'काला' देखने के लिए रजनीकांत का फैन होना जरूरी है
कोई भी कलाकार किरदार से बड़ा नहीं होता, कलाकार की पहचान किरदार से बनती है लेकिन रजनीकांत किरदार से बड़े हो गये हैं, वो जो भी किरदार निभाते हैं उसमें सुपर स्टार रजनीकांत ही नजर आता है.
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जब फिल्म के हीरो हों रजनीकांत तो ये मान के चलना चाहिये कि फिल्म में एक्शन, कॉमेडी, ड्रामा, मैलोड्रामा और रजनीकांत एक मसीहा की तरह निकलकर आएंगे. ये सब तो होगा ही, दिलचस्प बात ये है कि रजनीकांत के फैन्स के लिये सारे घिसेपिटे फॉर्मूलों के बाद भी सुपर स्टार रजनीकांत की फिल्म के प्रति उत्सुकता कम नहीं होती और इसी को स्टारडम कहते हैं.
कोई भी कलाकार किरदार से बड़ा नहीं होता, कलाकार की पहचान किरदार से बनती है लेकिन रजनीकांत किरदार से बड़े हो गये हैं, वो जो भी किरदार निभाते हैं उसमें सुपर स्टार रजनीकांत ही नजर आता है. अब ये अच्छी बात है या बुरी बात लेकिन रजनीकांत के लिये सब चलता है. रजनीकांत अपने अभिनय से ज्यादा अपने स्टाइल के लिये जाने जाते हैं. यही सब मिलेगा उनकी लेटेस्ट फिल्म "काला" में भी.
क्यों देखें रजनीकांत की फिल्म "काला"
1) "काला" में सुपर स्टार रजनीकांत टाइटल रोल निभा रहे हैं.
2) फिल्म में रजनीकांत मुंबई के इलाके धारावी के ताकतवर डॉन के अवतार में दिखेंगे.
3) काले कपड़ों में रजनीकांत एक साथ दस-दस गुंडों की धुलाई करते नजर आएंगे.
4) तमिल सुपर स्टार दो साल के बाद फिल्मी पर्दे पर दिखेंगे और जब फिल्म रजनीकांत की हो, तो उनके फैन्स के लिये वो पल किसी त्योहार से कम नहीं होता.
5) फिल्मी पर्दे पर रजनीकांत की टक्कर नाना पाटकर से.
फिल्म की कहानी
धारावी इलाके में पॉलिटिशियन और बिल्डर्स मिलकर एक बडा कॉप्लेक्स बनाना चाहते हैं और उसके बदले में वहां रहनेवाले लोगों को छोटे फ़्लैट्स देने की बात करते हैं लेकिन धारावी का डॉन "काला" यानी रजनीकांत जो धारावी के लिये किसी मसीहे से कम नहीं है उन्हें समझाता है कि उनका अस्तित्व उनकी ज़मीन से है और फिर शुरू होता है युद्ध, पॉलिटिकल लीडर हरी देव (नाना पाटेकर) और काला (रजनीकांत) के बीच. ज़बरदस्त मार-धाड़, खूनखराबे के बाद आखिर में जीत किसकी होती है और क्या काला अपने लोगों को इंसाफ दिला पाता है या नहीं.
फिल्म की कहानी बेहद सरल और घिसीपिटी है लेकिन धारावी का बैकड्रॉप दिलचस्प है, फिल्म में कॉमेडी ड्रामा और एक्शन डालने के चक्कर में फिल्म लंबी ज़रूर लगती है, दो घंटे चालीस मिनट की फिल्म सिर्फ दो घंटे की होती तो फिल्म के लिये बेहतर होता. मुरली जी की सिनेमेटोग्राफ़ी जानदार है, स्रीकर प्रसाद की एडिटिंग बेहतर हो सकती थी.
एक्टिंग के डिपार्टमेंट में बात सबसे पहले सुपर स्टार रजनीकांत की, अपनी पिछली फिल्म "कबाली" के बाद एक बार फिर रजनीकांत अपनी उम्र का किरदार निभाते हैं, फिल्म में उनके चार बच्चे हैं, पत्नी, पोते-पोती हैं, लेकिन स्टाइल रजनीकांत का ही है, चाहे विलेन के सामने डायलॉग बोलना हो, या गुंडों को मारना हो, हर जगह रजनीकांत का अंदाज किरदार पर हावी होता है. रजनीकांत के लिये सिर्फ यही कहेंगे कि वो जो करते आए हैं सालों से उन्होंने वही किया है, कुछ नयापन नहीं है लेकिन रजनी अपने फैन्स को एंटरटेन करने में कामयाब होते हैं.
अब बात इस फिल्म के खलनायक यानी नाना पाटेकर की, नाना ने अपने किरदार को बेहद सहजता से निभाया है, एक खतरनाक और पावरफुल पॉलिटिशियन जो अपने सपनों को हकीकत का जामा पहनाने के लिये किसी भी हद तक जा सकता है. ऐसे पॉलिटिशियन के किरदार में नाना ने चार चांद लगा दिए. नाना पाटेकर और रजनीकांत जब आमने-सामने होते हैं तो एक्टर और स्टार में अंतर क्या होता है साफ दिखता है. "काला" में खलनायक अगर नाना पाटेकर ना होते तो ये फिल्म औंधे मुंह गिरती.
हुमा कुरैशी मिसफिट लगती हैं, अंजली पाटिल अपनी छाप छोड़ने मे कामयाब होती हैं और नेशनल अवॉर्ड विनिंग एक्टर पंकज त्रिपाठी को इस तरह के रोल करने से बचना चाहिए.
निर्देशक पा रंजीत स्क्रीनप्ले के डिपार्टमेंट में थोड़ा चूक गए. वो रजनीकांत की सुपर स्टार इमेज के साथ इंसाफ करने के चक्कर में फिल्म के साथ पूरी तरह से इंसाफ नहीं कर पाए. कुलमिलाकर कितनी भी कमियां और खामियां हों अगर आप रजनीकांत के फैन हैं तो अपने हिस्से का एंटरटेनमेंट ढूंढ ही लेंगे.
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