बाहुबली से RRR तक, दो शक्तियों के टकराव वाला कौन सा दृश्य ज्यादा ताकतवर है?
बाहुबली फेम एसएस राजमौली को भव्य फिल्मों के लिए याद किया जाता है. प्रभावशाली भव्यता रचना ही उनकी महारत है. अब आरआरआर के रूप में उनका नया काम बनकर तैयार है. फिल्म 7 जनवरी को रिलीज होगी.
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ग्लैडिएटर, लॉर्ड ऑफ़ रिंग्स, हैरी पॉटर, 300 जैसी हॉलीवुड की ना जाने कितनी कहानियों के पाश में दर्शक बंधकर रहे गए थे. भव्यता के मामले में ये लाजवाब फ़िल्में हैं. फ़िल्में क्या जादू हैं. एसएस राजमौली- भारतीय सिनेमा में इकलौते हैं जिन्हें फिल्मों में फ्रेम्स को भव्य और जादुई बनाने का महारत हासिल है. संजय लीला भंसाली भी जादुई भव्यता रचते हैं, मगर वे ड्रामा पर ज्यादा जोर देते हैं और राजमौली का पूरा जोर भव्यता, एक्शन और उसके साथ सुनाई देने वाले बैकग्राउंड स्कोर पर रहता है.
बाहुबली के बाद राजमौली की एक और फिल्म में दुनिया को भारतीय सिनेमा की भव्यता दिखेगी. आरआरआर 7 जनवरी को रिलीज होगी. उससे पहले फिल्म का ट्रेलर आ चुका है. फिल्म का हर फ्रेम विशाल नजर आ रहा है जो कि पीरियड ड्रामा की यूएसपी भी है. ट्रेलर में जूनियर एनटीआर की एंट्री पर गौर करिए. वे संभवत: अंग्रेजों की कैद से निकलकर जंगल में भाग रहे हैं. उनके पीछे एक बाघ पड़ा हुआ. और जब वो निहत्थे, पलटकर बाघ के सामने दहाड़ते हैं- दृश्य देखकर रौंगटे खड़े हो जाना स्वाभाविक है. ट्रेलर देखते हुए दृश्य ही इतना असरदार लगता है.
बाहुबली और आरआरआर के दो सबसे प्रभावशाली दृश्य.
लेकिन जब इसी दृश्य बारे में ठहरकर सोचते हैं तो यह पूरी तरह से अविश्वसनीय नजर आता है. जबकि आरआरआर का ट्रेलर देखते हुए उतना ही भरोसमंद लगता जितनी भरोसेमंद कोई जेन्युइन चीज हो सकता है. फिल्मों में यही कमाल दिखाने की वजह से राजमौली भारतीय सिनेमा में सबसे अलग जगह पर खड़े नजर आते हैं. और यही वह काबिलियत है जो उन्हें उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम चीन-जापान कहीं भी स्वीकार्यता दिला देती है.
बाहुबली के दोनों हिस्सों में भी कई अकल्पनीय दृश्य देखे जा सकते हैं. युद्ध के दृश्य, महिष्मति राज परिवार से निर्वासन के बाद बांध बनाने का दृश्य, शिवलिंग को अभिषेक के लिए झरने के नीचे ले जाने का या फिर महेंद्र बाहुबली का भीषण जलप्रपात को चीरकर उसके शिखर पर पहुँचने का. बाहुबली 2 में मल्लयुद्ध के दौरान महेंद्र और भल्लालदेव के आमने-सामने का दृश्य. या भल्लादेव का भैंसे के सींग पकड़कर उसे रोक देने वाला दृश्य. दर्जनों दृश्य हैं जो वास्तविक नहीं हो सकते, मगर राजमौली ने उन्हें इस तरह भव्यता में गूंथकर दिखाया है कि दर्शकों को सबकुछ असली नजर आता है और वे फ्रेम दर फ्रेम फिल्म के साथ रोमांच में बहते जाते हैं.
आरआरआर के एक दृश्य में रामचरण.
आरआरआर में बाघ के साथ जूनियर एनटीआर का जिस तरह मुकाबला होता है- वैसे प्रभावशील दृश्य में उन्हें शायद ही कभी देखा गया हो. अंग्रेजों से बगावत के बाद संन्यासी के वेश में राम चरण तेजा तीर-धनुष लेकर जिस तरह लगभग हवा में उड़ते हुए संहार करते दिखते हैं- वह किसी पौराणिक महाकाव्य का दृश्य जान पड़ता है. राजमौली असल में दर्शकों पर पौराणिकता का ही तो पाश फेंकते हैं. ट्रेन विस्फोट से ठीक पहले-रस्सी के सहारे दो अलग-अलग छोर से उड़कर आते हुए क्रांति का झंडा उठाए राम और भीम का हाथ मिलाना तो रोमांच की हदें पार करने वाला दृश्य है. ट्रेलर के आखिर में भी एक हैरान करने वाला दृश्य देखा जा सकता है. जैसे सर्कस में नेट के ऊपर कई कलाकार एक-दूसरे की टांगों को पकड़कर एक-दूसरे को जहां-तहां फेकते हैं.
सर्कस में इसे एरियल एक्ट कहा जाता है. यह बहुत खतरनाक होता है. आरआरआर ट्रेलर के आख़िरी फ्रेम में एरियल एक्ट पर आधारित खतरनाक स्टंट नजर आता है. राम चरण तेजा और जूनियर एनटीआर अंग्रेज टुकड़ी के ऊंचे वॉच टावर पर कूदते-फांदते पहुंचते हैं और सिपाही को मार डालते हैं. बाहुबली 2 में भी किले में घुसने के लिए ऐसे ही एरियल स्टंट नजर आए थे. ऐसे सीन्स इतना गहरा असर डालते हैं कि दर्शकों को कुछ सोचने का मौका ही नहीं मिलता है. राजमौली वक्त छोड़ते भी नहीं. बस दर्शकों को बहाते रहते हैं जो उनकी यूएसपी भी है.
रामचरण और जूनियर एनटीआर.भव्यता. असल में यह वो चीज है जिसके लिए फिलहाल भारतीय सिनेमा को राजमौली का कर्जदार होना चाहिए. किसी भी ऐतिहासिक ड्रामा की प्रभावशीलता असल में उसके भव्य विजुअल से ही तय होती है. यही वो सबसे अहम चीज है जिसके सहारे एक पुराने दौर की लगभग घिसी-घिसाई कहानी को परदे पर प्रभावी तरीके से दिखाया जा सकता है. विजुअल के साथ बाकी चीजें ठीकठाक निकल आईं तो उसे लोकप्रियता पाने से कोई रोक नहीं सकता. मुगल-ए-आजम से बाहुबली तक फ़िल्में इसी एक चीज से आगे बढ़ी हैं.
गौर से देखें तो मुगल-ए-आजम की कहानी क्या है? नकली ऐतिहासिक संदर्भों में एक बहुत ही साधारण घिसी पिटी कहानी- जिसमें बादशाह के बेटे को कनीज से प्यार हो जाता है. बादशाह की सामाजिक हैसियत उसे कनीज को बहू के रूप में स्वीकार करने से रोकती है. और यही एक चीज बाप-बेटे के बीच दुश्मनी की वजह बन जाती है. भारतीय सिनेमा में ना जाने कितनी ही फ़िल्में इस कहानी पर बनी हैं. मुगल-ए-आजम की कहानी साधारण है. अभिनय भी कलाकारों ने वैसा ही किया है जैसा मुगल-ए-आजम से पहले की फिल्मों में भी करते दिखे हैं. लेकिन उस दौर में जब के. आसिफ ने एक साधारण कहानी को काल्पनिक ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में भव्यता के साथ परोसा तो दर्शकों की आंखें चुधिया कर रह गईं.
आज भी कई लोग ऐसे मिल जाएंगे जो मुगल-ए-आजम की कहानी को इतिहास का हिस्सा मानते हैं. यह उस फिल्म का ही जादू कहा जा सकता है. जैसे कई लोगों को लगता है कि हकीकत में महिष्मति जैसा साम्राज्य रहा होगा और उसमें अमरेन्द्र-महेंद्र बाहुबली जैसे नीतिपरस्त ताकतवर योद्धा.
रामचरण तेजा जूनियर एनटीआर.बाहुबली की भी कहानी काल्पनिक और साधारण है. महिष्मति का एक राज परिवार है जहां योग्य और अयोग्य के बीच सत्ता को लेकर परंपरागत-नैतिक संघर्ष है. भल्लालदेव की महत्वाकांक्षाएं राजा बनने की है और इसके लिए वो किसी भी हद तक जा सकता है जिसे भारतीय परंपरा में नैतिक रूप से गलत माना जाता है. भल्लालदेव के ठीक विपरीत महेंद्र बाहुबली सर्वगुण संपन्न है. उसमें भी तो महत्वाकांक्षा है, लेकिन वह चीजों को परम्परागत और नैतिक रूप से हासिल करना चाहता है. नैतिकता में वह जान गंवाता है. उसकी पत्नी को अमानवीय उत्पीडन से होकर गुजरना पड़ता है और बाद में बाहुबली का बेटा अमरेन्द्र बाहुबली सालों से घटित गलत चीजों का एक-एक कर हिसाब लेता है.
बाहुबली की फ़ॉर्मूला कहानी पर भारतीय सिनेमा में ना जाने कितनी फ़िल्में बनी हैं. बाहुबली के दोनों सिस्सों से अगर उसकी भव्यता ही निकल दी जाए तो गौर से देखिए फिल्म में कुछ भी नहीं बचता है. राजमौली की फिल्म के सांस्कृतिक और राजनीतिक असर जिन्हें एक धारा में प्रोपगेंडा भी कहा जाता है- वह बहस का विषय हो सकता है, मगर निश्चित ही बाहुबली को उसके भव्य फ्रेम ने भारतीय सिनेमा का महाकाव्य तो बना ही दिया है. कुछ साल बाद यह फिल्म भी ठीक मुग़ल-ए-आजम की तरह ही याद की जाएगी.
अब राजमौली के ऐतिहासिक गुलदस्ते में आरआरआर भी शामिल होने जा रही है. आरआरआर सच्ची कहानी पर आधारित है. मगर राजमौली ने इसे भव्य बनाने के लिए पर्याप्त छूट ली है. अगर वे छूट नहीं लेते तो ऐतिहासिक तथ्यों में शायद ही आरआरआर के रूप में भव्य फिल्म दे पाते जो उनकी पहचान है. आरआरआर जैसी पीरियड ड्रामा अभी तक बनाई नहीं गई है. आने वाले दिनों में भी शायद ऐसी फिल्म बनाने में बहुत वक्त लगे.
आरआरआर हिंदी का ट्रेलर नीचे देख सकते हैं:-
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