New

होम -> सिनेमा

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 25 जून, 2021 08:28 PM
सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
  @siddhartarora2812
  • Total Shares

कहानी शुरु होती रांची रेलवे स्टेशन से जहां एक फ्रीलांसर पत्रकार संतोष जैसवाल (श्रीधर दुबे) किसी उस्मान नामक शख्स के लड़कों को एक बहुत इम्पोर्टेन्ट फाइल देने आया है लेकिन यह फाइल गुंडे भी हथियाना चाहते हैं. इस भागम-भाग में संतोष का एक्सीडेंट हो जाता है और वो फाइल जला दी जाती है. दूसरी ओर, एसपी अमृता सिंह (ज़ोया हुसैन) इस केस की तहकीकात करती हैं पर साथ ही सिस्टम से तंग होकर वो ये जॉब छोड़ने का मन बना चुकी हैं. तीसरी ओर 1984 बोकारो में हुए दंगों की फाइल्स फिर से खुल रही हैं, मौजूदा सीएम केदार भगत (सत्यकाम आनंद) इस जांच को लीड करने के लिए एसपी अमृता सिंह को ही चुनते हैं. इसी सिलसिले में कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए पता चलता है कि अमृता के पिता, सरदार गुरसेवक सिंह (पवन मल्होत्रा) असल में ऋषि रंजन (अंशुमन पुष्कर) हैं और यही उस दंगे के लीडर थे. इन्होने ही कई दुकाने लूटी थीं, यूनियन लीडर संजय सिंह (तीकम जोशी) के कहने पर हथियार भी मुहैया करवाए थे.

Grahan Webseries, Web Series, Sikh Riots, Zoya Hussain, Pavan Malhotra, Satya Vyasग्रहण के साथ अच्छी बात ये है कि जिस थीम को ध्यान में रखकर इसे बनाया गया ये उसे निभाने में कामयाब रही

इसी के साथ, पेरेलल-फ्लैशबैक भी चल रहा है जहां ऋषि और मनु उर्फ़ मंजीत छाबड़ा (वामिका गब्बी) एक दूसरे पर दिल हारने लगे हैं. जहां 2016 की कहानी में थ्रिल बना हुआ है वहीं फ्लैशबेक 1984 में रोमांस और ड्रामा माहौल को हल्का करने में मदद करते हैं. आठ एपिसोड में पिरोई ये सीरीज़ लेखक सत्य व्यास के बहुचर्चित नॉवेल चौरासी पर आधारित ज़रूर है पर इसमें बहुत कुछ ऐसा जो चौरासी से अलग हटकर है या मैं ये लिखूं कि चौरासी से आगे जोड़ दिया गया है.

डायरेक्टर रंजन चंदेल पहले दो एपिसोड में स्ट्रगल करते नज़र आते हैं, डायरेक्शन भटका हुआ लगता है लेकिन धीरे-धीरे, तीसरे एपिसोड से कहानी में ग्रिप बनने लगती है और नज़र हथेली पर रखी स्क्रीन पर टिक जाती है. लेखनी की बात करूं तो ये काम मुख्यतः अनुसिंह चौधरी के हाथ में है और सपोर्ट में नवजोत गुलाटी, विभा सिंह और प्रतीक पयोधि भी मौजूद हैं. शैलेन्द्र झा इसके क्रिएटर हैं और इस बड़ी सी टीम की बहुत बड़ी सी मेहनत रंग लाई है.

चौरासी अगर ए क्लास नॉवेल था तो ग्रहण की स्क्रिप्ट ए प्लस है. कुछ जगह डायरेक्शन ज़रूर गोते खाता है लेकिन क्लाइमेक्स आपके सारे गिले शिकवे दूर करने में सक्षम लगता है. ख़ासकर ट्रेलर देख मन में अगर सवाल आ रहे थे कि ‘सब कुछ तो ट्रेलर में ही दिखा दिया’ तो यकीन जानिए आपने ट्रेलर में कुछ भी नहीं देखा था.

एक्टिंग के खाते में लीड करती ज़ोया हुसैन के पास एक्सप्रेशन्स की ख़ासी कमी है. एक मजबूत सुपरिटेंडेट ऑफ पुलिस के रोल में वो बिल्कुल मिसफिट नज़र आती हैं. पवन मल्होत्रा के साथ उनके सीन्स फिर भी ठीक हैं लेकिन फील्ड के वक़्त उनकी एनर्जी बहुत कम नज़र आती है. वहीं मनु बनी वामिका गब्बी बहुत सुन्दर लगी हैं. उनकी बड़ी-बड़ी आंखें 90% डायलॉग बोलती नज़र आई हैं. उनकी डायलॉग डिलीवरी, बॉडी लैंग्वेज, सब बढ़िया है. वामिका मनु के लिए बेस्ट चॉइस कही जा सकती हैं.

अंशुमन पुष्कर की लुक ऋषि पर बिल्कुल फिट बैठती है. उनका भोजपुरिया टोन में बोलने का अंदाज़ भी बहुत अच्छा लगता है. एक्शन और ट्रेजेडी सीन्स में वो छा जाते हैं लेकिन उनके पास भी एक्सप्रेशन्स की झोली बहुत छोटी है. पवन मल्होत्रा सीरीज़ के स्टार एक्टर हैं. उनके एक्सप्रेशन, उनकी बॉडी लैंग्वेज सब ज़बरदस्त है. गुरसेवक का करैक्टर उनसे बेहतर शायद ही कोई निभा सकता था.

डीआईजी बने सुधन्व देशपांडे की डायलॉग डिलीवरी और उनके लिए लिखे गए डायलॉग, दोनों बहुत शानदार हैं. अमूमन वो चलते-चलते ही बात करने नज़र आते हैं. डीएसपी बने सहिदुर रहमान का लुक, उनकी बॉडी लैंग्वेज और डायलॉग डिलीवरी सब ज़बरदस्त है. वहीं संजय सिंह बने टीकम जोशी भी ग्रे शेड में अच्छे लगे हैं.

अभिनव पटेरिया की कॉमिक टाइमिंग ज़बरदस्त है. अंत में उनका करैक्टर ट्रांसफार्मेशन ग़जब का है, देखने वालों को हैरान करने में सक्षम है. संगीत अमित त्रिवेदी का है और अमित ने हमेशा की तरह बहुत बढ़िया, बहुत मेलोडिअस म्यूजिक दिया है. साथ ही वरुण ग्रोवर के लिखे बोल भी बहुत अच्छे हैं. ‘जोगिया रे’ गाना बहुत अच्छा है.

कमलजीत नेगी की सिनेमेटाग्रफी शानदार है, क्लोज़अप शॉट्स की बात करूं तो एक ही सीन के क्लोज़-अप और लॉन्ग शॉट इतनी ख़ूबसूरती से दिखाए हैं कि दिल भर आता है. खिड़की से देखती मनु और दूर पैदल जाता ऋषि, बेहतरीन शॉट है. शाह मोहम्मद इस सीरीज़ के एडिटर हैं, इन्होने कुछ सीन्स बहुत रोचक बनाने के चक्कर में बहुत कंफ्यूज़िंग कर दिए हैं. पहले एपिसोड में एडिटिंग की वजह से कई बार फ्लो टूटता है.

कुलमिलाकर ग्रहण एक ऐसी वेब सीरीज़ है जिसे आप एक कहानी के तौर पर देखें तो आपको यकीनन पसंद आयेगी. लेकिन 84 में क्या हुआ था, कौन ज़िम्मेदार था, किसके धर्म में क्या नुक्स थे; इसके चक्कर में पड़ने पर आपको निराशा ही हाथ लगेगी. ये वेब सीरीज़ इतिहास का कोई दस्तावेज नहीं बल्कि मनोरंजन का ज़रिया भर है, जो की अच्छा बना है. दर्शनीय है.

अगर आपको येस समीक्षा अच्छी लगती है तो इसे शेयर करने से न चूकें. रेटिंग 10 में से 7.5.

ये भी पढ़ें -

Grahan Review: दंगों के साये और सियासी नफरत के बीच मासूम मोहब्बत ने मन मोह लिया!

मिताली राज की कहानी बनने दीजिए, तब तक ये स्पोर्ट्स बायोपिक देख लीजिये

Idol Season 12 से इंटरनेट सेंसेशन बनी पवनदीप-अरुणिता की जोड़ी आई अहम मुकाम पर 

#ग्रहण, #वेब सीरीज़, #सिख दंगा, Grahan Webseries, Disney Hotstar, Sikh Riots

लेखक

सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर' सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर' @siddhartarora2812

लेखक पुस्तकों और फिल्मों की समीक्षा करते हैं और इन्हें समसामयिक विषयों पर लिखना भी पसंद है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय