विशाल डिब्बेनुमा रेडियो से पोर्टेबल रेडियो तक के, सफर को दिखाते तीन गाने
पूर्व की अपेक्षा वर्तमान में रेडियो अपना स्वरूप बदल चुका है और आज ये हर आदमी के साथ किसी न किसी रूप में सफर कर रहा है. तो आइये जानें कि रेडियो में ये बदलाव किस तरह हुआ.
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जाहिर है रेडियो का जो स्वरूप आज है पहले वह नहीं था. कभी आदमी का स्टेटस सिम्बल कहलाया जाने वाला रेडियो आज हर पॉकेट में साथ सफर कर रहा है. रेडियो का अपना इतिहास काफी सुनहरा है, जिस पर यक़ीनन और भी अधिक किताबें लिखी जा सकती हैं. साथ ही इस पूरे ट्रांसफॉर्मेशन पर बड़े-बड़े शोध भी संभव हैं. आइए हिंदी सिनेमा के तीन गीतों से रेडियो के बदलते क्रम को समझ लेते हैं. वाकई तीनों ही गीतों का अपना असर आज भी प्रासंगिक है.
पूर्व के मुकाबले आज रेडियो अपने एक बिल्कुल नए स्वरूप में हमारे सामने है
फ़िल्म बेवकूफ
फ़िल्म बेवकूफ का यह गीत रेडियो की उस दुनिया को परिभाषित करता है जब रेडियो बक्सेनुमा बड़ा हुआ करता था. रेडियो के इर्द गिर्द ही सारे पात्र घूमते नज़र आ रहे हैं. मद्रासी बंगाली और दो युवतियों के इर्द गिर्द घूमने वाले गाने को सुनिये और जानिए रेडियो के आने से सभी क्षेत्रों के लोगों की अपनी पहुंच किस प्रकार से थी. इस गीत में एक पार्टी का आयोजन हो रहा है जहां मद्रासी अपने सांग्स की डिमांड कर रहा है तो बंगाली अपनी भाषा के गीत को. इसके साथ ही ईनो ईनो ईनो के विज्ञापन से रेडियो में विज्ञापन के आगमन को भी समझा जा सकता है.
फ़िल्म ऊंचे लोग
फ़िल्म ऊंचे लोग का यह गीत रेडियो के विस्तार के अगले क्रम का सक्रिय उदाहरण पेश करता है. अब रेडियो का रूप छोटा हो चुका है और उसे चारदीवारी से बाहर ले जा सकता था. इस गीत में नायक रेडियो में अपनी प्रेमिका की तस्वीर देखता है. गीत का चित्रांकन भले ही हास्यास्पद है लेकिन रेडियो के बदलते क्रम को समझने के लिए एक अच्छा उदाहरण माना जा सकता है.
फ़िल्म आन बान
रेडियो के बदलते क्रम को जानते हुए फ़िल्म आन बान का यह गीत रेडियो के साइड इफेक्ट को भी दर्शाता है. आन बान के इस गीत में नायक नायिका को रेडियो की आवाज को तेज कर परेशान करता है. रेडियो के पोर्टेबल और इसे साथ लेकर सफर करने की कहानी को भी यह गीत बखूबी पेश करता है.
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