'झुंड' में अमिताभ बच्चन का किरदार पिछड़ों को नायक बनाने वाला है
मराठी सुपरहिट फिल्म 'फैंड्री' और 'सैराट' से रातोंरात सुर्खियों में आए डायरेक्टर नागराज मंजुले की बहुप्रतिक्षित फिल्म 'झुंड' में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन पहली बार एक 'दलित नायक' के किरदार में नजर आने वाले हैं. यह फिल्म 4 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है.
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चार मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज होने के लिए तैयार फिल्म 'झुंड' कई मायने में अहम साबित होने वाली है. इस फिल्म के नायक और निर्देशक के नजरिए से देखें तो फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा सक्सेसफुल कॉकटेल बहुत कम देखने को मिलता है. फिल्म में बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन लीड रोल में हैं. वो पहली बार एक ऐसे किरदार को करने जा रहे हैं, जो शोषित-वंचित बच्चों का महानायक है. उस शख्स ने अपनी पूरी जिंदगी झुग्गी-बस्ती में रहने वाले दलित और पिछड़े बच्चों के भविष्य को बनाने और संवारने में लगा दिया. जी हां, हम बात कर रहे हैं नागपुर के रहने वाले रिटायर्ड स्पोर्ट्स टीचर विजय बारसे, जिनकी जिंदगी पर फिल्म झुंड आधारित है. इस फिल्म के निर्देशक नागराज मंजुले की प्रतिभा से परिचित होना हो तो हालही में प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई एक एंथोलॉजी 'वैकुंठ' देख लीजिएगा. इसमें नायक और निर्देशक दोनों की भूमिका में नागराज हैं. इसके अलावा मराठी सुपरहिट फिल्म 'फैंड्री' और 'सैराट' के लिए भी मुंजले जाने जाते हैं.
नागराज मंजुले की बहुप्रतिक्षित फिल्म 'झुंड' में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन लीड रोल में हैं.
निर्देशक नागराज मंजुले मुख्यत: मराठी सिनेमा में अपने काम के लिए जाने जाते हैं. उन्हें फिल्म 'पिस्तुल्या' के लिए साल 2010 में 58वां नेशनल फिल्म अवॉर्ड मिल चुका है. इसके अलावा साल 2013 में फिल्म 'फैंड्री' के लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड और इंदिरा गांधी अवॉर्ड, बेस्ट फर्स्ट फिल्म अवॉर्ड मिल चुका है. उनकी सबसे ज्यादा चर्चित फिल्म सैराट फिल्म को साल 2016 में 69वें नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया. इस फिल्म को पूरे देश में पसंद किया गया था. उनकी फिल्मों में दलित विमर्श का स्वर हमेशा प्रधान रहता है. चाहे फिल्म 'फैंड्री' में सुअर पकड़ने वाले परिवार में पैदा हुए एक दलित लड़के के ऊंची जाति की लड़की से प्यार करने की कहानी हो या फिर फिल्म 'सैराट' में आर्ची और परश्या की प्रेम कथा, जो शादी जैसे सुखद अंजाम तक पहुंचकर भी उन्हें दुख देती है. इन फिल्मों के जरिए नागराज ने हर बार समाज में पैठ जमा चुकी जातिवाद की जड़ों पर करारा प्रहार किया है. यही वजह है कि फिल्म 'झुंड' को लेकर दर्शकों में उत्साह देखा जा रहा है.
कौन है विजय बारसे?
नागपुर के रहने वाले विजय बारसे एक कॉलेज में स्पोर्ट्स इंस्ट्रक्टर थे. साल 1999 की बात है, एक दिन वो कॉलेज जा रहे थे. खूब बरसात हो रही थी. पानी में भीगने से बचने के लिए एक पेड़ के नीचे खड़े हो गए. तभी उन्होंने देखा कि मैदान में कुछ बच्चे खेल रहे हैं. देखने से आसपास की झुग्गी में रहने वाले लग रहे थे. उनके शरीर पर पूरे कपड़े नहीं थे, लेकिन कीचड़ में टूटी हुई बाल्टी पर ऐसे किक मार रहे थे, मानो फुटबॉल खेल रहे हों. विजय स्कूल चले गए. अगले दिन असली फुटबॉल लेकर आए और उन बच्चों से फुटबॉल मैच खेलने के लिए पूछा. सबने अपनी इच्छा जाहिर कर दी. इसके बाद एक-एक करके झुग्गी में रहने वाले सैकड़ों बच्चे इकठ्ठे होते गए. इसके बाद विजय बारसे ने अपने कुछ परिचितों की मदद से 'स्लम सॉकर' की स्थापना की थी. इसे प्यार से झोपड़पट्टी फुटबॉल कहकर पुकारा जाता था. इसका पहला मैच 2001 में हुआ था, जिसमें 125 टीमों ने हिस्सा लिया था. धीरे-धीरे इसका प्रसार पूरे देश में हो गया. यहां तक कि विदेशी बच्चे भी जुड़ गए हैं.
विजय बारसे ने 'स्लम सॉकर' के बच्चों के खेलने के लिए अपने रिटायरमेंट से मिले 18 लाख रुपए से एक जमीन खरीदी और उसे खेल का मैदान बना दिया था. आज उनकी एकेडमी में शोषित-वंचित तबके से आने वाले बच्चे फुटबॉल खेलकर देशस्तर पर नाम कमा रहे हैं. उनमें से एक लड़के अखिलेश का इंडियन टीम में भी सेलेक्शन हुआ है, जो बाद में टीम का कैप्टन भी बना. इतना ही नहीं ब्राजील में आयोजित स्लम सॉकर वर्ल्ड कप में भी उनकी टीम खेलने गई थी. झुग्गी में रहने वाले गरीब बच्चों के उत्थान के लिए साल 2012 में विजय बारसे को रियल हीरो अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. इस अवॉर्ड को सचिन तेंदुलकर ने अपने हाथों से बारसे को दिया था. इसके साथ ही आमिर खान के रियलिटी शो सत्यमेव जयते सीजन 3 में विजय को गेस्ट के रूप में आमंत्रित किया गया था. वहां उन्होंने अपने संघर्ष और उपलब्धियों की कहानी पूरी दुनिया को सुनाई थी. 'स्लम सॉकर' ने केवल बच्चों को खेलने ही नहीं सिखाया, बल्कि उनको नशे और अपराध की दुनिया में जाने से भी बचाया.
पहली पसंद बिग बी ही क्यों?
पिछले पांच साल से 'झुंड' को लेकर चर्चा चल रही है. साल 2017 में खबर आई कि नागराज मुंजले अमिताभ बच्चन को लेकर फिल्म की शूटिंग करने जा रहे हैं. पुणे की सावित्रीबाई फुले यूनिवर्सिटी के स्पोर्ट्स ग्राउंड में फिल्म का सेट भी तैयार कर लिया गया, लेकिन शूटिंग शुरू नहीं हो पाई. इसी दौरान खबर आई कि कई फिल्मों में बिजी रहने की वजह से अमिताभ बच्चन ने फिल्म करने से मना कर दिया है. इस तरह फिल्म रुक गई. नागराज चाहते तो किसी दूसरे एक्टर के साथ फिल्म बना सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. उन्होंने इंतजार किया, क्योंकि इस फिल्म को उन्होंने बिग बी को ध्यान में रखकर ही लिखा था. दो साल तक वो स्क्रिप्ट पर काम करते रहे थे. इसलिए वो किसी दूसरे अभिनेता के साथ फिल्म नहीं करना चाहते थे. इसके साथ ही मंजुले बिग बी के बहुत बड़े फैन भी बताए जाते हैं. फिल्म इंडस्ट्री में वो एकमात्र अभिनेता हैं, जिनके साथ काम करने की इच्छा रखते हैं. उनका तो यहां तक कहना है कि यदि फिल्म में बिग बी नहीं होते तो वो इसे डायरेक्ट भी नहीं करते.
दलित किरदार में एक राष्ट्रीय आइकॉन
अमिताभ बच्चन सदी के महानायक हैं. उनके अभिनय कला कायल हर कोई है. उनको कई तरह के किरदारों में देखा गया है. एंग्री यंगमैन से लेकर पुलिस अफसर तक के किरदारों में लोगों ने उनको खूब पसंद किया है. कुली बनकर उन्होंने उस वर्ग की आवाज बुलंद की थी, जिसे सुनने वाला कोई नहीं है. लेकिन पहली बार वो किसी दलित नायक के किरदार में नजर आने वाले हैं. इस किरदार में देखने के लिए दर्शक जितने उत्सुक हैं, उतने ही अमिताभ बच्चन इसे निभाने से पहले उत्साहित नजर आए थे. दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवक्ता और फिल्म लेखक मिहिर पांड्या ने एक वेबसाइट से बातचीत में कहा था, 'नागराज मंजुले की पहली हिंदी फिल्म 'झुंड' में अमिताभ बच्चन प्रमुख भूमिका में हैं. मंजुले के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए अनुमान लगाया कि उनकी नई फिल्म निश्चित रूप से जाति आधारित होगी और उसमें एक दलित नायक होगा. मेरे अनुमान के गलत साबित होने के जोखिम के साथ, अमिताभ जैसे राष्ट्रीय आइकॉन को एक दलित किरदार की भूमिका में देखना इसके अपेक्षित दृश्य से कहीं अधिक उग्र हो सकता है.
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