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Updated: 02 अप्रिल, 2022 03:37 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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''लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती; नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर सौ-सौ बार फिसलती है; मन का विश्वास रगों में साहस भरता है, चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना नहीं अखरता है; आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती''...कवि सोहनलाल द्विवेदी की कविता की ये पंक्तियां मुंबई के रहने वाले क्रिकेटर प्रवीण तांबे के जीवन पर सटीक बैठती हैं. एक ऐसा क्रिकेटर जिसने इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने का सपना देखा था.

उसने अने सपने को साकार करने के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत की, लेकिन हर बार उसे नकारा गया. उसे बाहर का रास्ता दिखाया गया. लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी. बार-बार नकारने जाने के बाद भी कोशिश करता रहा. आखिरकार 12 साल की उम्र में देखा हुआ सपना 29 साल बाद 41 साल की उम्र में पूरा हुआ. उन्होंने अपने जीवन के पहले ही मैच में जो कमाल किया, उसने हर किसी का ध्यान उनकी तरफ आकर्षित कर दिया. लोग सहसा पूछ पड़े, ''कौन प्रवीण तांबे?''. उसी प्रवीण तांबे की प्रेरणादायी जीवनी पर अब फिल्म बनी है.

फॉक्स स्टार स्टूडियो फिल्म 'कौन प्रवीण तांबे' का निर्देशन जयप्रद देसाई ने किया है. इसमें श्रेयस तलपड़े, आशीष विद्यार्थी, परमब्रत चक्रवर्ती और अंजली पाटिल जैसे कलाकार अहम किरदारों में हैं. यह फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर स्ट्रीम हो रही है, जो कि राजस्थान रॉयल्स के लिए 41 साल की उम्र में आईपीएल खेलने वाले क्रिकेटर प्रवीण तांबे की जीवन पर आधारित है. तांबे ने अपना पूरा जीवन क्रिकेट के लिए समर्पित कर दिया था, लेकिन उनको घरेलू क्रिकेट खेलने का मौका भी नहीं मिला. वे मुंबई के क्लब टूर्नामेंट 'कांगा लीग' ही खेलते रह गए. वो एक बेहतरीन ऑलराउंडर हैं, लेकिन आईपीएल से पहले कभी किसी को उनकी खूबी नहीं दिखी. लेकिन देर ही सही जब आए तो दुरुस्त आए.

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Kaun Pravin Tambe फिल्म की कहानी

''लाइफ हो या मैच, आपको बस एक अच्छा ओवर चाहिए''...फिल्म 'कौन प्रवीण तांबे' के इस डायलॉग में उसकी कहानी का सार समाहित है. जिस तरह से क्रिकेट मैच के दौरान एक अच्छा ओवर किसी बल्लेबाज या गेंदबाज की किस्मत बदल देता है, उसी तरह जीवन में एक सही मौका किसी इंसान की तकदीर बदल देता है. फिल्म में मुंबई के एक लोअर मिडिल क्लास फैमिली में पैदा हुए प्रवीण तांबे की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. प्रवीण (श्रेयस तलपड़े) बचपन से ही रणजी ट्रॉफी खेलना चाहते थे. वो ऑलराउंडर हैं. जितनी अच्छी गेंदबाजी कर लेते हैं, उतनी ही अच्छी बल्लेबाजी भी करते हैं. उनके पिता भी क्रिकेट खेलने के शौकीन हैं. इसी वजह से वो एक कंपनी की टीम में बतौर गेंदबाद शामिल हो जाते हैं.

इस कंपनी के लिए खेलते हुए प्रवीण ने नेशनल क्रिकेट खेलने का सपना नहीं छोड़ा है. वो लगातार कोशिश करते रहे. लेकिन हर बार उनको क्रिकेट एसोसिएशन की आंतरिक राजनीति की वजह से बाहर कर दिया जाता. धीरे-धीरे उम्र बढ़ती गई, तो परिवार का दबाव बढ़ने लगा. मां ने कहा कि शादी करके घर बसा लो, लेकिन प्रवीण नहीं माने, वो खुद को लगातार मौके देते रहे. इसके बावजूद जब कुछ नहीं हुआ, तो उन्होंने शादी कर ली. बच्चे भी हो गए, लेकिन उनका सपना अभी अधूरा था. जिसे पूरा करने के लिए वो अभी संघर्ष कर रहे थे. वो नौकरी करते हुए भी क्रिकेट की प्रैक्टिस करते रहे. इस दौरान बड़े भाई की तरफ से उनको पूरा सपोर्ट मिलता रहा. एक दिन ऐसा भी आया, जब उनका सपना पूरा हो गया. लेकिन किन शर्तों पर? उसके लिए उनको क्या कुर्बानी देनी पड़ी? उनको मौका मिला तो किस कीमत पर? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी.

Kaun Pravin Tambe फिल्म की समीक्षा

बॉलीवुड ने एक से बढ़कर एक स्‍पोर्ट्स बायोपिक फिल्म बनाई हैं. इनमें 'दंगल', 'एमएस धोनी', 'सानिया', 'चक दे इंडिया', 'भाग मिल्खा भाग', 'शाबाश मिट्ठू', 'इकबाल' और 'बॉक्सर' जैसी फिल्में शामिल हैं. इन फिल्मों में कई दिग्गज खिलाड़ियों की जीवनी को रुपहले पर्दे पर जीवंत किया गया है. लेकिन फिल्म 'कौन प्रवीण तांबे' के जरिए एक खिलाड़ी की बायोपिक से ज्यादा संघर्ष करने की वो सीख दी गई है, जिसके अभाव में कई लोग अपनी जिंदगी जीने से पहले ही खत्म कर लेते हैं. जीवन में कई बार निराशा का सामना करना पड़ता है. लगता है कि यही अंत है, जहां से जिंदगी खत्म हो रही है, लेकिन ऐसा नहीं होता. हर रात के बाद दिन आता है. जीवन में संघर्ष करते रहना चाहिए, सपने एक दिन जरूर पूरे होते हैं. यही सीख फिल्म के जरिए इसके मेकर्स भी देने में सफल रहते हैं. इसके लिए फिल्म के निर्देशक जयप्रद देसाई और लेखक किरण यद्नोपावित बधाई के पात्र हैं.

फिल्म में क्रिकेटर प्रवीण तांबे का रोल कर रहे श्रेयस तलपड़े एक मंझे हुए अभिनेता हैं. उन्होंने इससे पहले फिल्म 'इकबाल' में भी ऐसा ही किरदार किया है. इसलिए उनके लिए किसी क्रिकेटर का किरदार करना बहुत मुश्किल नहीं था, लेकिन उस मानवीय संवेदनाओं को रूपहले पर्दे पर उतारना मुश्किल था, जिसे प्रवीण के किरदार के जरिए उन्होंने जिया है. अपने किरदार में वो खूब जमे हैं. किसी किरदार के 30 साल लंबी जीवन यात्रा को एक फिल्म में निभाना भी चुनौती है, जिसे श्रेयस ने स्वीकार करते हुए न्याय किया है. उम्र के अनुसार उनकी बॉडी लैंग्वेज और वॉयस मॉड्यूलेशन में भी बदलाव दिखता है. उनके कोच के किरदार में अभिनेता आशीष विद्यार्थी ने भी शानदार काम किया है. उनका अनुभव उनके अभिनय में झलकता है. बहुत कम स्क्रीन टाइम मिलने के बावजूद उन्होंने गहरी छाप छोड़ी है. बंगाली अभिनेता परमब्रत चटर्जी का किरदार फिल्म की कमजोर कड़ियों में से एक है.

कुल मिलाकर, ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर स्ट्रीम हो रही स्पोर्ट्स बायोपिक फिल्म 'कौन प्रवीण तांबे' एक बेहतरीन फिल्म है. इसे केवल क्रिकेट या किसी क्रिकेटर की बायोपिक के लिए नहीं, बल्कि एक बेहतरीन सिनेमा के लिए देखा जाना चाहिए. इस वीकेंड 'शर्मा जी नमकीन' के साथ 'प्रवीण तांबे' के बारे में जरूर जानना चाहिए.

iChowk.in रेटिंग: 5 में 3.5 स्टार

Kaun Pravin Tambe Movie ट्रेलर देखिए...

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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