5 वजहें, जो वेब सीरीज Nirmal Pathak Ki Ghar Wapsi को देखने के काबिल बनाती हैं!
ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनी लिव पर स्ट्रीम हो रही वेब सीरीज 'निर्मल पाठक की घर वापसी' (Nirmal Pathak Ki Ghar Wapsi) गांव की मिट्टी की सोंधी खुशबू का एहसास दिलाती है. इसकी कहानी प्रामाणिक और रोचक है, जिसके जरिए ग्रामीण भारत का वास्तविक चित्रण किया गया है. हर कलाकार अपने किरदार में इस कदर समाया हुआ है, जैसे कि दूध और पानी का घोल हो.
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राहुल पांडे और सतीश नायर के निर्देशन में बनी वेब सीरीज 'निर्मल पाठक की घर वापसी' (Nirmal Pathak Ki Ghar Wapsi) सोनी लिव पर स्ट्रीम होने के बाद धीरे-धीरे मशहूर होने लगी है. इस वेब सीरीज को जो भी देखता है, उसे 'पंचायत' की याद आ जाती है. इसका फ्लेवर उसी वेब सीरीज के जैसा है, बस कहानी, किरदार और कलाकार अलग हैं. इसमें कॉमेडी और ड्रामे के बीच जिस तरह से महिला सशक्तिकरण, जनसंख्या नियंत्रण, अंधविश्वास, दहेज प्रथा और गांव की सियासत को जिस तरह से पेश किया गया है, वो काबिले-तारीफ है. सीरीज के अलग-अलग किरदारों में वैभव तत्ववादी, आकाश मखीजा, अलका अमीन, विनीत कुमार, पंकज झा, कुमार सौरभ, गरिमा सिंह और इशिता गांगुली जैसे कलाकारों ने बेहतरीन काम किया है.
सबसे ज्यादा प्रभावित अभिनेता वैभव तत्ववादी ने किया है, जिनको कई हिंदी और मराठी फिल्मों में देखा जा चुका है. इस सीरीज में वो निर्मल पाठक के किरदार में हैं. साल 2015 में रिलीज हुई रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' में उन्होंने मराठा 'चिमाजी अप्पा' का किरदार और साल 2019 में रिलीज हुई फिल्म 'मणिकर्णिका: झांसी की रानी' में 'पूरन सिंह' का किरदार निभाया था. उन्होंने निर्मल पाठक का किरदार बहुत सहजता से निभाया है. यही वजह है कि वो दर्शकों के साथ तुरंत जुड़ जाते हैं.
आइए उन वजहों के बारे में जानते हैं, जो कि इस सीरीज को मस्ट वॉच बनाती हैं...
1. प्रामाणिक कहानी
सोनी लिव की वेब सीरीज 'निर्मल पाठक की घर वापसी' अमेजन प्राइम वीडियो की लोकप्रिय वेब सीरीज 'पंचायत 3' से बेहतर लगती है. पहले सीन से ही निर्देशक द्वय राहुल पांडे और सतीश नायर की जोड़ी एक ऐसी दुनिया स्थापित करने में कामयाब होते हैं जो वास्तविक और जीवंत महसूस करती है. 24 साल तक शहरी जिंदगी जीने के बाद अपने घर लौटा बेटा जब परिवार वालों से तंग आकर वापस जाने को होता है तो मां कहती है, 'छोड़ के गईल आसान होला, रुक के बदले मुस्किल'. इसे सुनकर ऐसा लगता है जैसे कि पूरे देश के गांवों की माएं अपने बेटों से गांवों में रहने की विनती कर रही हैं. कह रही हैं, ''बेटो रुको, तुम्हारी जरूरत शहर में नहीं यहां गांव में है.'' फिल्म की कहानी राहुल पांडे ने लिखी है. मेरा हमेशा से मानना रहा है कि यदि किसी फिल्म या सीरीज का लेखक उसका निर्देशक होता है, तो वो बेहतर न्याय कर पाता है. क्योंकि वो कहानी का मर्म समझता है. इसलिए कहानी के हिसाब से पूरे सिनेमा का निर्देशन करता है. इस वेब सीरीज की कहानी पुख्ता तौर पर प्रमाणिक प्रतीत होती है. इसमें कल्पना से ज्यादा समाज को समझकर दर्शकों को समझाने की कोशिश की गई है. कल्पना के सहारे एक नई दुनिया बसा लेना आसान होता है, लेकिन असली दुनिया को पर्दे पर दिखा देना सबसे मुश्किल काम माना जाता है.
2. ग्रामीण भारत का वास्तविक चित्रण
'निर्मल पाठक की घर वापसी' वेब सीरीज में ग्रामीण भारत का वास्तविक चित्रण किया गया है. हमने पंचायत जैसी वेब सीरीज में गांव के इमोशन को समझा, लेकिन वहां की समस्याओं को समझने के लिए इस वेब सीरीज को देखना बहुत जरूरी है. लंबे समय के बाद गांव लौटा निर्मल परिवार और गांव के बीच रहते हुए नोटिस करता है कि समय के साथ यहां के लोग बदल नहीं पाए हैं. गांव में अभी भी जाति-पात, ऊंच-नीच और छुआछूत चरम पर है. नाली साफ करने वाले बुजुर्ग यदि किसी को छू भी दे तो वो अपना घर छोड़ देता है. घर पर काम करने वाले नौकरों को चीनी मिट्टी के बर्तन में बने कप में चाय दी जाती है, जबकि बाकी लोग स्टील की कप में चाय पीते हैं. शादी में आज भी दलितों के बच्चों को समारोह स्थल से दूर खाना खिलाया जाता है. निर्मल पाठक इन सभी सामाजिक व्यवस्थाओं और परंपराओं के खिलाफ खड़ा होता है, तो घर के लोग उसका विरोध शुरू कर देते हैं. उसकी आधुनिक सोच को घृणित बताया जाता है. लेकिन निर्मल हार नहीं मानता. इन समस्याओं से लड़ता है. एक नए समाज का निर्माण करता है.
3. किरदार और कलाकार
सिनेमा इंडस्ट्री में कहा जाता है कि किसी फिल्म या सीरीज में कलाकारों का चयन उनके किरदारों के हिसाब से हो जाए, तो समझिए आधी जंग जीती जा चुकी है. इस मामले 'निर्मल पाठक की घर वापसी' के मेकर्स ने बेहतरीन काम किया है. इसके किरदारों के हिसाब से कलाकारों का चयन गजब किया गया है. मसलन, मैंने निर्मल पाठक के किरदार में वैभव तत्ववादी को ट्रेलर में देखा तो मुझे लगा कि प्रभावी नहीं होगा. लेकिन वेब सीरीज को देखने के बाद समझ आया कि उनसे बेहतर इस किरदार कोई और नहीं कर सकता था. इसी तरह उनकी मां संतोषी के किरदार में अभिनेत्री अल्का अमीन से शानदार काम किया है. वो जिस तरह से भोजपुरी में बात करती हैं, आनंद आ जाता है. खासकर के भोजपुरी माटी से संबंध रखने वाले लोगों को तो बहुत मजा आएगा. ऐसा लगेगा कि मां का दर्शन हो रहा है. समंदर की लहरों जैसी इधऱ उधऱ भटकती कहानी के बहाव में अलका का किरदार लंगर का काम करता है. चाचा माखनलाल के किरदार में पंकज झा ने क्या खूब काम किया है. वैसे भी पंकज एक मझे हुए अभिनेता है. चरित्र किरदारों में भी उन्होंने हमेशा कुछ अलग करने की कोशिश की है. इनके अलावा आकाश मखीजा, विनीत कुमार, कुमार सौरभ, गरिमा सिंह और इशिता गांगुली ने भी अपने-अपने किरदारों में जबरदस्त प्रभाव छोड़ा है.
4. कॉमेडी का जबरदस्त डोज
कॉमेडी एक मेडिसिन की तरह है. इस तनाव भरी जिंदगी में हंसना और हंसाना बहुत जरूरी है. खुलकर ठहाके लगाने से शरीर में खून का बहाव तेज होता है. शरीर की सारी मांसपेशियां सक्रिय हो जाती हैं. इसलिए तो कहा जाता है कि हंसना एक योग है, जो मन, मस्तिष्क और शरीर को आराम देता है. गंभीर विषय वस्तु होने के बावजूद इस वेब सीरीज को बहुत ज्यादा ह्यूमरस रखा गया है. यही वजह है कि इसमें ह्यूमर, इमोशन और मनोरंजन का एक आदर्श मिश्रण पेश किया गया है. इसमें अच्छी तरह से संरचित पात्रों और दृश्यों के जरिए ऐसे हालत पैदा किए गए हैं, जिन्हें देखने के बाद आप पेट कर हंसने को मजबूर हो जाएंगे. एक धीर और गंभीर विषय पर आधारित किसी भी सिनेमा में निर्देशक के लिए ऐसा करना बहुत ही मुश्किल होता है, लेकिन राहुल पांडे और सतीश नायर ने ऐसा कर दिखाया है. वेब सीरीज के कलाकारों के साथ निर्देशक द्वय इसके लिए बधाई के पात्र हैं.
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