Ray Web Series Review: कलाकारों का बेहतरीन परफॉर्मेंस, लेकिन एक खामी से सब खराब हुआ
नेटफ्लिक्स (Netflix) पर मनोज बाजपेयी, केके मेनन, अली फ़ज़ल और हर्षवर्धन कपूर स्टारर वेब सीरीज 'रे' (Ray Web Series) रिलीज कर दी गई है. भारतीय सिनेमा के पितामह सत्यजीत रे (Satyajit Ray) की कहानियों पर आधारित इस वेब सीरीज में चार किरदारों की चार अलग-अलग कहानी दिखाई गई है.
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'आप पहले इंसान नहीं है और आखिरी इंसान भी नहीं होंगे जो अपने आप को खुदा, भगवान समझ लेता है और फिर मुंह के बल गिरता है'... नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई वेब सीरीज 'रे' (Ray Web Series) के इस डायलॉग में जीवन दर्शन है. कई बार अपने जीवन में सफलता के सर्वोच्च शिखर बैठा इंसान यह सोचता है कि उसके पास सबकुछ है. वह दुनिया की हर चीज हासिल कर सकता है. उसके पास ढ़ेरों पैसा, लग्जरी गाड़ियां और बहुत बड़ा बंगला है.
मशहूर इतना कि हर कोई उसको जानता है. लेकिन अगले ही पल जब उसका सच्चाई से सामना होता है, तो पैरों तले जमीन खिसक जाती है. इस एंथोलॉजी वेब सीरीज के नायकों की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जो संपूर्णता को पाने की कोशिश के बीच बेवफाई, गुमनामी, अहंकार, बदला, ईष्या और विश्वासघात से जूझते दिखते हैं.
फिल्मावली के रूप में नेटफ्लिक्स ने भारतीय सिने बाजार के लिए एक नया प्रयोग भी किया है.
हिंदुस्तान के शेक्सपियर कहे जाने वाले भारतीय सिनेमा के पितामह और महान फिल्ममेकर सत्यजीत रे की कहानियों पर आधारित इस एंथोलॉजी (फिल्मावली) वेब सीरीज में चार लघु कहानियों को चार अलग-अलग एपिसोड में दिखाया गया है. इन कहानियों में सामाजिक व्यंग, गहरा हास्य, मनोविज्ञान और अर्थव्यवस्था का बेहतरीन चित्रण किया गया है. सीरीज में मनोज बाजपेयी, केके मेनन, अली फ़ज़ल, हर्षवर्धन कपूर, गजराज राव, श्वेता बसु प्रसाद, अनिंदिता बोस, बिदिता बाग, राधिका मदान, चंदन रॉय सान्याल और आकांक्षा रंजन कपूर जैसे कलाकार प्रमुख किरदारों में हैं. श्रीजीत मुखर्जी, अभिषेक चौबे और वासन बाला ने निर्देशित किया है. इसमें अभिषेक चौबे ने एपिसोड 'हंगामा है क्यों बरपा', श्रीजित मुखर्जी ने 'फॉरगेट मी नॉट' और 'बहुरूपिया' और वासन बाला ने 'स्पॉटलाइट' का निर्देशन किया है.
'जामताड़ा', 'शी' और 'ताजमहल 1989' वेब सीरीज बना चुकी वायाकॉम 18 की डिजिटल विंग टिपिंग पॉइंट द्वारा निर्मित 'रे' की पटकथा निरेन भट्ट और सिराज अहमद ने लिखी है. इसके सृजनकर्ता सायंतन मुखर्जी ने चारों कहानियों को एक धागे में पिरोने की कोशिश की है. इसमें मनोज बाजपेयी की कहानी का शीर्षक 'हंगामा है क्यों बरपा', केके मेनन का 'बहुरूपिया', अली फजल की कहानी का 'फॉरगेट मी नॉट' और हर्षवर्धन कपूर की कहानी का 'स्पॉटलाइट' है. पहली कहानी 'हंगामा है क्यों बरपा' में एक गजल गायक की दास्तान पेश की गई है. दूसरी कहानी 'फॉरगेट मी नॉट' में कॉरपोरेट जगत की चोंचलेबाजी दिखाई गई है. तीसरी कहानी 'बहुरूपिया' में स्पेशल ऑपरेशन के अफसरों के दांव-पेंच दिखाए गए हैं. आखिरी 'स्पॉटलाइट' में ग्लैमर वर्ल्ड की चकाचौंध रोशनी के पीछे की असलियत बयां की गई है.
मनोज बाजपेयी और गजराज राव ने हमेशा की तरह दमदार अभिनय किया है.
शानदार अभिनय, आकर्षक छायांकन
वैसे तो वेब सीरीज 'रे' में कई बातें अच्छी हैं, लेकिन दो चीजें बेहतरीन कही जा सकती हैं, कलाकारों का शानदार अभिनय प्रदर्शन और इसका छायांकन. ये दोनों इतने अच्छे हैं कि पूरी सीरीज को खराब होने से बचा लेते हैं. इसमें मनोज बाजपेयी, अली फज़ल, के के मेनन और हर्षवर्धन कपूर जैसे लीड एक्टर से लेकर श्वेता बसु प्रसाद, चंदन रॉय सान्याल, राधिका मदान, मनोज पाहवा और बिदिता बाग जैसे सपोर्टिंग एक्टर, हर किसी ने बेहतरीन एक्टिंग की है. हर एपिसोड को स्वप्निल सोनवणे, अर्कोदेब मुखर्जी, इशित नारायण जैसे सिनेमेटोग्राफर ने बेहद आकर्षक तरीके से शूट किया है. लेकिन तीनों निर्देशक श्रीजीत मुखर्जी, अभिषेक चौबे, वासन बाला और लेखक द्वय निरेन भट्ट और सायंतन मुखर्जी अपने-अपने एपिसोड की कहानी के साथ न्याय नहीं कर पाएं हैं. बढ़ते समय के साथ एपिसोड सुस्त होता चला जाता है.
लचर निर्देशन ने कर दिया निराश
कुछ एपिसोड को देखकर तो ऐसा भी लगता है कि निर्देशक और लेखक कहानियों की जटिलता पर सही ढ़ंग से पकड़ ही नहीं बना पाए हैं. निर्देशक श्रीजीत मुखर्जी ने वेब सीरीज के दो एपिसोड 'फॉरगेट मी नॉट' और 'बहुरूपिया' निर्देशित किए हैं. 'फॉरगेट मी नॉट' में बिजनेसमैन इप्सित नायर (अली फज़ल) की कहानी दिखाई गई है, जिसकी मेमोरी कंप्यूटर की तरह तेज है. वह कभी कुछ भी नहीं भूलता है. लेकिन रिया सरन (अनिंदिता बोस) से मुलाकात के बाद उसका मुगालता टूट जाता है. 'बहुरूपिया' की कहानी का नायक इंद्राशीष साहा (केके मेनन) एक मशहूर मेकअप आर्टिस्ट है, लेकिन अपने काम और जिंदगी से नफरत करता है. एक दिन वो अपने दुश्मनों से बदला लेने निकलता है, लेकिन अपने ही खेल में बुरी तरह उलझकर रह जाता है. इन दोनों एपिसोड में स्वपनिल सोनवाने की सिनेमेटोग्राफी और नितिन बेद की एडिटिंग मजबूत है. लेकिन धीमी कहानी, कमजोर पटकथा और ढ़ीले निर्देशन ने अली फजल, केके मेनन के शानदार अभिनय प्रदर्शन पर पानी फेर दिया है.
बेहतरीन एपिसोड 'हंगामा है क्यों बरपा'
इस एंथोलॉजी (फिल्मावली) वेब सीरीज में 'हंगामा है क्यों बरपा' एपिसोड सबसे बेहतर है. इसकी कहानी गजल गायक मुसाफिर अली (मनोज बाजपेयी) की भोपाल-नई दिल्ली ट्रेन यात्रा से शुरू होती है. उनके सह यात्री असलम बेग (गजराज राव) है, जो कि एक नामी पहलवान रह चुके हैं. मुसाफिर और असलम पहले कहीं एक दूसरे से मिल चुके हैं, लेकिन दोनों को ही बिल्कुल याद नहीं है. दो अलग अलग पेशों के लोगों की 10 साल बाद की ट्रेन में मुलाकात की ये एक बहुत ही भावुक कहानी हो सकती थी, लेकिन 35 साल के मुसाफिर अली को भोपाल ले जाने वाली ट्रेन सुबह किसी और स्टेशन पर ठहरी दिखती है. कहानी का क्लामेक्स इसकी जान है. मनोज बाजपेयी और गजराज दोनों ने हमेशा की तरह बहुत ही शानदार एक्टिंग की है. इस कहानी का ज्यादातर हिस्सा ट्रेन में ही गुजरता है, ऐसे में अनुज राकेश धवन का कैमरा वर्क काफी शानदार है. मानस मित्तल की एडिटिंग भी बढिया नजर आती है. अभिषेक चौबे ने बाकी एपिसोड के निर्देशकों के मुकाबले इसमें बेहतर निर्देशन किया है.
वेब सीरीज देखें या नहीं?
कुल मिलाकार मनोज बाजपेयी, केके मेनन, अली फ़ज़ल, गजराज राव और श्वेता बसु प्रसाद जैसे कलाकारों की बेहतरीन अदाकारी के लिए वेब सीरीज 'रे' देखी जा सकती है. लेकिन यदि आप हर एपिसोड की कहानी के बीच कनेक्शन खोजने लगेंगे तो निराशा हाथ लगेगी. वैसे इस साल सत्यजित रे की जन्मशती है, एक महान फिल्मकार की कहानियों पर आधारित सीरीज देखकर उनको श्रद्धांजलि दी जा सकती है. फिल्मावली के रूप में नेटफ्लिक्स ने भारतीय सिने बाजार के लिए एक नया प्रयोग भी किया है. जानकारी के लिए बता दें कि वेब सीरीज में दिखाए गए एपिसोड 'हंगामा है क्यों बरपा' सत्यजीत रे की कहानी 'बरीन भौमिक की बीमारी', 'स्पॉटलाइट' की कहानी 'स्पाटलाइट', 'बहुरूपिया' की कहानी 'बहुरूपी' और 'फॉरगेट मी नॉट' की कहानी 'बिपिन चौधरी स्मृतिभ्रम' (Bipin Chaudhary Smritibhram) पर आधारित है.
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