Jalsa Movie Review: विद्या बालन और शेफाली शाह की बेहतरीन अदाकारी का शानदार नमूना है फिल्म
Jalsa Movie Review in Hindi: डिजिटल सिनेमा के जमाने में महिला किरदारों की भूमिका ओवर द टॉप हो चुकी है. पहले के मुकाबले महिला प्रधान फिल्मों पर काम ज्यादा होने लगा है. इस कड़ी में विद्या बालन, तापसी पन्नू और हुमा कुरैशी जैसी अभिनेत्रियों का सशक्त योगदान बिल्कुल भी नहीं भूलना चाहिए.
-
Total Shares
अबंडनशिया एंटरटेनमेंट और टी सीरीज के बैनर तले बनी फिल्म 'जलसा' ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही है. इसमें विद्या बालन, शेफाली शाह, रोहिणी हट्टंगड़ी, सूर्या कासिभाटला, मोहम्मद इकबाल खान, मानव कौल और विधात्री बंदी जैसे कलाकार अहम किरदारों में हैं. फिल्म का निर्देशन सुरेश त्रिवेणी ने किया है. इसकी कहानी प्रज्ज्वल चंद्रशेखर, सुरेश त्रिवेणी, हुसैन दलाल और अब्बास दलाल ने लिखी है. फिल्म 'जलसा' विद्या बालन और शेफाली शाह की बेहतरीन अदाकारी का शानदार नमूना है. दोनों अभिनेत्रियां अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का दिल पहले ही जीत चुकी हैं. वेब सीरीज 'दिल्ली क्राइम' और 'ह्यूमन' से शेफाली और 'शेरनी' और 'शंकुतला देवी' जैसी फिल्मों से विद्या यह साबित कर चुकी हैं कि अपने दम पर वो किसी तरह के सिनेमा को सफल बनाने की ताकत रखती हैं. इस फिल्म में दोनों को एक साथ देखना और भी अच्छा लगता है.
फिल्म 'जलसा' ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही है.
फिल्म कहानी की शुरुआत एक दिल दहलाने वाली वारदात के साथ होती है. इसमें दिखाया जाता है कि एक कपल देर रात बाइक से घूम रहा होता है. इसी बीच लड़की अचानक तेजी से आती हुई एक कार के सामने आ जाती है. इस भयंकर हादसे में लड़की बुरी तरह घायल होती है. बाद में पता चलता है कि हादसा करने वाली कार को एक मशहूर महिला पत्रकार माया मेनन (विद्या बालन) चला रही होती है. हादसे की शिकार लड़की उसके घर काम करने वाली हाऊस मेड रुखसाना (शेफाली शाह) की बेटी होती है. हादसे की रात अपने बेबाक इंटरव्यू में रिटायर चीफ जस्टिस की बखिया उधेड़ने के बाद माया अपने घर लौट रही होती है, तभी कार चलाते हुए झपकी आ जाती है. इसी दौरान ये हादसा हो जाता है. माया का एक बेटा होता है, जो एक ऑटिस्टिक (मानसिक बीमारी) होता है. उसका पति तलाक के बाद अपनी अलग दुनिया बसा चुका है. लेकिन बेटे से मिलने आता रहता है.
रुखसाना माया के बच्चे का बहुत ध्यान रखती है. यहां तक कि उसके खुद के दो बच्चे होते हैं. लेकिन वो उनको अकेला छोड़कर माया के बच्चे के साथ ही रहती है. इस दौरान उसकी अपनी बेटी उसके हाथ से निकलती जाती है. बेटा भी उसकी बात नहीं मानता. लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद भी वो माया के परिवार को अपने परिवार की तरह देखभाल करती है. ऐसे में रुखसाना की बेटी जब माया की कार से घायल हो जाती है, तो उसकी जिंदगी मिनटों में बदल जाती है. विडंबना ये है कि उसका असर सिर्फ माया पर नहीं बल्कि उसके घर मेड का काम करने वाली रुखसाना, उसके परिवार, बेटे और कई ऐसे किरदारों पर पड़ता है, जिसे देखकर हैरान होती है. एक पल के लिए लगता है कि अब माया के बेटे का क्या होगा. क्योंकि उसके जरिए एक भावनात्मक लगाव हो जाता है, जिसे रुखसाना के किरदार के जरिए विस्तार दिया गया है. इस किरदार को शेफाली शाह ने बेबाकी से जिया है.
सुरेश त्रिवेणी ने अपनी टीम के साथ प्रज्ज्वल चंद्रशेखर, सुरेश त्रिवेणी, हुसैन दलाल और अब्बास दलाल की बुनी कहानी को इस तरह से फिल्माया है, जो वास्तविक प्रतीत होता है. फिल्म देखते हुए इतना डूब जाएंगे कि लगेगा ही नहीं कि सिनेमा देख रहे हैं. बल्कि वास्तविक दुनिया का एहसास होगा. इसका हर फ्रेम मजबूत है. हर किरदार एक कहानी को कहता है. हर डायलॉग का एक व्यापक मतलब होता है. हर कलाकार ईमानदारी से अपने किरदार को जीता है. इतना ही नहीं फिल्म में हास्य को बढ़ने के लिए कोई अलग से मेहनत नहीं की गई है, बल्कि ये गंभीर दृश्यों में खुद ब खुद सामने आ जाता है. जहां तक कलाकारों के अभिनय प्रदर्शन का सवाल है, तो सही मायने में विद्या बालन और शेफाली शाह इसकी जान है. दोनों के किरदारों को इसकी कहानी का आधार स्तंभ कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा. दोनों अभिनेत्रियां अभिनय के नजरिए से नहले पर दहला साबित हुई हैं. एक से बढ़कर एक हैं.
एक बच्चे की मां होते हुए भी तेज-तर्रार पत्रकार के किरदार में विद्या दमदार लगी हैं, तो शेफाली एक बीमार बच्चे की देखभाल करते वक्त कोमल दिल वाली महिला, तो बेटी के साथ हादसा होने के बाद एक आक्रोशित मां के रूप में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराती हैं. विद्या की मां की भूमिका में लंबे समय बाद अभिनेत्री रोहिणी हटंगड़ी को देखना अच्छा लगता है. इकबाल खान और मानव कौल को बहुत ज्यादा स्क्रीन स्पेस तो नहीं मिला है, लेकिन कम समय में भी वो अपना असर छोड़ने में कामयाब रहे हैं. सूर्या कासिभाटला और विधात्री बंदी भी अपने-अपने किरदारों में प्रभावी लगे हैं. सौरभ गोस्वामी का कैमरा वर्क अच्छा है. उन्होंने कई यादगार दृश्य अपने कैमरे में कैद किए हैं. शिव कुमार पैनिकर का संपादन थोड़ा कसा हुआ होता, तो फिल्म इससे भी बेहतीन बन सकती थी. क्योंकि 2 घंटे 10 मिनट की लंबी अवधि ओटीटी के हिसाब से मानी जाती है. खैर, इस कमी को छोड़ दें तो फिल्म बहुत ही शानदार बनी है. इसे विद्या बालन और शेफाली शाह की बेहतरीन अदाकारी के लिए जरूर देखा जाना चाहिए.
आपकी राय