सियासत में रियासत: राजा भैया से संजय सिंह तक, राजनीतिक अखाड़े में कूदे राज परिवारों की दास्तान
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग खत्म हो चुकी है. इस चरण में वेस्ट यूपी की 11 जिलों की 58 सीटों पर वोटिंग हुई है. इसमें 623 कैंडिडेट्स की किस्मत ईवीएम में लॉक हो गई है. वैसे इस बार के चुनाव में भी कई राज परिवारों (Royal Families) की इज्जत भी दांव पर लगी है.
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देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव (Assembly Elections 2022) का प्रचार जोरों पर है. इन सियासी सरगर्मियों के बीच उत्तर प्रदेश में पहले चरण का चुनाव (UP Election 2022 Phase 1) आज खत्म हो गया. इस दौरान वेस्ट यूपी की 11 जिलों की 58 सीटों पर वोटिंग हुई है. पहले चरण के 623 प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में अब लॉक चुकी है, जिनमें 73 महिलाएं और सूबे के 9 मंत्री भी शामिल हैं. अब अगले छह चरणों के लिए सभी राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कस ली है.
इनमें यूपी के राजनीतिक अखाड़े में कूदे कई राज परिवार भी शामिल हैं. जो अलग-अलग राजनीतिक दलों से ताल ठोक रहे हैं. वैसे सियासत में रियासत की भागीदारी कोई नई बात नहीं है. देश की आजादी के बाद से ही कई राज परिवारों ने अपनी धाक और साख जमाए और बनाए रखने के लिए सियासत की ओर रुख कर लिया था. आगे चलकर पीढ़ी-दर-पीढ़ी इनके वंशज इनकी राजनीतिक विरासत को संभालते रहे हैं. हालांकि, सियासत में इनमें कुछ हिट रहे, तो कुछ फ्लॉप भी हुए हैं.
आइए जानते हैं कि इस बार यूपी विधानसभा चुनावों में कौन-कौन सी रियासत के कर्णधार सियासत कर रहे हैं...
1. रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया
रियासत- भदरी (कुंडा, प्रतापगढ़)
उत्तर प्रदेश की राजनीति में राजा भैया एक ऐसा नाम हैं, जो सरकार चाहें जिसकी भी रहे, 'सत्ता' में जरूर रहते हैं. उनके समर्थकों का तो यहां तक कहना है कि उनका राजनीतिक रसूख उस दौर में भी कायम रहा था, जिस वक्त मायावती ने मुख्यमंत्री रहते हुए उनको खत्म करने की रह कोशिश की थी. लेकिन हर प्रयास के बाद भी उनके राजनीतिक वजूद को खत्म नहीं कर पाईं. कई महीनों तक जेल में रहने के बाद जब राजा भैया लौटे तो सीधे मुलायम सिंह यादव की सरकार में जेल मंत्री बना दिए गए. उनको उन्हीं जेलों की जिम्मेदारी दी गई, जहां उन्होंने अपना सबसे कष्टकारी समय बिताया था. उसके बाद से अबतक हर सरकार में वो मंत्री रहे या ना रहें, उनकी चलती हमेशा रही है. वर्तमान में योगी सरकार में भी उनका राजनीतिक रसूख कायम है. कई वर्षों तक निर्दल चुनाव लड़ने के बाद अब उन्होंने जनसत्ता दल बना लिया है.
साल 1993 में राजनीति की दुनिया में कदम रखने वाले राजा भैया यूपी के प्रतापगढ़ की भदरी रियासत के कुंवर हैं. उनके दादा राजा राय बजरंग बहादुर सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. आजादी के बाद उनको हिमाचल प्रदेश का गवर्नर बनाया गया था. उनके पिता राजा उदय प्रताप सिंह विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे हैं, लेकिन उन्होंने कभी भी सक्रिय राजनीति में कदम नहीं रखा था. पहली बार जब राजा भैया ने राजनीति में जाने की बात कही, तो उन्होंने पहले मना किया, लेकिन बाद में अपने गुरु के आदेश के बाद जाने दिया. उनकी मां श्रीमती मंजुल राजे भी एक शाही गुर्जर परिवार से आती हैं. प्रतापगढ़ जिले के साथ ही आस-पास की लोकसभा और विधानसभा सीटों पर भी राजा भैया का खासा दबदबा है. 1993 से लेकर 2017 तक राजा भैया निर्दल प्रत्याशी के रूप में विधानसभा पहुंचते रहे हैं. इस बार लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने जनसत्ता दल नाम से पार्टी बनाई है. इस विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर उनके प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
2. कुंवर रतनजीत प्रताप नारायण सिंह उर्फ कुंवर साहब
रियासत- पडरौना स्टेट (कुशीनगर)
कभी कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री कुंवर रतनजीत प्रताप नारायण सिंह विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके हैं. आरपीएन सिंह और उनका परिवार पिछले 50 वर्षों से पडरौना (जिला कुशीनगर) में राजनीति कर रहा है. पडरौना स्टेट से ताल्लुक रखने वाले उनके पिता कुंवर सीपीएन सिंह पहली बार 1969 में यहां से विधायक बने थे. इसके बाद में वो यहीं से सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे. उनको पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का बहुत करीबी माना जाता था. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इमरजेंसी के बाद जब लोकसभा चुनाव हुआ, तो इंदिरा गांधी ने अपने प्रचार की शुरूआत पडरौना से ही की थी. आम लोगों के भयंकर विरोध के डर के बीच उस कार्यक्रम की व्यवस्था सीपीएन सिंह ने खुद की थी. उनके निधन के बाद उनके बेटे आरपीएन सिंह ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाल ली है. वो पिछले 32 वर्षों से यहां से राजनीति कर रहे हैं. वो पडरौना विधानसभा क्षेत्र से साल 1996 से लेकर 2009 तक लगातार विधायक रहे हैं.
इसके बाद साल 2009 में जब लोकसभा चुनाव हुआ, तो उनको राहुल गांधी ने केंद्र की राजनीति के लिए कहा, जिसके बाद चुनाव जीतकर वो साल 2014 तक सांसद रहे. इस दौरान साल 2009-2011 तक केंद्रीय सड़क, परिवहन और राजमार्ग राज्य मंत्री और साल 2011-2013 तक केंद्रीय पेट्रोलियम और कॉर्पोरेट मामले के राज्य मंत्री रहे. इतने बड़े राजनीतिक कद के होने के बावजूद उनको जमीनी नेता माना जाता है. आज भी अपने विधानसभा के हर गांव के प्रमुख लोगों और अपने कार्यकर्ताओं को वो उनके नाम से जानते हैं. कहा जाता है कि जब वो केंद्रीय मंत्री थे, तो उनके मंत्रालय में जाने के लिए लोगों को केवल इतना बताना होता था कि वे पडरौना से आए हैं. उन्होंने अपने अधिकारियों को सख्त निर्देश दे रखा था कि उनके क्षेत्र से आने वाले हर शख्स को ससम्मान बुलाया जाए और उनकी समस्याएं सुनी जाए. आरपीएन सिंह फिलहाल बीजेपी में हैं. उनके कई करीबियों के बीजेपी ने कुशीनगर जिले की विधानसभा सीटों से टिकट दिया है. इनमें उनकी सीट पडरौना भी शामिल है.
3. संजय सिंह उर्फ राजा साहब
रियासत- अमेठी राजघराना
इस बार यूपी चुनाव में अमेठी विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर ताल ठोक रहे राजा संजय सिंह कभी दिग्गज कांग्रेसी नेता रहे हैं. संजय सिंह अमेठी राजघराने से ताल्लुक रखते हैं, जहां उनके पिता रंजय सिंह राजा हुआ करते थे. इस राजघराने का गांधी परिवार से बहुत पुराना नाता है. गांधी परिवार को अमेठी लाने का श्रेय इसी राज परिवार को जाता है. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी यहां से सांसद रहे हैं. इसके बाद सोनिया और राहुल गांधी का लंबे समय से गढ़ रहा है. गांधी परिवार और अमेठी राजघराने के राजनीतिक रिश्ते की शुरुआत जरूर हुई, लेकिन तमाम उतार-चढ़ाव के बाद राजनीति का ये लंबा सफर पारिवारिक रिश्तों में गया. हालांकि, अब ये रिश्ता टूट चुका है. क्योंकि संजय सिंह अपने परिवार सहित बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. उससे पहले उनकी पत्नी गरिमा सिंह बीजेपी में शामिल होकर यहां से विधानसभा चुनाव लड़ चुकी हैं. इस बार बीजेपी ने संजय सिंह पर भरोसा जताते हुए अमेठी से टिकट दिया है. संजय सिंह दो बार विधायक, यूपी सरकार में मंत्री और बाद में राज्यसभा सांसद रह चुके हैं. साल 1998 में अमेठी से ही बीजेपी के टिकट पर सांसद बने, लेकिन साल 2003 में कांग्रेस में लौट आए. साल 2009 में सुल्तानपुर से सांसद बने.
4. नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां
रियासत- रामपुर घराना
रामपुर का नाम सुनते ही हर किसी के जेहन में मो. आजम खान का नाम कौंधने लगता है. क्योंकि वहां की सियासत में सबसे अधिक उन्हीं का नाम रहा है. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यहां एक परिवार ऐसा भी है, जिसका बहुत पुराना सियासी इतिहास रहा है. जी हां, हम रामपुर के नावाब खानदान की बात कर रहे हैं. इसी खानदान के नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां रामपुर शहर से, तो उनके बेटे हैदर अली खान उर्फ हमजा मियां स्वार-टांडा से विधानसभा का चुनाव लड़रहे हैं. इन दोनों सीटों से आजम खान का परिवार भी चुनाव लड़ रहा है. रामपुर से आजम, तो स्वार से उनके बेटे अब्दुला मैदान में हैं. बताते हैं कि रामपुर का नूरमहल कभी रुहेलखंड में कांग्रेस गतिविधियों का केंद्र होता था. नवाब घराने के वारिस नवाब काजिम अली खान उर्फ नवेद मियां के वालिद नवाब जुल्फिकार अली खान उर्फ मिक्की मियां और मां नूरबानो ने नौ बार लोकसभा में रामपुर का प्रतिनिधित्व किया है. आजादी के बाद हुए पहले चुनाव को छोड़ दें तो नवाब खानदान के लोग ही हमेशा कांग्रेस के प्रत्याशी बनकर जीतते रहे हैं. साल 2019 पहला आम चुनाव था, जिसमें नवाब खानदान का कोई सदस्य मैदान में नहीं था.
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