कंतारा: कन्नड़ की वह फिल्म जो रिलीज के दो हफ्ते बाद हिंदी में आ रही है, वाहवाही तो पहले से है ही
कन्नड़ में बनी कांतारा 30 सितंबर को रिलीज हुई थी. फिल्म ने जबरदस्त कमाई की है. इस पर खूब बात हो रही है. इसे पैन इंडिया नहीं बनाया गया था लेकिन इसने खुद ब खुद पैन इंडिया दर्जा हासिल कर लिया है. फिल्म हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं में रिलीज के लिए तैयार है.
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कई फिल्मों को पैन इंडिया बनाया जाता है. मगर कुछ फ़िल्में ऐसी भी होती हैं जो पैन इंडिया तो नहीं बनाई जातीं, मगर खुद ब खुद पैन इंडिया दर्जा हासिल कर ही लेती हैं. कह सकते हैं कि कन्नड़ में बनी 'कांतारा' बिल्कुल ऐसी ही फिल्म है. कॉन्टेंट की वजह से इसने खुद ब खुद पैन इंडिया दर्जा हासिल कर लिया. दक्षिण से उत्तर तक लगभग हर इलाके में कांतारा की चर्चा बेवजह नहीं है. 30 सितंबर को कन्नड़ में रिलीज फिल्म ने बिना किसी चर्चा के दुनियाभर में ब्लॉकबस्टर कमाई से लोगों का ध्यान खींचा है. इसकी सफलता और कॉन्टेंट और बुनावट ने फिल्म जगत को हैरान कर दिया है. एक लोक परंपरा में बुनी फिल्म की महागाथा को लेकर बने वर्ड ऑफ़ माउथ ने हर भाषा के दर्शकों को मोहित किया है.
इसका सबूत है कि मूल रिलीज के दो हफ़्तों बाद निर्माता 14 सितंबर को हिंदी में और तेलुगु में भी इसे ला रहे हैं. मलयाली और तमिल की रिलीज डेट तो सामने नहीं आई, भारी डिमांड की वजह से वहां भी रिलीज किए जाने की चर्चा है. फिल्म का लेखन-निर्देशन और मुख्य भूमिका ऋषभ शेट्टी ने निभाई है. ऋषभ के अलावा किशोर, अच्युत कुमार, प्रमोद शेट्टी, और सप्तमी गौड़ा अन्य अहम भूमिकाओं में हैं. इसका प्रोडक्शन यश स्टारर केजीएफ जैसी ब्लॉकबस्टर फ्रेंचाइजी प्रोड्यूस करने वाले बैनर होम्बले फिल्म्स ने ही किया है.
कांतारा हिंदी का ट्रेलर यहां नीचे देख सकते हैं:-
क्या है कांतारा की कहानी?
फिल्म की कहानी असल में प्रकृति के साथ मनुष्यों के धर्म, साहचर्य और संघर्ष पर आधारित है जो ना सिर्फ कर्नाटक बल्कि समूचे भारत के लोक जीवन में गहराई से बसी है. कहानी का सिरा बहुत प्राचीन है. जंगल में एक गांव है. कई सौ साल पहले वहां के राजा ने एक मामूली से पत्थर के बदले अपनी जमीनें आदिवासियों और गांववालों को उपहार में दे दी थी. यह जमीनें उन्हें घर बनाने के लिए कुल देवता 'पनजूरली' का मंदिर बनाने के लिए दान की थी. बदले में गांववाले और उनके कुल देवता- गांव, जंगल, राजा और उसके राज्य की रक्षा करते थे.
सालों से चीजें चल रही हैं. आदिवासी अपने देवता के साथ अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हैं. मगर दिक्कतें तब शुरू होती हैं जब नए दौर में लालच की वजह से पुराने समझौते को तोड़ने की कोशिश होती है. असल में राज के वंश में जो लोग हैं उनकी नजर जंगल और गांव की कीमती जमीन पर है. वे इसे वापस चाहते हैं. जबकि गांव और जंगल लोगों के खून में धर्म और संस्कृति तरह बह रहा है. जंगल उनके जीवन का आधार है. वे जंगल की लकड़ियों, जड़ी बूटी और शिकार पर आश्रित हैं. यह सदियों से चल रहा है. सरकारी अमला भी जंगल की आड़ में गांववालों के जीवन का सीमांकन करने की कोशिश करता है. वह कानूनी वजहें गिनाकर जंगल के इस्तेमाल को जबरदस्ती रोकता है और इसके परिणाम में एक संघर्ष शुरू हो जाता है. यह संघर्ष ना सिर्फ जीविकोपार्जन का है बल्कि परंपराओं का भी है. संघर्ष का निचोड़ क्या निकलकर आता है यही फिल्म में दिखाया गया है.
कांतारा
कांतारा में लोगों की दिलचस्पी की वजह क्या है?
असल में फिल्म की कहानी कर्नाटक की कंबाला और भूत कोला जैसी पारंपरिक कला संस्कृति को दिखाती है. यह कर्नाटक की आंचलिक संस्कृति में रचा बसा है. एक ऐसी पहचान जो स्थानीय निवासियों के लिए गर्व का विषय है. ना सिर्फ कर्नाटक बल्कि देश के तमाम अन्य इलाकों में अभी भी ऐसी संस्कृतियां नजर आती हैं जो देश की सांस्कृतिक धरोहर हैं. कांतारा में आंचलिक लोक जीवन के पवित्र रीति-रिवाजों, परंपराओं और दंत कथाओं का जबरदस्त फिल्मांकन किया गया है. एक तरह से आज के दौर में दंत कथाओं का संगमन कर दिया गया है.
एक समृद्ध प्राचीन कला संस्कृति ने व्यापक रूप से लोगों को आकर्षित किया है. कर्नाटक के जंगलों का रूपरंग, फिल्म की जबरदस्त कहानी ने लोगों को भाव विभोर कर दिया है. कर्नाटक से बाहर फिल्म को कितना पसंद किया जाएगा यह देखने वाली बात है. लेकिन इस फिल्म ने एक बात साबित कर दी है कि भारतीय सिनेमा अपने स्वर्णिम दौर की तरफ बढ़ रही है. जहां भाषा के नाम पर बने तमाम एकाधिकार ध्वस्त हो रहे हैं और संस्कृति लोगों का एकीकरण कर रही है.
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