मोदी जी को कंगना-भक्त बन जाना चाहिए !
कॉफी विद करण में कंगना ने करण की जो बेइज्जती की है उससे खुद करण को समझ नहीं आ रहा कि वो क्या करें. कंगना ने बिना किसी झिझक के सच को सच और झूठ को झूठ कहा.
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आप इसे काला जादू कहें, टैलेंट कहें या फिर जो भी आपको ठीक लगता है वो कहें, लेकिन ये बात तो माननी पड़ेगी कि कॉफी विद करण में कंगना का डेब्यू सबसे धमाकेदार एपिसोड साबित हुआ. बॉलीवुड सेक्सिज्म को बड़े ही नफासत के साथ बढ़ावा देता है. शो बिजनेस के इस कड़वे सच और गंदे रुप को दिखाने के लिए एक कंगना की जरुरत होती है.
कॉफी विद करण में कंगना ने करण की जो बेइज्जती की है उससे खुद करण को समझ नहीं आ रहा कि वो क्या करें. कंगना ने बिना किसी झिझक के सच को सच और झूठ को झूठ कहा. कंगना की इस बेबाकी ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. मुझे लगता है अगर कंगना की तरह बेखौफ, बेबाक और बिंदास रहने वाले अगर पागल, सनकी या चुड़ैल होती है तो हम सभी को भी होना चाहिए.
ये कंगना ही हैं जिन्होंने शतरंज के खेल में 'क्वीन' को सबसे ज्यादा मजबूत बना दिया. ये कंगना ही है जिसे बॉलीवुड का चाणक्य कहा जाए तो गलत नहीं होगा. लहरों के विरुद्ध तैरना एक कला है.
वैसे, बोल-वचन के मामले में बॉलीवुड में जिस तरह कंगना हैं, उसकी तरह राजनीति में नरेंद्र मोदी हैं. लेकिन, इन दिनों वे कुछ बहके हुए हैं. ऐसे में उन्हें कंगना से कुछ सीखना चाहिए. लहरों को अपनी तरफ मोड़ने का गुर तो कम से कम सीख ही लेना चाहिए. मोदी जी के लिए ये अच्छा होगा अगर जल्दी ही वो कंगना-भक्त बन जाएं.
1- बिना दर्द के सफलता भी नहीं मिलती
अपमान और कठिन समय इंसान को मजबूत बनाते हैं और फिल्म इंडस्ट्री में तो कंगना से ज्यादा अपमान किसी ने शायद ही झेला हो. इनको देखकर लगता है कि आलोचना इतनी भी बुरी चीज नहीं होती शायद. कुछ साल पहले खुद करण जौहर ने खराब अंग्रेजी के लिए कंगना रनौत का मजाक बनाया था. नतीजा? कुछ साल बाद कंगना उन्हीं करण जौहर के कॉफी विद करण शो में मेहमान बनकर आईँ. शो में कंगना ने ना सिर्फ करण जौहर को फर्राटेदार अंग्रेजी में दिया बल्कि करण के लिए बात-बात में तंज भी कसे.
कंगना का कमाल
मोदी जी को कंगना से सीखना चाहिए कि आलोचना को कैसे स्वीकार करें. भले ही 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी जी ने कांग्रेस का सफाया कर दिया और बहुमत की सरकार बनाने में भी कामयाब हो गए. लेकिन उनके भाषणों में इतिहास से जुड़ी जानकारियों और तथ्यात्मक गलतियां माफी के योग्य नहीं होती. इससे भी ज्यादा दिक्कत की बात है मोदी जी का अपनी गलतियों से नहीं सीखने की ज़िद.
नोटबंदी को कालाधन के खिलाफ उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक का नाम तो दे दिया पर हाथ खाली ही रहे. ये हमारी अर्थव्यवस्था के खिलाफ गंदा मजाक था. यही नहीं इसके बाद इस मुद्दे पर अपनी आलोचना करने वालों को भी भला-बुरा कहना गलत है. हम ये कह सकते हैं कि- अगर चूहा आंखें बंद कर ले तो बिल्ली भाग गई, ऐसा नहीं होता.
2- बिना झगड़ा किए संभ्रांत लोगों का विरोध करना
ये साधारण घरों से आने वाले दो लोगों की कहानी है. पहली एक पहाड़ी लड़की है तो दूसरा एक गुजराती 'चाय वाला'. दोनों ही किस्मत के धनी हैं और मेहनत से अपने लिए मुकाम बनाया है. दोनों ही लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं और रुढ़ियों को तोड़ संभ्रांत वर्ग को ठेंगा दिखाते हैं.
कंगना रनौत बॉलीवुड के संभ्रात वर्ग के लिए आंधी की तरह हैं. एक बवंडर की तरह घातक. यहां तक की कंगना अगर फुसफुसाते हूए कुछ बोलें तो वो बॉलीवुड के लिए शोर के बराबर होता है. इसलिए अगर कंगना ने करण पर भाई-भतीजावाद, उनके प्रति गलत ही सोचा है और करण संभ्रातवादी हैं तो कुछ गलत नहीं कहा. यहां तक की कंगना ने ये भी कहा कि अपनी ऑटोबोयोग्राफी में वो करण के नाम एक पूरा चैप्टर लिखेंगी, वो भी एक ऐसे विरोधी के रुप में जिसने प्रसिद्धि पाने में मदद ही की.
कंगना ने सबको धो डाला
अपनी बातों में तंज कसते हुए जब कंगना ने करण को उनके संभ्रातवादी विचारधारा और कंगना के प्रति पक्षपाती होने के लिए धन्यवाद दिया तो कई लोगों का दिल जीत गई. बॉलीवुड के लोगों को शर्म के लिए मुद्दा दिया और बाहरी लोगों को ये आस की इंसान में ज़िद हो तो कामयाबी दूर नहीं होगी.
मोदी जी कंगना से ये तरीका सीखना चाहिए. कंगना ने बिना हाथ उठाए पूरे बॉलीवुड को जोर का तमाचा मारा, वो भी धीरे से. अगर मोदी जी ने इसे अपनी राजनीति में उतार लिया तो मित्रों, उन्हें रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा.
3- जोर का झटका धीरे से देना, वो भी बिना किसी रिएक्शन के
कंगना अपने विरोधियों को बिना ड्रामा किए, शोर मचाए करारा जवाब देने में माहिर हैं. कंगना जब अवार्ड और अवार्ड विजेताओं, सोशल मीडिया के लोगों और उनपर फब्तियां कसने वाले ट्रोल्स को बिना किसी शोरगुल के धो देती हैं. सबसे बड़ी बात ये कि इसमें इमोशन की कोई जगह भी नहीं होती लेकिन फिर भी बहुत सारे इमोशन इसमें जुड़े होते हैं.
ये अपने आप में एक कला है कि आप खुद को कैसे बैलेंस करके रखते हैं. इसके उलट अपने विरोधियों पर पलटवार करना और उनके आरोपों का किसी विवादास्पद बयान से जवाब देना आत्मघाती हो सकता है. इसलिए मोदी जी कब्रिस्तान-श्मशान जैसे बयानों के जरिए बहस करना अच्छा आइडिया तो नहीं है. धर्म के नाम पर इस तरह के बांटो और राज करो की नीति अब वैसे ही पुरानी हो गई है जैसे आज के मोबाइल के जमाने में पेजर.
हम समझ सकते हैं कि सभी को खुश करना एक मुश्किल काम है और उसमें भी सहिष्णु हिंदू फॉलोअर्स को साथ लेकर चलना पहाड़ तोड़ने जैसा कठिन काम है. यहां कंगना से कुछ टिप्स आप ले सकते हैं. वो हमें बताती है कैसे बिना किसी मेहनत के कैसे विरोधियों को मूंहतोड़ जवाब दिया जाता है.
4- किसी पर उंगली उठाने के पहले खुद काबिल बनो
हम सभी को मालूम है कि बॉलीवुड में खान कैंप की ही चलती है. ये खान कैंप बॉलीवुड के दंगल के 'माफिया' की तरह हैं. ये लोग कई नए लोगों को बॉलीवुड में लॉन्च करते हैं तो उनके साथ जुड़े रहना भी एक अच्छी डील है. और हर किसी को अपना भला सोचना चाहिए.
लेकिन अगर बॉलीवुड की क्वीन ने अगर इस खान कैंप के आमने-सामने खड़े होने का फैसला किया है तो जरुर उसने पहले से कोई तैयारी कर रखी होगी. बैक-अप प्लान तैयार करके रखा होगा. कंगना के पीछे वैसे भी नेशनल अवॉर्ड, उनका टैलेंट और खुद के प्रति उनका कॉन्फिडेंस है.
बॉलूीवुड में खलबली
मोदी जी को बिना समय गंवाए कंगना भक्त तो बन ही जाना चाहिए. मोदी जी को सामने वाले की नहीं तो अपने पद की गरिमा का ध्यान तो रखना ही चाहिए. किसी पूर्व प्रधानमंत्री के लिए रेनकोट जैसे शब्दों का प्रयोग कर मजाक बनाना शोभा नहीं देता. मोदी जी आपके नोटबंदी का भूत अभी तक उतरा नहीं है. मीर जाफर और मोहम्मद बिन तुगलक से तुलना होना कोई तारीफ की बात नहीं है. हां ये और बात है कि आप इसे बड़ाई समझते हैं. लेकिन मनमोहन सिंह का मजाक बनाना आपकी गलती है.
5- भावनाओं को थोड़ा रोकें
कंगना और ऋतिक का एपिसोड किसे नहीं याद होगा. इस कांड में कंगना को वेश्या, पागल, सनकी और पता नहीं क्या-क्या कहा गया. लेकिन फिर भी कभी कंगना ने पब्लिकली अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं किया. ना ही कभी पब्लिक के सामने आकर रोई. मुझे ऐसे मर्द पसंद हैं जो खुद को व्यक्त करते हैं और इस क्रम में अगर वो रोते भी हैं तो कोई शर्मिन्दा होने की बात नहीं है. लेकिन बार-बार जनता के सामने के खड़े होकर रोने लगना और खुद के ही भाषणों में इतना खो जाना कि याद ही ना रहे कि खड़े कहां हैं. ये अच्छी बात नहीं है.
कंगना एक तूफान है
कंगना नाम के इस तुफान ने पूरे बॉलीवुड को हिला रखा है. मुझे इस बात को मानने में कोई हिचक नहीं कि मैं कंगना-भक्त बन गई हूं. और ये भी आशा करती हूं कि कंगना के फाइट बैक करने और मूंह तोड़ जवाब देने के तरीके को शायद भारतीय राजनीति में भी एक दिन देखूंगी.
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