आएशा सुल्ताना पर देशद्रोह का केस: फिल्म मेकर को ऐसा बयान देने की जरूरत ही क्या थी?
फिल्म मेकर और एक्टिविस्ट आएशा सुल्ताना पर देशद्रोह का मामला दर्ज हुआ है. दरअसल, उन्होंने एक टीवी बहस के दौरान कोरोना संक्रमण को लेकर सरकार पर बेसिरपैर के आरोप जड़ दिए.
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बड़बोली-मूर्खताओं का कोई इलाज नहीं है. राजनीतिक वैचारिकता में अलग दिखने कोशिश में लोग पता नहीं क्या-क्या बकवास बोल जाते हैं. फिल्म मेकर और एक्टिविस्ट आएशा सुल्ताना पर भी ऐसे ही एक बयान की वजह से देशद्रोह का मामला दर्ज हुआ है. दरअसल, उन्होंने एक टीवी बहस में कोरोना संक्रमण को लेकर सरकार पर बेसिरपैर के आरोप लगा दिए. कथित तौर पर उन्होंने कहा कि लक्षद्वीप में कोरोना संक्रमण के प्रसार के लिए सरकार ने कोविड 19 का इस्तेमाल, जैविक हथियार के रूप में किया.
बीजेपी की लक्षद्वीप यूनिट ने आएशा के बयान पर कड़ी आपत्ति जताई और मामले की शिकायत की गई थी. लक्षद्वीप ईकाई के अध्यक्ष अब्दुल खादर की शिकायत पर कवरत्ती पुलिस ने 124 A यानी राजद्रोह और 153 B यानी हेटस्पीच के तहत मामला दर्ज कर लिया है. खादर के मुताबिक़ केंद्र सरकार की छवि खराब करने के मकसद से ही उन्होंने राष्ट्रविरोधी बयान दिया गया. आएशा के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए. हालांकि आएशा ने एक फेसबुक पोस्ट में सफाई देते हुए कहा कि उनके बयान को गलत तरह से लिया जा रहा है. उन्होंने मलयालम टीवी चैनल पर सरकार या देश की बजाय पटेल (लक्षद्वीप के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल) के नीतियों की तुलना 'बायो वेपन' से की थी.
विरोध का मतलब कुछ भी कहना नहीं
सरकार की नीतियों से असहमत हुआ जा सकता है और किसी भी मामले पर सवाल उठाने का हक़ लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर नागरिक को मिलता है. किसी पार्टी सरकार के प्रति वैचारिक भिन्नता अलग बात है मगर इसका ये मतलब तो बिल्कुल नहीं कि बेसिरपैर के तर्कों के आधार पर कुछ भी आरोप लगाए जा सकते हैं. वो भी टीवी पर बैठकर लाखों दर्शकों के सामने. कोई वैक्सीन को भाजपाई बताते हुए वैज्ञानिकों की मेहनत का माखौल उड़ा रहा तो टीकाकरण को लेकर एक समुदाय विशेष में कई तरह की दूसरी खतरनाक अफवाहें फैलाई जा रही हैं. दुनिया की समूची मानवता महामारी में मुश्किल हालात से गुजर रही है और ताज्जुब होता है कि देश में धार्मिक राजनीतिक आधारों पर इसका इस्तेमाल 'अभिष्ट' साधने के लिए 'ब्रह्मास्त्र' की तरह किया जा रहा है.
लक्षद्वीप भारत का सबसे छोटा केंद्र शासित राज्य है. 2011 की जनगणना के मुताबिक़ केंद्र शासित राज्य में सबसे ज्यादा मुसलमान हैं जो आबादी का 96 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा हैं. केंद्र में भाजपा की सरकार है. मुस्लिमों का बड़ा तबका भाजपा की राजनीति का विरोध करता है. संविधान ने विरोध का हक़ भी दिया है. आएशा यहीं की हैं और इस लिहाज से उनका बयान निहायत ही संवेदनशील और भड़काऊ दिखता है. इसके कई मायने भी निकलते हैं. ये बयान किसी साधारण नागरिक का नहीं हैं बल्कि आएशा की ओर से लगाया गया हैं. आएशा जैसे लोग जो सार्वजनिक जीवन में हैं और व्यापक स्तर पर पब्लिक ओपिनियन तैयार करते हैं. सोचने वाली बात है कि जो लोग आएशा से प्रभावित हैं भला उनकी बातों को सुनकर क्या धारणा बनाएंगे?
एक मिनट के लिए आएशा की सफाई को सही भी मान लिया जाए कि रूपक के तौर पर उन्होंने पटेल के लिए "बायो वेपन" शब्द का इस्तेमाल किया तो भी इसे किसी भी फ्रेम में जायज नहीं ठहराया जा सकता. पटेल, सरकार की नीति नियंता का ही एक अंग हैं. और नीति नियंता भला कैसे अपने नागरिकों के लिए बायो वेपन हो सकता है. और अगर वो सचमुच बायो वेपन ही है तो उन्हें सबूत पेश कर सही उचित जगह पर कार्रवाई के लिए जोर देना चाहिए ना कि टीवी बहस के जरिए अफवाह फैलाना चाहिए. उनके बयान से तो यही साउंड हो रहा कि धार्मिक विद्वेष की वजह से एक समुदाय को किसी और ने नहीं व्यवस्था ने ही निशाना बनाया. क्योंकि जो पार्टी फिलहाल व्यवस्था नियंत्रित कर रही है उस पर पहले से ही "मुस्लिम विरोधी" होने का ठप्पा लगा हुआ है.
मोदी सरकार और भाजपा का विरोध किसी भी सूरत में गलत बात नहीं है, लेकिन आएशा को तो ये अच्छी तरह से पता होगा कि व्यवस्था में पटेल के विरोध के लिए कई प्लेटफॉर्म हैं. उन्हें वहां मजबूती के साथ अपनी बात और तर्क रखने चाहिए थे. लेकिन एक टीवी प्लेटफॉर्म पर जिस शब्दावली में उन्होंने बात रखी, कैसे ना माना जाए कि वो बड़े पैमाने पर लक्षद्वीप प्रशासन के खिलाफ वहां के नागरिकों को भड़काने के लिए पर्याप्त है?
लक्षद्वीप के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल ने दिसंबर 2020 में कार्यभार हाथ में लिया था. उनसे पहले तक लक्षद्वीप में संक्रमण का कोई मामला नहीं था. बताया जा रहा कि पहले नियम ही ऐसे थे. लेकिन पटेल के आने बाद से 9000 मामले सामने आए. और इसी में आएशा और उनके समर्थकों को साजिश की बू आ रही है. आएशा कैसे भूल रहीं कि अकेले लक्षद्वीप ही नहीं, देश के कई इलाके जहां नाममात्र के केसेज थे वहां महामारी की दूसरी लहर ने विकराल रूप दिखाया. कोविड संक्रमण के नियंत्रण में पटेल की कार्यप्रणाली से शिकायत रखने वालों को (आएशा भी) उन तब्दीलियों पर सवाल उठाने चाहिए थे जिनकी वजह से हालत बदतर हुए, ना कि उसके पीछे साजिश के सूत्र तलाशने चाहिए थे.
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