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Updated: 23 मई, 2017 05:30 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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बाहुबली-2 भले ही थिएटर में लगी है. लेकिन लोगों को जो पसंद आया वो आज सोशल मीडिया पर वायरल है. फिल्म के ऐसे कई सीन हैं जो लोगों ने फेसबुक और वाट्सएप्प के जरिए लोगों तक पहुंचाए. पर सोचने वाली बात ये थी कि ऐसा क्या खास था इन सीन में कि वो लोगों को इतने पसंद आए.

1. वह सीन जिसे सोशलमीडिया पर सबसे ज्यादा शेयर किया गया-

सेनापति की उंगलियां काटने के बाद जब देवसेना को बंदी बनाकर राजमहल लाया जाता है और सुनवाई होने पर देवसेना बताती है कि उसने ऐसा क्यों किया. ये सीन सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा शेयर किया जाने वाला सीन बना.

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अब जानिए इसे सबसे ज्यादा शेयर करने की वजह-

'गलत किया देवसेना औरत पर हाथ डालने वाले की उंगलियां नहीं काटते, काटते हैं उसका गला'. ये डायलॉग और बाहुबली का सेनापति का गला काट डालना, वो दृश्य था जिसे न सिर्फ महिलाओं बल्कि पुरुषों ने भी बहुत पसंद किया. कारण बहुत सामान्य था. एक महिला जो खुद की रक्षा के लिए हथियार उठाती है और दोषी ठहराई जाती है, ऐसे समाज में उसके कृत्य को जिसने सही ठहराया और उसका समर्थन किया वो कोई और नहीं, एक पुरुष था. वो बाहुबली ही हो सकता है जो ये कह सकता था कि महिलाओं की इज्जत पर अगर कोई हाथ डाले तो सजा मृत्यु से कम नहीं होनी चाहिए. महिला शक्ति और उसपर पुरुष की सहमति, इन दोनों ही बातों नें एक डेडली कॉम्बिनेशन की तरह काम किया, जिसकी वजह ये रही कि इसे सबसे ज्यादा सराहना मिली.   

यानी महिलाएं कितनी भी मजबूत क्यों न हों, उन्हें पूर्ण रूप से सम्मान तब तक नहीं मिलता जब तक पुरुष उनके साथ न हों. हम ये नहीं कहते कि पुरुषों के बिना महिलाओं का कोई अस्तित्व नहीं, आज महिलाएं खुद को साबित कर रही हैं. लेकिन अगर पुरुषों का समर्थन उन्हें मिले तो वो किसी भी रूप में कमजोर नहीं कहलाई जाएंगी.  

2. दूसरा सबसे ज्यादा शेयर किया जाने वाला सीन भी इसी घटना से जुड़ा था. 

ये वो सीन है जिसमें सेनापति महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार करता है और देवसेना उसकी उंगलियां काट देती है.

वो एक बात जिसे समझाने के लिए एक डायरेक्टर ने 'पिंक' जैसी पूरी फिल्म बना दी, वही बात चंद मिनट के इस एक सीन में समझा दी गई, कि महिलाओं को खुद पर हो रहे अन्याय और शोषण के खिलाफ न सिर्फ आवाज़ उठानी चाहिए बल्कि हाथ भी उठाने से पीछे नहीं हटना चाहिए. इसमें कोई शक नहीं कि सेनापति की उंगलियां काटने वाले इस सीन को देखखर महिलाओं ने तालियां न बजाईं हों. बल्कि देवसेना के ये तेवर महिलाओं के सीने में भी आग भर गए थे.

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जिस तीव्रता से देवसेना ने आगे का न सोचते हुए भी सेनापति पर प्रहार किया, वो देखा जाए तो ये एक सामान्य दृश्य था. महिलाओं पर शोषण और अत्याचार पर प्रतिक्रिया देने वाले ऐसे कई दृश्य फिल्मों में पहले भी देखे जा चुके हैं. और फिल्म ही क्यों, आम जीवन में भी आप महिलाओं को प्रतिक्रियाएं देते अब देखते ही हैं. इसलिए ये सामान्य ही था. इसे पसंद तो बहुत किया गया लेकिन शेयरिंग के मामले में ये दूसरे नंबर पर ही रहा. वजह थी कि इसमें एक महिला के आक्रामक तेवर तो दिखे, लेकिन उसमें पुरुष की सहमति मिसिंग थी, उसमें महिला के गौरव और अस्मिता की रक्षा करने वाला बाहुबली नहीं था. 

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बाहुबली फिल्म में ऐसे कई सीन हैं जो महिलाओं को उनकी शक्ति का अहसास जरूर करवाते हैं. बल्कि देवसेना और शिवगामी तो खुद महिला शक्ति की भावना को पुख्ता करते हैं. देवसेना के लगभग 80 प्रतिशत सीन्स में तो वो महिला अस्मिता का प्रतिनिधित्व करती दिखाई देती हैं. और इसीलिए ये सीन दर्शकों को सबसे ज्यादा पसंद आए.

नजर डालते हैं फिल्म के ऐसे ही पॉवरफुल सीन्स पर-

3. 'मेरा वचन ही है शासन'-

कहने को महज एक डॉयलॉग, पर समझो तो शक्ति के पांच शब्द. इस तेवर की शुरुआत होती है बाहुबली-1 में, जब शिवगामी बच्चे को अपनी गोद में लेकर राज दरबार में प्रवेश करती है. उस वक्त दर्शकों के सामने एक कमजोर स्त्री नहीं बल्कि एक एसी महिला खड़ी थी जो न सिर्फ एक मां थी बल्कि एक शक्तिशाली महिला भी, जिसने वक्त आने पर सूझबूझ से अपने राज्य को संभाला.

shivagami-650_051917032727.jpgसबसेे सशक्त महिला के रूप में थीं शिवगामी

वो एक हाथ में बच्चा और दूसरे हाथ में कटार थामने का भी साहस रखती है. और उसका गर्व से कहना 'ये मेरा वचन है. मेरा वचन ही है शासन'. शिवगामी जैसे शक्तिशाली किरदार हर महिला को अंदर तक झकझोर देते हैं.

4. देवसेना नाजुक नहीं थी-

हमारी फिल्मों में अब तक यही दिखाया गया कि कैसे हिरोइन को रास्ते में गुंडे परेशान करते हैं और कैसे उसे बचाने के लिए हीरो की एंट्री होती है. मतलब महिलाओं को हमेशा से फिल्मों और समाज में नाजुक और दूसरों पर आश्रित ही दिखाया गया है. पर फिल्म में देवसेना ने आते ही सिर्फ सौंदर्य नहीं अपनी हिम्मत का लोहा मनवाया. भला क्यों हमारे समाज में भी महिलाएं खुद की मदद के लिए दूसरों का रस्ता देखें?

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5. कुंतल राज्य की राजकुमारी के अलावा भी कुछ थी देवसेना-

फिल्म में देवसेना ने दर्शकों के दिलों में जगह अपनी खूबसूरती नहीं बल्कि अपने दमदार तेवरों की बदौलत पाई. भले ही वो एक खूबसूरत राजकुमारी थीं, लेकिन वो नाजुक नहीं थी.

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उसके भाई उसे शस्त्र चलाने के लिए प्रेरित करते दिखे, वहीं वो खुद भी नारी की कमजोर छवि को मिटाती हुई दिखाई दी. वो न खुद कमजोर थी और न कमजोर पुरुष उसे पसंद थे.    

6. चकाचौंध में यकीन नहीं करती देवसेना-

निश्चित ही महिलाओं को प्रसन्न कर उनकी हां सुनने के लिए हमारा समाज सिर्फ धन दौलत का प्रदर्शन और उपहारों की बरसात करता है. लेकिन आज की समझदार नारी सांसारिक चकाचौंध से नहीं बल्कि काबीलियत पर मोहित होती है. देवसेना कहती है 'ऐसे उपहारों के लिए आप जैसे लोग पूंछ हिलाते होंगे, मेरे लिए ये पैर की धूल भी नहीं'. यही तेवर महिलाओं को रखने चाहिए.

devsena, bahubali-2उपहारों पर मोहित नहीं होती आज की नारी

7. आत्म सम्मान सर्वोपरी-

महिलाओं के जीवन में आत्म सम्मान का न होना उनकी दयनीय स्थिति की तरफ इशारा करता है. हमारा समााज तो इस बात का आईना है. लेकिन फिल्म में देवसेना ने एक महिला होते हुए भी अपने आत्मसम्मान को सर्वोपरी रखा और स्वाभिमान हारके बंदी बनकर जाने से मना कर दिया. 

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बाहुबली ने भी देवसेना के आत्म सम्मान से प्रभावित होकर वचन दिया कि वो उसके गौरव और मर्यादा पर किसी भी परिस्थिति में आंच नहीं आने देगा. और यही वचन बाहुबली की कहानी का आधार बना.

8. शादी के लिए महिलाओं की पसंद भी जरूरी है-

हमारा समाज बेटियों के लिए लड़का ढ़ूंढता है और ज्यादातर मामलों में तो बेटियों की पसंद-नापसंद को अहमियत ही नहीं दी जाती. आज भी कहींकहीं ऐसा है कि लड़कियां शादी के बाद ही अपने पति का चेहरा देख पाती हैं. ऐसे में देवसेना बेहद मजबूत चरित्र के रूप में सामने आती है और राजमहल में विरोध दर्ज कराती है कि उसकी सहमति के बिना उसका विवाह तय किया जाना सरासर गलत है.

devsena, bahubali-2अपने लिए वर चुनने का अधिकार हो

जिस कड़ाई के साथ देवसेना ने अपना बात राजमहल में की उतनी ही कड़ाई के साथ ये संदेश भी दिया कि हर स्त्री को अपने लिए वर चुनने का अधिकार उसका ही होना चाहिए.

9. अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना-

परिवारों में महिलाएं अक्सर आर्थिक मामलों में चुप ही रहा करती हैं. परिवार के बड़े उनके सामने न ये बातें करते हैं और न इन मामलों पर उनकी राय मांगी जाती है. लेकिन यहां भी देवसेना एक शिक्षा देती दिखाई देती हैं कि अगर अन्याय हो तो आवाज उठाना चाहिए.

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देवसेना की गोदभराई पर जब सेनापति पद की जिम्मेदारी बाहुबली से छीन ली जाती है तब भी देवसेना ने इस घटना पर विरोध दर्ज कराया.

इस फिल्म के ये सभी दृश्य महिलाओं और उनके आत्मसम्मान से जुड़े थे. फिल्म को देखकर रोमांचित होना अलग बात है लेकिन इस फिल्म को देखकर नई ऊर्जा का संचार होना अलग. और निश्चित ही ये सभी दृश्य अपने आप में एक-एक फिल्म थे. फिल्म के शानदार स्पेशल इफैक्ट्स, दमदार डायलॉग और बेहतरीन स्क्रीनप्ले सिर्फ एक महान फिल्म की कहानी नहीं कहते, बल्कि ये फिल्म तो महिला सशक्तिकरण की एक गाथा है. महिला किरदारों ने जिस जोश और तेवर के साथ दिल को छू लेने वाली बातें कहीं, वो महिलाओं के मन-मस्तिष्क में लंबे समय तक बसी रहेंगी.

जय महिष्मति !!

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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