं. इनमें पंजाब में विधानसभा के चुनाव 20 फरवरी को हुए थे. यहां कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, पंजाब लोक कांग्रेस, बहुजन समा पार्टी और अकाली दल चुनावी दंगल में ताल ठोंक रहे थे. यदि एग्जिट पोल की माने तो पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनती हुई दिखाई दे रही है. इसके साथ ही सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी पंजाब से पूरी तरह साफ होती हुई दिखाई दे रही है. इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल के अनुसार पंजाब में आम आदमी पार्टी को 76 से 90 सीटें मिल रही हैं, जबकि कांग्रेस को महज 19 से 31 सीटों तक ही संतोष करना पड़ रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 117 में से 77 सीटें मिली थी, जबकि आम आदमी पार्टी ने 20 सीटें हासिल हुई थीं. इस बार पूरी तस्वीर बदली हुई नजर आ रही हैं. यदि ये पोल आंकड़ों में तब्दील होते हैं तो AAP के भगवंत मान के सिर सीएम का सेहरा जरूर सजेगा.

इस बार पंजाब में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, शिरोमणि अकाली, बहुजन समाज पार्टी और पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी मैदान में थे. इसके साथ ही किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले एक संगठन के कुछ सदस्य संयुक्त समाज मोर्चा के बैनर तले चुनाव लड़ रहे थे. चुनाव की शुरूआती तस्वीर देखकर ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस लड़ाई में लीड करेगी. लेकिन समय के साथ स्थिति खराब होती गई. वहीं, कुशल चुनाव प्रबंधन और सीएम पद के लिए भगवंत मान का चेहरा घोषित कर चुकी AAP अपनी रणनीतियों की वजह से लगातार अपनी स्थिति मजबूत करती गई. उधर शिरोमणि अकाली दल से अलग होने के बाद अपने लिए ठोस आधार की तलाश कर रही बीजेपी कांग्रेस से अलग हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस और सुखदेव सिंह ढींडसा के शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) के साथ चुनावी समर में उतरी थी. लेकिन उसे कोई खास फायदा होता नहीं दिख रहा है. एग्जिट पोल में बीजेपी गठबंधन को 1 से 4 सीटें मिलती दिख रही हैं. वहीं अकाली दल 7 से 11 सीटों के बीच सिमटता हुआ नजर आ रहा है.

इसके साथ ही वोट शेयर की बात करें तो पंजाब में आम आदमी पार्टी को 41 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है. वहीं, सत्ताधारी कांग्रेस को 28 फीसदी वोट मिल रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी को महज 7 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है. इस तरह से देखा जाए तो आम आदमी पार्टी कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करती हुई नजर आ रही है. जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मालवा और माझा से 77 सीटों में 62 सीटें हासिल की थीं. यहां उसको सबसे बड़ा नुकसान होता हुआ दिखाई दे रहा है. मालवा में अपना बेहतर प्रदर्शन करने वाली AAP का माझा से खाता भी नहीं खुला था. लेकिन इस बार दोनों ही जगहों से उसका प्रदर्शन बहुत ही शानदार रहने की उम्मीद जताई जा रही है. यहां सबसे बड़ी बात ये है कि जिस चरणजीत सिंह चन्नी को अपना चेहरा बनाकर कांग्रेस मैदान में उतरी उनको पार्टी में ही नवोजत सिंह सिद्धू जैसे बड़े नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा. उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. इस तरह सत्ता विरोधी लहर के बीच चन्नी अपनी साख बनाए रखने में असफल साबित होते दिख रहे हैं. हालांकि, 10 मार्च को ही असली तस्वीर दिखाई देगी.

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आइए उन वजहों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं, जिनकी वजह से एग्जिट पोल में कांग्रेस का सूपड़ा साफ होता नजर आ रहा है...

1. आपसी कलह

''हमें तो अपनों ने लूटा गैरो में कहां दम था, मेरी कश्ती वहां डूबी जहां पानी ही कम था''...मिर्ज़ा ग़ालिब का ये शेर फिल्म 'दिलवाले' के एक गाने में इस्तेमाल किया गया था. इसका सीधा मतलब है कि बर्बाद करने वाला घर में ही मौजूद था, हम बाहर तलाशते रहे. यही हाल पंजाब में कांग्रेस का है. विधानसभा चुनाव के ऐलान के साथ ही पंजाब में कांग्रेस की स्थिति बहुत ही मजबूत थी. कैप्टन अमरिंदर सिंह के पार्टी के बाहर जाने के बाद चरणजीत सिंह चन्नी जब सीएम बनाए गए, तो उन्होंने पार्टी की स्थिति बेहतर की थी. उस वक्त पार्टी के पंजाब प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू भी अमरिंदर सिंह के जाने के बाद पूरे मन से लगे हुए थे. लेकिन उसी बीच सिद्धू और चन्नी के रिश्ते तल्ख हो गए. सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया, जिसे आलाकमान ने स्वीकार तो नहीं किया, लेकिन उनके सीएम बनने के सपने को भी पूरा नहीं किया. चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने चन्नी को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया, जिसके बाद सिद्धू नाराज हो गए. उन्होंने खुले तौर पर भले ही कुछ नहीं कहा, लेकिन अंदर-अंदर पार्टी के लिए काम करना बंद कर दिया. इस तरह कांग्रेस पार्टी में आपसी खींचतान की वजह से विरोधियों को आगे बढ़ने का मौका मिल गया. इसमें सबसे ज्यादा फायदा आम आदमी पार्टी ने उठाया है. जो अब सरकार बनाने की ओर है.

2. भ्रष्टाचार का आरोप

विधानसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच प्रवर्तन निदेशालय ने पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के भतीजे भूपिंदर एस हनी के घर छापा मारकर करोड़ों रुपए बरामद किया, जो अवैध रूप से कमाए गए थे. हनी की गिरफ्तारी के बाद ईडी ने आशंका जताई कि उसने करीब 3 करोड़ रुपए ट्रांसफर-पोस्टिंग के जरिए कमाए हैं. इसके अलावा अन्य पैसे अवैध बालू खनन के जरिए उन्होंने पैसे कमाए गए हैं. इसके अलावा 10 करोड़ रुपए से अधिक की रकम हनी और उसके संबंधियों के पास से बरामद की गई है. इस मामले ने चन्नी के चरण किचड़ में फंसा दिए. विपक्षी दल बीजेपी, अकाली दल, पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी और आम आदमी पार्टी आदि ने इस मुद्दे पर कांग्रेस को जमकर घेरा. आम आदमी पार्टी के राष्‍ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि 111 दिन के शासन में चरणजीत सिंह चन्‍नी ने भ्रष्‍टाचार में कमाल किया है. कई लोगों को भ्रष्टाचार करने में चार-पांच साल लगते हैं और उन्होंने 111 दिन में ही इ​तना भ्रष्टाचार किया. ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, लोग देख रहे हैं. हालांकि, चन्नी इन आरोपों से इंकार करते रहे, लेकिन चुनाव में ऐसे नैरेटिव इमेज खराब करने के लिए पर्याप्त माने जाते हैं. इसके साथ ही जब अपने घर के सदस्य ही भीतरघात करें, तो मुखिया असहाय हो जाता है. यही चन्नी का हाल हुआ है.

3. नेतृत्व की उदासीनता

पंजाब में कांग्रेस को अपने केंद्रीय नेतृत्व की उदासीनता की वजह से भी निराश होना पड़ा. देखा जाए तो चुनावी समर में चन्नी पूरी तरह अकेले हो गए थे. उनको राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मदद मिलने की उम्मीद थी. लेकिन प्रियंका गांधी पूरी तरह उत्तर प्रदेश पर फोकस होने की वजह से पंजाब में एक दो बार ही जा पाईं. एक बार तो उनकी उपस्थिति में चन्नी ने यूपी के लोगों के लिए जो विवादित बयान दिया, वो तो कांग्रेस के ही खिलाफ हो गया. राहुल गांधी ज्यादातर वर्चुअल रैली ही करते हुए ही नजर आए. नवोज सिंह सिद्धू चन्नी को जब सीएम पद का चेहरा घोषित कर दिया गया, तो नाराज होकर बैठ गए. इसके साथ ही उनकी अपनी सीट पर मुकाबला कड़ा था, जिसकी वजह से उनका पूरा फोकस पंजाब की बजाए अपनी सीट पर ही बना रहा. इस तरह चन्नी अकेले पड़ गए और उसका फायदा आम आदमी पार्टी ने उठा लिया. केजरीवाल पूरे चुनाव में सक्रिय रहे हैं.

4. एंटी इनकंबेंसी

कई बार सूबे में सत्ताधारी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर परवान चढ जाती है. इसकी वजह से सत्ता पक्ष को चुनावों में भारी नुकसान उठाना पड़ता है. कई बार तो सरकार चली जाती है. एंटी इनकंबेंसी का दायरा कई बार सीएम से लेकर एमएलए तक होता है. लोग सरकारी नीतियों की वजह से नाराज होते हैं, तो उसका विकल्प तलाश करते हैं. कई बार अपने क्षेत्र के प्रतिनिधि जैसे विधायकों से नाराज होते हैं, तो उनकी जगह नए कैंडिडेट की मांग करते हैं. इस बार पंजाब में कांग्रेस को भी एंटी इनकंबेंसी का सामना करना पड़ा है. क्योंकि पांच साल के कार्यकाल में कांग्रेस ने सूबे के लिए कुछ खास नहीं किया है. वरना पंजाब में कृषि से संबंधित 50362 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल है. 42 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है. इसके बाद भी अभी तक की सरकारों के द्वारा किसानों के लिए कुछ खास नहीं किया गया है. राजनीतिक दलों को सत्ता की गद्दी तक पहुंचाने की क्षमता रखने वाले किसानों को हमेशा से ही इन राजनीतिक दलों ने उपेक्षित ही रखा है. इसका गुस्सा भी किसानों में था. पंजाब में किसान एक बड़ी संख्या में हैं. वो सरकार बनाने और बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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