New

होम -> सिनेमा

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 27 नवम्बर, 2022 03:17 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
  • Total Shares

'वास्तव', 'गंगाजल', 'अपहरण', 'गैंग्स ऑफ वासेपुर', 'डैडी', 'कंपनी' जैसी फिल्मों, 'रंगबाज', 'रक्तांचल', 'क्रिमिनल जस्टिस', 'मिर्जापुर' जैसी वेब सीरीजों में माफिया डॉन और अपराधियों की कहानियां दिखाई गई है. इनमें यूपी-बिहार के कई बाहुबलियों की सच्ची दास्तान दिखाई गई है. उदाहरण के लिए वेब सीरीज 'रक्तांचल' में पूर्वांचल के माफिया डॉन बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी, 'रंगबाज 3' में बिहार के माफिया नेता शहाबुद्दीन अंसारी की कहानी दिखाई जा चुकी है. इस कड़ी में एक नई वेब सीरीज 'खाकी: द बिहार चैप्टर' बिहार के बाहुबलियों, अपराधियों और पुलिस के बीच शह-मात के खेल को पेश करती है. नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही इस सीरीज का निर्देशन भव धूलिया ने किया है, जबकि नीरज पांडेय क्रिएटर हैं.

नीरज पांडेय पुलिसिया ड्रामा रचने में माहिर माने जाते हैं. 'स्‍पेशल ऑप्‍स' जैसी वेब सीरीज, 'ए वेडनेसडे' और 'स्‍पेशल 26' जैसी फिल्में इस बात की गवाह हैं. 'एमएस धोनी: द अनटोल्‍ड स्‍टोरी' जैसी दमदार फिल्म के जरिए वो अपने निर्देशन का लोहा भी मनवाए चुके हैं. वेब सीरीज 'खाकी: द बिहार चैप्टर' के निर्देशक भव धूलिया ने इससे पहले 'रंगबाज' का निर्देशन किया था. सीरीज की कहानी बिहार काडर के आईपीएस अधिकारी अमित लोढ़ा की बेस्ट सेलर बुक 'बिहार डायरीज' पर आधारित है. इस किताब में बिहार के कुख्यात गैंगस्टर सामंत प्रताप की खौफनाक कहानी लिखी गई है, जिसे दुर्दांत अपराधी माना जाता है. इस वेब सीरीज में करण टैकर, अविनाश तिवारी, आशुतोष राणा, रवि किशन, अनूप सोनी, जतिन सरना, निकिता दत्ता, अभिमन्यु सिंह, ऐश्वर्या सुष्मिता और श्रद्धा दास जैसे कलाकार अहम किरदारों में हैं. इन कलाकारों की मौजूदगी भी सीरीज को दिलचस्प बना रही है.

khakhee650_112622041352.jpgवेब सीरीज 'खाकी: द बिहार चैप्टर' 25 नवंबर से नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है.

वेब सीरीज की कहानी एक आईपीएस अफसर अमित लोढ़ी (करण टैकर) के ईर्द-गिर्द घूमती है. आईपीएस की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद अमित की पोस्टिंग बिहार के एक जिले में होती है. वो अपने पत्नी तनु (निकिता दत्ता) के साथ वहां पहुंचता है. ज्वाइनिंग के बाद उसका सीनियर एसएसपी मुक्तेश्वर चौबे (आशुतोष राणा) उसे एक धरना-प्रदर्शन खत्म करवाने के लिए एक गांव में भेजता है. उसे जरूरत पड़ने पर बल प्रयोग करने की इजाजत भी देता है. गांववालों ने अपनी मांग मंगवाने के लिए दिल्ली जाने वाली ट्रेन का ट्रैक बाधित कर रखा है. अमित वहां पहुंचकर प्रदर्शनकारियों को समझाने की कोशिश करता है. आखिरकार बातचीत करके अपनी सूझबूझ से आंदोलन खत्म करा देता है. आईआईटी करने के बाद सिविल सर्विस पास करने वाले अमित लोढ़ा का शुरू से ही सपना था कि वो आईपीएस बनकर समाज में बदलाव लाएगा. उसने अपने करियर की पहली परीक्षा को सफलता पूर्वक पास कर लिया.

इसी बीच चंदन महतो (अविनाश तिवारी) नामक एक अपराधी स्कूल के एक बच्चों को अगवा कर लेता है. उसे छुड़ाने के लिए अमित लोढ़ा को भेजा जाता है. अमित को मुखबिर से सूचना मिलती है कि चंदन ने बच्चे को एक फैक्ट्री के अंदर छुपा रखा है. पुलिस टीम वहां धावा बोल देती है. इसमें सारे किडनैपर मारे जाते हैं. लेकिन चंदन वहां से फरार हो जाता है. पुलिस उसकी तलाश में लग जाती है. पुलिस से बचने के लिए चंदन महतो अपने इलाके के माफिया डॉन अभ्युदय सिंह (रवि किशन) के गैंग को ज्वाइन कर लेता है. बहुत जल्द ही उसका सबसे भरोसेमंद सहयोगी बन जाता है. अभ्युदय सिंह का भाई लोहू सिंह सांसद है. बिहार विधानसभा चुनाव करीब आते ही राज्य में राजनीतिक हिंसा बढ़ जाती है. प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों के बीच संघर्ष में चंदन महतो सहित अभ्युदय सिंह का गिरोह यादव समुदाय के पांच लोगों की हत्या कर देता है. इसके बाद जातीय संघर्ष बढ़ जाता है.

इस घटना के बाद अमित लोढ़ा पर इस बात का दबाव बढ़ जाता है कि वो किसी तरह से अभ्युदय सिंह और उसके आदमियों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दे. हालत ये हो जाती है कि लोगों को उसके ऊपर भी शक होने लगता है. इस पर एसएसपी मुक्तेश्वर चौबे (आशुतोष राणा) अमित से कहता है कि लोढ़ा जाति के बारे में बिहार के लोग नहीं जानते हैं. इसलिए बेहतर होगा कि वो लोगों के सामने अपनी जाति बता दे, ताकि किसी को कोई कंफ्यूजन न रहे. इतना ही नहीं एसएसपी चौबे उसकी ईमानदारी पर भी व्यंग्य करता है. वो कहता है, ''ये ईमानदारी, बिना किसी पक्षपता के काम करना, हिम्मत और बहादुरी, ये सब पुलिस विभाग का बहुत महंगा गहना है. इसे रोज रोज नहीं पहना जाता है.'' बड़ा सवाल क्या अमित लोढ़ा चंदन महतो और अभ्युदय सिंह को गिरफ्तार कर पाएगा? क्या वो अपराधियों को मिलने वाले राजनीतिक संरक्षण को खत्म कर पाएगा? जानने के लिए सीरीज देखनी होगी.

वेब सीरीज 'खाकी: द बिहार चैप्टर' में पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली, उसमें राजनीतिक हस्तक्षेप, उसकी अंदरूनी राजनीति, अपराधियों को मिलने वाले राजनीतिक संरक्षण, माफिया डॉन और बाहुबलियों के क्रियाकलाप आदि प्रमुख मुद्दों को प्रमुखता से दिखाया गया है. इसमें कोई एक कहानी नहीं है, बल्कि एक कहानियों का समूह है, जिसमें अलग-अलग घटनाएं दिखाई गई हैं, जो बिहार में मौजूद जंगलराज पर प्रमुखता से प्रकाश डालती है. इस सीरीज के हर सीन में नीरज पांडेय की झलक नजर आती है. बतौर निर्देशक भव धूलिया ने उनका बखूबी साथ दिया है. वेब सीरीज 'रंगबाज' के निर्देशन का अनुभव यहां काम आया है. सात एपिसोड की इस सीरीज को देखने के दौरान दिलचस्पी अंतिम समय तक बनी रहती है. इस सीरीज की सबसे बड़ी खासियत इसके कलाकारों का चयन है. हर किरदार में हर कलाकार बिल्कुल फिट नजर आता है. सभी ने अपने दमदार अभिनय से किरदारों को जीवंत कर दिया है.

लीड रोल में मौजूद करण टैकर (पुलिस अफसर अमित लोढ़ा, अविनाश तिवारी (गैंगस्टर चंदन महतो) और रवि किशन (माफिय डॉन अभ्युदय सिंह) ने तो समां बांध दिया है. वेब सीरीज 'स्‍पेशल ऑप्‍स' में नजर आ चुके अभिनेता करण टैकर वर्दी में हमेशा जंचते हैं. इस सीरीज में भी उतने ही दमदार लग रहे हैं. 'द गर्ल ऑन द ट्रेन', 'बुलबुल' और 'लैल मजनू' जैसी फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता अविनाश तिवारी गैंगस्टर के किरदार में जम रहे हैं. माफिय डॉन के किरदार में रवि किशन भी धांसू लग रहे हैं. हालही में स्ट्रीम हुई वेब सीरीज 'कंट्री माफिया' में भी उन्होंने ऐसा ही किरदार निभाया है, लेकिन वो अपनी भूमिका में दोहराव करने से बचते हैं. इन सबके अलावा आशुतोष राणा, अनूप सोनी, जतिन सरना, निकिता दत्ता और अभिमन्यु सिंह ने भी अपने-अपने किरदारों के साथ न्याय किया है. कुल मिलाकर, पुलिसिया ड्रामा पसंद करने वाले लोग इस वेब सीरीज को देख सकते हैं.

iChowk.in रेटिंग: 5 में से 3 स्टार

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय