रामानंद सागर की रामायण को छू पाना किसी आलिया-करीना और रणवीर के वश की बात नहीं?
रामानंद सागर और बीआर चोपड़ा से पहले और बाद बहुत सारे काम हुए. उनमें भव्यता दिखी भी. आला दर्जे की तकनीकी का इस्तेमाल हुआ. मगर ताज्जुब होता है कि लोगों के जेहन में सिर्फ रामानंद सागर और बीआर चोपड़ा का महाभारत ही छाप छोड़ पाया.
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रामायण और महाभारत में कुछ तो बात है कि पीढ़ियां गुजरने के बावजूद ना तो इसके प्रति लोगों की श्रद्धा कम हो रही और ना ही आकर्षण कम होता दिख रहा. ये आकर्षण ही है कि इश्क मोहब्बत, नाच-गाने, तड़क-भड़क और मारधाड़ वाली बोल्ड मसालेधार कहानियों के दौर में में मेकर्स दोनों महाकाव्यों पर भारी भरकम पैसा खर्च करने को तैयार हैं. दोनों कहानियों पर कई प्रोजेक्ट की चर्चा है. अब बाहुबली लिखने वाले केवी विजयेन्द्र प्रसाद ने भी रामायण को सीता के नजरिए से लिखा है. अलौकिक देसाई के निर्देशन में सीता के रोल के लिए आलिया भट्ट या करीना कपूर को लेने का प्रयास जारी है. जबकि रावण के किरदार के लिए रणवीर सिंह को अप्रोच किया गया है.
सीता के अलावा प्रभाष, कृति सेनन और सैफ अली खान स्टारर आदिपुरुष, दीपिका पादुकोण की द्रौपदी और रामायण की ही एक कथा पर दीपिका, महेश बाबू और रितिक रोशन का प्रोजेक्ट शामिल है. आमिर खान भी महाभारत पर काम करने की इच्छा जता चुके हैं. दोनों धर्मग्रंथों पर आधारित प्रोजेक्ट्स पर भारी-भरकम बजट खर्च किया जा रहा है. ये तो भविष्य की बात है. फिलहाल एमएक्स प्लेयर पर रामयुग सुपरहिट है. इसे बड़ी संख्या में देखा जा रहा है. अब तक अलग-अलग भारतीय भाषाओं में कई दर्जन फ़िल्में और कहानियां दोनों ग्रंथों और उसकी उपकथाओं पर बनाई जा चुकी हैं.
दोनों धर्मग्रंथों पर रामानंद सागर की रामायण और बीआर चोपड़ा की महाभारत "कल्ट" हैं. रामानंद सागर और बीआर चोपड़ा से पहले और बाद बहुत सारे काम हुए. उनमें भव्यता दिखी भी. आला दर्जे की तकनीकी का इस्तेमाल हुआ. मगर ताज्जुब होता है कि लोगों के जेहन में सिर्फ रामानंद सागर और बीआर चोपड़ा का महाभारत ही छाप छोड़ पाया. ये असर निर्माण के सालों बाद आज की तारीख तक कितना प्रभावशाली है इसका उदाहरण पिछले साल कोरोना महामारी के बाद दिखा था.
महामारी के बाद व्यापक देशबंदी में जब दूरदर्शन पर मनोरंजन के लिए दोनों सीरियल्स को रीटेलीकास्ट किया गया इसने पुराने कीर्तिमान भी धवस्त कर दिए. बड़े पैमाने पर लोगों ने रामायण और महाभारत को देखा. दोनों सीरियल्स की टीआरपी ने एनालिस्ट को हैरान कर दिया. रामायण सबसे ज्यादा देखे जाने वाले शोज में टॉप 5 में रहा. जबकि इसी शो के बाद पिछले तीन दशक में रामायण पर आधारित जो अन्य शोज आए थे उनको भी ऐसी टीआरपी नसीब नहीं हुई. बीआर चोपड़ा की महाभारत को भी रीटेलीकास्ट में इसी तरह जमकर देखा गया.
जाहिर तौर पर दोनों सीरियल्स का असर सालों बाद बरकरार है. और इसके पीछे मेकिंग से जुड़ी पांच चीजें- सिम्पलीसिटी, अथेंटीसिटी, म्यूजिक और फिलासफी ख़ास बनाने के साथ औरों से अलग कर देती हैं. सीता का किरदार निभाने वाली दीपिका चिखलिया ने बीबीसी से एक पुराने इंटरव्यू में कहा था- ऑडिशन में 30 लड़कियां आई थीं जो उनसे ज्यादा खूबसूरत, ग्लैमरस और टैलेंटेड थीं. कई बड़ा नाम भी थीं. लेकिन रोल के लिए उनका चयन सिर्फ सीता के किरदार में सहज फिट बैठना ही था. कलाकारों का मेकअप, कॉस्ट्यूम भी सहज और साधारण ही रखा गया था. सेट्स बहुत भव्य नहीं थे.
रामायण की शूटिंग भी बेहद साधारण लोकेशन पर हुईं. सीरियल्स में लोकेशन देखकर तड़क-भड़क का अंदाजा नहीं होता. दरअसल, रामानंद सागर रामायण में बड़े कलाकारों को लेने से परहेज कर रहे थे. एक तो उन्हें कलाकारों की लगातार डेट्स चाहिए थी दूसरा- "वो सिर्फ ऐसे कलाकार चाहते थे जिनकी पहले से कोई व्यापक छवि ना हो. ताकि ऑडियंस उन्हें रामायण के किरदार के रूप में ही देखे." बताने की जरूरत नहीं कि रामायण के राम-सीता और लक्षमण की तस्वीरों को घरों में रखकर देवता की तरह पूजा गया. सीरियल में काम करने वाले कई कलाकारों ने बार बार अपने अनुभव में बताया कि निजी जिंदगी में भी लोग उन्हें रामायण के किरदारों से अलग करके नहीं देख पाए.
बीआर चोपड़ा की महाभार.
रामायण के बाद इसी कहानी पर बने कुछ सीरियल्स की कथाओं के ड्रामेटिक प्रस्तुतीकरण को लेकर विवाद हुआ. जबकि रामानंद सागर ने इसे अथेंटिक बनाए रखा. सन्दर्भ मान्य ग्रंथों से ही उठाए गए. गीत-संगीत, भाषा में अथेंटीसिटी का ख्याल रखा गया. रामचरित मानस की चौपाइयों का अक्षरश: इस्तेमाल हुआ. कथाओं के बीच, शुरुआत और अंत में सूत्रधार का इस्तेमाल किया गया. महाभारत में भी ठीक-ठीक ऐसा ही किया गया था.
रामायण के हर एपिसोड के अंत में खुद रामानंद सागर की टिप्पणी आती थी जिसमें संबंधित कथा को बताया जाता था और उसका दर्शन समझाया जाता था. बीआर चोपड़ा ने महाभारत के भी हर एपिसोड में सूत्रधार का इस्तेमाल किया जो एपिसोड के शुरू-शुरू और बीच-बीच में आता था. "मैं समय हूं" शायद लोग भूले नहीं होंगे. रामानंद सागर ने संगीत के पहलू का ख़ास ध्यान रखा था. दिग्गज संगीतकार रविंद्र जैन ने कथा के अनुकूल अद्वितीय संगीत तैयार किया. तुलसी के मानस का भरपूर इस्तेमाल तो हुआ ही, रामायण के लिए जो दूसरे गीत और भजन लिखे गए उनका भी कोई सानी नहीं. ये भजन इतने सर्वश्रेष्ठ और कर्णप्रिय हैं कि उनकी टक्कर के भजन खोजना बेहद मुश्किल है. आज भी लोग इन्हें सुनकर मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं. रविंद्र जैन ने यूं तो और भी कर्णप्रिय संगीत तैयार किए, लेकिन रामायण का संगीत और उनकी अलग तरह की आवाज (महाभारत में जैसे महेंद्र कपूर की आवाज) सबसे लाजवाब और संजोकर रखने लायक है.
असल में भारत में टीवी क्रांति इन दोनों सीरियल्स की वजह से हुई. जिस टीवी को समाज "अछूत" की तरह देखता था वो घर-घर में पहुंच गया.
इन दोनों सीरियल्स से पहले और बहुत बाद में बने कुछ फ़िल्में और सीरियल्स में भव्यता, तड़क-भड़क और तकनीकी पक्ष बहुत ही अद्भुत और बेहतर थे. मगर रामानंद सागर की रामायण और बीआर चोपड़ा की महाभारत की सिम्पलीसिटी, अथेंटीसिटी, म्यूजिक और फिलासफी ने इसे श्रद्धा का पात्र बना दिया. लगभग ईश्वरीय चमत्कार. तकनीकी भले ही बहुत विकसित हो गई हो मगर हाल फिलहाल के काम के आधार पर कहा जा सकता है कि उस बेंचमार्क को छू पाना आज हमेशा असंभव रहेगा.
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