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Updated: 06 नवम्बर, 2021 04:36 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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टीजे गणनवेल के निर्देशन में बनी जय भीम (Jai Bhim Movie) लंबे वक्त बाद तमिल सिनेमा से आई कोई फिल्म है जिसे ना सिर्फ हिंदी पट्टी में देखा जा रहा बल्कि इसपर बहस भी हो रही है. बहस के अपने सामजिक-राजनीतिक मकसद हैं. फिलहाल हम उसके मुद्दों पर बात नहीं कर रहे. यहां सुरिया स्टारर जय भीम के उन चुनिंदा दृश्यों पर बात हो रही है जिनके अर्थ संवेदना से भरे हुए, गहरे और निश्चित ही बहुत प्रभावी हैं. हकीकत में किसी तरह की नस्ली द्वेष का सामना करने वाला ही उसके अनुभव को जानता है. देखने वाले भले ही उस द्वेष के खिलाफ संबंधित से सहानुभूति जताए, मगर उसे कभी स्वानुभूत नहीं कर सकते.

टीजे गणनवेल ने एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी में जातीय द्वेष झेलने वाले लोगों के अनुभवों को आम दर्शकों के लिहाज से "स्वानुभूत" बनाने की कोशिश की है. कई जगह उन्होंने दृश्यों के जरिए सांकेतिक भाषा में भारतीय समाज व्यवस्था के घिनौने तथ्यों पर बिना कुछ कहे, बहुत कुछ कहा है. इसके लिए गणनवेल और शानदार एक्ट करने वाले कलाकारों को बधाई दें. जय भीम का पॉलिटिकल होना जिस पर भिन्न भिन्न तर्क आने लगे हैं - एक अलग बात है. मगर दृश्यों के जरिए गणनवेल ने जय भीम से जैसा संवाद किया है वो तारीफ़ के काबिल है.

जय भीम की कहानी जस्टिस चंद्रू द्वारा दाखिल उस हैबियस कॉर्पस पर आधारित है जिसमें उन्होंने इरुलर समुदाय के एक दंपति राजकन्नू और सेंगनी द्वारा झेले गए जातीय संत्रांस और उसके संघर्ष को आवाज दी. हाल फिलहाल याद नहीं कि जय भीम से पहले पुलिसिया उत्पीडन के इतने वीभत्स और वास्तविक दृश्य भारतीय सिनेमा में कब देखने को मिले थे? टॉर्चर के कई दृश्य तो देखने वालों को मानसिक तौर पर हिलाकर रख देंगे. जय भीम के कुछ दृश्यों पर सोशल मीडिया में खूब बात हो रही है. आइए फिल्म से जुड़े ऐसे ही पांच दृश्यों के बारे में जानते हैं.

jai bhim prime videoजंगल में सांप छोड़ने आया राजकन्नू.

#1. दलित से जातीय घृणा, पर उसकी श्रमशक्ति क्षमता के बिना नहीं चलता काम

राजकन्नू और सेंगनी इरुलर समुदाय के आदिवासी दंपति हैं जिनका पारंपरिक पेशा जहरीले सांपों को पकड़ना और सर्पदंश का इलाज करना है. दंपति अभाव के बावजूद अपनी जिंदगी में खुश है और भविष्य के सपने पाल रहा है. सरपंच के घर सांप निकलने के बाद उसे पकड़ने के लिए एक युवक राजकन्नू को लेने उसके घर आता है. राजकन्नू सारे काम छोड़कर तुरंत उसके साथ जाने के लिए निकल पड़ता है. मोटरसाइकिल पर बैठने के दौरान राजकन्नू का हाथ गलती से युवक के कंधे पर चला जाता है. छुआछूत को लेकर युवक की प्रतिक्रिया बहुत ही घृणास्पद है.

राजकन्नू बाइक पर बैठा रहता है, मगर एक अंतर बनाने की कोशिश करता है ताकि उंची जाति के युवक को वह छू ना पाए. इस क्रम में वह अपना पैर भी ठीक से नहीं रख पाता. साइलेंसर से उसका पैर जल जाता है बावजूद, सरपंच की सुरक्षा और मदद के लिए सांप पकड़ने खुशी-खुशी जाता है. जातीय घृणा, छुआछूत  और गैरबराबरी को दिखाने वाला यह यथार्थपूर्ण और प्रभावशाली दृश्य है. विशेष क्षमता और श्रमशक्ति के बावजूद राजकन्नू जैसे लोगों को सिर्फ जाति की वजह से अमानवीय घृणा से गुजरना पड़ता है.

#2. निम्न जाति के लोगों को मामूली इंसानी हक़ तक नहीं

जेल से कैदियों की रिहाई का दृश्य है. कई सारे पेंडिंग केसेज हैं जिन्हें निपटाया नहीं जा सका है. पुलिस के कुछ अफसर अवैध तरीके से केसेज निपटाने के लिए आरोपी लेने आए हैं. कैदी निकलते हैं. उनसे उनकी जाति पूछी जाती है. जो प्रभावशाली जातियों से हैं उन्हें जाने दिया जाता है मगर समाज व्यवस्था में जिन्हें निम्नतम जाति का माना जाता है उन्हें अलग से खड़ा किया जा रहा है. इनके ऊपर झूठे केसेज लादे जाएंगे. उनके परिवार, पत्नी, मां-बाप बुजुर्ग बेटे-बेटी आस लेकर जेल के बार खड़े हैं. उन्हें मालूम नहीं क्या हो रहा है. चुपचाप खड़े हैं. रहम की भीख मांगते हैं.

व्यवस्था से इतने डरे सहमे हैं कि विरोध करने तक का साहस उनमें नहीं दिखता. पुलिस के अफसर भेड़ बकरियों की तरह फर्जी मामलों में आरोपी बनाकर गाडी में ले जाते हैं. एक यातना से निकलकर दूसरी यातना में जाने का ये दृश्य झकझोरने वाला है.

#3. निर्दोष मासूम बचपन को सजा

पुलिस द्वारा फर्जी मामलों में गिरफ्तार मजलूम लोगों के केसेज को चंद्रू कोर्ट में चुनौती देते हैं. इस दौरान कोर्ट में कुछ बुजुर्गों के साथ आए बच्चे कोर्ट रूम में खेलते नजर आते हैं. ये वो बच्चे हैं जिसमें किसी के माता पिता जेल में बंद हैं. हाशिए के समाज के बड़े बुजुर्ग दोहरी भूमिका में हैं. कोर्ट में पैरवी और बच्चों की देखभाल. देखभाल भे एकया? बच्चों को तो ये भी नहीं मालूम कि क्या हो रहा है. हकीकत से अनजान वे अपनी दुनिया में मस्त भले हैं, मगर सच्चाई यह है कि जैसे उनके माता-पिता या सगे संबंधी निर्दोष अपराधों की सजा जेल में काट रहे हैं वैसे ही जेल से बाहर कोर्ट रूम और तमाम जगहों पर उनका बचपन भी सजा काटने को अभिशप्त है.

jai bhim suriaजयभीम में सेंगनी की मनुहार करते पुलिसवाले.

#4. संविधान और क़ानून की ताकत

सरपंच के घर हुई चोरी के मामले में राजकन्नू को पुलिस ने उठाया था. मगर वो जेल से गायब हो गया है. राजकन्नू की पत्नी सेंगनी प्रेग्नेंट होने के बावजूद मासूम बच्ची को लेकर पति लिए दर-दर भटक रही है. आखिर में वो वामपंथी सामजिक कार्यकर्ताओं की वजह से चंद्रू के पास पहुंचती है जो उसके मामले में एक हैबियस कॉर्पस दाखिल करता है. हैबियस कॉर्पस से सरकार हिल जाती है. और पुलिस राजकन्नू के केस की वजह से भारी दबाव में है. पुलिस सेंगनी को डरा-धमका कर मामला रफा दफा करना चाहती है. सेंगनी झुकने को तैयार नहीं.

केस के सिलसिले में चंद्रू से बातचीत करने के लिए सेंगनी एक फोन बूथ पर खड़ी है. तभी पुलिस वाले उसे थाने में बातचीत के लिए बुलाते हैं. सेंगनी मना कर देती है. मगर पुलिस वाले उसकी बेटी को उठाकर थाने लेकर चले जाते हैं. इस बीच चंद्रू का फोन आता है और उसे सच्चाई पता चल जाती है. चंद्रू सेंगनी को बिना डरे थाने जाने की सलाह देता है. इधर, चंद्रू की वजह से चेन्नई के बड़े अफसरों को थाने की ज्यादतियों का पता चलता है तो फोन पर तुरंत थानेदार को फटकार मिलती है. आदेश मिलता है कि सेंगनी और उसकी बेटी को पुलिस जीप में ससम्मान घर तक छोड़ कर आए.

पुलिसवालों के हाथपांव सूज जाते हैं. वे सेंगनी से जीप में बैठने का आग्रह करते रहते हैं, मगर बेटी को लेकर वह पैदल ही घर निकल जाती है. पुलिसवाले सेंगनी के घर तक उसके पीछे पीछे मनुहार करते चलते हैं. पूरा गांव यह दृश्य देखता है. अन्याय के खिलाफ संविधान और क़ानून की ताकत को दिखाने वाला यह बहुत ही प्रभावी सिनेमाई दृश्य है.

suriyaजय भीम में सुरिया

#5. दलित आदिवासियों के शिक्षित होने का महत्व

कई मामलों से पता चलता है कि अशिक्षा, कम पढ़ा-लिखा होने की वजह से दलित आदिवासी जैसे शोषित तबके को ज्यादतियों का शिकार होना पड़ता है. अशिक्षा की वजह से वह अपने कानूनी और मानवीय अधिकार तक के बारे में जानकारी नहीं रखते और उनमें आत्मविश्वास नहीं होता. जय भीम के आख़िर में दिखाया गया है कि चंद्रू अपने घर में कुर्सी पर बैठे हुए पैर पर पैर धरे अखबार पढ़ रहा है. उसकी देखा देखी पास बैठी सेंगनी की बेटी भी अखबार उठाती है और पैर पर पैर रखकर उसे पढ़ती है. यह दृश्य हाशिए के समाज को शिक्षा से मिले आत्मविश्वास को दर्शाता है. और हाशिए के समाज को शिक्षा के लिए प्रेरित करता है.

जय भीम का यह वो दृश्य है जिसे सोशल मीडिया पर खूब साझा किया जा रहा है.

सभी तस्वीरें अमेजन प्राइम वीडियो/ट्विटर से साभार.

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लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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