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Updated: 19 जुलाई, 2022 10:29 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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''अभी आप पापा के साथ बैठने से रोक रही थीं, अब आरती में जाने से रोक रही हैं, ऐसा क्यों मम्मी?''...इस 'मासूम सवाल' के जवाब में मां बस इतना ही कह पाती है, ''यही औरतों की नियती है बेटी.'' यहां इस सवाल के जवाब पर एक दूसरा सवाल है, लेकिन जरूरी है. आखिर औरतों की नियती क्या है? क्या 21वीं सदी में जब हम चांद के बाद मंगल पर घर बसाने की सोच रहे हैं, उस समय औरतों की वास्तविक स्थिति में कितना बदलाव आया है? क्या आज भी कोई मां-बाप अपनी बेटी के साथ बैठकर उन विषयों पर बात करते हैं, जिन्हें दकियानुसी समाज वर्जित मानता आ रहा है? इन सभी सवालों के जवाब 5 अगस्त को सिनेमाघरों में रिलीज हो फिल्म 'मासूम सवाल' में मिलता हुआ नजर आ रहा है.

'मासूम सवाल' फिल्म का ट्रेलर लॉन्च कर दिया गया है. इसकी पहली झलक देखने के बाद पता चलता है कि ये फिल्म महिलाओं के मासिक धर्म/पीरियड्स से जुड़े तमाम अंधविश्वासों को एक नए नजरिए से पेश करती है. नक्षत्र 27 प्रोडक्शन के बैनर तले बनी इस फिल्म का निर्देशन संतोष उपाध्याय ने किया है. इस फिल्म के जरिए अपना डायरेक्टोरियल डेब्यू करने वाले संतोष ने कमलेश कुमार मिश्रा के साथ मिलकर फिल्म की कहानी लिखी है. फिल्म में बाल कलाकार नितांशी गोयल के साथ एकावली खन्ना, शिशिर शर्मा, रोहित तिवारी, शशि वर्मा और ब्रिंदा त्रिवेदी अहम रोल में हैं. नितांशी गोयल इससे पहले अमिताभ बच्चन, शिल्पा शेट्टी, गीत मां और रितिक रोशन जैसे सितारों के साथ काम कर चुकी हैं.

650_071822091006.jpgफिल्म में नितांशी गोयल लीड रोल में है, जिनको सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का पुरस्कार मिल चुका है.

फिल्म 'मासूम सवाल' के 2 मिनट 55 सेकंड के ट्रेलर में दिखाया गया है कि एक छोटी बच्ची के परिजन श्रीकृष्ण की मूर्ती को उसका भाई बताकर उसे दे रहे हैं. मासूम बच्ची सच में श्रीकृष्ण की मूर्ती को अपना भाई मानकर प्यार करने लगती है. हर वक्त हरदम अपने साथ रखती है. प्यार से लड्डू पुकारती है. समय चक्र के साथ उसकी उम्र बढ़ती रहती है. एक दिन अचानक वो घबड़ाई हुई अपनी मां को आवाज देती है. मां जाकर देखती है कि बच्ची को मासिक धर्म आया है. अबोध बच्ची को बिल्कुल पता नहीं कि मासिक धर्म क्या है? लेकिन इसके बाद उसके साथ भेदभाव शुरू हो जाता है. उसे पिता के साथ बैठने नहीं दिया जाता. अपने लड्डू गोपाल के साथ रहने नहीं दिया जाता. हर वक्त रोकटोक लगी रहती है.

''मासिक के समय मंदिर में आना. पूजा करना. मूर्ती को छूना. शास्त्र संगत नहीं है''...पंडितजी के इन बातों का पालन करने वाला परिवार बच्ची पर उस वक्त भड़क जाता है, जब वो मूर्ती छू देती है. उसकी मां उसे समझाती है, ''महीने के 5-6 दिन औरत हो या लड़की अशुद्ध रहती है''. इन बातों से आहत बच्ची बहुत दुखी रहती है. इधर, मामला परिवार से निकलकर समाज के बीच पहुंच जाता है. मासिक धर्म के साथ बच्ची के मूर्ती छूने से नाराज कुछ लोग कोर्ट में केस कर देते हैं. मामला जज के सामने पहुंच जाता है. फिल्म की कहानी यही से ट्विस्ट लेती है. कोर्ट में बच्ची के उपर लगे इल्जामों पर उसके सवाल भारी पड़ जाते हैं. आगे क्या होता है? ये जानने के लिए फिल्म का इंतजार करना होगा.

Masoom Sawaal फिल्म का ट्रेलर देखिए...

मासिक धर्म/पीरियड्स पर इससे पहले अक्षय कुमार की फिल्म 'पैडमैन', रेका ज़्हाताबची की शॉर्ट फिल्म 'पीरियड: एन्ड ऑफ सेंटेंश', प्रियंका पाठक की फिल्म 'गौकोर: ए पीरियड हाउस', आधिराज कृष्णा और निरव पुरोहित की फिल्म 'मेंस्ट्रुअल एज्यूकेशन' और तनीषा अग्रवाल की फिल्म 'महीना: ए स्टोरी अबाउट फादर-डॉटर रिलेशनशिप' रिलीज हो चुकी हैं. इन सभी फिल्मों में अलग-अलग तरीके से पीरियड्स पर बात की गई है. उससे जुड़ी बातों पर प्रकाश डाला गया है. लेकिन संतोष उपाध्याय की फिल्म 'मासूम सवाल' इस संवेदनशील विषय को अनोखे तरीके से पेश करती है. इसमें धर्म को केंद्र में जरूर रखा गया है, लेकिन समाज की कुरुतियों और अंधविश्वासों पर करारा प्रहार भी किया गया है.

इस फिल्म को बनाने का विचार कैसे आया? इस सवाल के जवाब में निर्देशक और लेखक संतोष उपाध्याय कहते हैं, ''साल 2014 की बात है. क्लास 8 में पढ़ने वाली एक लड़की मेरे पास आई. उसने अपने माता-पिता से अलग होकर मुझसे अकेले में बात करने की गुजारिश की. उसने मुझसे कहा कि सर लड़कियों को पीरियड्स क्यों होते हैं? ईमानदारी से कहूं तो मेरे पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था. इसके बाद ही मेरे मन में इस विषय पर फिल्म बनाने का विचार आया था. इसके बाद मैंने इसकी कहानी लिखी थी. आज भी दिल्ली जैसे मेट्रो सिटी में 14 साल की लड़की इस सामान्य और प्राकृतिक बात को लेकर रोती है. मासिक धर्म को लेकर आज भी अंधविश्वास बना हुआ है, जो कि देश का दुर्भाग्य है''.

बताते चलें कि पीरियड्स को लेकर केवल भारत में ही नहीं दुनियाभर में अंधविश्वास है. अपने देश में पीरियड्स के दौरान महिला या लड़की को किचन में नहीं जाने दिया जाता और ना ही खाने की किसी भी चीज को हाथ लगाने दिया जाता है. मंदिर में जाना और पूजा करना तो बहुत दूर की बात है. कई जगहों पर मासिक धर्म होने पर अचार को हाथ नहीं लगाने दिया जाता है. लोगों का मानना है कि इससे अचार सड़ जाता है. नेपाल में मासिक धर्म होने पर महिलाओं को घर से बाहर कर दिया जाता है. अमेरिका में भी इस दौरान महिलाओं को अशुद्ध माना जाता है. इजरायल में तो किसी लड़की को पहली बार पीरियड होता है तो उसके गालों पर थप्पड़ मारा जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है कि लड़की सुंदर लगे.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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