Kangana Ranaut के विरोध में उनकी नग्न तस्वीरें लगाना 'मर्दाना कमजोरी' है
उनमें और कंगना रनौत ने 1947 में मिली आजादी पर जो टिप्पणी की, उसे आपत्तिजनक मानने वालों ने तो विरोध के लिए घटियापन की हद पार कर दी. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब लोग स्त्री का विरोध करते हैं तो उसकी बातों का विरोध नहीं करते बल्कि उसकी सेक्सुअलिटी पर व्यंग्यपूर्ण दोष देने लगते हैं.
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कंगना रनौत ने ‘भीख में मिली आजादी’ वाले बयान पर कितना विवाद हो रहा है यह तो हम सभी देख ही रहे हैं. इस बयान की वजह से हर तरफ कंगना की आलोचना की जा रही है. लोगों का कहना है कि कंगना को आब्सेसिसव कम्पलशन डिसऑर्डर है. यह भक्ति की चरम अवस्था है, इसे दवा की सख्त जरूरत है, यह देशद्रोही है.
तमाम पार्टियों के नेता उनसे सवाल कर रहे हैं और पद्मश्री सम्मान लौटाने की मांग कर रहे हैं. लोग कंगना को अंध भक्त और पागल भी कह रहे हैं. चलो ठीक, ऐसा कहने वाले कम से कम अपनी बातों से कंगना से सवाल-जवाब कर रहे हैं लेकिन उनका क्या जो कंगना को नीचा दिखाने के चक्कर में खुद ही नीचे गिरते जा रहे हैं.
कंगना रनौत का विवादित बयान भीख में मिली आजादी
असल में उनमें और कंगना में जरा भी अंतर नहीं है जो अभिनेत्री का विरोध करने के लिए उनकी नग्न तस्वीरें लगा कर भद्दी टिप्पणी कर रहे हैं. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब लोग स्त्री का विरोध करते हैं तो उसकी बातों का विरोध नहीं करते बल्कि उसकी सेक्सुअलिटी पर व्यंग्यपूर्ण दोष देने लगते हैं. जब लोग एक स्त्री को तर्क से मात नहीं दे पाते तो उसके लिंग के आधार पर उसे नीचा दिखाने की कोशिश करने लगते हैं. हम यहां ऐसे लोगों के शारीरिक दुर्बलता नहीं बल्कि बौद्धिक कमजोरी की बात कर रहे हैं.
ऐसे लोगों में क्या ऐसी तर्क शक्ति नहीं होती, क्या ऐसी क्षमता नहीं होती कि वे एक महिला को मुंहतोड़ जवाब दे सकें. जब स्त्री ने अपनी बात रखने के लिए किसी लैंगिकता का सहारा नहीं लिया तो उसे हराने के लिए लोग उसके चरित्र पर उंगली क्यों उठाने लगते हैं? कंगना के विरोध में नग्न तस्वीरें लगाने वालों ने ऐसे तर्क क्यों नहीं गढ़े जिससे वे उनका मुंह बंद करा सकें.
पचा है कि इन लोगों ने क्या किया? अपनी दिमागी कुंठा को शांत करने के लिए आपने एक बार फिर से कंगना की अर्ध नग्न तस्वीरों को खोजा, उसे शेयर करते वक्त जितनी गंदगी आपके दिमाग में थी आपने उसे कैप्शन में सजाकर शेयर किया. क्या आपने सोचा कि इसमें ऐसा कौन सा काम है जिसे बहादुरी या बुद्धिमानी वाला कहा जाए? इतनी मेहनत अपनी तार्कित क्षमता को विकसित करने में लगाते तो यह सब करने की जरूरत ही नहीं पड़ती.
असल में कंगना ने यब बयान दिया है कि ‘1947 में मिली आजादी भीख थी, देश को असली आजादी तो साल 2014 में मिली’. इसी बयान पर बवाल हो रहा है. इसके बाद कंगना ने अपनी सफाई में कहा है कि “मैं अपना पद्म श्री सम्मान लौटा दूंगी अगर कोई मुझे यह बताए कि 1947 में क्या हुआ था, कौन सी लड़ाई ल़ड़ी गई थी”.
क्या आप खुद इतने कमजोर हैं कि जेंडर को लेकर अपनी पूर्वाग्रह सोच से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं? याद रखिए जब आप किसी एक स्त्री का इस तरीक से अपमान करते हैं तो दुनिया भर की सारी महिलाओं का अपमान करते हैं.
आप कंगना की अर्धनग्न तस्वीरों को लगा देते हैं बस यही तरीका बाकी है आपके विरोध करने का. कंगना के वक्षस्थलों के उभार को दिखाने में विरोध कहां है? आप कंगन के बारे में 4 लाइन में अपशब्द बोल जाते हैं कि ये तो मियां खलीफा से भी बदतर है, लेकिन शायद आपने कंगना के आत्मविश्वास को नहीं देखा जिसके सामने आप टिक नहीं पाते? कंगना के समर्थन करने की क्षमता को देखा है? कंगना को को स्टैंड लेने की क्षमता को देखा है? आप कंगना को उसी के अंदाज में जवाब क्यों नहीं दे सकते?
वो खुलकर बोलती हैं कि मैं किसके साथ हूं और किसके खिलाफ. क्या आप ऐसा स्टैंड ले पाएंगे? आपको तो विरोध भी करना है और सबसे अच्छा बनकर भी रहना है. इस दुनियां में एक बात को तय है कि हम सभी को खुश नहीं रख सकते. कंगना इस बात को लेकर क्लीयर हैं, लेकिन क्या आप हैं?
खैर, ये पहली बार नहीं हुआ है जब किसी महिला का विरोध करने के लिए लोगों ने उसके पुरुष मित्र, शादी, तलाक और उसकी प्रेगनेंसी को निशाना बनाया हो. ऐसा पहले भी कई महिलाओं को साथ हो चुका है जब उनका विरोध करने के लिए उनके चरित्र तो तार-तार किया गया और उन्हें रेप की धमकी भी दी गई.
अगर आप किसी महिला का विरोध करते हैं तो उसकी नीजि जीवन को बीच में लाने की क्या जरूरत है? आप उनके काम के आधार पर उन्हें मुंहतोड़ जवाब दे सकते हैं. तर्क ऐसा दीजिए कि उसे कोई खारिज न कर पाए ना कि आप अपने स्तर को इस इस दलदल में इस कदर नीचे गिरा लीजिए कि कल खुद पर शर्मिंदा होना पड़े.
कभी महात्मा गांधी जी के त्याग और तपस्या का अपमान, कभी उनके हत्यारे का सम्मान, और अब शहीद मंगल पाण्डेय से लेकर रानी लक्ष्मीबाई, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और लाखों स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियों का तिरस्कार। इस सोच को मैं पागलपन कहूँ या फिर देशद्रोह? pic.twitter.com/Gxb3xXMi2Z
— Varun Gandhi (@varungandhi80) November 11, 2021
She don't deserve any awardsIt's stupidity।#कंगना_पद्मश्री_वापस_करो #KanganaRanaut Shameless pic.twitter.com/BeWViNtgX2
— Hari Ojha (@HariOjh19888038) November 11, 2021
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