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Updated: 14 अगस्त, 2020 09:02 PM
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हिंदुस्तान एक धर्मनिरपेक्ष देश है और यहां रहने वाले हर धर्म, संप्रदाय और जाति के लोगों को सम्मानपूर्वक जिंदगी जीने और वो चीजें खुलकर करने की स्वतंत्रता है, जिसे सामाजिक मान्यता मिली हुई है. मुस्लिम लड़की भरतनाट्यम डांस सीख सकती है और हजारों लोगों के सामने डांस परफॉर्म कर सकती है, हिंदू सजदा कर सकते हैं और भगवान के साथ ही खुदा को भी याद कर सकते हैं. मजहब हमें किसी से बैर करना और अपनी इच्छाओं का दम घोंटना नहीं सीखाता. बस समाज के कुछ लोगों की दकियानुसी बातें लोगों के अधिकार और जीने की वजहों को सीमित करती हैं. नसीरुद्दीन शाह की मी रक़्सम यही सीख देती एक बेहद खूबसूरत फ़िल्म है, जिसका ट्रेलर रिलीज हो गया है. मी रक़्सम एक ऐसे मुस्लिम पिता की कहानी है, जो अपनी बेटी को भरतनाट्यम सीखने की इजाजत देता है और इसके लिए अपनी बिरादरी के लोगों के गुस्से और नफरत का शिकार होता है, लेकिन वह झुकता नहीं है और कहता है कि हमारा इस्लाम इतना कमजोर नहीं है कि एक मुस्लिम बच्ची के डांस मात्र से उसकी तौहीन हो जाए. मी रक़्सम 21 अगस्त को जी5 पर रिलीज होने वाली है और दर्शक इस फ़िल्म का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

भरतनाट्यम डांस फॉर्म हिंदुस्तानी तहजीब के एक हिस्से के रूप में जाना जाता है, ऐसे में अगर कोई मुस्लिम लड़की डांस स्कूल जाती है या डांस सीखती है तो यह गैर मजहबी कैसे हो जाता है. लेकिन यह मौजूदा समाज की सच्चाई है, जहां एक-दूसरे धर्म और उनकी अच्छाइयों को नजरअंदाज कर कुछ लोग बस उनमें बुराइयां ढूंढते हैं. शबाना आज़मी द्वारा प्रोड्यूस और उनके भाई और फेमस सिनेमैटोग्राफर बाबा आज़मी द्वारा निर्देशित फ़िल्म मी रक़्सम इसी नफरत और प्यार की कहानी है, जिसमें नसीरुद्दीन शाह मुस्लिम समुदाय के धर्मनिरपेक्ष नेता की भूमिका निभा रहे हैं. दानिश हुसैन एक केयरिंग पिता की भूमिका में है और उनकी बेटी का किरदार निभा रही है अदिति सुबेदी. मी रक़्सम की कहानी यूपी की है, जहां एक पिता और उसकी बेटी को उनकी ही बिरादरी के लोग काफिर करार दे देते हैं, लेकिन कम्युनिटी लीडर की भूमिका निभा रहे नसीर साब दोनों को हौसला देते हैं और अपने कर्मों पर अडिग रहने की सीख देते हैं.

मी रक़्सम की कहानी क्या है

उत्तर प्रदेश के मशहूर कवि और शायर दिवंगत कैफी आजमी के बेटे बाबा आजमी की फ़िल्म मी रक़्सम की कहानी यूपी के एक कस्बे की है, जहां एक मुस्लिम पिता अपनी बेटी की भरतनाट्यम डांस सीखने की इच्छा को किसी भी हालत में पूरी करना चाहता है. उसती पत्नी का इंतकाल हो चुका है, ऐसे में वह खुद अपनी बेटी का देखभाल करता है. बेटी भरतनाट्यम डांसर बनना चाहती है, ऐसे में वह उसका एडमिशन डांस स्कूल में करा देता है. एक दिन कस्बे में यह बात फैल जाती है कि मुस्लिम लड़की डांस सीख रही है. इसके बाद मुस्लिम समुदाय के लोग उसे धमकी देते हैं कि वह अपनी बेटी को डांस न सिखाये और कोई ऐसा काम न करे, जिसकी मजहब इजाजत नहीं देता. इसके बाद वह लोगों को समझाता है कि डांस सीखना कोई गैर मजहबी काम नहीं है. वह बेटी को डांस सीखने के लिए प्रेरित करता रहता है और समाज उसे काफिर करार दे देता है. लेकिन इस बीच उसे कम्युनिटी लीडर के रूप में नसीर साब का समर्थन मिलता है और वो बोलते हैं कि भले कौम वाले तुमसे खफा हों, लेकिन तुम्हारी बेटी जो कर रही है, वह सही है.

मी रक़्सम की कहानी हमारे और आपके समाज की हकीकत है, जहां कुछ कट्टर लोग धर्म का हवाला देकर लोगों के अधिकार के साथ ही उनकी सोच और ख्वाहिशें सीमित करने की सफल-असफल कोशिशें करते रहते हैं. लेकिन मी रक़्सम फ़िल्म में एक पिता अपनी बेटी के लिए समाज और घरवालों की दुश्मनी तक मोल ले लेता है. जब उस बच्ची की मौसी उसके पिता से बोलती है कि डांस सिखाकर बच्ची को तवायफ बनाना चाहते हैं, यह बात सुनकर अंदाजा हो सकता है कि समाज का एक खास तबका अब भी नृत्य को लोगों के मनोरंजन के प्रमुख साधन से ज्यादा तवायफ के पेशे के रूप में जानता-समझता है. हालांकि, ऐसे लोगों की संख्या अब काफी कम हो गई है. मी रक़्सम फ़िल्म में श्रद्धा कौल और राकेश चतुर्वेदी ओम भी प्रमुख भूमिका में है. इस फ़िल्म में न केवल मुस्लिम संप्रदाय के लोगों के बीच सोच के स्तर पर भेदभाव को दिखाया गया है, बल्कि हिंदु और मुस्लिम समुदाय के लोगों में विश्वास की कमी को भी अच्छी तरह रेखांकित किया गया है, जहां एक हिंदू परिवार इस बात पर हैरानी जताता है कि मुस्लिम समुदाय की एक लड़की भरतनाट्यम सीख रही है.

कैफ़ी आज़मी की मिजवां और मी रक़्सम की दुनिया

शबाना आज़मी मी रक़्सम फ़िल्म से प्रोड्यूसर भी बन गई हैं, वहीं उनके भाई बाबा आज़मी सिनेमैटोग्राफी के साथ ही डायरेक्शन की भी बागडोर संभाले हुए हैं. शबाना आज़मी और बाबा आज़मी ने यह फ़िल्म अपने पिता कैफ़ी आज़मी को समर्पित किया है. शबाना एक किस्से का जिक्र करती हैं कि उनके पिता आजमगढ़ स्थित मिजवां के रहने वाले थे और उन्होंने अपने बच्चों से कहा था कि एक फिल्म मिजवां में शूट करना. अब कैफ़ी आज़मी तो नहीं रहे, लेकिन उनकी इच्छा शबाना और बाबा ने पूरी कर दी है. मी रक़्सम पूरी तरह आजमगढ़ के मिजवां गांव में शूट हुई है. मी रक़्सम लोगों में बीच छोटी-छोटी बात पर पनपती नफरत के साथ ही एक एक अहम मेसेज देने वाली फ़िल्म लग रही है. मी रक़्सम में नसीर साब अपने पुराने अंदाज में दिख रहे हैं, जहां उनकी दाढ़ी के साथ ही बेहस सधे हुए डायलॉग देख सुनकर लगता है कि मी रक़्सम बेहत खास फ़िल्म होने वाली है, जो धीरे-धीरे लोगों की जुबां और दिल में जगह बनाएगी.

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