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Updated: 18 सितम्बर, 2022 08:11 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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84 सिख विरोधी दंगों पर कई फिल्में बन चुकी हैं. साल 2015 में फिल्म '31 अक्टूबर', साल 2003 में फिल्म 'हवाएं', साल 2014 में फिल्म 'कौम दे हीरे' और साल 2014 में 'सन 84 जस्टिस' रिलीज हुई थी. इन सभी फिल्मों में साल 1984 में हुए कत्लेआम को अलग-अलग नजरिए से पेश किया गया है. लेकिन इन सबसे अलग नजरिए से दंगों की दिल दहला देने वाली दास्तान फिल्म 'जोगी' में दिखाई गई है. 'गुंडे', 'सुल्तान', 'टाइगर जिंदा है' और 'भारत' जैसी फिल्में बनाने वाले अली अब्बास जफर के निर्देशन में बनी ये फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है. फिल्म में दिलजीत दोसांझ, मोहम्मद जीशान अयूब, हितेन तेजवानी, अमायरा दस्तूर और कुमुद मिश्रा जैसे कलाकार अहम किरदारों में हैं. इनमें हीरो के किरदार में दिलजीत दोसांझ और विलेन के किरदार में कुमुद मिश्रा ने जबरदस्त एक्टिंग की है. सही मायने में पूरी फिल्म इन दोनों के कंधों पर टिकी है.

बॉलीवुड एक्टर दिलजीत दोसांझ को ज्यादातर कॉमेडी फिल्मों में देखा गया है, लेकिन दंगे जैसे गंभीर विषय पर बनी फिल्म 'जोगी' में उन्होंने जिस तरह से अभिनय किया है, उसे देखकर एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन की याद आ जाती है, जिनको कॉमेडी हो या सीरियस, हर तरह के किरदार में जबरदस्त परफॉर्म करते हुए देखा गया है. दिलजीत दोसांझ मूल रूप से एक गायक हैं, लेकिन पंजाबी फिल्मों में अपने दमदार अभिनय की बदौलत उनको बॉलीवुड फिल्मों में भी काम करने का मौका मिला. उनकी पहली हिंदी फिल्म 'उड़ता पंजाब' है, जो साल 2016 में रिलीज हुई थी. शाहिद कपूर स्टारर अपनी पहली ही फिल्म में अलहदा अदाकारी के जरिए दिलजीत ने लोगों का दिल जीत लिया था. फिल्म 'जोगी' के जरिए उन्होंने ये साबित कर दिया है कि किसी भी फिल्म को वो अकेले सफल बनाने का मादा रखते हैं. उन्होंने अपने फिल्म करियर में अभी तक का बेस्ट परफॉर्मेंस दिया है.

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Jogi Movie की कहानी क्या है?

फिल्म 'जोगी' की कहानी साल 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों पर आधारित है. इसमें जोगिंदर सिंह उर्फ जोगी (दिलजीत दोसांझ) का किरदार केंद्र में है. जोगी अपने परिवार के साथ दिल्ली के त्रिलोकपुरी के गली नंबर 6 में रहता है. उसके परिवार में माता-पिता, बहन-बहनोई और भांजा होते हैं. एक आम परिवार की तरह सभी आपस में हंसी-सुखी अपनी जिंदगी जी रहे हैं. पिता सरकारी नौकरी करते हैं, तो बहनोई दुकान चलाते हैं. 31 अक्टूबर 1984. उस दिन भांजे प्रब का जन्मदिन होता है. सुबह नाश्ते की टेबल पर तय होता है कि शाम को सभी जल्दी घर पर मिलेंगे. पिता उसी रिटायर होने वाले होते हैं, तो जोगी उनके साथ ऑफिस जाने के लिए निकलता है. उसी वक्त रेडियो पर ऐलान होता है कि भारत के प्रधान मंत्री की उनके सिख गार्डों द्वारा हत्या कर दी गई है. इसके बाद सिखों को निशाना बनाए जाने लगता है. रास्ते में बस के अंदर जोगी और उसके पिता के साथ भी मारपीट की जाती है.

जोगी पूछता है, ''मेरी गलती क्या है?'' दंगाई कहते हैं, ''तू सरदार है न यही तेरी गलती है.'' जोगी किसी तरह से वहां बचकर अपने घर की ओर निकलता है. रास्ते में दंगाईयों का आतंक देखता है. वो अपने पिता को घर भेजकर पीड़ितों को बचाने की कोशिश करने लगता है. इसी बीच दंगाई उसके बहनोई तजिंदर (केपी सिंह) को उसके दुकान के अंदर बंद करके जला देते हैं. त्रिलोकपुरी का विधायक तेजपाल अरोड़ा (कुमुद मिश्रा) सिखों के खिलाफ लोगों को भड़कता है. उन लोगों को हथियार और पेट्रोल मुहैया कराता है. इसमें स्थानीय पुलिस भी उसका साथ देती है. तेजपाल कहता है, ''वोटर लिस्ट चाहिए मुझे, एक एक का नाम मार्क होना चाहिए.'' इसके बाद वोटर लिस्ट में सभी सरदारों के नाम के आगे एस मार्क करके दंगाईयों को दे दिया जाता है. दंगाईयों से बचने के लिए सभी सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारे में शरण लेते हैं. वहां जोगी एक इंस्पेक्टर चौटाला (मोहम्मद जीशान अय्यूब) पहुंचता है.

इंस्पेक्टर चौटाला और जोगी बहुत पुराने दोस्त होते हैं. इसलिए वो उससे अपने परिवार के साथ पंजाब जाने के लिए कहता है, क्योंकि इस वक्त उससे ज्यादा सुरक्षित जगह कोई दूसरी नहीं है. लेकिन जोगी कहता है कि वो परिवार को लेकर तो चला जाएगा, लेकिन उसके मौहल्ले वालों का क्या, जिनके साथ वो बचपन से रह रहा है. जोगी की इच्छाशक्ति देखकर चौटाल सभी सिखों को दिल्ली से पंजाब भगाने की योजना बनाता है. इसमें उनका दोस्त कलीम अंसारी (परेश पाहूजा) भी साथ देता है, जो कि ट्रक का कारोबार करता है. कलीम एक ट्रक तैयार करवाता है और तीनों वाहन के एक हिस्से को हथियारों और अन्य सामानों से भर देते हैं. इसी बीच इंस्पेक्टर कटियाल उर्फ लाली (हितेन तेजवानी) उनके पीछे पड़ जाता है. लेकिन क्या जोगी अपने लोगों को दिल्ली से ले जाने में सफल होता है? लाली और जोगी के बीच किस बात की दुश्मनी होती है? जानने के लिए फिल्म जरूर देखनी चाहिए.

Jogi Movie का निर्देशन कैसा है?

फिल्म 'जोगी' का निर्देशन अली अब्बास जफर ने किया है. ओटीटी के लिहाज से देखें तो ये उनका दूसरा बड़ा प्रोजेक्ट है. इससे पहले अमेजन प्राइम वीडियो पर राजनीतिक दांव-पेंच पर आधारित उनकी वेब सीरीज 'तांडव' स्ट्रीम हो चुकी है. इस सीरीज पर पूरे देश में बहुत ज्यादा बवाल हुआ था. कई जगह ओटीटी प्लेटफॉर्म के साथ ही फिल्म मेकर्स के खिलाफ केस दर्ज हुए थे. इसके अलावा अली अब्बास को 'गुंडे', 'सुल्तान', 'टाइगर जिंदा है' और 'भारत' जैसी फिल्मों के निर्देशन के लिए भी जाना जाता है. हर बार की तरह इस फिल्म में भी अली ने जबरदस्त काम किया है. एक ऐसी कहानी, जिसके बारे में हर पढ़ा-लिखा इंसान जानता है. जिसके बारे में ढेरों जानकारियां गूगल पर मौजूद हैं. उसे एक नए तेवर और कलेवर में नए नजरिए के साथ पेश करना, किसी चुनौती से कम नहीं था. लेकिन अली न सिर्फ इस चुनौती को स्वीकार किए हैं, बल्कि इसमें सफल भी हुए हैं.

Jogi की स्क्रिप्ट और स्टार परफॉर्मेंस

अली अब्बास जफर ने सुखमनी सदाना के साथ मिलकर फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी है. सुखमनी को रॉकेट साइंटिस्‍ट नंबी नारायणन की जिंदगी पर आधारित फिल्म 'रॉकेट्री- द नंबी इफेक्ट' की कहानी लिखने के लिए भी जाना जाता है. दोनों ने बहुत ही ईमानदारी से क्रूरतम घटना के उस पक्ष को लोगों के सामने रखने का काम किया है, जिसमें उन निर्दोष लोगों को बलि का बकरा बना दिया गया, जिनका सिर्फ यही दोष था कि वो सिख हैं और तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या करने वाले सिख समुदाय से थे. जूलियस पैकियम का बैकग्राउंड स्कोर इस कहानी के रोमांच को बढ़ा देता है. उसके साथ मार्सिन लास्काविएक की बेहतरीन सिनेमेटोग्राफ़ी दंगे को दर्द को रुपहले पर्दे पर जीवंत करने का काम करती है. फिल्म में वीएफएक्स का भी अच्छा खासा इस्तेमाल किया गया है. आगजनी के ज्यादातर दृश्य उसके जरिए ही दिखाए गए हैं. रेड चिलीज और नेटएफएक्स का वीएफएक्स इतना साफ है कि हर सीन असली लगता है. स्टीवन बर्नार्ड को एडिटिंग पर थोड़ा ध्यान देना चाहिए था, सेकंड हॉफ को स्लो होने से बचाया जा सकता था.

फिल्म देखनी चाहिए या नहीं?

बिल्कुल, ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए. बल्कि अयान मुखर्जी जैसे बॉलीवुड निर्देशकों को अली अब्बास जफर से सीख भी लेनी चाहिए कि कहानी में विषय प्रधान होता है, न कि लव स्टोरी, वरना फिल्म का प्रभाव कम हो जाता है. इस फिल्म में भी लव स्टोरी है, कहानी में उसका अहम रोल है, लेकिन विषय पर हॉवी नहीं होती, बल्कि उसका सपोर्ट करती है. हां, फिल्म का सेकंड हॉफ थोड़ा सा स्लो है, लेकिन फिल्म इतनी अच्छी है कि वो किसी खटेगा नहीं. इस वीकेंड ये फिल्म जरूर देखी जानी चाहिए.

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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