Kesari Trailer: 600 अफगानों का सिर कलम करने वाले 21 सिखों की गौरव-गाथा
अक्षय कुमार की फिल्म केसरी का ट्रेलर ( Kesari Trailer) आ गया है और ट्रेलर देखकर समझ आता है कि फिल्म में कमाल के एक्शन सीन दिखने वाले हैं साथ ही एक अनोखी लड़ाई का सजीव चित्रण किया गया है.
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अक्षय कुमार की आगामी फिल्म केसरी का ट्रेलर आ गया है. ये फिल्म इतिहास की वो कहानी लेकर आ रही है जिसमें खाली 21 सिखों ने 10 हज़ार अफगानी सैनिकों से लोहा लिया था और वो लड़ते-लड़ते शहीद हुए थे. ट्रेलर देखकर लग रहा है जैसे ये Akshay Kumar के करियर की सबसे बड़ी फिल्म बन सकती है. Kesari Trailer में बैकग्राउंड और VFX उसी दौर का बनाने की कोशिश की गई है जब ये लड़ाई हुई थी. 1897 का वक्त और अफगानिस्तान - हिंदुस्तान बॉर्डर (मौजूदा समय में पाकिस्तान का खैबर-पख्तुन्खवा प्रांत) भी उसी तरह दिखता था जैसा फिल्म में दिखाने की कोशिश की गई है.
ट्रेलर की शुरुआत में ही एक बेहद उम्दा डायलॉग बोला गया है. 'कोई फौजियों वाला काम हो तो बताओ साब जी, हम इन पठानों से लड़ने आए हैं, इनकी मस्जिदें बनाने नहीं.' ये कहा है 21 सिखों की बटालियन में से एक ने. इसपर अक्षय कुमार का जवाब होता है 'जब लड़ने का वक्त आएगा तब लड़ेंगे, अभी तो रब का घर बनाने का वक्त है और रब से कैसी लड़ाई?'
मौजूदा समय में जहां हिंदू-मुस्लिम विवाद ने हिंदुस्तान को घेर रखा है, जहां सिर्फ पाकिस्तान या अन्य देशों के मुसलमानों से नहीं बल्कि अपने देश में भी हम मतभेदों से घिरे हुए हैं उस दौर में इस एक डायलॉग के बहुत सारे मायने हैं. ये एक डायलॉग बताता है कि मंदिर हो, मस्जिद हो, गुरुद्वारा हो या चर्च सभी भगवान के घर ही हैं.
अक्षय कुमार इस फिल्म में हवलदार ईशर सिंह की भूमिका में दिखेंगे
क्योंकि ये फिल्म पूरी तरह से लड़ाई पर ही आधारित है तो पूरा ट्रेलर भी उसी लड़ाई को दिखाता है. सारगढ़ी की वो लड़ाई जिसमें 21 सिख 10 हज़ार अफगानियों से लड़ गए थे और मरने से पहले उन्होंने 600 पठानों को मार गिराया था.
ये सोचना भी बेहद अलग अनुभव दे जाता है कि आखिर वो दौर कैसा रहा होगा और कैसे उस वक्त सिखों की फौज जो सिर्फ 21 लोगों में ही सिमटी हुई थी उसने 600 दुश्मनों को मार गिराया. इसके पीछे है इतिहास के सबसे बहादुरी भरे युद्धों में से एक की कहानी.
12 सितंबर 1897 की वो कहानी जो सिक्ख और भारत की गौरव-गाथा है
उस समय पाकिस्तान नहीं हुआ करता था. वो असीम हिंदुस्तान का दौर था. जब भारत ब्रिटिश राज के अधीन था और उनकी सेना में भारत के कई सिपाही थे. मध्य एशिया यानी भारत और उसके आस-पास के इलाके बड़ी ताकतों जैसे ब्रिटेन और रशिया के ध्यान का और लड़ाई का केंद्र बने हुए थे.
ब्रिटेन ने अफगानिस्तान के राजा अमीर से समझौता किया था ताकि हिंदुस्तान की सरहदें सुरक्षित रह सकें, लेकिन वहां आस-पास के कुछ कबीले इस समझौते को नहीं मानते थे और राजा का राज उनपर नहीं चलता था. ये कबीले भारत की सीमाओं पर कई जगह हमला करते थे और इस दौरान अफगानिस्तान और उस समय के भारत की सीमा पर दो किले बनाए गए. ये दो किए थे लॉकहार्ट और गुलिस्तान. ये दोनों ही किले उस समय सिखों के राजा रंजीत सिंह ने बनवाए थे. क्योंकि ये दोनों किले एक दूसरे से बहुत दूर थे और देखे नहीं जा सकते थे इसलिए बीच में बनवाया गया सारागढ़ी का किला.
इस किले की पैरवी कर रहे थे 21 भारतीय सिपाही. ये सभी 36वीं सिख बटालियन का हिस्सा थे. इनमें से सभी सिपाही थे भी नहीं बल्कि कुछ रसोइए और कुछ सिग्नलमैन थे. हवलदार ईशर सिंह इस बटालियन के हेड थे. हमला 12 सितंबर की सुबह करीब 9 बजे हुआ था और तभी उस बटालियन में से एक गुरमुख सिंह ने लॉकहार्ट के किले पर सिग्नल भेज दिया था कि उनपर हमला हुआ है. लेकिन जवाब मिला कि एकदम से फौज सारागढ़ी नहीं पहुंच सकती है.
तब हवलदार ईशर सिंह (अक्षय कुमार का किरदार) ने अपने साथियों से कहा कि वो आखिरी सांस तक लड़ेंगे. सबसे पहले मरने वाले थे भगवान सिंह और उनके साथ लाल सिंह जो घायल हो चुके थे. भगवान सिंह का शरीर दो सिपाही खींचकर अंदरूनी घेरे में आ गए. हर किसी ने बेहद अनोखी बहादुरी दिखाई.
ईशर सिंह ने अपने सिपाहियों को अंदरूनी घेरे में जाने को कहा. तब तक दो बार दरवाजे पर हमला हो चुका था और एक दीवार टूट चुकी थी. ईशर सिंह अकेले आगे चले गए ताकि लड़ाई ज्यादा देर तक जारी रह सके. मरने वाले सबसे अंतिम सिपाही थे गुरमुख सिंह जो कर्नल हौथटन को लॉकहार्ट किले में युद्ध की जानकारी दे रहे थे. वो भी करीब 20 अफगानियों को मार चुके थे.
उन्हें मारने के लिए आग के गोले दागे गए थे. जब तक 21 सिखों में से सब खत्म हुए तब तक अफगानी सेना के 600 सिपाही मारे जा चुके थे. सारागढ़ी का किला जीतने के बाद अफगानियों ने लॉकहार्ट की तरफ रुख किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी. सिखों की फौज ने 10 हज़ार अफगानियों को उतने समय तक रोक लिया था जितने की जरूरत थी और ब्रिटिश फौज आ चुकी थी. अफगानी फौज हिंदुस्तान का वो हिस्सा अपने लिए नहीं ले पाई थी.
तो क्या ये ब्रिटिश फौज के लिए लड़ी गई लड़ाई थी?
ट्विटर पर जहां एक ओर केसरी ट्रेलर की तारीफ हो रही है वहीं दूसरी ओर इसके दूसरे पक्ष को लेकर भी बहस शुरू हो गई है. दूसरा पक्ष ये कि ये लड़ाई सिखों ने अंग्रेजी फौज के लिए लड़ी थी और इसलिए इसे सही नहीं कहा जा सकता.
A war fought for Britishers and our bollywood is showing it as bravest battle. Shame #Kesari #KesariTrailer
— Razaul Mustafa (@rehan_here) February 21, 2019
असल में देखा जाए तो ये लड़ाई अंग्रेजी फौज के लिए नहीं बल्कि हिंदुस्तान के लिए लड़ी गई थी, वो हिंदुस्तान जिसमें किसी और की गुलामी की कोई जगह नहीं बचाई गई थी. वो हिंदुस्तान जिसे सिख, हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और यहां रहने वाला हर धर्म का इंसान अपना घर मानता है.
Kesari Trailer की वो बातें जो गले नहीं उतरीं
सबसे बड़ी बात जो केसरी ट्रेलर में खराब लग रही है वो ये कि इस ट्रेलर में सभी सिखों की दाढ़ी असली नहीं बल्कि पूरी तरह नकली लग रही है. अक्षय कुमार के चेहरे पर ये दाढ़ी VFX से लगाई हुई लग रही है. साथ ही, असल अफगानिस्तान दिखाने के चक्कर में इस फिल्म में सिर्फ दो ही रंग सही तरह से दिख रहे हैं एक केसरी रंग की अक्षय कुमार की पगड़ी और दूसरा भूरा. इन दो बातों को अगर अलग कर दिया जाए तो ट्रेलर अच्छा है और उम्मीद यही की जा सकती है कि फिल्म भी बेहद कमाल की होगी.
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