कहानी एक मजबूर बच्चे के मधुर भंडारकर बनने की
बॉलीवुड के इस स्टाइलिश डायरेक्टर और इसके जबर्दस्त हिट कॅरिअर के पीछे है संघर्ष की कहानी.
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छठी क्लास में पढ़ने वाले बच्चे पर दुखों का पहाड़ टूटा. पिता को बिजनेस में जबरदस्त घाटा हुआ था. उसे स्कूल से निकाल दिया. घर का बोझ अब मासूम के कंघों पर था. बच्चे ने घर-घर वीडियो कैसेट्स पहुंचाने का काम किया. मुंबई के ट्रैफिक सिग्नलों पर च्विंगम बेची, लेकिन हिम्मत नहीं हारी. सिद्धी विनायक का ये भक्त सतत संघर्ष करता रहा. लगन, हिम्मत, हौसले, ईमानदारी ने इसे सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार दिला दिया. इसकी फिल्मों में काम करके तीन-तीन हिरोइनों को भी सर्वश्रेष्ठ हिरोइन का पुरस्कार मिला.
ये कहानी है एक मजबूर बच्चे के मशहूर फिल्म निर्माता, निर्देशक और लेखक बनने वाले मधुर भंडारकर की. बात उस समय की है जब मधुर केवल 12 साल के थे और मुंबई के खार के हरि भवन में अपने मराठी ब्राह्मण माता-पिता और बड़ी बहन के साथ रहते थे. मधुर अपनी बहन के लाड़ले थे. छोटा सा सुखी परिवार था.
मधुर की जिन्दगी में अचानक उस वक्त भूचाल आया जब पिता को व्यापार में भारी घाटा हुआ. मुसीबत जब आती है तो चारों तरफ से आती है. छठी क्लास में पढ़ रहे मधुर को फीस न दे पाने की वजह से स्कूल ने भी निकाल दिया. घर की मदद के लिए मधुर को वीडियो कैसेट्स की शॉप पर काम करना पड़ा. वो घर-घर जाकर वाडियो कैसेट्स लोगों को किराए पर दिया करते थे. यहां से जो पैसे मिलते वो घर के लिए कम पड़ते थे. जो वक्त बचता मधुर ट्रैफिक सिग्नलों पर च्विंगम बेचकर घर कुछ और पैसे ले जाने का जुगाड़ करते.
लंबे अरसे तक ये सिलसिला चलता रहा. वीडियो कैसेट्स बेचते-बेचते मधुर बड़े हो रहे थे, मन कुछ और करने को उकसा रहा था, फिल्मों की तरफ भी उनका झुकाव हो रहा था. किसी निर्देशक ने मधुर को सहायक के तौर पर कुछ दिनों के लिए रख लिया. बस मधुर को मिल गया मौका. तेज दिमाग वाले, लगन और धुन के पक्के मधुर ने फिल्म निर्माण की बारीकियों को यहां सीखा समझा. मधुर को राह दिखाई दे गई थी. मंजिल की तरफ उन्होंने कदम बढ़ा दिए. भारतीय सभ्यता संस्कृति के पैरोकार मधुर को समाज की विसंगतियां, कुरीतियां परेशान करतीं हैं, इसीलिए उनकी हर फिल्म में समाज का कोई ना कोई मुद्दा ही प्रमुख होता है.
आज मधुर भंडारकर न केवल सफल फिल्म निर्देशक हैं बल्कि इनकी छवि एक बुद्धिजीवी की भी है. मधुर टीवी, अखबार, पत्रिकाओं में सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय और टिप्पियों के लिए भी जाने जाते हैं. पढ़ने-लिखने के बेहद शौकीन हैं मधुर. घंटों किताबें पढ़ते रहते हैं. उन्हें बायोग्राफी पढ़ने का जबरदस्त शौक है. मधुर देश-दुनिया के तमाम दिग्गजों की बायोग्राफी या तो पढ़ चुके हैं, पढ़ रहे हैं और भविष्य में पढ़ लेना चाहते हैं.
मधुर की दिनचर्या में ऑफिस के काम, पत्नी रेणु और प्यारी सी बिटिया सिद्धी के साथ वक्त गुजारने के अलावा एक और महत्वपूर्ण काम है. मधुर हर रोज एक फिल्म जरूर देखते हैं. वो फिल्म दुनिया की किसी भी भाषा की हो सकती है लेकिन तमाम व्यस्तताओं के बाद भी उनका ये सिलसिला कायम है. पत्नी रेणु और बिटिया सिद्धी उनकी जान हैं. मधुर कहते हैं बेटी जो बनना चाहेगी बनेगी लेकिन वो उसे मराठी, संस्कृत, वेद की शिक्षा दिला रहे हैं. बेटी को अपनी सभ्यता संस्कृति को जानने-समझने के लिए उन्होंने बाकायदा एक टीचर लगाया है. मधुर का मानना है कि फिल्म इंडस्ट्री में उनका कोई दोस्त नहीं है और ना ही कोई दुश्मन.
बेहद इमोशनल हैं मधुर. बड़ी बहन को याद करते हुए कहते हैं कि ताई ने शुरू से काफी मदद की है. आज माता-पिता का साया मधुर के सिर पर नहीं है लेकिन उनके आशीर्वाद का ही ये फल है कि मधुर एक के बाद एक सफल फिल्में बना पाने में कामयाब होते हैं. जब मधुर को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था तो उसे लेने के लिए मधुर अपनी मां के साथ गए थे. मधुर की फिल्म कैलेंडर गर्ल्स रीलीज होने वाली है.
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