'पीहू' की कहानी इन तीन बच्चों की तरह सच्ची है
विनोद कापड़ी की फिल्म 'पीहू' माता-पिता के किसी बुरे या यूं कहें भयावह सपने जैसी है. लेकिन सच्ची है. इस फिल्म का ट्रेलर ही रोंगटे खड़े कर देता है. लेकिन दुनिया में तीन बच्चों की कहानी पीहू की ही तरह रही है. किसी का अंत संतोषजनक है तो किसी का दुखद.
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घर में अकेली बच्ची की सच्ची कहानी पर बनी फिल्म पीहू 16 नवंबर सिनेमा हॉल में रिलीज हो जाएगी. इस फिल्म का ट्रेलर बुधवार को रिलीज हुआ तो देखने वालों के रोंगटे खड़े हो गए. क्योंकि, कहने को यह बच्ची घर में अकेली है लेकिन उसके साथ ही बेडरूम में उसकी मां की लाश भी है. डायरेक्टर विनोद कापड़ी ने इस बच्ची की जिंदा रहने की जद्दोजहद को दो मिनट 6 सेकंड के ट्रेलर में बखूबी पेश किया गया. यह कहानी सिर्फ पीहू की नहीं है. अतीत के पन्नों को पलटकर देखें तो पिछले कुछ वर्षों के दौरान अलग-अलग जगहों से ऐसे तीन बच्चों की कहानी हमारे सामने आती है. जो अपनी मृत मां के साथ फ्लैट में फंस गए. इन तीन बच्चों में दो खुशनसीब थे, जिन्हें अंतत: बचा लिया गया.
फिल्म पीहू का एक दृश्य
पीहू की कहानी: बच्चे जिज्ञासू होते हैं और अपने आप ही हर चीज करने की कोशिश करते हैं और वो पीहू के साथ भी हो रहा है. चाहें उसका अकेले फ्रिज में बंद हो जाना हो, दूध पीने की कोशिश करना हो. या फिर अपनी गुड़िया लेने के लिए मेहनत करना. या फिर किचन में गैस पर खाना बनाने की कोशिश करना हो. जिंदा रहने की इस कश्मकश के बीच पीहू बेडरूम में पड़ी अपनी मां की लाश से भी बात कर रही है. उसे उठाने की कोशिश कर रही है. ट्रेलर एक ऐसे सीन पर खत्म होता है, जिसके आगे यह सस्पेंस है कि यह दो साल की बच्ची जिंदा रह पाएगी या नहीं.
ये कहानी देखने में बहुत ही ज्यादा डरावनी लग सकती है, लेकिन ऐसा नहीं कि ये सिर्फ फिल्म हो या ऐसा कुछ कभी असल जिंदगी में न हुआ ही न हो. अलग-अलग जगहों पर हुए तीन हादसे पीहू की कहानी से मिलते-जुलते हैं :
मार्च, 2013 : मां को जीवित करने के लिए बॉडी लोशन लगाता रहा बच्चा
न्यू जर्सी में 4 साल का बच्चा दो हफ्ते तक अपनी मां की लाश के साथ रहा. इस दौरान उसने मिकी माउस के वीडियो भी देखे. घर में बचा खाना खाया. उसे लगा कि उसकी मां गहरी नींद से उठ नहीं रही है, और उसका शरीर ठंडा हो रहा है, तो उसने मां के शरीर पर बॉडी लोशन भी लगाया. चूंकि, घर का दरवाजा चेन लॉक्ड था, तो वह उसे खोल नहीं पाया. लेकिन उसने उसे कई बार खोलने की कोशिश की. जब घर का खाना खत्म हो गया, तो बच्चे ने शक्कर का बैग लेकर उसे खाना शुरू किया. उसकी मां किआना वर्कमैन पहले से ही बीमार रहती थीं और इसके बाद ही एक दिन उनकी मौत हो गई थी. किआना सिंगल मॉम थीं. साढ़े चार साल के बच्चे को जब बचाया गया, तो उसका वजन 26 पाउंड था. उसके शरीर पर नाममात्र ही मांस बचा था. उसे बचाने वाले पुलिसकर्मियों का कहना था कि वह बच्चा दूसरे विश्वयुद्ध में नाजी यातना केंद्रों से बचाए गए लोगों की तरह दिख रहा था. जिसका शरीर हड्डी का ढांचा ही रह गया था. वह इतना कमजोर हो गया था कि फ्रिज खोल पा रहा था.
उसने अपनी मां के शरीर को गर्मी देने के लिए घर के हीटर को बहुत तेज तापमान पर चला रखा था. शायद यही कारण रहा कि उसकी मां की लाश जल्दी सड़ने लगी थी और बच्चा जल्दी डीहाइड्रेटेड हो गया.
जून, 2015: मृत मां की मदद के लिए लेटरबॉक्स होल से बुलाई मदद
ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में तीन साल का मेसन मार्टिन अपने घर में मां के साथ था. उसी वक्त मां को अस्थमा अटैक पड़ा और उसकी मौत हो गई. बच्चा दो दिन तक घर में मां की लाश के साथ रहा. मेसन ने मां को उठाने की बहुत कोशिश की और उसके पास मदद भी तब पहुंच पाई जब उसने घर के दरवाजे में बने लेटर होल से चिल्ला कर मदद बुलाई. मदद पाने के लिए भी वो छोटा बच्चा यही कह रहा था कि मेरी मम्मी को उठाने में मदद करो.
मेसन और उसकी मां लिंडा
जब मेसन के पास मदद पहुंची तब तक वो बुरी तरह से डिहाइड्रेट हो चुका था. उसे स्किन रैश हो गए थे. अगर एक दिन भी और हो जाता तो हालत बहुत बदतर हो जाती. ये तो अच्छा हुआ कि कम से कम मेसन की जान बच गई.
जून, 2017: मां की लाश से चिपकी मिली बच्चे की लाश
चार साल के चैड्रक की कहानी दिल दहला देने वाली है. ईस्ट लंदन के हेकनी में यह बच्चा भी अपनी सिंगल मॉम के साथ रहता था. इस छोटी उम्र में उसे पता भी नहीं था कि मौत क्या होती है. एक दिन उसकी मां अचानक ही गिर पड़ी और फिर उठी नहीं. चैड्रक की मां एस्थर इकेती मूलो की मौत अचानक एक दौरा पड़ने से हो गई थी.
चार साल का चैड्रक और उसकी मां एस्थर
नन्हा चैड्रक ऑटिस्टिक था और उसे सीखने में दिक्कत होती थी इसलिए मां के जाने के बाद खुद को बचाने या खाने-पीने की कोशिश भी नहीं कर पाया. उसके घर पर पुलिस उसकी मौत के चार दिन बाद पहुंची थी. और उसकी मां की मौत उसके मरने से दो हफ्ते पहले हो गई थी. जिस समय पुलिस उनके घर पहुंची तब तक मां की लाश काफी सड़ चुकी थी और बच्चे की लाश मां से चिपकी हुई मिली. उस दृश्य के बारे में कल्पना करके भी बेहद डर लगता है कि आखिर कैसे उस बच्चे ने अपने अंतिम दो हफ्ते काटे होंगे.
ये तीनों कहानियां ऐसे परिवारों की हैं, जहां फ्लैट में सिंगल मां अपने छोटे से बच्चे के साथ अकेली रहा करती थीं. और जैसा कि हर शहर में होता है, खासकर फ्लैट कल्चर वाली सोसायटी में. पड़ौसी एक-दूसरे के घर से ज्यादा वास्ता नहीं रखते. ऐसे में यदि किसी घर में कोई हादसा हो जाए, तो खुदा ही खैर करे. पीहू की कहानी में भी दो ही किरदार दिखाई दे रहे हैं. एक बिस्तर पर मृत पड़ी मां और दूसरे उसके आसपास जिंदगी की जद्दोजहद करती नन्हीं पीहू. पीहू फिल्म हिट होती है या नहीं, ये फिल्म देखने वाले जानें. लेकिन इस ट्रेलर को देखकर समाज को जागृत होना चाहिए, एक ऐसे परिवेश को लेकर जहां किसी छोटे बच्चे के सामने पीहू होने की चुनौती पैदा न हो.
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