Motichoor Chaknachoor में हम जैसे बहुत से लोग दिखाई देंगे..
छोटे बजट की ये फिल्में इसीलिए लोगों के दिलों के करीब हैं क्योंकि इसमें लोग कहीं न कहीं खुद की झलक देख ही लेते हैं. कभी स्थानीय भाषा से जुड़ा महसूस करते हैं तो कभी middle class family होने की वजह से. और जब अपने जैसा इतना कुछ हो तो फिल्म भी अपनी ही हो जाती है.
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किसी फिल्म को देखकर अगर ये लगे कि अरे...ऐसा तो हमारे यहां भी होता है, तो समझ लीजिए कि फिल्म हिट है. सर्दी के मौसम में अगर फिल्म की हीरोइन कार्डिगन पहने दिखाई दे, घर के आंगन में फैन्सी सामान न होकर चारपाई दिखाई दे, बड़ी-बड़ी गाड़ियों की जगह हीरो हिरोइन रिक्शे या स्कूटर पर बैठे दिखाई दें तो समझिए कि फिल्म हिट है. शॉपिंग मॉल की जगह सब्जी का ठेला दिखाई दे या हीरोइन की मम्मी में अपनी मम्मी दिखाई दे जाएं तो समझिए कि फिल्म हिट है.
जी हां, यही वो छोटी-छोटी बातें हैं जो बड़ी-बड़ी फिल्में में दिखाई नहीं देतीं. और फिल्मों का बजट कम करने के लिए जिम्मेदार भी होती हैं. न तो इन फिल्मों में हीरो हिरोइन मनीष मल्होत्रा के latest fashion को इनडॉर्स करते हैं और न ही फिल्मों के कलाकार बड़ी फिल्मों के कलाकारों जितने tantrums. Karan Johar की फिल्मों की बड़ी-बड़ी हवेलियां एक तरफ और छोटी फिल्म का साधारण सा 2BHK एक तरफ. छोटे बजट की ये फिल्में इसीलिए लोगों के दिलों के करीब हैं क्योंकि इसमें लोग कहीं न कहीं खुद की झलक देख ही लेते हैं. कभी स्थानीय भाषा से जुड़ा महसूस करते हैं तो कभी middle class family होने की वजह से. और जब अपने जैसा इतना कुछ हो तो फिल्म भी अपनी ही हो जाती है.
बड़ी-बड़ी गाड़ियों की जगह हीरो हिरोइन रिक्शे पर बैठे दिखाई दें तो समझिए कि फिल्म हिट है
भोपाल में फिल्माई गई फिल्म मोतीचूर चकनाचूर की कहानी भी हम में से ज्यादातर लोगों को अपनी ही लगेगी. कहानी एक ऐसे शख्स की है जिसकी उम्र ज्यादा है लेकिन शादी अभी तक नहीं हुई है. इसपर भी वो डैशिंग न होते हुए एक बेहद औसत दिखने वाला शख्स हो तो समस्या और बढ़ जाती है. इसलिए वो हर तरह का compromise करने के लिए भी तैयार होता है. उधर एक लड़की जिसे कैसे भी करके एक ऐसा पति चाहिए जो शादी के बाद उसे विदेश ले जाए. फिर उस सपने के आगे वो पति की शक्ल, हाइट और रंग को भी एडजस्ट कर लेती है.
फिल्म की कहानी मिडिल क्लास से जुड़ी है
ऐसे बहुत से एडजस्टमेंट और compromises मिडिल क्लास आदमी अपने रोजाना के जीवन में करता रहता है. लेकिन शादी के बाद जब वो खवाब ही पूरे न हों तो ऐसी परिस्थितियों से कैसे डील किया जाता है वो सब इस फिल्म में दिखाने की कोशिश की जा रही है. फिल्म में Nawazuddin Siddiqui और Athiya Shetty मुख्य भूमिका में हैं. ये जोड़ी परफेक्ट नहीं है और इसीलिए ये आम लोगों से जुड़ी हुई लगती है.
अब ये फिल्म भले ही 100 करोड़ न कमाए लेकिन भारत में सबसे बड़ा प्रतिशत मिडिल क्लास लोगों का ही है जिसकी नजर में ये फिल्म सुपरहिट है. छोटी फिल्मों का इतिहास उठाकर देख लीजिए, कोई भी फिल्म फ्लॉप नहीं होती. बल्कि ये फिल्में तो आश्चर्यजनक रूप से सुपरहिट भी हो जाती हैं. आप Ayushman Khurana को ही ले लीजिए, जिनकी हर फिल्म एक छोटे बजट की फिल्म रही है और इन फिल्मों की लीग से हटकर कहानियां आम लोगों के जीवन से जुड़ी हुई हैं. चाहे फिल्म में मोटी पत्नी के साथ शादी करने का दर्द झलकता हो (Dum laga ke haisha), या फिर कम उम्र में बाल झड़ जाने का (bala), बड़ी उम्र में मां के प्रेगनेंट हो जाने की शर्मिंदगी हो (badhai ho) या फिर बरेली जैसे छोटे से शहर की लव स्टोरी (bareilly ki burfi), फिल्म के जरिए भारत के मिडिल क्लास तबके को पर्दे पर उकेर दिया गया और इसी वजह से कल का स्ट्रगलिंग एक्टर Ayushman Khurana आज का सुपरस्टार बन गया. इसके साथ-साथ तमाम ऐसे कलाकार भी सामने आए जो बड़ी फिल्मों की चकाचौंध के पीछे कहीं खो गए थे.
छोटी फिल्मों से सफल होने वाले कलाकार हैं आयुष्मान खुराना
मैं खुद बड़ी फिल्में देखने से पहले film review पढ़ती हूं कि इन फिल्मों पर पैसे खर्च करूं कि नहीं, लेकिन छोटी फिल्में देखने के लिए उनका छोटा होना ही काफी होता है. ये फिल्में अपनी सी लगती हैं और इसलिए ये कभी फ्लॉप नहीं कही जा सकतीं. आम आदमी की हिट फिल्में तो यही हैं. motichoor chaknachoor से भी यही उम्मीदें हैं कि भोपाल के रहने वाले लोग फिल्म के हर शॉट में अपने शहर के ताल और मोहल्ले खोजेंगे और कलाकारों में खुद को.
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