मिशन मजनू-बॉर्डर से घृणा करने वाला PAK भी अवैध तरीके से पठान में 'भारत भक्ति' देख रहा है
शाहरुख खान की पठान किस तरह से देशभक्ति फिल्म कही जा सकती है- अगर पाकिस्तान में उसे सामूहिक रूप से देखा और दिखाया जा रहा है. पाकिस्तान में भारतीय फ़िल्में बैन हैं इसके बावजूद. वहां बॉर्डर जैसी फ़िल्में हमेशा बैन रही जिसे देशभक्ति फिल्म माना जाता है. यहां तक कि मिशन मजनू को भी एंटी नेशनल कहा जा रहा है.
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यशराज फिल्म्स की पठान के कॉन्टेंट को लेकर भारतीय समाज के अंदर से बहुत गंभीर किस्म के सवाल भी सोशल मीडिया पर नजर आए थे. कहानी में जिस तरह इस्लामिक आतंकवाद की वैश्विक छवि, रूस की छवि और पाकिस्तानी संस्थाओं को मनमाने तरीके से परोसा गया था- देश के तमाम हिस्सों में जमकर आलोचना हुई थी. लोगों का आरोप था मेकर्स ने भारत, उसकी संस्थाओं, तिरंगा और "जय हिंद" का इस्तेमाल कर जिस तरह से एक नया नैरेटिव बनाने की कोशिश की है एक फिल्म के जरिए वह दुनिया में भारतीय हितों के खिलाफ है. हालांकि मेकर्स ने आशंकाओं को खारिज किया और इसे बॉलीवुड में बनी एक सर्वश्रेष्ठ देशभक्ति वाली फिल्म करार दिया था.
मगर अब पठान के मेकर्स के जवाब पर सवाल किए जा सकते हैं. और पाकिस्तान उससे जुड़े तथ्य परोस रहा है. आखिर पठान किस आधार पर भारतीय मूल्यों पर बनी एक देशभक्ति फिल्म है जिसे देखने के लिए वहां भूख से बिलबिला रहे हैं. वहां पठान के लिए होड़ मची है. उसे अवैध तरीके से दिखाया जा रहा है. बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग करके दिखाई जा रही है. यहां तक कि पाकिस्तान में डिफेन्स हाउसिंग सोसायटी में भी दिखाई जा रही है. पाकिस्तान का अशराफ तबका जो ज्यादातर टर्की, ईरानी मूल का है वह पठान को खूब पसंद कर रहा है. हर कोई शाहरुख की पठान को देखने के लिए मरा जा रहा है. दिलचस्प यह है कि पाकिस्तान में भारतीय फ़िल्में बैन हैं और भारत की देशभक्ति फ़िल्में तो पूरी तरह से बैन हैं.
मिशन मजनू और पठान की कहानी एक जैसी है मगर उसमें जमीन आसमान का फर्क है.
बॉर्डर नहीं देखने वाला पाकिस्तान अगर पठान देख रहा है तो कुछ बात है
तमाम प्रतिष्ठित मीडिया रिपोर्ट्स का दावा है कि पाकिस्तान के शहर कराची के कई हिस्सों में पठान की अवैध स्क्रीनिंग हो रही थी. डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी में भी पठान दिखाई जा रही थी. बताने की जरूरत नहीं है कि डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी में पाकिस्तान के कौन से लोग रहते हैं? सोशल मीडिया के जरिए टिकट भी बेचे जा रहे थे. वहां पठान के एक टिकट के लिए 900 रुपये तक का टिकट देने के लिए लोग तैयार हैं. यह उस पाकिस्तान की हालत है जहां लोगों के पास आटा खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं.
पाकिस्तान में फिलहाल हर तरह की भारतीय फ़िल्में बैन हैं क्योंकि पुलवामा और बालाकोट के बाद दोनों देशों के बीच तमाम तरह के रिश्ते पूरी तरह से बंद पड़े हैं. मजेदार यह भी है कि जब भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सामान्य थे तब भी वहां भारत की उन फिल्मों की स्क्रीनिंग नहीं की जाती थी जिसमें पाकिस्तान या आतंकवाद या फिर भारतीय सेना के विषय के केंद्र में होते थे. पाकिस्तान में बॉर्डर, गदर, LOC कारगिल, हकीकत जैसी फ़िल्में बैन थीं. यहां तक कि राजी को भी वहां प्रतिबंधित किया गया और अभी पठान से ठीक पहले रिलीज हुई सिद्धार्थ मल्होत्रा स्टारर देशभक्ति फिल्म मिशन मजनू को एंटी नेशनल मूवी करार दिया गया.
भारत के 'देशभक्त' पठान की कहानी से पाकिस्तानी ऐतराज ना होने के मायने क्या हैं?
तो क्या भारत, भारतीय और उसकी देशभक्ति कहानियों से नफ़रत करने वाले पाकिस्तान को शाहरुख की पठान में कुछ भी देश विरोधी नहीं लगा. तो क्या यह मान लिया जाए कि भारत में जो लोग पठान के कॉन्टेंट पर सवाल उठा रहे थे वह सही थे. पाकिस्तान में पठान और मिशन मजनू पर वहां के तथ्य तो इसी बात को फिलहाल पुख्ता करते नजर आ रहे हैं. तो क्या यह मान लिया जाए कि पठान में भले ही भारतीय संस्थाओं का इस्तेमाल करते हुए एक कहानी देशभक्ति की चासनी में बनाई गई- मगर उसमें भारत का अपना पक्ष और नैरेटिव नहीं था.
यह अहम है. क्योंकि अगर उसमें ऐसा कुछ होता तो भला पाकिस्तानी उसे देखना क्यों पसंद करते? और उसे वहां की भूखी नंगी अपढ़ गरीब और धर्मांध अवाम देखती तो समझ में भी आता. मगर जिस तरह से डिफेन्स अथारिटी में स्क्रीनिंग हुई- वह कई सवालों का जवाब बिना कुछ कहे दे जाती है. आई चौक ने अपने तमाम विशेल्षणों में इस बिंदु पर भी पठान के कॉन्टेंट को लेकर हो रही डिबेट्स को शामिल किया था और दोनों तरफ से आ रहे तर्कों को कसौटी पर कसने की कोशिश की थी.
पाकिस्तान में पठान की स्क्रीनिंग को लेकर आ रही तमाम रिपोर्ट्स सोशल मीडिया पर शाहरुख खान की फिल्म को लेकर आम भारतीयों की आशंकाओं को पुष्ट करते नजर आ रही हैं.
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