KBC 11 के 4 फकीर धुरंधर, जिन्होंने जज्बे की अमीरी से खोला किस्मत का खजाना
कौन बनेगा करोड़पति के लिए चुना जाना भले कोई लॉटरी हो. अमिताभ बच्चन के सामने हॉट सीट तक पहुंचना किस्मत का खेल. लेकिन इस गेम शो ने देशवासियों का परिचन मुफलीसी में जीवन गुजारने वाले लोगों से कराया, वह किसी अद्भुत अनुभव से कम नहीं है.
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''जो पानी से नहाते हैं वो लिबास बदलते हैं,
जो पसीनों से नहाते हैं वो इतिहास बदलते हैं.''
'कौन बनेगा करोड़पति' में चुने जाने वाले एक शख्स के कहे ये शब्द जीवन का ही नहीं बल्कि केबीसी का भी सार हैं. 'कौन बनेगा करोड़पति' सिर्फ रिएलिटी शो नहीं है. ये उम्मीद है. देश में रहने वाले उन तमाम लोगों की उम्मीद जिनके जीवन के बड़े-बड़े संघर्षों में छोटे-छोटे ख्वाब दब जाते हैं. लेकिन एक उम्मीद उन्हें आगे बढ़ाती रहती है, उन्हें जिंदा रखती है. ये कहते हुए कि शायद अगला नंबर तुम्हारा हो. शायद तुम भी केबीसी में सलेक्ट हो जाओ. केबीसी में आने की एक उम्मीद उनमें नया जोश जगा देती है. और उनकी आंखों में छोटे-छोटे ख्वाब फिर जन्म लेने लगते हैं. कलाम साहब कह गए हैं- ख्वाब वो नहीं होते जिन्हें आप सोते हुए देखते हैं, ख्वाब वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते.
KBC में आने के लिए किस्मत नहीं जज्बा चाहिए
लेकिन ऐसी कोई जादू की छड़ी नहीं होती कि घुमाई, और हो गए ख्वाब पूरे. ख्वाबों को पूरा करने के लिए रातों की नींद और दिन का चैन भी खोना पड़ता है. केबीसी में सलेक्ट होने के लिए भी जज्बा चाहिए होता है. किस्मत अगर केबीसी तब ले भी आई तो भी हॉट सीट पर बैठना आसान नहीं है. वहां पहुंचने वाले कई हैं. लेकिन अमिताभ बच्चन के साथ खेल वही खेलता है जो किस्मत से नहीं बल्कि कौशल के दम पर आगे बढ़ता है. उसे अपनी सभी इंद्रियों पर ध्यान लगाना होता है और Fastest finger first में जीतना होता है. और देखिए वहां जाकर भी संघर्ष खत्म नहीं होते...
Here are this week's Fastest Finger First contestants, playing for a chance to be on the hotseat! Get to know their thoughts and feelings as they share their excitement and anticipation, especially for meeting Amitabh Bachchan on #KBC, Mon-Fri at 9 PM @SrBachchan pic.twitter.com/RhlJMiZknI
— Sony TV (@SonyTV) September 16, 2019
पसीना बहाकर आए कुछ लोगों ने केबीसी में आकर इतिहास भले ही न बदला हो, लेकिन अपनी उपस्थिति से उन लोगों ने लोगों में विश्वास जरूर भर दिया. बहुत से लोगों को तो उम्मीदों से भी बढ़कर मिला. आज बात उन लोगों की जो KBC11 में आए मगर लोगों के दिलों से दूर नहीं जा सके.
बबिता ताड़े-
अमरावती महाराष्ट्र की बबिता ताड़े वो शख्स हैं जिनसे आप बहुत कुछ सीख सकते हैं. बबिता 2002 से स्कूल में मिड डे मील बनाती हैं. उन्हें खिचड़ी स्पेशलिस्ट कहा जाता है. वो 450 बच्चों के लिए रोजाना खाना बनाती हैं. और इसके लिए उन्हें केवल 1500 रुपए मिलते हैं. मोबाइल के बिना जिंदगी की कल्पना भी न करने वाले लोगों को बबिता चौंका सकती हैं. बबिता का ख्वाब सिर्फ इतना सा है कि उनके पास अपना एक मोबाइल हो. वो कहती हैं कि वो पढ़ाई के लिए हमेशा संघर्षरत रहीं, लेकिन एक करोड़ के सवाल तक पहुंच गईं बबिता ये भी बताती हैं कि उन्होंने जितना भी पढ़ा, वो उनकी जिंदगी बदल गया. एक मोबाइल का छोटा सा ख्वाब रखने वाली बबिता, 1500 रुपए महीने वेतन पाने वाली बबिता ने एक करोड़ के सवाल का जवाब भी सही दिया और एक करोड़ रुपए जीत लिए.
सनोज राज-
25 साल के सनोज राज जहानाबाद, बीहार के रहने वाले हैं. औऱ वो केबीसी के इस सीजन के पहले करोड़पती भी बने. सनोज IAS बनना चाहते हैं और UPSC की परीक्षा की तैयारी दिल्ली में रहकर करते हैं. कम्प्यूटर इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री हासिल करने वाले सनोज का सपना ही आईएएस बनना है. उन्होंने टीसीएस में बतौर इंजीनियर दो साल से ज्यादा नौकरी भी की लेकिन आईएएस की तैयारी के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी. सनोज कहते हैं- 'जब 14-15 साल के थे, तभी से केबीसी देख रहे हैं. लगता था मुझे भी वहां बैठना चाहिए. अमिताभ बच्चन मेरे फ़ेवरेट एक्टर भी थे. मैं चाहता था कि उनके सामने बैठूं. पिछले आठ साल से हर साल केबीसी के लिए पार्टिसिपेट करता था. इस बार मौक़ा मिल गया.' एक करोड़ जीतने के बाद जब सनोज से पूछा गया कि वो इन पैसों का क्या करेंगे तो उन्होंने कहा कि वो पैसे अपने पिता को देंगे. उन्होंने कहा- "मेरे पिता एक किसान हैं. ये पैसे उनको देने का आशय कतई नहीं कि मैं उन्हें पैसे दे रहा हूं. बल्कि ये उनके ही पैसे हैं. उन्होंने अपने पारिवारिक परिस्थितियों के चलते अपनी पढ़ाई पूरी नहीं की. लेकिन परिवार पढ़ाई पर ध्यान रहा है ताकि फिर हमें वैसी परिस्थितियों का सामना ना करना पड़े."
बालाजी माने-
महाराष्ट्र के लातूर के रहने वाले बालाजी माने के ख्वाब कभी बिल्डिंग की ऊंचाइयों से ऊपर गए ही नहीं. इनका काम है बड़ी-बड़ी बिल्डिंग पर बैनर चिपकाने, ब्रांड का लोगो, फिल्मों के पोस्टर वगैरह लगाना. बचाव के किसी भी साधन के बिना. बालाजी के अनुसार जो लोग ऊपर जाकर बैनर लगाते हैं, कंपनी उन्हें एक हजार रुपये अतिरिक्त देती है. इसीलिए उन्होंने ये काम चुना. नीचे रहकर काम करने वालों को सात हजार रुपये ही दिए जाते हैं. इसलिए महीने भर में वो 8 हजार रुपए कमाते हैं. केबीसी पर आने के ख्वाब देखने वाले बालाजी जब ये कहते थे कि अगली बार केबीसी पर वही आएंगे, तो लोग उनपर हंसते थे. लेकिन केबीसी की प्रेरक कविता 'कब तक रोकोगे मुझे' सुन सुनकर वो हिम्मत को और मजबूत करते रहे. वो प्रयास करते रहे. और केबीसी में आकर 12.50 लाख रुपये जीतकर गए.
Our Hotseat Contestants tonight are playing not only to prove a point to society but also to prove themselves. Watch them play and see how far they make it in the game on #KBC, tonight at 9 PM @SrBachchan @Abhishek0701200 pic.twitter.com/2EUQKx8r8a
— Sony TV (@SonyTV) September 5, 2019
नूपुर चौहान
उत्तरप्रदेश के कपूरपुर से आईं नूपुर चौहान हारे हुए लोगों में जिंदगी भरने के लिए काफी हैं. 29 साल की नूपपुर शारीरिक रूप से अक्षम हैं, लेकिन कहती हैं कि- 'जिंदगी में मुश्किलें हैं फिर भी जिंदगी खूबसूरत है.' नूपुर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हैं. नूपुर कहती हैं- "मेरा जन्म सिजेरियन हुआ था. उस वक्त मुझे सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट लग गए. जन्म के वक्त मैं रोई नहीं तो डॉक्टर्स ने मरा हुआ समझकर डस्टबिन में डाल दिया. तभी मेरी नानी और मौसी आईं और किसी कर्मचारी को पैसे देकर कहा कि उसे डस्टबिन से निकाल दो. मुझे निकाला गया तब नानी ने कहा इसे पीठ पर मारो शायद जिंदा हो जाए और तभी मैं मारते ही रो पड़ी. मुझे ऑक्सीजन की कमी थी, इसलिए मैं चुप रही, बाद में 12 घंटे तक रोती रही. उस वक्त मुझे टिटनेस और ज्वाइंडिस का शिकार समझ गलत इंजेक्शन दिए. डॉक्टर की गलती से केस इतना बिगड़ गया कि मैं नॉर्मल बच्चों की तरह नहीं रही."
वो बाकियों की तरह ठीक से चल नहीं सकतीं. जज्बा सीखना हो तो नूपुर से सीखें. अमिताभ बच्चन ने जब उनसे पूछा "आपने कभी व्हील चेयर का सहारा नहीं लिया ऐसा क्यों?" तो नुपूर ने कहा, "सर मैं अगर व्हीलचेयर पर बैठ गई तो फिर खड़ी नहीं हो सकूंगी. इसलिए ये तय कर रखा है कि आखिरी सांस तक अपने दम पर चलूंगी. फिर चाहे किसी सहारे पर चलूं, जैसे स्टैंड लेकर चलना." नूपुर 12.5 लाख जीतकर गईं.
केबीसी में कर्मवीर भी आते हैं जिन्होंने अपना जीवन ही समाज के नाम कर दिया है. वो लोग आम लोगों से हटकर होते हैं. विरले. लेकिन दुनिया के बेहद सामान्य लोग जिनके जीवन संघर्ष ही उनकी पूंजी रहे हैं वो लोगों को कई सबक देकर गए हैं. पिछले सीज़न में एक बहुत ही प्रेरक कविता बोली गई थी. जिन्होंने जीतकर गए इन लोगों की हिम्मत कभी टूटने नहीं थी, जो आज भी हर किसी को सपनों को नई आशाएं दे रही हैं.
मुट्ठी में कुछ सपने लेकर, भर कर जेबों में आशाएं, दिल में है अरमान यही, कुछ कर जाएं, कुछ कर जाएं.
सूरज सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक सा जलता देखोगे, अपनी हद रौशन करने से तुम मुझको कब तक रोकोगे, तुम मुझको कब तक रोकोगे
केबीसी को कैसे सिर्फ reality show कहें. केबीसी लोगों की आंखों में ख्वाब भरता है, उन्हें पंख फैलाने की हिम्मात देता है. केबीसी उम्मीदों का मंच है. यहां लोगों के ख्वाब सच होते हैं.
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