प्रभाष की बाहुबली ने गिरा दी उत्तर-दक्षिण भारत के बीच की दीवार
बाहुबली जिस दर्शन को लेकर बनी थी उसने उत्तर और दक्षिण के दर्शकों के मन में यह सवाल ही नहीं पनपने दिया. मोदी और हिंदुत्व के राजनीतिक उभार से जो माहौल बना था उसमें भारत के प्राचीन वैभव को काल्पनिक बाहुबली ने और गौरवशाली बनाते हुए पुख्ता कर दिया.
-
Total Shares
कुछ साल पहले तक दक्षिण के सिनेमा को लेकर मेरे जैसे लोग कई पूर्वाग्रहों से ग्रस्त रहे. कमल हासन, रजनीकांत, चिरंजीवी और वेंकटेश को हिंदी पट्टी के दर्शक बेहतर पहचानते थे और हिंदी में उनकी सभी फ़िल्में देखे भी होंगे. लेकिन ज्यादातर ने कभी दक्षिण की कोई मूल फ़िल्म नहीं देखी होगी. ये दर्शक वर्ग हमेशा यही सोचता रहा कि दक्षिण में फिल्मों के नाम पर सिर्फ मसाला मनोरंजन परोसा जाता है. एक्सपोजर होता है और व्यर्थ की मारपीट, अतार्किक और कल्पनाओं से परे एक्शन सीक्वेंस दिखाए जाते हैं. 10 जुलाई 2015 को बाहुबली की रिलीज तक एसएस राजामौली की महागाथा फिल्म को लेकर भी तमाम लोगों की धारणा पुरानी ही थी.
दक्षिण की बाहुबली पहली ऐसी फिल्म है जिसने दक्षिण के सिनेमा को लेकर हिंदी पट्टी के बहुतायत दर्शकों की सोच बदली. ये दक्षिण को उत्तर से मिलाने वाली एक सेतु फिल्म नजर आती है. बाहुबली ने उत्तर से दक्षिण तक यह मानने को विवश कर दिया कि भारत की संस्कृति, संस्कार और उसकी किस्से-कहानियां साझा ही हैं. बाहुबली को तमिल-तेलगु और मलयालम के साथ हिंदी में भी रिलीज किया गया था. बाहुबली से पहले भी कई फ़िल्में इस तरह की फ़िल्में रिलीज हुईं, लेकिन उत्तर और दक्षिण को लेकर जो दीवार थी वो हमेशा आड़े आती रही. बाहुबली ने उस दीवार को दरका दिया.
इसके बाद रजनीकांत की कबाली, 2.0, प्रभाष की साहो और यश की केजीएफ चैप्टर 1 समेत पिछले छह साल में रिलीज दर्जनों फिल्मों को हिंदी पट्टी में वैसे ही देखा गया जैसे बॉलीवुड की आम फिल्मों को देखा जाता है. लोग इन्हें देखने सिनेमाघरों में भी पहुंचे. आरआरआर जैसी फिल्मों को बनाने के दौरान ही उत्तर के दर्शकों की रुचियों का ख्याल रखा जा रहा है. साझी स्टारकास्ट की परंपरा ज्यादा मजबूत नजर आ रही है.
अब सवाल है कि एक ही देश में आखिर इतने दिनों क्यों और कैसे उत्तर और दक्षिण का सिनेमाई फर्क कायम रहा? इसका सीधा सा जवाब है कि धर्म, संस्कृति और संगीत के आधार पर दोनों क्षेत्रों को आपस में जोड़ने वाले कई मिलान बिंदु हैं, मगर साहित्य और सिनेमा में ऐसे कॉमन बिंदु और अभिरुचियां व्यापक रूप से बनी ही नहीं. तौर-तरीकों में अंतर था. निश्चित ही इस अंतर को दक्षिण की बाहुबली ने ही पाटा. जिसमें भाव, भाषा, कल्पना, दर्शन, धर्म, संस्कृति एक जैसी थी.
बाहुबली ने कैसे पाटा ये दिलचस्प विषय है. दरअसल, पिछले एक दशक में देश की राजनीति का स्वर बदला है. हिंदुत्व की बहस के समानांतर एक बहस संस्कृति की भी चलती रही है. इसमें शक की कोई गुंजाइश ही नहीं कि क्रिकेट के अलावा संस्कृति ही वो चीज है जो देश को असलियत में एक सूत्र में बांधने का काम करती है. बाहुबली उसी संस्कृति की महागाथा है. एक भव्य और काल्पनिक साम्राज्य महिष्मति और उसके काल्पनिक किरदार दक्षिण या उत्तर के किस राज्य से है? फिल्म जिस दर्शन को लेकर बनी थी उसने उत्तर और दक्षिण के दर्शकों के मन में यह सवाल ही नहीं पनपने दिया. मोदी और हिंदुत्व के राजनीतिक उभार से जो माहौल बना था उसमें भारत के प्राचीन वैभव को काल्पनिक बाहुबली ने और गौरवशाली बनाते हुए पुख्ता कर दिया. यह भी कह सकते हैं कि यह आरएसएस के एजेंडा पर बनी एक फिल्म है जिसे उसके विरोधी हिंदुत्ववादी करार देते हैं.
आखिर काल्पनिक महागाथा बाहुबली का दर्शन क्या था? "भारतीयता." तमाम राजनीतिक बिन्दुओं को लेकर भले ही बाहुबली की आलोचना की गई, लेकिन हकीकत में बाहुबली का पोर-पोर तो लोक प्रचलित भारतीयता में ही गुंथा हुआ है. धर्म, त्याग, मर्यादा, वैभव, गर्व, वीरता, वचनबद्धता, प्रेम, करुणा, दया, परोपकार, सतीत्व और वफादारी. भारतीय धर्म और संस्कृति के तो यही सनातन मूल तत्व रहे हैं. रामायण-महाभारत जैसे महाकाव्यों (धर्मग्रन्थ) का दर्शन आखिर क्या है? वचन और अनुशासन के लिए राम गद्दी छोड़ देते हैं. वो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं. उनमें वीरता के साथ क्षमा और शील है. हनुमान, जटायु, सुग्रीव वफादार हैं. सीता में सतीत्व और प्रेम है. उसी वजह से वो रावण की कैद में रहते हुए भी तिनका मात्र भी समझौता करने को तैयार नहीं हैं. रावण तमाम अवगुणों से भरा हुआ है.
बाहुबली में भी तो यही दर्शन है. रानी शिवगामी त्याग और करुणा की प्रतिमूर्ति हैं. अपने बेटे भल्लाल को नहीं सर्वगुण संपन्न परोपकारी और वीर-क्षमा और शील से परिपूर्ण अमरेंद्र बाहुबली को राजा बनाना चाहती हैं. कटप्पा हनुमान की तरह ही वफादार है. वह भले ही वो दास है, लेकिन उसका सम्मान राज परिवार में जैसे राम केवट का सम्मान करते हैं. देवसेना सीता की तरह ही है जिसका सतीत्व और प्रेम अमरेंद्र बाहुबली के लिए है. और भल्लालदेव वह और उसके अनुयायी उतना ही अधम हैं जितना रावण. हकीकत में बाहुबली तो धर्म, त्याग, मर्यादा, वैभव, गर्व, वीरता, वचनबद्धता, प्रेम, करुणा, दया, परोपकार, सतीत्व और वफादारी की ही कहानी है रामायण की तरह. अमरेंद्र बाहुबली का महिष्मति ठीक रामराज की कल्पना वाला आदर्श साम्राज्य है. लोक प्रचलित संस्कृति का आदर्श समाज.
केरल हो, तमिलनाडु हो, उत्तर प्रदेश हो, हिमाचल हो या राजस्थान और महाराष्ट्र या कोई और राज्य, असल में अमरेंद्र बाहुबली के महिष्मति जैसे आदर्श राज्य की ही कल्पना तो करते हैं. बाहुबली ने इसी दर्शन के आधार पर उस सिनेमाई दीवार को ख़त्म किया जो दक्षिण और उत्तर के बीच थी. असल में बाहुबली एक काल्पनिक कहानी होते हुए भी उत्तर और दक्षिण के लोगों को अपनी संस्कृति और प्राचीन वैभव से ओत-प्रोत करने वाली फिल्म बन गई. हकीकत में राजमौली ने सिनेमाई रामायण रच दिया.
आपकी राय