बॉलीवुड की तरह दलितों की आंख में धूल नहीं झोंकते पा रंजीत, उन्हें असल हीरो बनाते हैं
नजरिए की वजह से पा रंजीत का सिनेमा हमेशा लीक से बिल्कुल हटकर होता है. कई बार वो सिनेमाई एक्टिविस्ट की तरह लगते हैं, लेकिन उनका एक्टिविज्म ऑफ़बीट नहीं है. बल्कि लोकप्रिय धारा में व्यापक रूप से मनोरंजन कर रहा है. सफलता के कीर्तिमान भी रच रहा है और एक नजरिया बनाने की दिशा में काम कर रहा है.
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भारतीय सिनेमा में पा रंजीत सितारे की तरह बहुत तेजी से चमके हैं. इसकी वजह उनका अपना नजरिया है जो सिनेमा को देखने-दिखाने के मायने बदल रहा है. रजनीकांत के साथ कबाली और काला जैसी ब्लॉकबस्टर बना चुके रंजीत अब पीरियड स्पोर्ट्स ड्रामा सरपट्टा परम्बरई (Sarpatta Parambarai) लेकर आ रहे हैं. तमिल में बनी ये फिल्म 22 जुलाई को अमेजन प्राइम पर रिलीज हो रही है. इसे हिंदी में भी डब किया गया है. फिल्म का ट्रेलर काफी असरदार और भव्य है. तमिल फिल्म का हिंदी के दर्शकों को भी बेसब्री से इंतज़ार है. आर्या मुख्य भूमिका निभा रहे हैं. जबकि अन्य कलाकारों में दशरा विजयन, पशुपति, अनुपम कुमार और संचना नटराजन अहम हैं.
नजरिए की वजह से पा रंजीत का सिनेमा हमेशा लीक से बिल्कुल हटकर होता है. कई बार वो सिनेमाई एक्टिविस्ट की तरह लगते हैं, लेकिन उनका एक्टिविज्म ऑफ़बीट नहीं है. बल्कि लोकप्रिय धारा में व्यापक रूप से मनोरंजन कर रहा है. सफलता के कीर्तिमान भी रच रहा है और एक नजरिया बनाने की दिशा में काम कर रहा है. उनका सिनेमा समाज के शोषित तबके को प्रेरित भी कर रहा है. उन्हें दिशा दे रहा है. वंचित समाज से आने वाला उनका किरदार सिनेमाई पर्दे पर हालात का मारा, परास्त और लाचार नहीं दिखता. वो हर मुश्किल हालात में जूझने को तैयार है, और इसी प्रवृत्ति से आखिर में विजेता बनता है. रंजीत दलितों को लेकर बॉलीवुड की तरह आंखों में धूल नहीं झोंकते. बल्कि उन्हें हीरो बनाते हैं. बॉलीवुड की तरह सेंसेटिव टॉपिक पर प्रचार के लिए कंट्रोवर्सी नहीं खड़ी करते बल्कि संतुलित, सहज और तार्किक रूप से बहस करते हैं.
रंजीत अपनी फिल्मों में इन बहसों को प्रतीकों के जरिए आगे बढ़ाते हैं. उन्हें बॉलीवुड की तरह कभी इसके लिए नायक और खलनायक के जाति बताने या संवादों की बहुत जरूरत नहीं पड़ती. उनका नायक भले शोषित है मगर ऊंची जाति के उद्धारक के इंतज़ार में बैठा नहीं रहता. यही वजह है कि अनुभव सिन्हा जिस वक्त ऊंची जाति के उद्धारक पुलिस अफसर की कहानी आर्टिकल 15 बनाकर अपनी आइडियोलाजी को जबरदस्ती जस्टिफाई करते दिखते हैं उससे पहले ही रंजीत निम्न जाति के दमदार किरदार को लेकर काला बनाते हैं. विलेन की तुलना में काला कुछ नहीं है. मगर काला की ताकत, संसाधन और स्वाभिमान उसका अपना समाज है. क्या इत्तेफाक है कि जब राकेश ओमप्रकाश मेहरा बॉलीवुड में हिंदू-मुस्लिम और लवजिहाद की चासनी में एक बॉक्सर की कहानी तूफ़ान कहने की कोशिश करते हैं, रंजीत सरपट्टा लेकर आ रहे हैं. इसका ट्रेलर आ चुका है. इसके हर फ्रेम फ्रेम से ही उनका विजन साफ़ है.
सरपट्टा के ट्रेलर का लगभग हर फ्रेम समाज में लेयर्ड कास्ट सिस्टम को चुनौती देता दिख रहा है. और तूफ़ान में? राकेश मेहरा यह अंत तक तय नहीं कर पाए कि इसे मौजूदा परिवेश में एक लावारिस मुस्लिम युवा की कहानी के रूप में दिखाए या फिर एक बॉक्सर के रूप में. उनके नायक का दोनोंम रूप एक हुआ ही नहीं या फिर किया ही नहीं गया. कन्फ्यूजन का असर ये हुआ कि तूफ़ान का बॉक्सर ना तो अपनी कहानी कह पाता है और ना ही उन धार्मिक राजनीतिक हालात का जिससे उसका हर सेकेंड सामना होता है. रंजीत के सिनेमा में यही कन्फ्यूजन नहीं होता. वो पहले सेकेंड से ही साफ रहते हैं कि उन्हें कहना क्या है.
यहां नीचे सरपट्टा का ट्रेलर देखें :-
बॉलीवुड के मुख्यधारा के सिनेमा में दलित नायक बनकर नहीं उभर पाता है. उसके शोषण की आवाजें तो हैं मगर उसे न्याय दिलाने वाला उद्धारक भी है. बॉलीवुड का दलित स्टीरियोटाइप है. बेहद गरीब, डरा हुआ है, अशिक्षित यहां तक कि कुरूप भी. बॉलीवुड सिनेमा का वंचित समाज दया का पात्र है. हालात को नियति मानकर गर्व से विहिन है. वो किसी रॉबिनहुड का इंतज़ार कर रहा है. यही वजह है कि बॉलीवुड दलितों का नजरिया ही नहीं कह पाता. दलितों के लिए अपनी मानवीय सीमा में नजरिया गढ़ता है उसका उद्धारक. सोचने वाली बात है कि जिसने पीड़ा भोगा ही नहीं है भला वो उसे लेकर स्पष्ट और न्यायपूर्ण नजरिया कैसे दे सकता है? इससे मकसद और मौके तक तो बात ही नहीं पहुंचेगी.
मुख्यधारा में बॉलीवुड लोकप्रिय सिनेमा का यही अंदाज है. वो गफलत ज्यादा पैदा करता है. केवल भ्रम होता है. मूल सवालों की बजाए गैरजरूरी सवालों में उलझाता दिखता है. बॉलीवुड के सिनेमा में वंचित तबका ना तो अपने मकसद को हासिल कर पाता है और ना ही संसाधनों की खोज. वो भटकाव का शिकार हो जाता है और शापित की तरह यथास्थिति भोगता है. पा रंजीत ने सिनेमा की इसी परिपाटी को बिल्कुल उलट-पलट दिया है. कबाली और काला की कड़ी में सरपट्टा उनका ऐसा ही एक नया शाहकार है. इस फिल्म में भी रंजीत मनोरंजन के साथ दर्शकों को एक सामजिक-राजनीतिक नजरिया दे रहे हैं. उन्हें प्रेरित करते हुए रास्ता दिखा रहे हैं कि असल में करना क्या है? तुम लड़ सकते हो, तुम्हें लड़ना है और जीतना है.
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