ये "शेफ" बुरा नहीं है लेकिन बोरिंग है...
वीकएंड पर सैफ अली खान की फिल्म शेफ देखने जा रहे हैं तो रुकिए... पहले पढ़ लीजिए सिद्धार्थ हुसैन का ये दिलचस्प रिव्यू..
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शेफ देखने की क्यों सोचें..
1) हॉलीवुड की फिल्म "शेफ" का ऑफिशियल रीमेक.2) सैफ बतौर सोलो हीरो.3) सैफ की "रंगून" फ्लॉप थी लेकिन उनके अभिनय की तारीफ हुई थी. 4) निर्देशक राजा मेनन जिनकी पिछली फिल्म "एयर लिफ़्ट" अक्षय कुमार के साथ एक बड़ी हिट थी.5) सैफ अली खान और राजा मेनन की जोड़ी और बाप बेटे की इमोशनल स्टोरी.
शेफ कहानी है चाँदनी चौक से भागे हुए लड़के रौशन कालरा की जो बड़ा होकर अमेरिका में एक बडा शेफ बनता है. वक्त के साथ उसके खाने में वो बात नहीं रही जो पहले थी. वो तय नहीं कर पा रहा है कि करियर और बेटे में किस तरफ़ जाये. पत्नी से तलाक़ के बावजूद दोनों अच्छे दोस्त हैं और यही वजह है नौकरी के छूटने के बाद रौशन कालरा( सैफ) केरला अपने बेटे से मिलने आता है. कुछ वक्त बिताने के बाद वो अपनी पत्नी के दोस्त की मदद से डबल डेकर बस को चलता फिरता रेस्टोरेंट बनाता है. रोड ट्रिप के दौरान वो खुद को ही नहीं बल्कि बिछड़े रिश्तों को भी सहेजने की कोशिश करता है, आखिर में उसे कामयाबी मिलती है या नहीं यही फिल्म है....
शेफ़ एक बेहद सादगी भरे आइडिये पर बनी फिल्म है. जिसमें ना ही ज़बरदस्ती का फ़िल्मी ड्रामा है और ना ही किसी क़िस्म की ओवर एक्टिंग. जो बहुत अच्छी बात है, लेकिन परेशानी ये है कि शेफ भले ही हॉलीवुड की फिल्म का रीमेक है, लेकिन आइडिया नया नहीं है. हिंदी फिल्मों में मेन प्लॉट या सब प्लॉट के तौर ये कहानी कई बार देख चुके हैं. जहाँ एक इंसान तय नहीं कर पा रहा है कि रिश्ते और करियर में किसको चुने. कहानी बासी है तो स्क्रीनप्ले भी कुछ खास नहीं है. हालांकि, सैफ के कुछ सीन्स अपनी पत्नी एक्ट्रेस पद्मा प्रिया के साथ बहुत अच्छे हैं. एक्स वाइफ़ होने के बाद भी दोनों की दोस्ती और नाराज़गी का तरीक़ा बहुत रियलिस्टिक तरीके से दिखाया है. इंटरवल के बाद फिल्म बहुत बोरिंग हो जाती है.
अभिनय के डिपार्टमेंट में सैफ अली खान ने बहुत नैचुरल काम किया है. पद्मा प्रिया और बेटे के रोल में स्वर कांबली ने भी सच्चाई से अपने किरदारों को निभाया है. मगर अच्छे एक्टर्स एक कमजोर फिल्म को बचा नहीं पाये.
एयरलिफ़्ट के बाद निर्देशक राजा मेनन से उम्मीद बहुत थी, लेकिन वो उस पर खरे नहीं उतरे. लेखक रितेश शाह, सुरेश नायर और राजा मेनन जो कहना चाह रहे थे उसके लिये उन्होंने आइडिया बहुत घिसापिटा चुना. रघु दीक्षित और अमाल मलिक का संगीत फिल्म की लय के साथ जाता है लेकिन हिट नंबर की कमी अखरती है. प्रिया सेठ की सिनेमेटोग्राफ़ी दमदार है. एडिटर शिव कुमार इस फिल्म को चाह के भी नहीं बचा सकते थे. हाल फिलहाल सैफ जो भी फिल्में कर रहे हैं किरदार तो ठीक चुनते हैं लेकिन फ़ोकस कहानी की ओर दें तो उनके लिये और पूरी फिल्म के लिये बेहतर होगा. बाकी ये "शेफ" बुरा नहीं है लेकिन बोरिंग है, इसे खाना पकाना तो आता है लेकिन इसकी डिश लजीज नहीं है. तो शेफ देखने के बजाय अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खाइये ज्यादा मज़ा आयेगा.
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