Pareeksha movie review: प्रकाश झा की फिल्म समाज की परीक्षा लेती है
प्रकाश झा (Prakash Jha) की फिल्म परीक्षा (Pareeksha movie review) Zee5 पर रिलीज हो गई है. यह फिल्म बेहद इमोशनल और सच्ची घटना पर आधारित है, जिससे आप जुड़ाव महसूस करेंगे. फिल्म का कैनवस जरूर सुपर थर्टी से मिलता जुलता है. लेकिन, इसकी कहानी बेहद रोचक है. जानें कैसी है फिल्म परीक्षा?
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कीचड़ में ही कमल खिलता है..., यह कहावत समाज की सच्चाई के साथ ही कीचड़ और कमल, दोनों की हकीकत बताती है कि अगर आपके अंदर काबिलियत है तो फिर आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता, चाहे जो भी हो. प्रकाश झा की फ़िल्म परीक्षा भी इसी सच्चाई के साथ समाज को सीख देती है और आपको सोचने पर मजबूर करती है कि एक गरीब घर का होनहार बेटा भी अच्छी शिक्षा का उतना ही हकदार होता है, जितना संपन्न घरों के बच्चे होते हैं. लेकिन पैसे की कमी, मजबूरी और सोशल स्टेटस उस गरीब बच्चे के उत्थान में रोड़ा डालते हैं. हालांकि, सच ये भी है कि रोशनी अंधेरों को चीर कर निकलती है और जग को रोशन करती है, ऐसे में उस गरीब छात्र के हित को सोचने वालों की भी कमी नहीं होती है. प्रकाश झा परीक्षा में अपनी फ़िल्म मेकिंग के पुराने अंदाज को जीते दिखते हैं, जिसमें उनकी कहानी को किसी बड़े स्टार की जरूरत नहीं पड़ती और लोग उनकी कहानी से प्रभावित होते हैं. आदिल हुसैन, प्रियंका बोस, संजय सूरी और शुभम झा जैसे कलाकारों से सजी फ़िल्म परीक्षा बेहद इमोशनल और दिल को छू लेने वाली है, जहां आप कलाकारों के परफॉर्मेंस के साथ ही कहानी की आत्मा से जुड़ते हैं और महसूस करते हैं कि लोग निचली जाति और छोटे काम करने वालों के साथ नीचता का व्यवहार क्यों करते हैं और उनके बच्चो को अच्छी शिक्षा से महरूम क्यों रखना चाहते हैं.
प्रकाश झा ने लंबे समय बाद एक ऐसी कहानी लिखी है, जो बेहद साधारण होते हुए भी काफी प्रभावी है. झारखंड के एक गरीब रिक्शा चालक परिवार को केंद्र में रखकर लिखी गई परीक्षा फ़िल्म को देखकर विकास बहल की ऋतिक रोशन स्टारर फिल्म सुपर 30 और इरफान खान की फिल्म हिंदी मीडियम की याद आती है, जिसमें सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार की कहानी दिखाई गई थी. आनंद कुमार के संघर्षों के साथ ही उनके अथक मेहनत का परिणाम जो भी हुआ, उसे आज दुनिया जानती है. लेकिन प्रकाश झा की फ़िल्म परीक्षा एक ऐसे पिता की कहानी है, जो किसी भी हालत में अपने बेटे को पढ़ाना चाहता है और इंग्लिश मीडियम स्कूल में दाखिला दिलाकर उसे समाज के बड़े तबके के बच्चों के बीच खड़ा करने के साथ ही गरीबी के दलदल से निकलना चाहता है. दरअसल, शिक्षा ही ऐसा जरिया है, जिससे आर्थिक स्थिति भी सुधर सकती है और समाज में पहचान भी बन सकती है. प्रकाश झा की फ़िल्म में एक आईपीएस की भी कहानी है, जो गरीब बच्चों को पढ़ाने स्लम एरिया में जाता है और उसके बाद कैसे उसे समाज के ऊंचे तबके के लोग परेशान करते हैं.
परीक्षा की कहानी ये है
प्रकाश झा की फ़िल्म परीक्षा की कहानी एक रिक्शा चालक बुच्ची पासवान से शुरू होती है, जो रांची शहर स्थित बहुजन बस्ती अंबेदकर नगर में अपनी पत्नी और बेटे के साथ रहता है. बुच्ची पासवान स्टूडेंट को रिक्शा से स्कूल छोड़ता है और कभी-कभी अमीर घरों बच्चों द्वारा छोड़ी गई किताब और बैग अपने बेटे बुलबुल कुमार को लाकर देता है. बुलबुल पढ़ने में काफी तेज होता है, लेकिन सरकारी स्कूल में उसके पास ज्यादा कुछ करने को होता नहीं है. बुच्ची की पत्नी एक बर्तन फैक्टरी में बर्तन घिसने का काम करती है. बुच्ची की जिंदगी में शराब और जुआ भी है, लेकिन उसकी दिली ख्वाहिश है कि उसका बच्चा किसी अच्छे स्कूल में पढ़े. इसी ख्वाहिश में वह गलत काम करने लगता है. एक दिन उसके हाथ एक पर्स लगता है, जिसमें उसे 80 हजार रुपये मिलते हैं. वह पैसा लौटाने की जगह अपने बेटे बुलबुल को रांची के प्रतिष्ठित सैफायर स्कूल में एडमिशन कराने के ख्वाब बुनता है और किसी तरह प्रिंसिपल के सामने विनती कर बुलबुल को एंट्रेस एग्जाम दिलवाने के लिए राजी कर लेता है. चूंकि बुलबुल पढ़ने में काफी तेज होता है, ऐसे में वह सारी बाधाएं पार करता जाता है और रजिस्ट्रार के इनकार के बावजूद उसका एडमिशन सैफायर में हो जाता है. यहां प्रकाश झा ने समाजिक मानसिकता को बेहद खूबसूरती से दिखाया है कि कैसे एक रिक्शा वाले के बेटे के अच्छे स्कूल में पढ़ने से बाकी अमीर लोग जलते हैं और स्कूल प्रशासन पर दबाव बनाते हैं कि ऐसा न हो.
Proud of the incredible team of #PareekshaOnZEE5. @_AdilHussain, @sanjaysuri, #ShubhamJha, @prakashjha27 and @PriyankaBose20 for delivering stellar performances. https://t.co/griOhmjlfU
— ZEE5Premium (@ZEE5Premium) August 6, 2020
रिक्शा चालक बुच्ची पासवान का बेटा बुलबुल स्कूल में तो एडमिशन ले लेता है, लेकिन उसकी स्कूल फीस जुटाने के चक्कर में कर्ज का बोझ बढ़ता है और मजबूरी में बुच्ची चोरी करने लगता है. उससे मिले पैसे से वह बुलबुल की स्कूल फीस चुकाता है और स्कूल प्रशासन को रिश्वत भी देता है कि उसके बेटे को परीक्षा में मदद की जाए. बुलबुल को रिश्वत की बात की भनक लगती है तो उसे बहुत बुरा लगता है. इस बीच बुच्ची का दिमाग भी बदलने लगता है, लेकिन मजबूरी में फिर वह चोरी के रास्ते पर चला जाता है और पकड़ा जाता है. थाने में जब पुलिसकर्मी उससे पूछताछ करते हैं तो वह इस डर से कुछ नहीं बोलता कि उसके बेटे की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी. इसके बाद इस फ़िल्म में आईपीएस बने संजय सूरी की एंट्री होती है, जो बुच्ची पासवान से पूछताछ करते हैं और बाद में उसकी कॉलोनी जाकर बुलबुल समेत कई गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं. इसके बाद मीडिया और नेता समेत सभी लोगों की निगाहें आईपीएस कैलाश आनंद पर जाती है और अमीर लोग उनपर उनके बच्चों को पढ़ाने का दबाव बनाते हैं, लेकिन कैलाश आनंद राजी नहीं होते. चूंकि बुलबुल का बोर्ड एग्जाम नजदीक होता है, इसलिए आईपीएस कैलाश उसे पढ़ाने के साथ ही प्रोत्साहित भी करते हैं. इस बीच बुच्ची पासवान की चोरी के बारे में सबको पता चल जाता है और उसकी काफी बदनामी होती है. बुलबुल को स्कूल से निकालने तक की बात होने लगती है. आखिर में बुलबुल क्या बोर्ड एग्जाम में बैठ पाता है, बुच्ची को कितनी सजा मिलती है और आईपीएस कैलाश के साथ क्या होता है, इन सारे सवालों का जवाब प्रकाश झा की फ़िल्म परीक्षा के अंत में मिल जाता है. प्रकाश झा ने बेहद सीमित कलाकारों को लेकर एक सधी हुई कहानी लिखी है, जिससे दर्शक जुड़ा महसूस करेंगे.
एक्टिंग और निर्देशन
आदिल हुसैन बुच्ची पासवान बनकर एक असहाय और मजबूर रिक्शा वाले की भूमिका के साथ न्याय करते हैं. आंखों में सपनों के साथ ही जब आंसू दिखते हैं तो उस समय आदिल हुसैन की अदाकारी देख दुनिया कहती है एक्टर हो तो ऐसा. वहीं प्रियंका बोस बुच्ची पासवान की पत्नी की भूमिका में सटीक लगती हैं. प्रियंका और आदिल, दोनों ही मंजे हुए कलाकार है और प्रकाश झा की उम्मीदों पर ये दोनों खड़े उतरे हैं. इस फ़िल्म में संजय सूरी आईपीएस कैलाश आनंद की भूमिका में बेहतरीन लगे हैं. संजय के हिस्से कुछ ही सीन्स आए हैं, लेकिन उन्होंने दिल जीत लिया है. इस फ़िल्म की सबसे खास बात है बुलबुल. बुलबुल के किरदार में चाइल्ड आर्टिस्ट शुभम झा की जितनी तारीफ की जाए, वह कम है. एक गरीब और होनहार स्टूडेंट के रूप में इमोशन और एक्सप्रेशन के मामले में शुभम झा का अभिनय आपके दिल को टच करेगा. प्रकाश झा के निर्देशन के बारे में दुनिया जानती है कि वह हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री के उन चंद निर्देशकों में हैं, जो अपनी फिल्मों में जादू करते हैं और उस जादू के साये में दर्शक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं. परीक्षा फ़िल्म प्रकाश झा के लिए बेहद खास है, क्योंकि इस फ़िल्म की स्टोरी उनके जेहन में बचपन से रची बसी हुई थी. परीक्षा फ़िल्म में जब बुलबुल का दाखिला सैफायर स्कूल में होता है तो उसकी कॉलोनी के लोग खुशी में बैंड बजवाते हैं कि झुग्गी से निकलकर एक बच्चा शहर के सबसे प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ने जा रहा है. इस सीन में प्रकाश झा का निर्देशन दिखता है कि वह छोटी-छोटी बारीरियों से कैसे अपनी फ़िल्म को खास और लोगों की पसंद का बनाते हैं. प्रकाश झा परीक्षा फ़िल्म की परीक्षा में अव्वल आए हैं और इसके लिए दर्शक उन्हें शुक्रिया से नवाजेंगे.
परीक्षा देखने लायक है
परीक्षा सच्ची घटना से प्रेरित कहानी है, जिसमें गरीब-अमीर के बीच की खाई भी दिखाई गई है और एक पिता के संघर्ष को दिखाया गया है कि कैसे वह अपने बेटे को पढ़ाने के लिए गलत काम करने से भी खुद को नहीं रोक पाता और पाई-पाई जोड़कर बच्चे को इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाना चाहता है. इसके साथ ही परीक्षा में नेताओं और पुलिस अधिकारियों के बीच द्वंद को भी प्रकाश झा ने दिखाने की कोशिश की है. परीक्षा एक अच्छी और सच्ची फ़िल्म है, जिसमें एक खूबसूरत इमोशन है, जिससे आप जुड़ेंगे. बाकी प्रकाश झा जब इस तरह की फिल्म बनाते हैं तो आपको बेहतर अंदाजा हो जाता है कि इसकी कहानी कुछ खास होगी. सुपर 30 के बाद बिहार-झारखंड की शिक्षा व्यवस्था की दशा बताती एक अच्छी और देखने लायक फ़िल्म है- परीक्षा.
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