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Updated: 01 फरवरी, 2022 11:10 PM
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21 साल पहले साल 2001 में बॉलीवुड को जब उद्योग को दर्जा मिला, तो फिल्म मेकर्स को लगा कि दूसरे उद्योगों की तरह उनको सरकार की तरफ से समय-समय पर सुविधाएं मिलती रहेंगी. इसके बाद कोरोना काल में जब सरकार देश के अलग-अलग उद्योगों के लिए बूस्टर पैकेज दे रही थी, उस वक्त भी बॉलीवुड के हाथ खाली थे. इन निराशाओं के बावजूद इस वित्त वर्ष के लिए जब आम बजट पेश होना, तो एक बार फिल्म इंडस्ट्री को लगा कि सरकार उनके लिए राहते के ऐलान जरूर करेगी. यही वजह कि बजट से पहले प्रोड्यूसर गिल्ड ऑफ इंडिया ने पांच सूत्रीय मांग केंद्रीय वित्त मंत्री के सामने रख दी थी. लेकिन इस बार भी आम बजट में बॉलीवुड को निराशा ही हाथ लगी है. इस साल सरकार ने 2021-22 के लिए 34.8 लाख करोड़ रुपए का बजट पेश किया है, जिसमें एक रुपए भी सीधे फिल्म इंडस्ट्री के नाम नहीं है.

फिल्म इंडस्ट्री के अलावा बाकी उद्योगों की तरफ से इस बजट के लिए सकारात्मक प्रतिक्रिया आ रही है. क्योंकि सरकार ने इन उद्योगों के लिए कई बड़े पैकेज का ऐलान पहले ही किया था. खासकर कोरोना के वक्त सबसे ज्यादा प्रभावित कारोबारी के लिए 15 हजार 700 करोड़ रुपए का ऐलान किया था. इस बार भी पैकेज का ऐलान किया गया. इसके साथ ही GST पर फील गुड फैक्टर का भी जिक्र हुआ. इस बार आम बजट में मध्यम लघु उद्योगों के लिए अगले 5 साल के लिए 6 हजार करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है. हालांकि, इस बजट में जीएसटी की दरें कम करने की भी मांग की गई थी, जो पूरी नहीं हुई. यदि ऐसा होता तो इससे महंगाई तो कम होती ही, आम जनता के साथ-साथ कारोबारियों को भी राहत मिलती. छोटे कारोबारी को रहात देने के लिए जीएसटी की दरें कम करना बहुत जरूरी थी.

untitled-2-650_020122100247.jpgइस बार के आम बजट में नए थियेटर और स्क्रीन शुरू करने के लिए आसान लोन देने की मांग की गई थी.

बॉलीवुड की मांगे क्या थीं?

फिल्म इंडस्ट्री ने कोरोना काल में हुए अपने आर्थिक नुकसानों की भरपाई और भविष्य में बॉलीवुड को एक उद्योग के रूप में अधिक मजबूत बनाने के लिए कई सारी मांगे की थीं, लेकिन इस बजट में उनमें से एक भी पूरी नहीं हुई हैं. बॉलीवुड ने सबसे प्रमुख वर्किंग कैपिटल में सरकार से मदद मांगा था. जानकारी के लिए बता दें कि वर्किंग कैपिटल वो राशि होती है जिससे किसी फर्म की क्षमता और शॉर्ट टर्म फाइनेंस के बारे में समझा जाता है. सीधे तौर पर कहें तो वर्तमान संपत्ति और कर्ज के बीच के अंतर को ही वर्किंग कैपिटल कहते हैं. इसके साथ ही एग्जीब्यूटर्स की मांग थी कि नए थियेटर और स्क्रीन शुरू करने के लिए आसान लोन देने की व्यवस्था बनाई जाए. अगले साल के घाटे को आगे ले जाने की इजाजत दी जाए. प्रोडक्शन के लिए लोन पर मोरेटोरियम की व्यवस्था की जाए. पेमेंट पर टीडीएस कम करने की मांग भी हुई थी.

इन सबके बीच फिल्म टिकट पर लगने वाली जीएसटी की दर को लेकर बॉलीवुड की शुरू से ही मांग रही है कि इसे निचले स्लैब में शामिल किया जाए. इस वक्त 100 रुपये से ज्यादा की टिकट पर 18 फीसदी और 100 रुपये से कम टिकट पर 12 फीसदी जीएसटी वसूली जा रही है. इसकी वजह से फिल्म का टिकट बहुत महंगा हो जा रहा है. यदि् यह दर कम हो तो एक्जिबिटर्स का कर बोझ कम होगा. इससे दर्शकों को कम कीमत पर फिल्म देखने को मिलेगी. इसके साथ ही प्रोड्यूसर्स को भी एक्जिबिटर्स से ज्यादा हिस्सा मिल पाएगा. फिल्म प्रोड्यूसर्स का एक और संगठन इंडियन मोशन पिक्चर्स प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन पहले ही वित्त मंत्रालय को फिल्म उद्योग के लिए जीएसटी हटाने की या रेट कम करने की मांग उठा चुका है. लेकिन उनकी मांग पर अभी तक सरकार की तरफ से कोई ध्यान नहीं दिया गया है.

क्या पूरी हुई उम्मीदें?

फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लॉई के अध्यक्ष बीएन तिवारी ने आजतक से बातचीत में कहा, ''बजट में अक्सर बॉलीवुड इंडस्ट्री को नजरअंदाज कर दिया जाता है. शायद ही कभी फिल्म इंडस्ट्री के फायदे पर कोई बजट रहा हो. मैं चाहता हूं कि हमारे वर्कर्स के लिए सोचें और उनके लिए कुछ करें. हमारे जितने भी अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर हैं, उसके लिए कोई न कोई सुविधा होनी चाहिए, जिस पर अभी तक ध्यान नहीं दिया गया है. न सेंट्रल और न ही स्टेट गर्वनमेंट ने फिल्म इंडस्ट्री का सोचा है. इस साल कहीं, तो हमारा जिक्र हो. लेबर कोर्ट जो बना है, उसमें हमारे वर्कर्स के बारे में सोचा जाए और उनके लिए कुछ किया जाए. इस कोरोना के दौरान हमारे कितने वर्कर्स बेरोजगार हो गए और कितनों ने तो भुखमरी से अपनी जान गंवा दी. आज भी 50 प्रतिशत लोग बेरोजगार बैठे हैं, जैसे-तैसे काम चला रहे हैं.''

इंडियन फिल्म्स एंड टेलीविजन प्रोड्यूसर्स काउंसिल टीवी विंग के चेयरमैन जेडी मजीठिया का कहना है, ''इस साल सरकार को तो हमारी तरफ ज्यादा ध्यान देना चाहिए था क्योंकि इस बार सबसे ज्यादा कोई घाटे में हैं, तो वो है, हम प्रोड्यूसर्स. सबसे ज्यादा नुकसान हम झेल रहे हैं. पिछले दो सालों में एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को भारी नुकसान हुआ है. टैक्स की बात करूं, तो इसमें थोड़ी रियायत मिलनी चाहिए थी. वहीं हम चाहते हैं कि हमें भी एक इंडस्ट्री का स्टेटस का दर्जा केवल पेपर पर ही न मिले. अब उसके एक्जीक्यूशन का वक्त है. ऐसी आपातकालीन स्थिति में हम प्रोड्यूसर्स सरवाइव नहीं कर पाते हैं. यदि इंडस्ट्री स्टेटस लागू किया जाता, तो बैंक फंडिंग और बाकी इनवेस्टमेंट्स के दौरान चीजें थोड़ी आसान हो जाएंगी. इसके अलावा बैकबोन सपोर्ट भी मिलेगा. चीजें और भी ज्यादा सेफ और सिक्योर हो जाएंगी.''

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