अरसे बाद 'क़रीब क़रीब सिंगल' बेहतरीन मूवी देखने को मिली है
फिल्म की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि यह हंसते-हसते फिल्म ज़िंदगी का पूरा फ़लसफ़ा समझा देती है. इंटरवल के बाद गति थोड़ी धीमी जरूर होती है.
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इस हफ़्ते रिलीज़ हुई इरफान खान की फिल्म 'क़रीब क़रीब सिंगिल' (Qarib Qarib Singlle) क्यों देखें ये फिल्म?
1) अगर आप इरफान खान की अदायगी के चाहनेवाले हैं तो इस फिल्म को ज़रूर देखिये.
2) "हिंदी मीडियम" की सफलता के बाद इरफ़ान एक बार फिर ज़िंदगी से जुड़ी बातें हलके फुल्के अंदाज में कहते नज़र आयेंगे.
3) मलयालम सिनेमा की अभिनेत्री पार्वती और इरफान की अनोखी जोड़ी.
4) एक अरसे के बाद तनूजा चंद्रा का निर्देशन.
हमेशा की तरफ फिल्म में इरफान ने बहुत ही सधा हुआ अभिनय किया है
"करीब करीब सिंगल" कहानी है पार्वती और इरफान की, जिनके सोचने का तरीक़ा एक दूसरे से एकदम जुदा है. पार्वती एक इंडिपेंडेन्ट महिला है जिसके पति का देहांत 10 साल पहले हो चुका है. वह ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जीती है लेकिन दिल की बात ज़ुबान पर नहीं आने देती. फिर एक दिन ऑनलाइन डेटिंग के ज़रिये उसकी मुलाक़ात होती है इरफान से. जो शायर है, हरफनमौला है. जो दिल में है, वही उसकी ज़ुबां पर. मिलने का सिलसिला शुरू होता है.
जहाँ पार्वती अपने अतीत के बारे में कुछ नहीं बताती, वहीं इरफान अपनी तीन प्रेमिकाओं का ज़िक्र करते हुए ये बताता है कि उसे यक़ीन है आज भी उसकी पुरानी गर्लफ़्रेंड्स उसे याद करती होंगी. और फिर पार्वती निकल पड़ती है इरफान के साथ उन शहरों में जहाँ ये लड़कियाँ रहती हैं. ये जानने के लिये कि इरफान की बात में कितना दम है.
हँसी मजाक में जो सफ़र शुरू होता है उसमें दो अजनबी एक दूसरे को जानने की कोशिश करते हैं. और यह भी कि क्या दोनों अपने अतीत को पीछे छोड़ साथ-साथ ज़िंदगी के सफ़र पर चल पायेंगे या नहीं. कामना चंद्रा की कहानी दिलचस्प है और तनूजा चंद्रा और ग़ज़ल धालीवाल का स्क्रीनप्ले बेहद मज़बूत है. ख़ासकर इंटरवल तक तो फिल्म सोचने का मौक़ा ही नहीं देती. दो कलाकार पूरी फिल्म को बाँधकर रखते हैं. जिस तरह से इरफान और पार्वती मिलते हैं फिर अलग अलग शहरों में उनका जाना, टैक्सी, ट्रेन और प्लेन में उनका सफ़र कहानी को और रोचक बनाता है.
फिल्म में निर्देशक तनूजा चंद्रा का निर्देशन भी कमाल का है
फिल्म की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि यह हंसते-हसते फिल्म ज़िंदगी का पूरा फ़लसफ़ा समझा देती है. इंटरवल के बाद गति थोड़ी धीमी जरूर होती है. एक अच्छा सीन, जिसमें नींद की गोली खाकर पार्वती जब इरफान को उसकी एक्स गर्लफ़्रेंड के सामने शर्मिंदा करती है, बाद में बहुत लंबा महसूस होता है. कुछ छुटपुट ख़ामियों को आसानी से नज़रअंदाज किया जा सकता है.
मगर उसके बावजूद फिल्म देखने लायक है. गजल धालीवाल के डायलॉग्स फिल्म की सबसे मज़बूत कड़ी हैं. इशित नारायण की सिनेमेटोग्राफी बेहद सच्ची है. और प्रोडक्शन डिज़ाइनर रवि श्रीवास्तव ने 'करीब करीब सिंगल' की दुनिया को बेहद इमानदारी से बनाया है.
अब बात एक्टिंग की. फिल्म पूरी तरह से पार्वती और इरफान की है और दोनों ने ही लाजवाब अभिनय किया है. साउथ इंडियन स्टाइल में पार्वती का हिंदी लहजा किरदार को रीयल बनाता है और इरफान के साथ उनकी जोड़ी ग़ज़ब है. दोनों ही कलाकारों की कॉमिक टाइमिंग भी बहुत ख़ूब है. इंटरवल के बाद ऐसे कई मौके आते हैं जहाँ कलाकार स्क्रिप्ट को अभिनय के ज़रिये संभालते हैं. कुलमिलाकर करीब करीब सिंगिल एक बेहतरीन फिल्म है, हिंदी मीडियम के बाद एक बार फिर इरफान फुलफॉर्म में हैं.
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