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Updated: 11 जून, 2020 11:27 PM
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अमिताभ बच्चन... भारतीय सिनेमा का एक ऐसा नाम, जिसके साथ हर निर्देशक काम करना चाहता है. जिसकी छत्रछाया में हर कलाकार खुद को बेहतर दिखाने और संतोषजनक काम करने की कोशिश करता दिखता है. बिग बी, एंग्री यंग मैन, बॉलीवुड के शहंशाह, मेगास्टार समेत कई अलंकारों से सुशोभित अमिताभ बच्चन महज एक नाम नहीं है, बल्कि अदाकारी की दुनिया का ध्रुवतारा है. जिसने समय के साथ और दर्शकों की पसंद में खुद को ढालते हुए ऐसे-ऐसे किरदार पर्दे पर जीवंत किए, जिसकी बानगी ब्लैक, पा, पिंक, शमिताभ, 102 नॉट आउट, सरकार, बदला, ठग्स ऑफ हिंदोस्तान में दिखी है और अब शूजीत सरकार की फिल्म गुलाबो सिताबो में दिखने वाली है.

अमिताभ बच्चन की इन चुनिंदा फिल्मों को देख लोग कहते हैं कि यह सिर्फ अमिताभ ही कर सकते हैं. हैवी प्रोस्थेटिग, भारी-भरकम कॉस्ट्यूम और जरूरत से ज्यादा चुनौतीपूर्ण किरदार को खुद के जेहन में उतार दर्शकों तक उसी भाव से साथ पहुंचाना आसान तो बिल्कुल नहीं है. आइए, आपको मेगास्टार अमिताभ बच्चन की दुनिया में लेकर चलते हैं, जहां इमानदारी है, समर्पण और जज्बा के साथ ही अथक जुनून भी है. ऐसे एक्टर की कहानी सुनते हैं, जो न सिर्फ बॉलीवुड के मोस्ट डिमांडिंग एक्टर हैं, बल्कि 78 साल की उम्र में भी उनका जलवा खान तिकड़ी समेत कुमार और कपूर की टोली से ज्यादा है.

जब एंग्री यंग मैन की चमक फीकी पड़ने लगी

1990 का दशक चल रहा था. एंग्री यंग मैन से बॉलीवुड के शहंशाह तक की फिल्मी ज़िंदगी गुजार चुके अमिताभ बच्चन समय के साथ ही उम्र की लंबी दहलीज भी लांघ रहे थे. बिग बी के नाम से फेमस अमिताभ हीरो से हीरो के बड़े भाई या रोमांटिक किरदार से अलग उम्रदराज हीरो की भूमिका में नजर आने लगे थे और असफलता भी उनके करियर को प्रभावित करने लगी थी. उस समय बतौर हीरो, वह प्रड्यूसर के रूप में भी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी किस्मत आजमाने लगे थे. साथ ही बॉलीवुड में उन दिनों रोमांटिक हीरो और रोमांस से भरी फिल्मों का जोर पकड़ने लगा था. ऐसे मुकाम पर साल 1994 से 2000 के बीच अमिताभ बच्चन की कई फिल्में फ्लॉप हुईं, औसत रहीं या उम्मीद के मुताबिक कमाई नहीं कर पाईं, जिनमें मृत्यूदाता, कोहराम, लाल बादशाह, मेजर साब, सूर्यवंशम जैसी फिल्में हैं.

असफल फिल्में, प्रोडक्शन हाउस का डूबना और शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान की तिकड़ी का बोलबाला होने से साल 2000 आते-आते अमिताभ बच्चन का फिल्मी करियर बहुत बुरे दौर में चला गया. बॉलीवुड के शहंशाह की हालत ऐसी हो गई थी कि उन्हें किसी बड़ी फिल्म की अदद जरूरत महसूस होने लगी, जो उन्हें फिर से बॉलीवुड में स्थापित कर दे. दरअसल, साल 1992 में ही अमिताभ अपनी उम्र का पचासा पार कर चुके थे और खुद से आधी उम्र की हीरोइनों के साथ रोमांस करते समय उनकी बॉडी और एक्सप्रेशन पर बढ़ती उम्र के निशान दिखने लगे थे. ऐसे में दर्शकों की नजर में उनके रोमांटिक हीरो वाली छवि गायब होने लगी और इसका अंदाजा अमिताभ को तब हुआ, जब उनकी फिल्में एक के बाद एक फ्लॉप होती गईं.

साल 2000 के बाद अमिताभ की दूसरी पारी शुरू

इसके बाद 21वीं सदी की शुरुआत हुई. लगभग 3 दशक तक फैंस के दिलों की घड़कनें बन सिनेमा इंडस्ट्री पर राज करने वाले अमिताभ बच्चन का फिल्मी करियर अब पूरी तरह डगमगा रहा था. इसके बाद अमिताभ ने दर्शकों का मिजाज भांप लिया और फिर अपनी उम्र के अनुसार किरदार निभाना शुरू किया. इसी दौरान साल 2000 में आदित्य चोपड़ा की फिल्म आई- मोहब्बतें. इस फिल्म में अमिताभ बच्चन ने कॉलेज प्रिंसिपल नारायण शंकर का ऐसा दमदार किरदार निभाया कि जैसे लगा कि बॉलीवुड के शहंशाह की वापसी हो गई है. लगभग 10 साल के बाद किसी ‌अवॉर्ड शो में उनको मोहब्बतें फिल्म के लिए अवॉर्ड मिला. नारायण शंकर के किरदार ने उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड 2000 दिलाया.

इसके बाद अमिताभ ने एक रिश्ता: बॉन्ड ऑफ लव, और कभी खुशी कभी गम जैसी फिल्मों में पिता के किरदार को इतनी बेहतरीन तरीके से जीवंत किया कि फैंस के दिलों में उनका ये रूप जम गया. हालांकि इसी दौरान उन्होंने 3 साल के दौरान अक्स, हम किसी से कम नहीं, अरमान, बुम जैसी सेमी हिट फिल्मों से आलोचना भी झेला. लेकिन उसके बाद साल 2003 में आई फिल्म बागबान के राज मल्होत्रा के किरदार ने उन्हें दर्शकों का प्यारा बना दिया. उसके बाद साल 2004 में खाकी, ऐतबार, लक्ष्य, देव, दीवार, वीर-जारा और अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों जैसी फिल्मों ने अमिताभ बच्चन को ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया, जहां वह स्क्रीन प्रजेंस में हीरो को न सिर्फ कड़ी टक्कर दे रहे थे, बल्कि उनसे ज्यादा मेहनताना भी लेते थे. ये समय ऋतिक रोशन, अक्षय कुमार, शाहरुख खान और आमिर समेत अन्य हीरो जैसे दिखने वाले ऐक्टर का था, लेकिन इन सबसे बीच अमिताभ किसी ध्रुव तारे की तरह चमब बिखेर रहे थे.

प्रयोगात्मक फिल्मों में हिट रहे अमिताभ बच्चन

इसके बाद दौर शुरू हुआ प्रयोगात्मक फिल्मों का, जहां संजय लीला भंसाली ने ब्लैक, शाद अली ने बंटी और बबली, राम गोपाल वर्मा ने सरकार और महेश मांजरेकर ने विरुद्ध: फैमिली कम्स फर्स्ट जैसी फिल्मों में बिग बी के किरदार के साथ बेहतरीन प्रयोग किया और यकीन मानें कि साल 2005 अमिताभ बच्चन के लिए एक ऐसा साल रहा, जहां उन्होंने ऐसे-ऐसे किरदार को पर्दे पर जीवंत किया कि दुनिया वाह-वाह कर उठी. चाहे खड़ूस पुलिसवाले का किरदार हो, एक टीचर का हो, एक सख्त बाप का किरदार हो या मुंबई के मसीहा का, हर एक कैरेक्टर ने अपनी पहचान बताते हुए ऐसा कर दिखाया, जिसका बाकी एक्टर आज अनुसरण कर रहे हैं. 

जिस उम्र में लोग रिटायर होकर अपने नाती-पोते को खिलाते या उनके साथ घूमते दिखते हैं या एक्टर्स की बात करें तो जिन्हें 65 साल की उम्र पार करने के बाद काम मिलना बंद हो जाता है, उस उम्र में बॉलीवुड के बिग बी अमिताभ बच्चन साल भर में 8-10 फिल्म कर लेते थे. यह समय एक तरह से अमिताभ के लिए दूसरी पारी साबित हुई, जो कि समय बीतने के साथ ही और निखरती गई. इस दौरान उन्होंने साल 2006 में बाबुल और कभी अलविदा न कहना, साल 2007 में एकलव्य, नि:शब्द, चीनी कम, झूम बराबर झूम, आग और द लास्ट लीयर जैसी महत्वपूर्ण फिल्में कीं, जो कि बिल्कुल ही अलग-अलग जोनर की थी.

पा फिल्म ने अमिताभ को अमर बना दिया

साल 2009 आया, जो कि उनकी फिल्मी जिंदगी के लिए सबसे चुनौती भरा साल था. दरअसल, 2009 में अमिताभ ने आर. बाल्की की फिल्म Paa में प्रोजेरिया नामक बीमारी से पीड़ित एक ऐसे बच्चे का किरदार निभाया जो उम्र से पहले ही बूढ़ा हो जाता है. हैवी प्रोस्थेटिक, काफी चैलेंजिंग और बदले आवाज में अमिताभ बच्चन को देख दर्शक भौचक्के रह गए. सच बताऊं तो किसी कलाकार की यही सबसे बड़ी प्रॉपर्टी होती है कि वह दर्शकों को अपनी अदाकारी से हतप्रभ कर दे. पा फिल्म में अमिताभ का जादू ऐसा चला कि उनके सामने हर किरदार छोटा पड़ गया और सिनेमाई दुनिया के सारे अस्त्र कम पड़ गए. पा फिल्म के लिए साल 2009 में अमिताभ बच्चन को बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड, फिल्मफेयर अवॉर्ड समेत ढेरों सम्मान मिले. इसके बाद तो चैलेंजिंग रोल करना अमिताभ बच्चन के लिए आम हो गया.

अमिताभ बच्चन का फिल्मी सफर साल दर साल बढ़ता गया और पड़ाव के रूप में बुड्ढा होगा तेरा बाप, आरक्षण, बोल बच्चन, द ग्रेट ग्रेट्सबी, सत्याग्रह, भूतनाथ रिटर्न, शमिताभ, पीकू, पिंक, वजीर, 102 नॉट आउट, ठग्स ऑफ हिंदोस्तान जैसी काफी अहम फिल्में रहीं. यहां पीकू, पिंक और 102 नॉट आउट का ज्यादा जिक्र करना इसलिए जरूरी है कि जहां पीकू पिता-पुत्री के रिश्ते की बेहद संवेदनशील रिश्ते और अपनी जड़ से जुड़ाव की कहानी थी, वहीं पिंक एक बुजुर्ग वकील की कहानी, जो कुछ लड़कियों को न्याय दिलाने की हरसंभव कोशिश करता और सिस्टम से लड़ता दिखता है. वहीं 102 नॉट आउट में 102 साल की उम्र का एक बाप अपने बेटे की खुशी के लिए हरसंभव कोशिशें करता रहता है.

फिल्मी किरदार जिया तो ऐसा कि दुनिया वाह-वाह कर उठी

हिंदी सिनेमा के दर्शकों को अमिताभ ने कई खूबसूरत और यादगार सौगातें दी हैं, जिनमें उनकी मेहनत, कभी न थकने वाला जुनून, काम के प्रति इमानदार और न नहीं कहने वाला एक ऐसा कलाकार दिखता है जो लगभग 60 साल से सिनेमा इंडस्ट्री में एक पैर पर खड़ा है. जिसने बढ़ती उम्र के साथ चुनौतियों को गले लगाया और किरदार में ढलने के लिए घंटों मेकअप से सामने चुपचाप बैठने की मजबूरी को शौक बनाया. जिसने 75 साल की उम्र में 30-35 किलोग्राम का युद्ध चोला पहने घंटों शूटिंग की. जिस कलाकार ने नैरेटर, सिंगर के रूप में भी फिल्मों को खास बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. जिस कलाकार ने सैकड़ों कलाकारों के साथ दोस्ती निभाई, कितने प्रड्यूसर्स के लिए दिल से खून और पसीना बहाया और अब 78 साल की उम्र में गुलाबो सिताबो के बेहद चुनौतीपूर्ण किरदार को जीता दिख रहा है, जिसका चेहरा अजीब दिखता है, जिसकी पीठ झुकी है और वह किरदार को जीवंत करता दिखता है. ऐसे कलाकार के बारे में उसके निर्माता-निर्देशक भी बोलते हैं कि गजब हैं अमिताभ जो 47 डिग्री सेल्सियस की गर्मी में भी घंटों शूटिंग करते हैं और बाकी कलाकारों को अपनी लगन से प्रोत्साहित करते हैं.

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