एंटरटेनमेंट के लिहाज से अच्छा पैकेज है रानी मुखर्जी की 'हिचकी'
अगर मनोरंजन के लिहाज से फिल्म देखने जा रहे हैं तो यूं भी ज्यादा सोच विचार नहीं करना चाहिए. थियेटर जाइए पैसा वसूल फिल्म है रानी मुखर्जी की हिचकी.
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फ़िल्में समाज का आईना है और सुना भी हमनें अक्सर ही है कि, फिल्मों का उद्देश्य ऐसा सन्देश देना है जिससे समाज प्रभावित हो सके. निर्देशक आदित्य चोपड़ा की हालिया फिल्म हिचकी भी एक ऐसी फिल्म है जो अपनी तरह का एक अलग सन्देश दे रही है. फिल्म एक पारिवारिक फिल्म है जो इसे मजबूत पक्ष दे रही है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि आज के इस ग्लैमरस दौर में ऐसी फिल्मों को अंगुली पर गिना जा सकता है जिन्हें आप अपने परिवार के साथ बैठकर देख सकें और उसे एन्जॉय कर सकें.
आदित्य चोपड़ा निर्देशित और रानी मुखर्जी अभिनीत फिल्म हिचकी एक ऐसी टीचर नैना रावत के इर्द गिर्द घूमती है जिसे टूरेट सिंड्रोम नाम की बीमारी है. मेरे अलावा ऐसे बहुत से लोग होंगे जिन्होंने शायद ही इस फिल्म से पहले टूरेट सिंड्रोम नाम की बीमारी के बारे में सुना होगा. अगर आप ये कहें कि ये क्या होता है तो मैं आपको वही बताऊंगा जो फिल्म में नैना माथुर बनी रानी मुखर्जी ने कहा था. फिल्म में एक इंटरव्यू के दौरान नैना ने सामने बैठे टीचरों के पैनल से कहा था कि जब दिमाग के सारे तार आपस में जुड़ नहीं पाते हैं तो व्यक्ति को लगातार हिचकी आती है और वो अजीब सी आवाजें निकालता है यही टूरेट सिंड्रोम है.
हिचकी ऐसी फिल्म है जिसे परिवार के साथ देखा जा सकता है
हां तो मैं फिल्म की बात कर रहा था फिल्म नैना माथुर के इर्द गिर्द घूमती है जिसे टूरेट सिंड्रोम बीमारी है और इसके चलते जहां एक तरफ उसे दुनिया के सामने हंसी का पात्र बनना पड़ता है तो वहीं उसके करीबियों विशेषकर पिता (सचिन) को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है. नैना टीचर बनना चाहती हैं मगर उन्हें कोई स्कूल सिर्फ इसलिए नहीं लेता की उन्हें स्पीच डिफेक्ट है. फिल्म में नैना यानी रानी 18 बार अपने इंटरव्यू में रिजेक्ट होती हैं और 19 वीं बार उन्हें सफलता मिलती है और उन्हें एक ऐसी क्लास को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी जाती है जिनसे पूरा स्कूल परेशान है. इस क्लास के बच्चों की शरारत ऐसी है जिसकी कल्पना भी शायद ही कभी आपने की हो.
शुरुआत में बच्चों द्वारा टीचर नैना को बहुत परेशान किया जाता है मगर धीरे धीरे टीचर और स्टूडेंट दोनों को ही एक दूसरे की आदत हो जाती है. फिल्म देखते हुए शुरू शुरू में महसूस होता है कि रानी बच्चों के साथ मैनेज न कर पाएं मगर जैसे-जैसे कहानी बढ़ती है चीजें हल्की होती चली जाती हैं और कई मौके ऐसे आते हैं जब आप खुद से सवाल करते हुए पूछ बैठते हैं कि क्या ऐसा भी संभव है.
चीजों को अच्छा करना भारतीय निर्देशकों की आदत है और यही आदत है जो फिल्म खराब कर देती है. फिल्म देखते हुए आपको कई मौकों पर लगेगा कि बेहतर करने के चक्कर में फिल्म के साथ डायरेक्टर साहब न्याय नहीं कर पाए. कहानी चूंकि फ़िल्मी है तो आपको भी जयादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है. फिल्म का उद्देश्य एंटरटेनमेंट है तो जब फिल्म देखने जा रहे हैं तो बस एंटरटेन होने की भावना से जाइये. ज्यादा लोड लोने की ज़रूरत नहीं है.
याद रहे फिल्म में रानी जब ज्यादा लोड लेती थीं तो उन्हें अक्सर हिचकी आ जाति थी जिससे उन्हें शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता था. बाक़ी बात बस इतनी है कि ये फिल्म रानी का एक जबरदस्त कमबैक है और अगर आपको वुमेन सेंट्रिक फिल्म का शौक है और रानी आपकी फेवरेट हैं तो ये फिल्म आपको ज़रूर देखनी चाहिए.
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