Jaadugar Review: अमोल पालेकर होना बच्चों का खेल नहीं है, इतनी सी बात याद रखें जितेंद्र
Netflix पर हालिया रिलीज फिल्म जादूगर को देखने के बाद, कह सकते हैं कि, अमोल पालेकर को कॉपी करने से बेहतर है कि, फिल्म के एक्टर जितेंद्र कुमार, एक्टिंग पर फोकस रखें. कहीं ऐसा न हो कि उनका सूरज उदय होने के पहले ही अस्त हो जाए.
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फिल्म का हीरो... जैसे ही ये शब्द हमें दिखाई या सुनाई देते हैं, कुछ अवधारणाएं हमारे दिमाग में बनती हैं. अक्षय, शाहरुख़, अजय, सलमान, ह्रितिक, अमिताभ, बच्चन, विनोद खन्ना, धर्मेंद्र जैसे कुछ नाम हमारे सब कॉन्शियस में आ जाते हैं. चाहे वो आज का समय हो. या फिर कुछ दशक पहले की बात करें. फिल्मों को लेकर जो ट्रेंड रहा है, हम सिनेप्रेमियों ने पर्दे का हीरो उसे ही माना जो गुड़ लुकिंग और स्टाइलिश है. जिसकी बेहतरीन तराशी हुई बॉडी है लेकिन हमारा ये भ्रम तब टूटा जब हमने पर्दे पर अमोल पालेकर जैसे हीरो की एंट्री देखी. अमोल न तो बहुत ज्यादा गुड़ लुकिंग थे और न ही उनकी मन मोह लेने वाली बॉडी थी लेकिन बावजूद उसके उन्होंने अपनी एक्टिंग से, अपनी फिल्मों और उसके टॉपिक के चयन से अपना एक अलग फैन बेस तैयार किया. वर्तमान में ऐसा ही कुछ मिलता जुलता हाल पंचायत फेम जितेंद्र कुमार का है. पहले कोटा फैक्ट्री फिर पंचायत और अब नेटफ्लिक्स की हालिया रिलीज फिल्म जादूगर में जैसी एक्टिंग जितेंद्र ने की है उसे देखने के बाद जितेंद्र के फैंस को ये जानकर दुःख होगा कि आदमी एक्टर तो बन सकता है लेकिन वो अमोल पालेकर बन जाए ये असंभव सी बात है.
एक्टिंग के लिहाज से जैसी उम्मीदें जितेंद्र से थीं, जादूगर में उन्होंने सारी उम्मीदों को ख़त्म कर दिया
नेटफ्लिक्स पर रिलीज जादूगर में एक नए एक्सपेरिमेंट के जरिये, निर्माता निर्देशकों ने समां बांधने की कोशिश तो की. लेकिन क्योंकि फिल्म को सफल बनाने का पूरा दारोमदार जितेंद्र के कन्धों पर था, कई मौकों पर जितेंद्र की एक्टिंग ओवर एक्टिंग और फिल्म बोर करती हुई नजर आती है. समीर सक्सेना के निर्देशन में बनी 'जादूगर' का प्लाट फुटबॉल तो है मगर इश्क़ मुहब्बत का ऐसा घोटाला हुआ कि फुटबॉल की सारी हवा ही निकल कर रह गयी.
क्या है फिल्म की कहानी?
यूं तो फिल्म की कहानी एमपी के नीमच और वहां होने वाले एक फुटबॉल टूर्नामेंट के इर्द गिर्द घूमती है. मगर फिल्म में जादूगर बने मीनू (जितेंद्र कुमार) को इससे कोई मतलब नहीं है. उसकी अपनी अलग दुनिया है अपने सपने हैं. फिल्म में मीनू को अपनी बचपन की दोस्त से प्यार करते हुए दिखाया गया है. लेकिन मीनू का स्वाभाव कुछ ऐसा है कि उसकी गर्ल फ्रेंड उसे छोड़ देती है. जिसके बाद मीनू का दिल टूट जाता है.
इसी बीच मीनू की लाइफ में एक और लड़की की एंट्री होती है. लड़की आंखों की डॉक्टर है और उसका प्यार पाने के नाम पर मीनू ऐसा बहुत कुछ कर देता है, जो ये बता देता है कि, जब बात प्यार में अपने को सिद्ध करने की आती है तो आदमी घटिया से घटिया काम को अंजाम देने में देर नहीं करता.
मीनू जादूगर है और बचपन से ही उसे फुटबॉल से नफरत है. बावजूद इसके जैसे उसे मैदान पर दिखाया गया है. साफ़ हो जाता है कि अगर कहानी लिखते हुए कहानीकार ने थोड़ी मेहनत कर दी होती, तो नतीजा कुछ कुछ वैसा ही निकलता. जैसा हम जितेंद्र के मद्देनजर पूर्व में कोटा फैक्ट्री और पंचायत के दोनों अलग अलग एपिसोड में देख चुके हैं.
अपनी एक्टिंग से जितेंद्र ने भ्रम तोड़ दिए हैं.
फिल्म में जैसा ट्रीटमेंट अपने रोल को जितेंद्र कुमार ने दिया, कुछ एक मौके ऐसे भी आते हैं जिन्हें देखने के बाद लगेगा कि जितेंद्र आज के अमोल पालेकर हैं. मगर ये भ्रम तब टूट जाता है जब फिल्म आगे बढ़ती हैं और अपने एन्ड पर पहुंचती है. अब इसे स्क्रिप्ट राइटर की गलती कहें या बतौर एक्टर जितेंद्र कुमार का ओवर कॉन्फिडेंस फिल्म एंटरटेन कम और बोरिंग ज्यादा है.
जब ये खबर आई थी कि जादूगर में निर्माता निर्देशक जितेंद्र को कास्ट कर रहे हैं. उम्मीद थी कि एक ऑफबीट एक्टर होने के नाते जितेंद्र से हमें कुछ अलग देखने को मिलेगा लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिसका जिक्र किया जाए और ये कह दिया जाए कि जितेंद्र एक क्रांतिकारी अभिनेता हैं.
नेटफ्लिक्स की फिल्म जादूगर में ऐसे तमाम सीन हैं जिन्हें देखकर बोरियत का एहसास होता है
एक एक्टर के रूप में जितेंद्र को इस बात को समझना होगा कि भले ही आज उनका नाम बिक रहा हो. कोटा फैक्ट्री और पंचायत के बल पर उन्हें ओटीटी की दुनिया में तमाम बड़े एक्टर्स से कम्पेयर किया जा रहा हो. लेकिन क्योंकि जादूगर में उन्होंने 'नाम बड़े और दर्शन छोटे' होने वाली कहावत को चरितार्थ किया है, जनता और बॉक्स ऑफिस दोनों ही इस गलती को बर्दाश्त नहीं करेगा.
साथ ही जितेंद्र को इस बात का भी आत्मसात करना होगा कि, ओटीटी पर बन रही फिल्मों की कहानियों को यूं भी कोई याद नहीं रखता. ऐसे में जादूगर जैसी फिल्म और उस फिल्म की एक्टिंग एक एक्टर के रूप में उन्हें वहां डाल सकती है. जहां बाद में किसी एक्टर को काम मिले इसकी कोई गारंटी नहीं रहती.
भले ही जितेंद्र का सारा संघर्ष वेब सीरीज और ओटीटी का हीरो बनने के बजाए बड़े पर्दे का हीरो बनने का हो लेकिन जिस तरह उनका अभिनय ऊब पैदा करता नजर आ रहा है वो कई मायनों में विचलित करता है. अंत में हम बस ये कहकर अपनी बातों को विराम देंगे कि अमोल पालेकर को कॉपी करने से बेहतर है कि जीतेंद्र एक्टिंग पर फोकस रखें. कहीं ऐसा न हो कि उनका सूरज उदय होने के पहले ही अस्त हो जाए.
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