हीरामंडी के लिए नेटफ्लिक्स ने भंसाली को कितना दिया, पाकिस्तान में भी शो पर चर्चा क्यों?
संजय लीला भंसाली का डिजिटल प्रोजेक्ट हीरामंडी मेकिंग प्रोसेस में ही सुर्खियां बटोरने लगा है. पाकिस्तान की फिल्म इंडस्ट्री हीरामंडी की कहानी नहीं बना सकता. मगर बॉलीवुड पर नैरेटिव बदलने का आरोप लगाते हुए अफसोस जता रहा है.
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संजय लीला भंसाली बॉलीवुड के बेहतरीन निर्देशकों में शुमार किए जाते हैं. और इसकी वजह 25 साल के करियर में उनका बेहतरीन काम है. भंसाली भव्य फ़िल्में बनाने के लिए मशहूर हैं और पिछले कुछ सालों में सफलता का पर्याय बने हुए हैं. नेटफ्लिक्स पर उनका जल्द ही अलग अंदाज नजर आने वाला है. दरअसल, भंसाली नेटफ्लिक्स के लिए "हीरामंडी" टाइटल से शो बना रहे हैं. शो के जरिए उनका डिजिटल डेब्यू होगा. यह बात तय है कि फिल्मों की तरह भंसाली का शो भी भव्य तरीके से बनाया जा रहा है. निर्देशक इसके लिए कोई कसर बाकी नहीं रख रहे. नेटफ्लिक्स ने भंसाली के भव्य शो के लिए भारी भरकम रकम दी है. वैसे शो अभी शुरुआती फेज में ही है लेकिन पाकिस्तान में भी इस पर बातें होने लगी हैं.
इंडस्ट्री सोर्सेस के हवाले से बॉलीवुड हंगामा ने एक रिपोर्ट में बताया है कि शो के लिए नेटफ्लिक्स ने भंसाली को 35 करोड़ रुपए दिए हैं. सूत्र ने यह भी साफ़ किया कि फिल्मों की तरह ही वेबसीरीज में भी भंसाली के काम की छाप दिखेगी. हीरामंडी के पहले सीजन में सात एपिसोड होंगे. इसमें से पहले एपिसोड का निर्देशन भंसाली ने किया है. बाकी के छह एपिसोड का निर्देशन उनके गाइडेंस में विभु पुरी करने वाले हैं. हीरामंडी के लिए भंसाली ने सोनाक्षी सिन्हा और हुमा कुरैशी को कास्ट किया है. माधुरी दीक्षित भी ख़ास भूमिका में नजर आ सकती हैं.
हीरामंडी पीरियड ड्रामा है और बंटवारे से पहले के हिंदुस्तान की कहानी है. पाकिस्तान में भंसाली के हीरामंडी पर बात होने की ख़ास वजहें हैं. दरअसल, हीरामंडी की कहानी कोठे पर नाचने गाने वाली तवायफों की है जिन्हें तत्कालीन समाज में भले ही हेय दृष्टि से देखा जाता था लेकिन उनका सांस्कृतिक असर रहा है. बंटवारे से पहले लाहौर शहर के हीरामंडी की तवायफें पूरे देश में मशहूर थीं. कोठे पर उस दौर की राजनीति, प्रेम और विश्वासघात जैसे विषयों को वेबसीरीज की कहानी में दिखने की तैयारी है. लाहौर में हीरामंडी को पहले शाही मोहल्ले के तौर पर जाना जाता था. और यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि मुगलिया सल्तनत के ओहदेदार कर्मचारी कभी यहीं रहा करते थे. लेकिन बाद में यहां तवायफें रहने लगीं और नाच गाने का अभ्यास किया करती थीं. तवायफें मुजरा के जरिए राजे-रजवाड़ों और रइसों का मनोरंजन करती थीं. शाही मोहल्ला तमाम उतार-चढ़ाव से गुजरा. महाराजा रणजीत सिंह के निधन के बाद सिख साम्राज्य के प्रधानमंत्री हीरा सिंह डोगरा ने यहां अनाज का बड़ा बाजार बनवाया जिसके बाद इलाके को हीरामंडी नाम मिला.
पाकिस्तान में हीरामंडी जैसी कहानी बनना असंभव
इधर भंसाली पाकिस्तान के लाहौर की कहानी को दुनिया के सामने ला रहे हैं उधर, पाकिस्तान में कला जगत अफ़सोस मना रहा है. अफसोस इस बात का कि वो चाहकर भी अपनी कहानियां दुनिया को ना दिखा सकते हैं और ना ही बना सकते हैं. पाकिस्तान के स्क्रीन राइटर यासीर हुसैन ने इन्स्टाग्राम स्टोरी में चिंता जाहिर करते हुए लिखा- हीरामंडी लाहौर में है लेकिन कहानी भारत से प्रोड्यूस हो रही है और हम बाद में आलोचना करते हैं कि कैसे वे (भारतीय) झूठा नैरेटिव दिखा रहे हैं. उपरवाला जाने हम कब ऐसे मुद्दों पर बात करेंगे, हम कब अपनी कहानियां सुनाएंगे. कुल मिलाकर यासीन और कुछ दूसरे पाकिस्तानी बंटवारे से पहले की उन साझी कहानियों के नैरेटिव पर सवाल उठा रहे हैं जिन्हें बॉलीवुड बनाता रहा है.
लेकिन बॉलीवुड में ही ऐसी साझी कहानियां क्यों बन रही हैं, मॉडल एक्ट्रेस हीरा तरीन ने पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री की मजबूरी ही खोलकर सामने रख दी. द प्रिंट ने हीरा के हवाले से लिखा- हमने ऐसे ही टॉपिक पर एक फिल्म बनाई थी. एक फतवा आया और उस पर तुरंत प्रतिबंध लगा दिया गया. निर्माताओं को काफी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा. क्या आपको लगता है कि पाकिस्तान में लोग हीरामंडी या ऐसे ही विषयों से जुड़ी कहानियों को बर्दाश्त कर पाएंगे.
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