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Updated: 27 जनवरी, 2022 05:52 PM
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भारतीय परंपरा में पुनर्जन्म को उसी तरह सत्य माना जाता है जिस तरह धरती, जल, आकाश और वायु का अस्तित्व है. यहां तक कि ईश्वर के औचित्य और कर्मकांड-आडंबरों के विरोध स्वरूप उपजे धर्मों ने भी आत्मा की अमरता के सिद्धांत को खारिज नहीं किया. घोर नास्तिकवादियों में भी आत्मा और पुनर्जन्म की मजबूत अवधारणा दिखती है. हालांकि वैज्ञानिक आधार, हमेशा इन्हें खारिज करते आए हैं. इस वक्त राजस्थान के राजसमंद में एक पुनर्जन्म की कहानी चर्चा का विषय है. दरअसल, एक चार साल की बच्ची अपने पूर्व जन्म की दास्तान बता रही है. कुछ रिपोर्ट्स में बच्ची द्वारा उसके पहले के जीवन को लेकर दिए गए तमाम विवरण बिल्कुल सही पाए गए हैं. इस खबर को लेकर लोगों की दिलचस्पी से साफ़ पता चलता है कि आम लोग पुनर्जन्म के बारे में क्या धारणा रखते हैं.

पुनर्जन्म के बारे में लोगों की यही दिलचस्पी एक बड़ी वजह रही है जिसको केंद्र में बनाकर लिखी गई तमाम कहानियां लोकप्रियता के चरम तक पहुंची. भारतीय सिनेमा के इतिहास में पुनर्जन्म के केंद्र में बुनी गई कमोबेश सभी फ़िल्में जबरदस्त हिट साबित हुई हैं. इन्हीं में से एक तेलुगु फिल्म इस वक्त नेटफ्लिक्स पर लोगों के आकर्षण का केंद्र है. फिल्म नेटफ्लिक्स पर टॉप ट्रेंड में है और इसके बारे में दर्शकों की ओर से खूब लिखा जा रहा है. भले ही फिल्म तेलुगु, तमिल और मलयालम में ही डब है बावजूद हिंदी के दर्शकों भी उसे खूब देखा रहे हैं.

shyam-singha-roy-650_012722033012.jpgश्याम सिंह रॉय में नानी

श्याम सिंह रॉय की कहानी में क्या है?

फिल्म का नाम "श्याम सिंह रॉय" है. असल में जर्सी फेम नानी की मुख्य भूमिका से सजी श्याम सिंह रॉय एक रोमांटिक ड्रामा है. इसमें पुनर्जन्म की अवधारण के कई दूसरे सवालों को बहुत दिलचस्प तरीके तरीके से दिखाने की कोशिश हुई है. सभी चीजों को मिलाकर एक ऐसी रोमांटिक कहानी बनाई गई है जो अंत में भावुक कर देती है. फिल्म की कहानी तेलुगु युवा स्ट्रगलर वासु की है. वासु फ़िल्में बनाना चाहता है. वह निर्देशक के रूप में खुद को स्थापित करने के लिए एक शॉर्ट फिल्म बना रहा है. किसी तरह उसकी फिल्म पूरी जोती है. फिल्म जबरदस्त है और इसके बदले एक प्रोड्यूसर उसके साथ फिल्म बनाने को राजी हो जाता है. वासु प्रोड्यूसर को रातोंतरात एक जबरदस्त स्क्रिप्ट लिखकर देता है. स्क्रिप्ट पर फिल्म बनती है और दर्शाकों को लाजवाब कर देती है.

मगर ट्विस्ट यह है कि तेलुगु वासु ने अपनी लिखी जिस मौलिक कहानी पर फिल्म बनाई है असल में वह बंगाली कहानी की हूबहू नक़ल है जिसे श्याम सिंह रॉय नाम के एक क्रांतिकारी लेखन ने लिखा था. चूंकि वासु की फिल्म जबरदस्त हिट होती है और पूरे देश का ध्यान खींचती है, स्वाभाविक है कि उसपर बंगाल के उस पब्लिकेशन की भी नजर पड़ती है जिसने सालों पहले कहानी को छापा था. पब्लिकेशन ने वासु और फिल्म के निर्माताओं को बौद्धिक चोरी के मामले में केस दाखिल करती है. वासु का मशहूर फिल्म मेकर बनने का सपना केस की वजह से खराब होता दिख रहा है. उसकी साख पर बट्टा लग जाता है. वासु हैरान है कि उसने कहानी चोरी नहीं की तो यह संभव कैसे है? जबकि वह जन्मजात बंगाली भी नहीं है और उसे बांग्ला भी पढ़ना नहीं आता.

इस बीच वासु की प्रेमिका अपनी रिलेटिव वकील के जरिए मदद के लिए आगे आती है. तमाम सबूत वासु के दावों के खिलाफ है. वासु के वकील को भी पता है कि केस में कानूनन हार तय है. कोर्ट में बहस के दौरान वासु "लाई डिटेक्टर टेस्ट" की बात करता है जिसपर सहमति मिलती है. रिपोर्ट वासु के पक्ष में है. हालांकि विरोधी वकील क़ानूनन इसे पर्याप्त नहीं मानता. इस बीच वासु की प्रेमिका एक्सपर्ट्स की मदद लेते हुए हिप्नोटिज्म प्रक्रिया के तहत वासू के अतीत को खंगालने की कोशिश करती है. जैसे-जैसे अतीत का अतीत सामने आता है एक हैरान कर देने वाली कहानी का पता चलता है. दरअसल, वासु पूर्वजन्म में एक क्रांतिकारी बंगाली लेखक श्याम सिंह रॉय था. वह जमींदार परिवार से था. दोनों कहानियों के बीच का कनेक्शन और रोमांटिक एंगल भावुक कर देना वाला है इस एक चीज के लिए दर्शक फिल्म देख सकते हैं.

नक्सल आंदोलन और देवदासी प्रथा की भी झलक

वैसे श्याम सिंह रॉय में 70 के दशक में बंगाल के नक्सल आंदोलन, सामजिक आंदोलन और देवदासी प्रथा का भी दिलचस्प रेफरेंस लिया गया है. फिल्म की लोकप्रियता सबूत है कि श्याम सिंह रॉय लोगों द्वारा खूब पसंद की जा रही है. श्याम सिंह रॉय पुनर्जन्म पर आधारित तेलुगु में आई पहली फिल्म नहीं है. बाहुबली फेम एसएस राजमौली के निर्देशन में आई मगाधीरा भी पुनर्जन्म के कांसेप्ट पर बनी रोमांटिक ड्रामा थी जो ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी. फिल्म में रामचरण और काजल अग्रवाल की जोड़ी थी.

यह विषय ही इतना दिलचस्प ही है कि हिंदी सिनेमा में कॉन्सेप्ट पर बनी लगभग सभी फिल्मों ने रिकॉर्डतोड़ सफलता हासिल की है. मधुमती (1948), मिलन (1967), नील कमल (1968), करण-अर्जुन (1995), ओम शांति ओम (2007) और हाउसफुल 4 (2019) ऐसी ही ब्लॉकबस्टर फ़िल्में हैं. मधुमती, मिलन और नीलकमल को तो क्लासिक का दर्जा भी हासिल है.

श्याम सिंह रॉय पिछले साल 24 दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज की गई थी. इसे बाद में नेटफ्लिक्स पर रिलीज किया गया. फिल हालांकि हिंदी में नहीं है लेकिन इसकी कहानी हिंदीभाषी दर्शकों से बढ़िया संवाद स्थापित कर लेती है और बांधे रखती है. नानी के फिल्म की जिस तरह चर्चा है- हो सकता है कि बॉलीवुड उसका रीमेक बनाने के लिए आगे आए. वैसे भी साउथ की तमाम ब्लॉकबस्टर मूवीज पर बॉलीवुड फिलहाल काम कर भी रहा है.

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