MGR Movies: तमिल सिनेमा के लीजेंड और डीएमके के संस्थापक की 5 बड़ी फिल्में हिंदी में भी हैं
MG Ramachandran Must Watch Hindi Movies: सियासत से लेकर सिनेमा तक में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए एमजीआर यानी एमजी रामचंद्रन एक परिचित नाम है. एमजीआर को साउथ सिनेमा का पहला सुपरस्टार माना जाता है. उनकी फिल्मों की तरह जिंदगी भी रोचक रही है. आइए उनकी 5 बेहतरीन फिल्मों के बारे में जानते हैं.
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मारुतूर गोपालन रामचन्द्रन यानी MGR किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. एक वक्त था जब साउथ में सिनेमा से लेकर सियासत तक उनकी तूती बोलती थी. लोग उनकी फिल्मों के दीवाने थे. उनकी फिल्में रिलीज होने पर उत्सव मनाया जाता था. सिनेमाघरों के बाहर नारियल और पटाखे फोड़े जाते थे. दर्शकों का जत्था निकलता था, जो उनकी फिल्मों के गाने गाते-बजाते सिनेमाघरों तक जाता था. लोग उनको अपना भगवान तक मानते थे. लोगों को लगता था कि उनकी फिल्मों दिखाई जाने वाली हर बात सच्ची है. वो वाकई सर्वशक्तिमान हैं. जो चाहे वो कर सकते हैं. बंजर जमीन पर भी उनके पैर पड़ जाए तो वो उपजाऊं हो सकती है.
एमजीआर भी अपनी छवि का पूरा ख्याल रखते थे. घर से निकलने के पहले वो उसी तरह से तैयार होते, जैसे कि किसी फिल्म की शूटिंग के लिए जाते थे. यहां तक कि लोगों के सामने कभी अपनी फिल्मों की शूटिंग भी नहीं करते थे. उनको लगता था कि लोगों को सिनेमा की सच्चाई पता चल जाएगी. लोगों पता चल जाएगा कि फिल्मों में जो दिखाया जाता है, उसका वास्तविकता से कोई नाता नहीं है. लोगों का विश्वास न टूटे. लोग फिल्मों की कहानियों को सच मानते रहें, इसलिए वो पब्लिक के सामने शूटिंग करने से बचते थे. उनको फिल्मों में अक्सर गरीबों के लिए लड़ते दिखाया गया, जिससे दर्शकों के दिल में उनकी रॉबिन हुड वाली छवि बन गई थी. फिल्मों में इनकी छवि हमेशा से ही एक सज्जन व्यक्ति की रही जो जनता के लिए जीता था. उन्होंने कभी अपने इस छवि के साथ समझौता नहीं किया. उसे बनाए रखा.
एक बार उनको फिल्म 'देवदास' में काम करने का ऑफर दिया गया. लेकिन उन्होंने इस किरदार के लिए मना कर दिया क्योंकि वो शराब पीता था. उनका मानना था कि वो कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते हैं, जिससे कि दर्शकों के बीच उनकी छवि को नुकसान पहुंचे. यही वजह है कि बाद के दिनों में उनके अनुसार किरदार गढ़ जाने लगे. फिल्मों के लेखक उनकी छवि के अनुसार कहानियां लिखने लगे. उनके संवाद भी ऐसे रखे जाने लगे, जिससे कि उनकी छवि ज्यादा मजबूत हो सके. इस वजह से उनकी लोकप्रियता दिन प्रति दिन बढ़ती गई. तमिलनाडू की हर राजनीतिक पार्टी चाहती थी कि वो उनके साथ चुनाव लड़े. उनको विधानसभा का चुनाव लड़ने का ऑफर दिया जाने लगा. साल 1953 में एमजीआर ने कांग्रेस ज्वाइन कर लिया. लेकिन बहुत जल्द अन्नादुरई की पार्टी 'द्रविड़ मुनेत्र कड़गम' (डीएमके) में शामिल हो गए.
डीएमके में शामिल होने के बाद वो द्रविड़ आंदोलन के मुखर वक्ता बन गए. सिनेमा की तरह सियासत में भी उनकी लोकप्रिता आसमान छूने लगी. 1962 में हुए विधानसभा चुनाव में उनको विधायक चुना गया. इसी दौरान उनके राजनीकि गुरू अन्नादुरई का निधन हो गया, जिसके बाद उनको पार्टी का कोषाध्यक्ष चुना गया. हालांकि, अन्नादुरई के जाने के बाद जब पार्टी में भ्रष्टाचार बढ़ गया तो उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली. इसका नाम ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) रखा गया. इसके बाद 1977 में हुए तमिलनाडू विधान सभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 234 में से 130 सीटें हासिल करके सबसे बड़ी राजनीतिक दल बन गई. एमजीआर ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लिया. यही से उनकी राजनीतिक यात्रा तेजी से आगे बढ़ने लगी, जिसमें उन्होंने अपनी प्रेमिका जयललिता को भी शामिल कर लिया.
17 जनवरी 1917 को श्रीलंका के नावालापिटिया में पैदा हुए एमजी रामचंद्रन के बचपन में ही पिता का निधन हो गया. इसके बाद बहन की भी बीमारी से मौत हो गई. इससे दुखी होकर उनकी मां अपने दो बेटों के साथ भारत चली आईं. यहां केरल में एक रिश्तेदार ने उनको अपने यहां शरण दी. एमजीआर बचपन से ही एक्टिंग में रुचि रखते थे. यही वजह है कि सात साल की उम्र से ही नाटकों में काम करने लगे थे. उनको 19 साल की उम्र में फिल्म 'सती लीलावती' में पुलिस इंस्पेक्टर का किरदार करने का मौका मिला था. अमेरिकी मूल के फिल्म निर्देशक एलिस आर. डुंगन द्वारा निर्देशित ये फिल्म 1936 में रिलीज हुई थी. कई फिल्मों में साइड रोल करने के बाद उनको पहला लीड रोल फिल्म 'राजकुमारी' में मिला, जो 1947 में रिलीज हुई थी. साल 1950 तक एमजी रामचंद्रन तमिल सिनेमा के एक उभरते हुए सितारे बन चुके थे. 54 साल के अपने सिनेमाई करियर में उन्होंने 150 से ज्यादा फिल्मों में काम किया था. इसमें साल 1971 में रिलीज हुई 'रिक्शाकरण' फिल्म के लिए उनको नेशनल अवॉर्ड मिला था.
एमजीआर की कहानी में जयललिता का जिक्र न करना नाइंसाफी होगी. दोनों की पहली मुलाकात फिल्म 'आइराथिल ओरुवन' के सेट पर हुई थी. गोरी चिट्टी जया सेट पर बेहद शांत होकर एक किनारे कोई अंग्रेजी उपन्यास पढ़ रही थीं. उनको पहली नजर में ही देखकर एमजीआर प्रभावित हो गए थे. यही वजह है कि दोनों ने लगातार 28 फिल्मों में एक-दूसरे के साथ काम किया था. जयललिता को राजनीति में लाने का श्रेय भी एमजीआर को ही जाता है. वो जया से बहुत प्रेम करते थे. जया उनसे शादी करना चाहती थीं, लेकिन तीन शादियां कर चुके एमजीआर इसके लिए तैयार नहीं थे. जयललिता की जीवनी 'अम्मा जर्नी फ्रॉम मूवी स्टार टू पॉलिटिकल क्वीन' लिखने वाली वासंती के मुताबिक, एमजीआर का जयललिता के प्रति शुरू से ही सॉफ्ट कार्नर था. उन दोनों की शादी नहीं हो पाई क्योंकि रामचंद्रन पहले ही तीन शादियां कर चुके थे.
आइए एमजीआर के करियर की पांच बेहतरीन फिल्मों के बारे में जानते हैं, जो कि हिंदी में भी उपलब्ध हैं...
1. आदिमै पेन (Adimai Penn)
साल 1969 में रिलीज हुई तमिल एक्शन एडवेंचर फिल्म 'आदिमै पेन' का निर्देशन के. शंकर ने किया था. इसके साल 1970 में 'कोई गुलाम नहीं' नामक टाइटल से हिंदी में रिलीज किया गया था. इस फिल्म में एमजी रामचंद्रन और जयललिता के साथ अशोकन, पंडरी बाई, राजश्री, मनोहर और चंद्रबाबू जैसे कलाकार अहम किरदारों में थे. फिल्म की कहानी एक राजा की मौत के बाद उसके अत्याचारी बेटे से मुक्त होने के प्रयासों के इर्द-गिर्द घूमती है. इस फिल्म की शूटिंग राजस्थान की राजधानी जयपुर में हुई थी. यहीं पर एमजीआर और जया का प्यार परवान पर चढ़ा था. कहा जाता है कि तपती रेत से बचाने के लिए एमजीआर ने जया को गोद में उठाकर उनकी कार तक पहुंचाया था. इस घटना ने जया को बहुत प्रभावित किया था. फिल्म रिलीज के बाद जबरदस्त हिट हुई थी. इसे फिल्मफेयर अवॉर्ड और तमिलनाडु स्टेट फिल्म अवॉर्ड मिला था.
2. उलगाम सुतरुम वालीबन (Ulagam Sutrum Valiban)
साल 1973 में रिलीज हुई तमिल साइंस फिक्शन फिल्म 'उलगाम सुतरुम वालीबन' का निर्देशन एमजी रामचंद्रन ने किया था. इसमें लीड एक्टर भी वही थे. उनके साथ चंद्रकला, मंजुला और लथा अहम किरदारों में थे. फिल्म की कहानी एक वैज्ञानिक के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक ऊर्जा दोहन सूत्र की खोज करता है. इसके साथ अपने शोध को एक प्रतिद्वंद्वी वैज्ञानिक द्वारा दुरुपयोग किए जाने से बचाना चाहता है. ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी. इसे 200 दिनों तक सिनेमाघरों में चलाया गया था. तमिल सिनेमा के इतिहास में इसे सबसे सफल फिल्म माना जाता है, जो केवल भारत में ही नहीं श्रीलंका, अमेरिका, कनाडा और यूके में भी सफल रही थी. फिल्म के एक्शन सीक्वेंस की शूटिंग जापान में की किया गया था. इसके साथ ही इसका संगीत भी शानदार है. फिल्म को हिंदी में 'रंगीन दुनिया' के नाम से रिलीज किया गया था.
3. रिक्शाकरण (Rickshawkaran)
साल 1971 में रिलीज हुई तमिल ड्रामा फिल्म 'रिक्शाकरण' का निर्देशन एम कृष्णनन ने किया था. साल 1973 में 'रिक्शावाला' नामक टाइटल से इसे हिंदी में रीमेक किया गया था. इस फिल्म में एमजीआर, पद्मिनी और मंजूला के साथ अशोकन, मेजर सुंदरराजन और मनोहर ने अहम भूमिका निभाई है. इस फिल्म की कहानी एक रिक्शा चालक के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक हत्या का गवाह है और इसके पीछे के रहस्य का पता लगाने का फैसला करता है. ये फिल्म भी सुपर हिट रही थी, जो कि लगातार 100 दिनों तक सिनेमाघरों में बनी रही थी. इस फिल्म में बेहतरीन अभिनय के लिए एमजीआर को बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड मिला था. वो साउथ सिनेमा के पहले स्टार थे, जिनको नेशनल लेवल का अवॉर्ड पहली बार मिला था. हालांकि, इस फिल्म को लेकर विवाद भी हुआ था. लोगों का आरोप था कि एमजीआर ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए ये फिल्म रिलीज की थी.
4. मदुरई वीरान (Madurai Veeran)
साल 1956 में रिलीज हुई तमिल एक्शन फिल्म 'मदुरई वीरान' का निर्देशन डी. योगानंद ने किया था. लोककथाओं पर आधारित इस फिल्म में एमजीआर ने मदुरई वीरान नामक देवता का किरदार किया है, जिसमें पी. भानुमति और पद्मिनी उनकी प्रेमिकाओं के किरदार में हैं. टीएस बलैया, एनएस कृष्णन और टीए मथुराम ने सहायक भूमिकाएं निभाई हैं. मदुरई वीरान साल 1939 की के बाद किंवदंती पर आधारित दूसरी फिल्म थी. इसे पुथंडु (तमिल नव वर्ष) के दौरान रिलीज किया गया था. यही वजह है कि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रही थी. ये सिनेमाघरों में 200 दिनों तक दिखाई जाती रही. इसके साथ ही एमजीआर और पद्मिनी के करियर में एक मील का पत्थर साबित हुई थी. फिल्म का संगीत पक्ष भी बहुत मजबूत है. इसमें कुल 10 गाने हैं, जिनका संगीत जी. रामनाथन ने दिया है, जबकि गीत उदुमलाई नारायण कवि, तंजई एन. रमैया दास और कन्नदासन द्वारा लिखे गए हैं.
5. मर्मयोगी (Marmayogi)
साल 1951 में रिलीज हुई तमिल फिल्म 'मर्मयोगी' का निर्देशन के. रामनोथ ने किया था. फिल्म की कहानी मैरी कोरेली और विलियम शेक्सपियर के नाटक 'मैकबेथ' पर आधारित है. इसका हिंदी रीमेक 'एक था राजा' नाम से उपलब्ध है. इसमें एमजीआर, अंजलि देवी और माधुरी देवी के साथ एसवी सहस्रनामम, सेरुकलाथुर समा, एन सीतारमन, एसए नटराजन, एमएन नांबियार और एम पंडरी बाई अहम भूमिकाओं में हैं. इस फिल्म की रिलीज के बाद एमजीआर साउथ सिनेमा के उभरते सितारे बन चुके थे. यह केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से ए प्रमाणपत्र (केवल वयस्क) प्राप्त करने वाली पहली तमिल फिल्म थी. इसको हिंदी के साथ तेलुगू में भी रीमेक किया गया था.
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