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Updated: 12 जून, 2022 11:14 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में ऑनलाइन गेम के चक्कर में हुए एक खौफनाक वारदात ने पूरे देश को झकझोर दिया है. यहां एक 16 साल के नाबालिग लड़के ने पबजी खेलने से मना करने पर अपनी मां की गोली मारकर हत्या कर दी है. इसके बाद तीन दिनों तक मां की लाश के साथ अपनी बहन को लेकर घर के अंदर बंद रहा. इस दौरान ऑनलाइन ऑर्डर करके खाना मंगाया. दोस्तों को घर बुलाकर गेम खेलता रहा. जब मां की लाश सड़ने लगी, तब जाकर पिता को फोन करके मामले की जानकारी दी. इस तरह जब इस भयावह घटना का खुलासा हुआ, तो हर कोई सन्न रह गया. पुलिस के भी पैरों तले जमीन खिसक गई. आखिर कोई मासूम बच्चा इतना क्रूर कैसे हो सकता है? क्या वजह है कि पबजी जैसे गेम खेलने वाले बच्चे अक्सर हिंसक हो जाते हैं? गेम खेलने से मना करने वाले लोगों को ही अपना दुश्मन समझ बैठते हैं? लखनऊ की ये घटना हम सबके लिए सबक है.

untitled-1-650_061122081123.jpgलखनऊ में दिल झकझोर देने वाली वारदात ऑनलाइन गेम्स के बारे में नए सिरे से सोचने पर विवश करती है.

आजकल बच्चे पैदा होते हुए मोबाइल फ्रेंडली हो जाते हैं. मां-बाप भी कई बार अपनी जिम्मेदारियों के बोझ तले इस कदर दबे होते हैं कि उनको अपने बच्चे के अंदर पनप रही ऐसी किसी बुरी आदत का ख्याल नहीं रह पाता. यदि मां-बाप दोनों कामकाजी हैं, तो खतरा और भी ज्यादा है. बच्चे को मनाने से लेकर खिलाने तक मोबाइल का सहारा लिया जाता है. धीरे-धीरे बच्चों को मोबाइल की लत लग जाती है. मोबाइल पर ''नानी तेरी मोरनी को मोर ले गया'' जैसी राइम्स सुनने वाला बच्चा उम्र के साथ पबजी जैसे ऑनलाइन गेम्स की गिरफ्त में आ जाता है. फिर यहां से शुरू होता है बच्चों के दिमाग पर कब्जे का खेल. इस खेल के बहाने उनके दिमाग के साथ ऐसा 'खेल' होता है कि परिवार को भनक भी नहीं लगती है और बच्चे के साथ 'खेल' हो जाता है. इस लत की वजह से बच्चा बीमार हो जाता है. डब्ल्यूएचओ ने इस बीमारी को गेमिंग डिसऑर्डर के रूप में क्लासिफाई किया है.

ऑनलाइन गेम्स बच्चों के दिमाग पर किस तरह से असर डाल रहे हैं? किन परिस्थितियों में इस तरह के एडिक्शन होते हैं? कैसे पता चलेगा कि बच्चे को एडिक्शन हो गया है? लक्षण क्या-क्या हो सकते हैं? यदि कोई एडिक्ट हो गया तो इलाज कैसे होगा? इन सवालों के जवाब में मेदांता अस्पताल में कार्यरत वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. शांतनु गुप्ता का कहना है कि पबजी जैसे ऑनलाइन गेम नशे की लत की तरह होते हैं. इसके शिकार लोग बहुत मुश्किल से अपनी आदत सुधार पाते हैं. बच्चों के विकास में तो ये एक बहुत बड़ी बाधा है. यदि माता-पिता सही समय में अपने बच्चों की आदतों को देखते हुए इसके लक्षण को पहचान गए, तो इसका इलाज संभव है. इसके लिए जरूरी है कि बच्चे की दिनचर्या पर ध्यान रखा जाए. उसके व्यवहार और आदत में यदि किसी तरह का बदलाव आ रहा हो, तो उसका विश्लेषण किया जाए. यदि बच्चा हर वक्त हाथ में मोबाइल लिए दिखे, तो समझ जाइए कि वो गेम्स की गिरफ्त में है. यदि ऐसा है तो उसका स्वभाव भी आक्रामक नजर आने लगेगा. यदि आप उसे गेम छोड़ने की बात कहेंगे तो वो आप पर अपना गुस्सा निकालेगा. चिल्लाने लगेगा. बच्चा छोटा है तो रोएगा. कई बार इस लत के शिकार बच्चे अपनी दुनिया में मस्त रहते हैं. उनके लिए बाहर की दुनिया का कोई मतलब नहीं होता है. वो गेम की दुनिया को ही अपनी दुनिया समझने लगते हैं. उसमें दिखाए गए हथियारों को चलाने के लिए प्रेरित होते हैं. यदि उनके हाथ में गलती से भी हथियार आ जाए तो उसका ट्रिगर दबा देंगे.

अब यहां बड़ा सवाल ये है कि यदि बच्चा ऑनलाइन गेम की लत का शिकार हो जाए, तो उस कैसे उससे बाहर निकाला जाए. इसके लिए सबसे पहला काम ये करना चाहिए कि अधिक से अधिक वक्त अपने बच्चों के साथ बिताना चाहिए. यदि बच्चा किशोरावस्था में है तो उससे उसके स्कूल, दोस्त आदि के बारे में बात कर सकते हैं. किसी विषय पर चर्चा करके उसका दिमाग उस ओर आकर्षित कर सकते हैं. यदि बच्चा छोटा है तो उसके साथ खेल सकते हैं. उसको नए नए फिजिकल गेम सिखा कर उसका मन बहला सकते हैं. कई बार बच्चों की हालत ज्यादा बिगड़ जाती है. उनको घर पर कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है. ऐसी स्थिति में बच्चों को तुरंत किसी अच्छे चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए. उनकी मदद से बच्चों की आदत में धीरे-धीरे सुधार लाया जा सकता है. अंतिम लेकिन सबस महत्वपूर्ण बात ये है कि हर बच्चे के लिए उसके मां-बाप रोल मॉडल बन सकते हैं. अपने अंदर बदलाव लाकर बच्चों को प्रेरित किया जा सकता है. इस वक्त मोबाइल की वजह से बड़ी संख्या में बच्चे मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं. इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए.

भारत में ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री तेजी से ग्रोथ कर रही है. इसे पिछले साल कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन का फायदा भी मिला है. साल 2019 के दौरान ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री ने 40 फीसदी की दर से ग्रोथ किया है. इसका सालाना राजस्व 6500 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है. साल 2022 के आखिर तक इसके करीब तीन गुना बढ़ कर 18700 करोड़ हो जाने की उम्मीद है. ऑनलाइन गेम्स खेलने वालों की संख्या साल 2010 में मात्र ढाई करोड़ थी, जो अब 14 गुना बढ़ कर 36 करोड़ से अधिक हो गई है. इस ग्रोथ रेट को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोगों के बीच ऑनलाइन गेम्स का क्रेज किस कदर है. इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक, भारत में 40 फीसदी हार्डकोर गेमर्स हर महीने औसतन 230 रुपये का भुगतान कर रहे हैं. इसके अलावा गेमिंग से जुड़े मोबाइल एप डाउनलोड में 50 फीसदी की वृद्धि हुई है. यूजर इंगेजमेंट भी 20 फीसदी बढ़ा है.

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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