राजकुमार राव का एक्टिंग लेवल समझने के लिए किसी किताब से कम नहीं हैं ये 5 फ़िल्में!
राजकुमार राव (Rajkumar Rao) बॉलीवुड के समकालीन एक्टर्स में इकलौते हैं जिन्होंने अब तक ना जाने कितनी विविधतापूर्ण किरदार निभाए हैं. उनके कई फ़िल्में तो बेजोड़ हैं.
-
Total Shares
राजकुमार राव सेल्फ मेड एक्टर हैं. एक ऐसे एक्टर जिन्होंने छोटी-छोटी भूमिकाएं करते हुए अपना सफ़र शुरू किया और अभी भी उन्हें बड़ी मंजिल की ओर बढ़ते देखा जा सकता है. बॉलीवुड का इकलौता एक्टर जिसकी चमक 'क्लास' और 'मास' दोनों तरह के सिनेमा में बराबर है. सिर्फ राजकुमार ही नजर आते हैं जो किसी शुद्ध मसालेदार फिल्म के साथ ऑफ़बीट फिल्मों को करने में संकोच नहीं करते. बाकी नाम बड़े जरूर हैं, मगर क्लास और मास में सामान रूप से कामयाब नहीं हैं. राजकुमार राव के साथ बॉलीवुड में यह संयोग दुर्लभ नजर आता है.
29 अक्टूबर को डिजनी प्लस हॉट स्टार पर राजकुमार राव की मास कैटेगरी में "हम दो हमारे दो" आ रही है. यह कॉमेडी ड्रामा है जिसमें राजकुमार राव के साथ कृति सेनन, परेश रावल और रत्ना पाठक शाह भी अहम भूमिकाओं में हैं. राजकुमार राव की कॉमेडी फिल्मों ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया है. स्त्री, बरेली की बर्फी और रूही उनकी अहम फ़िल्में हैं. लेकिन एक अभिनेता के तौर पर जिन फिल्मों की वजह से लोगों ने उनका लोहा माना उसके बारे में मुख्यधारा बहुत बात नहीं करता. दीपावली के मौके पर आ रही राजकुमार की हम दो हमारे दो तो देखें ही, लेकिन मौका मिले तो नीचे बताई जा रही एक्टर की पांच और फिल्मों को भी एक बार देखना देखिए. इनमें एक अलग ही राजकुमार राव नजर आएंगे. इन फिल्मों को देखने के बाद समझ में आता है कि क्यों उन्हें सर्वश्रेष्ठ मेथड एक्टर्स में शुमार किया जाता है.
1) शाहिद
फिल्म की कहानी मुंबई में रहने वाले शाहिद आजमी नाम के युवा की है. मुंबई दंगों में तमाम हिंदू और मुसलमान मारे जाते हैं. शाहिद आजमी के परिवार को भी कई तरह से उत्पीडन का सामना का करना पड़ता है. उस पर गहरा असर पड़ता है और आतंकियों के संपर्क में आ जाता है. कश्मीर जाता है वहां आतंकियों के साथ ट्रेनिंग कैम्प में कुछ वक्त बिताता है. लेकिन वहां तमाम चीजों को देखने के बाद वापस मुंबई भाग आता है. हालांकि मुंबई आने पर उसे आतंक निरोधी क़ानून टाडा में गिरफ्तार कर लिया जाता है. टॉर्चर से गुजरना पड़ता है. शाहिद ने करीब सात साल तिहाड़ की जेल में गुजारा. इस दौरान जेल में बंद आतंकी उसका ब्रेन वाश करने की कोशिश करते हैं.
शाहिद क़ानून की पढ़ाई करता है और जेल से बाहर निकल कर वकालत शुरू कर देता है. हालांकि आतंक के मामलों में कथित रूप से पकड़े गए बेगुनाह मुसलमानों का केस लड़ने की वजह से उसे काफी ओचानालाओं का सामना करना पड़ता है और एक दिन उसकी हत्या हो जाती है. हंसल मेहता के निर्देशन में बनी फिल्म साल 2013 में रिलीज हुई थी और राजकुमार ने शाहिद आजमी की भूमिका को जीवंत कर दिया था.
यहां क्लिक कर शाहिद का ट्रेलर देख सकते हैं
2) सिटी लाइट्स
गांव से शहरों की पलायन पर बनी सिटी लाइट्स हिंदी सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है. मूलत: फिल्म की कहानी मेट्रो मनीला पर आधारित है. हंसल मेहता के निर्देशन में बनी फिल्म को साल 2014 में रिलीज किया गया था. राजकुमार राव के रूप में गांव का एक छोटा कारोबारी बिजनेस निराशा के बाद मुंबई पत्नी और बच्ची को लेकर मुंबई चला आता है. यहां उसे मकान के नाम पर ठगा जाता है. और भी ना जाने कितनी बेइंतहा मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. हालत ऐसे बनते हैं कि गांव का एक सम्मानजनक जिंदगी जी रहे युवा को मजदूर बनना पड़ता और उसकी पत्नी को बार गर्ल. वह जान भी नहीं पाता कि उसकी पत्नी घर चलाने में उसकी मदद करने के लिए बार गर्ल बन चुकी है. पूरी फिल्म हिलाकर रख देती है. राजकुमार राव के साथ पत्रलेखा और मानव कौल भी अहम भूमिका में हैं.
3) अलीगढ़
राजकुमार राव के करियर में कई अच्छे किरदार हंसल मेहता की फिल्मों से ही निकलकर आए हैं. इसमें से एक अलीगढ़ भी शामिल है. वैसे सच्ची कहानी पर बनी फिल्म मुख्यत: मनोज बाजपेयी की है. इसमें राजकुमार ने दीपू सबेस्टियन के रूप में एक पत्रकार का किरदार निभाया है. फिल्म की कहानी अलीगढ़ विश्वविद्यालय में मराठी के प्रोफ़ेसर रामचंद्र सिराज की है जिन्हें समाजिक नैतिकता का हवाला देते हुए ना सिर्फ नौकरी से निकल दिया जाता है बल्कि निजी जीवन में भी परेशान किया जाता है. रामचंद्र सिराज कानूनी मदद लेने की कोशिश करते हैं.
इसी दौरान वे दीपू के संपर्क में आते हैं. अलीगढ़ के तमाम हिस्सों में राजकुमार राव एक पत्रकार के रूप में मनोज बाजपेयी के साथ कई बेहतरीन फ्रेम साझा करते दिखते हैं. समलैंगिकता को लेकर अलीगढ़ को भारत में बनी श्रेष्ठ फिल्मों में शुमार किया जाता है. इसकी खूब तारीफ़ हुई है. फिल्म 2016 में रिलीज हुई थी.
4) ट्रैप्ड
मुझे इस बात की जानकारी नहीं कि बॉलीवुड ने ट्रैप्ड से पहले सर्वाइल पर कोई फिल्म बनाई हो. साल 2017 में आई फिल्म का निर्देशन विक्रमादित्य मोटवानी ने किया था. ट्रैप्ड की कहानी कॉल सेंटर में काम करने वाले युवा शौर्य की है. शौर्य एक दिन निर्माणाधीन हाउसिंग सोसायटी के अपार्टमेंट के अंदर अकेले फंस जाता है. सोसायटी में कोई परिवार नहीं रहता. शौर्य के पास ना खाने-पीने के लिए कुछ भी नहीं है. उसके पास ऐसा कोई संसाधन भी नहीं है कि लोगों से संपर्क कर पाए. उसकी हालत लगातार बिगड़ती जाती है और फिर उसी अपार्टमेंट में जिंदगी बचाने का संघर्ष शुरू होता है. शौर्य कबूतर और कॉकरोच का शिकार कर खुद को जिंदा रखने की कोशिश करता है. खुद का मन बहलाने के लिए एक चूहे के साथ बातचीत करता है.
यह फिल्म कई बार टॉम हैंक्स की कास्ट अवे की याद दिला जाती है जो कि सर्वाइवल पर बनी एक अद्भुत फिल्म है. बहुत लंबे समय तक स्क्रीन पर अकेले राजकुमार राव ही दिखते हैं. यह उनका दमदार अभिनय ही है कि कहानी से दर्शक अंत तक बंधे रहते हैं और फिल्म में उनकी दिलचस्पी ख़त्म नहीं होती. राजकुमार राव के करियर की यह एक सर्वोत्तम फिल्म है.
5) ओमेर्टा
यह आतंकी की बायोग्राफी है जो साल 2017 में आई थी. राजकुमार राव ने पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश आतंकी अहमद ओमर सईद शेख की भूमिका निभाई है जिसने भारत में कई आतंकी गतिविधियों को अंजाम दिया. अहमद ओमर काफी पढ़ा लिखा था और बोस्निया-कश्मीर समेत दुनिया के तमाम हिस्सों में मुसलमानों के कथित उत्पीडन की घटनाओं का बदला लेने के लिए आतंकी बन बैठता है. उसे पाकिस्तान में ट्रेनिंग दी जाती है. वह बेहद निर्दयी और खूंखार है.
ओमेर्टा में राजकुमार राव.
भारत में आतंकी गतिविधियों में उसे पकड़ा जाता है. कंधार विमान अपहरण में जिन तीन आतंकियों को छोड़ने की शर्त रखी गई थी उसमें से एक ओमर भी था. हंसल मेहता के निर्देशन और ओमेर्टा में एक आतंकी की भूमिका में राजकुमार राव किरदार में पूरी तरह से डूब गए हैं. भारतीय दर्शकों से नफरत ही बटोरते हैं. इसे उनके काम की उपलब्धि के तौर पर ही लेना चाहिए.
आपकी राय