ट्विटर ने कंगना रनौत को वहां दबोचा, जहां मोदी या भाजपा भी मदद न कर पाएं
अपने अनाप-शनाप बयानों में कंगना रनौत भाजपा को सपोर्ट जरूर करती हैं, लेकिन यह एक तरह से भाजपा के लिए सिरदर्द ही बन गया है. कुछ समय पहले ही उन्होंने प्रिंस हैरी और उनकी पत्नी मेगन मार्कल के विवादित इंटरव्यू को लेकर ट्वीट किए थे. जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी को घसीट लिया था.
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आखिरकार....बॉलीवुड की 'क्वीन' कही जाने वाली कंगना रनौत (Kangana Ranaut) को फिलहाल कुछ दिनों के लिए अपनी बेबाक राय की वजह से किसी मुकदमेबाजी का सामना नहीं करना पड़ेगा. दरअसल, कंगना रनौत का ट्विटर अकाउंट स्थायी रूप से बंद कर दिया गया है, तो इतना अंदाजा लगाया जा सकता है. ट्विटर ने अपनी 'नफरती आचरण और अपमानजनक व्यवहार' की नीति का उल्लंघन करने पर कंगना का अकाउंट पर्मानेंटली सस्पेंड (Kangana Ranaut Twitter account permanently suspended) करने की बात कही है. पश्चिम बंगाल में चुनाव नतीजे सामने आने के बाद भड़की हिंसा पर कंगना ने सिलसिलेवार ट्वीट किए थे. उन्होंने अपने ट्वीट में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर गैंगरेप का आरोप लगाया और ममता बनर्जी का नाम लिए बिना उन्हें 'ताड़का' कह दिया था.
कंगना रनौत इतने पर ही रुक जातीं, तो ये उनके साथ ही भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बहुत अच्छा होता. लेकिन, कंगना एक बार फॉर्म में आने के बाद आखिर तक बैटिंग करती हैं. तो, उन्होंने वो कह दिया, जिस पर बात करने से खुद पीएम मोदी भी कतराते हैं. कंगना रनौत ने पीएम मोदी को 21वीं सदी की शुरुआत वाला 'विराट रूप' दिखाने की बात कह दी. अब यहां ये बताना जरूरी नहीं होगा कि कंगना रनौत 2002 में हुए गुजरात दंगों का जिक्र कर रही थीं. इसी ट्वीट के साथ ट्विटर पर राष्ट्रवाद की 'गंगा-जमुना' बहाने वाली कंगना रनौत का हाल सोशल मीडिया कंपनी ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जैसा कर दिया. भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन करने वाली अभिनेत्री को ट्विटर ने ऐसी जगह पर दबोचा है, जहां भाजपा या पीएम मोदी भी उनकी मदद नहीं कर पाएंगे.
ट्विटर ने कंगना का अकाउंट पर्मानेंटली सस्पेंड करने के बारे में अपनी नीति का उल्लंघन की बात पहले ही कह दी है.
केंद्र सरकार की सोशल मीडिया गाइडलाइन भी नहीं कर पाएगी मदद
राजनीति की बात करने से पहले थोड़ी टेक्निकल बात कर लेते हैं. बीते फरवरी महीने में केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया पर कंटेंट को लेकर गाइडलाइंस जारी की थीं. जिसमें कंपनियों को ग्रीवांस रीड्रेसल मैकेनिज्म बनाने की बात कही गई थी. इसमें शिकायत के बाद महिलाओं से जुड़े किसी कंटेंट को 24 घंटे के अंदर हटाने की बात कही गई थी. ममता का नाम लिए बिना कंगना रनौत ने उन्हें 'ताड़का' बना दिया, जो पूरी तरह से इस गाइडलाइन के अंदर आता है. किसी यूजर का कंटेंट हटाने या अकाउंट पर रोक लगाने पर कंपनियों को यूजर को बताना होगा कि ऐसा क्यों किया गया? ट्विटर ने कंगना का अकाउंट पर्मानेंटली सस्पेंड करने के बारे में अपनी नीति का उल्लंघन की बात पहले ही कह दी है. ट्विटर पर हिंसा या नफरत भड़काने वाले और अपमानजनक कंटेंट पर यूजर के अकाउंट पर रोक लगाने की नीति है. इस स्थिति में शायद ही कोई उनकी मदद कर सके.
'क्वीन' की बोली दोधारी तलवार है
अब बात करते हैं राजनीति की, तो कंगना के बयान दोधारी तलवार की तरह हैं. इसे पश्चिम बंगाल में हुए 'ध्रुवीकरण' से समझा जा सकता है. भाजपा ने हिंदुत्व कार्ड के सहारे हिंदू मतों को एक करने की सोच अपनाई, लेकिन राज्य में इसका ठीक उलटा हुआ. बंगाल का 30 फीसदी मुस्लिम वोटबैंक एकतरफा ममता बनर्जी के पक्ष में चला गया. वहीं, पश्चिम बंगाल में चुनाव नतीजों के बाद भड़की हिंसा को कंगना रनौत ने 'डंडे' से खत्म करने की बात कही. कंगना ने ट्वीट में केंद्र सरकार को 'इमरजेंसी' लगाने की सलाह दे दी. इंदिरा गांधी की तरह अंतरराष्ट्रीय मीडिया की परवाह न करने की बात भी कही. तृणमूल कांग्रेस की मुखिया को बिना नाम लिए 'ताड़का' कह दिया.
लेकिन, इन सबमें अव्वल उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'सुपर गुंडई' करने की सलाह दे डाली. यहां तक तब भी ठीक था, लेकिन उन्होंने इसके लिए पीएम मोदी को 21वीं सदी की शुरुआत वाला 'विराट रूप' दिखाने की बात कह दी. अब यहां ये बताना जरूरी नहीं होगा कि कंगना रनौत 2002 में हुए गुजरात दंगों का जिक्र कर रही थीं.
कंगना रनौत की ये तमाम बातें भाजपा के राजनीतिक खांचे में कहीं से भी फिट नहीं होती हैं. 2002 के गुजरात दंगों पर भले ही नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट मिल गई हो, लेकिन विपक्ष और काफी हद तक मुस्लिम समुदाय इसके लिए उन पर ही दोष मढ़ता रहा है. यही वजह है कि पीएम मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने पुराने चुनावी नारे को दुरुस्त करते हुए उसमें 'सबका साथ, सबका विकास' के साथ 'सबका विश्वास' भी जोड़ा था. गुजरात दंगों को लेकर लगाए गए दागों को धोने की भाजपा और पीएम मोदी ने हर मुमकिन कोशिश की है. कंगना का ये बयान भाजपा के लिए खतरे की घंटी था.
कंगना रनौत राजनीति की माहिर खिलाड़ी नहीं बनी हैं.
कंगना समझ नहीं पाईं राजनीति का ककहरा
फिल्म मणिकर्णिका के राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाली कंगना रनौत भले ही बॉलीवुड में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाती रही हों, लेकिन वो अभी तक राजनीति की माहिर खिलाड़ी नही बनी हैं. राजनीति में कोई भी चीज तब तक ही इस्तेमाल की रहती है, जब तक वह नुकसान न पहुंचाने लगे. कंगना बॉलीवुड में नेपोटिज्म, राष्ट्रवाद, राजनीति और भाजपा समेत तकरीबन हर मामले पर अपनी राय के जरिये ट्विटर पर गदर काट देती थीं. भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने के चक्कर में उन्होंने कई बार अपने पैरों पर कई बार कुल्हाड़ी मारी है. वैसे, इसे कुल्हाड़ी पर खुद ही पैर दे मारना कहना ज्यादा सही होगा. लेकिन, बंगाल में भाजपा की हार से बौखलाकर कंगना रनौत ने ट्वीट करते हुए जो हद पार की है, उससे भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी का ही नुकसान ही था.
सुशांत सिंह के मामले पर भाजपा को मिला था सियासी फायदा
सुशांत सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या के मामले में उन्होंने शिवसेना से सीधा पंगा ले लिया था. शिवसेना की ओर से भी जवाब में कंगना को देशद्रोही और हरामखोर तक बता दिया गया. अभिनेत्री ने उस दौरान पुलिस और राज्य सरकार के बीच गठजोड़ की बात खुलकर उठाई थी. इसका भरपूर सियासी फायदा भाजपा को बिहार के साथ थोड़ा-बहुत महाराष्ट्र में भी मिला. हालांकि, इसका खामियाजा कंगना रनौत को भुगतना पड़ा. शिवसेना के साथ उनका पर्मानेंट बिगाड़ हो गया और उनके दफ्तर पर बीएमसी का बुलडोजर चला, सो अलग. वैसे, एंटीलिया केस और उद्धव सरकार के गृहमंत्री द्वारा कथित 100 करोड़ के उगाही का टार्गेट दिए जाने के मामले ने कंगना की पुलिस-प्रशासन के गठजोड़ वाली बात पर एक तरह से मुहर ही लगाई है. भाजपा ने इस मौके को भी भुनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी. इसी दौरान उन्हें केंद्र सरकार ने 'Y' श्रेणी की सुरक्षा भी दी थी.
धारा 370 हो या राम मंदिर या फिर तीन तलाक, भाजपा ने इन सभी मुद्दों का हल लोकतांत्रिक तरीके से ही निकाला है.
भविष्य में भाजपा को पश्चिम बंगाल में अपनी जड़ें और गहरी जमानी हैं. इसी वजह से वह चुनावी नतीजों के बाद भड़की राजनीतिक हिंसा को लेकर 'राष्ट्रीय धरना' दे रही है. धारा 370 हो या राम मंदिर या फिर तीन तलाक, भाजपा ने इन सभी मुद्दों का हल लोकतांत्रिक तरीके से ही निकाला है. भाजपा पश्चिम बंगाल क्या पूरे देश में 'इमरजेंसी' लगा सकती है. विपक्षी दल हमेशा से ही भाजपा और संघ पर महिला विरोधी होने के आरोप लगाते रहते हैं. भाजपा इस आरोप को भी अपने सिर लेने को तैयार हो सकती है. लेकिन, 'विराट रूप' दिखाने वाली सलाह मानना भाजपा और पीएम मोदी के लिए कहीं से भी उचित सलाह नहीं दिखती है. इस स्थिति में कंगना की सलाह तो मानी ही नही जा सकती है. वैसे, अगर कंगना रनौत की सलाह मान ली जाए, तो भाजपा की राजनीति जो कल खत्म हो सकती है, उस पर आज ही 'दी एंड' का बोर्ड लग जाएगा.
अपने बयानों में कंगना रनौत भाजपा को सपोर्ट जरूर करती हैं, लेकिन यह एक तरह से पार्टी के लिए सिरदर्द ही बन गया है.
भाजपा के लिए बनीं सिरदर्द
अपने अनाप-शनाप बयानों में कंगना रनौत भाजपा को सपोर्ट जरूर करती हैं, लेकिन यह एक तरह से भाजपा के लिए सिरदर्द ही बन गया है. कुछ समय पहले ही उन्होंने प्रिंस हैरी और उनकी पत्नी मेगन मार्कल के विवादित इंटरव्यू को लेकर ट्वीट किए थे. जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी को घसीट लिया था. कंगना रनौत को भाजपा की विचारधारा से जुड़ा माना जाता है. कंगना के ऐसे ट्वीट भाजपा के साथ ही पीएम मोदी की छवि के लिए भी खतरा बन जाते हैं. कांग्रेस हमेशा से ही संघ और भाजपा पर 'गांधी के हत्यारों' होने का आरोप लगाती रही है. इस स्थिति में कंगना के ये बयान भाजपा के लिए हर समय मुसीबत ही खड़ी करते रहते हैं. भोपाल से भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को को देशभक्त बताया था. जिसके बाद पीएम मोदी को कहना पड़ा था कि वह उन्हें कभी दिल से माफ नहीं कर सकेंगे. आज नहीं, तो कल कंगना रनौत का मुंह इन बातों पर भी खुल सकता है.
वैसे, महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे के मामले को भी भाजपा जैसे-तैसे पचा सकती है. लेकिन, 21वीं सदी के शुरुआत का 'विराट रूप' भाजपा और पीएम मोदी की बनी बनाई राजनीति को बिगाड़ने वाला बयान है. भारत में एक कहावत है कि अनाड़ी की दोस्ती, जी का जंजाल. इन तमाम बातों के मद्देनजर ये कहना गलत नहीं होगा कि जिस कंगना को मोदी सरकार ने 'Y' श्रेणी की सुरक्षा मुहैया करवाई थी, वो भाजपा सरकार कंगना रनौत को ट्विटर से बेइज्जत कर निकाले जाने पर चुप ही रहेगी.
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