Sardar Ka Grandson Review: इमोशनल फैमिली कॉमेडी फिल्म है 'सरदार का ग्रैंडसन'
OTT प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर अर्जुन कपूर (Arjun Kapoor), रकुल प्रीत सिंह और नीना गुप्ता (Neena Gupta) की फिल्म 'सरदार का ग्रैंडसन' (Sardar Ka Grandson) रिलीज हो चुकी है. नए जमाने में दरकते रिश्तों के बीच दादी-पोते के निश्चछल प्रेम को रुपहले पर्दे पर दिखाने की कोशिश की गई है.
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बॉलीवुड एक्टर सनी देओल (Sunny Deol) और एक्ट्रेस अमीषा पटेल (Ameesha Patel) की सुपरहिट फिल्म 'गदर: एक प्रेम कथा' (Gadar: Ek Prem Katha) का एक दृश्य आज भी लोगों के जेहन में जिंदा है. इसमें पाकिस्तान के अंदर 'हिंदुस्तान जिंदाबाद था, जिंदाबाद है और जिंदाबाद रहेगा' का नारा लगाकर हीरो गुस्से में हैंडपंप उखाड़ लेता है. दुश्मनों पर हमला बोल देता है. फिल्म के इस सीन ने रुपहले पर्दे पर आग लगा दी थी. इसके 20 साल बाद एक फिल्म और रिलीज हुई है, जिसमें हीरो पाकिस्तान में जाकर अपना पुश्तैनी मकान नींव सहित उखाड़ लेता है. उसे ट्रक पर लेकर भारत चला आता है. हालांकि, दोनों फिल्मों में अलग-अलग पाकिस्तान दिखाया गया है. एक में बंटवारे के बाद का 'जालिम', तो दूसरे में इंसानियत का पैगाम देता नजर आता है. नई फिल्म का नाम है, सरदार का ग्रैंडसन.
फिल्म 'सरदार का ग्रैंडसन' (Sardar Ka Grandson) को ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज किया गया है. इसमें नीना गुप्ता, अर्जुन कपूर, रकुल प्रीत सिंह, कंवलजीत सिंह और कुमुद मिश्रा मुख्य भूमिकाओं में हैं. वहीं, बॉलीवुड के हल्क जॉन अब्राहम और ब्यूटीफुल एक्ट्रेस अदिति राव हैदरी गेस्ट रोल में नजर आए हैं. टी-सीरीज वाले भूषण कुमार के साथ जॉन अब्राहम ने इसको प्रोड्यूस भी किया है. फिल्म की निर्देशक काशवी नायर हैं, जो बॉलीवुड में अपना डेब्यू भी कर रही हैं. अनुजा चौहान और अमितोष नागपाल के साथ वो लेखक मंडली में भी शामिल हैं. काशवी नायर ने फिल्म में रिश्तों की अहमियत बताते हुए इसे भावनाओं के धागे में पिरोने की पूरी कोशिश की है, लेकिन निर्देशन के अनुभव की कमी की वजह से बहुत सफल नहीं हो पातीं. फिल्म में 'भारतीयता' की जगह 'पंजाबियत' हावी है.
फिल्म 'सरदार का ग्रैंडसन' में अर्जुन कपूर, रकुल प्रीत सिंह और नीना गुप्ता लीड रोल में हैं.
फिल्म की कहानी
'सरदार का ग्रैंडसन' फिल्म की कहानी दो पीढ़ियों के बीच प्यार की एक ऐसी दास्तान है, जो आज के वक्त दुर्लभ है. कभी अपनी प्रेमिका के प्यार में पागल एक पोता अपनी दादी की अंतिम इच्छा पूरा करने के लिए किस हद तक गुजर जाता है, इसे भावनाओं की चाशनी में लपेटकर दिखाने की कोशिश की गई है. पंजाब के अमृतसर का रहने वाला अमरीक सिंह (अर्जुन कपूर) अमेरिका के लॉस एंजेलिस शहर में रहकर नौकरी करता है. वह अपनी प्रेमिका राधा (रकुल प्रीत सिंह) से बहुत प्यार करता है, लेकिन उसकी हरकतों की वजह से दोनों के बीच ब्रेकअप हो जाता है. इसी बीच अमरीक के पिता गुरकीरत सिंह (कंवलजीत सिंह) उसे फोन करके भारत बुलाते हैं, क्योंकि उसकी 90 साल की दादी रूपिंदर कौर उर्फ सरदार कौर (नीना गुप्ता) कैंसर की बीमारी होने के बाद अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं.
अमरीक सिंह अपने घर अमृतसर लौट आता है. उसे देखकर उसकी दादी बहुत खुश होती हैं. पोता दादी से उनकी अंतिम इच्छा जानना चाहता है, तो वह कहती हैं कि एक बार पाकिस्तान के लाहौर में स्थित अपने पुश्तैनी घर जाना चाहती हैं. जहां उन्होंने अपने पति गुरशीर सिंह (जॉन अब्राहम) के साथ हसीन पल बिताए थे. लेकिन साल 1947 में हुए देश के बंटवारे के बाद उनके पति की हत्या कर दी गई, तो वो अपने बेटे को लेकर साइकिल से अमृतसर चली आईं. अमरीक अपनी दादी से वादा करता है कि वह उनको लेकर लाहौर जाएगा, लेकिन पाकिस्तान सरकार वीजा नहीं देती. इससे निराश पोते को अचानक आइडिया आता है कि क्यों न पूरा घर लाहौर से अमृतसर शिफ्ट कर दिया जाए. नई तकनीक की वजह से अब मकान या पेड़ नींव या जड़ सहित एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट किए जा सकते हैं.
अपनी दादी की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए अमरीक सिंह लाहौर स्थित अपने पुश्तैनी मकान पर पहुंचता है. वहां लोकल अथॉरिटी से परमिशन लेकर मकान को भारत लाना चाहता है, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता. इसी बीच उसकी गर्लफ्रेंड भी अमेरिका से पाकिस्तान चली आती है. घर को बचाने के लिए दोनों अनशन कर देते हैं. एक वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल देते हैं. इसके बाद मजबूरन भारत के प्रधानमंत्री अपने पाकिस्तानी समकक्ष से बात करते हैं. उनसे घर ले जाने की इजाजत दिलाते हैं. दादी खुश हो जाती हैं. इधर अमरीक और राधा की शादी भी हो जाती है. इस तरह तमाम ट्विस्ट और टर्न के बाद इस फिल्म की हैप्पी एंडिंग हो जाती है. फिल्म करीब 2 घंटे 20 मिनट की है, जो सीधी सपाट सरपट दौड़ती चली जाती है. इसमें बहुत सी ऐसी बातें दिखाई गई हैं, वास्तविकता से परे हैं.
Sardar Ka Grandson Official Trailer...
फिल्म रिव्यू
आयुष्मान खुराना की फिल्म 'बधाई हो' से लंबे समय बाद बॉलीवुड में कमबैक करने वाली एक्ट्रेस नीना गुप्ता ने 'सरदार का ग्रैंडसन' फिल्म में शानदार अभिनय किया है. लेकिन 62 साल की नीना को 90 साल की दादी बनाने के चक्कर में जो मेकअप किया गया है, उसने गुड़ का गोबर कर दिया है. नीना को बूढ़ी के किरदार में पूरी तरह उतारने के लिए प्रोस्थेटिक मेकअप कराया गया, लेकिन उसने उल्टा असर दिखा दिया. इससे बेहतर तो वो बिना मेकअप के दिखतीं. खैर, पूरी फिल्म की कहानी नीना गुप्ता के किरदार रूपिंदर कौर उर्फ सरदार कौर के इर्दगिर्द घूमती है. यूं कहें कि ये फिल्म नीना गुप्ता की है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. अर्जुन कपूर एक बार फिर अच्छी एक्टिंग के लिए संघर्ष करते हुए दिखाई दे रहे हैं. कुमुद मिश्रा ने दमदार अभिनय किया है, वहीं जॉन अब्राहम और अदिति राव हैदिरी ने गहरी छाप छोड़ी है.
विदेश में पली-बढ़ी काशवी नायर ने साल 2017 में एक डाक्यूमेंट्री 'Going Back to Pakistan: 70 Years After Partition' देखी थी, जहां से उनको फिल्म 'सरदार का ग्रैंडसन' बनाने का आइडिया आया. काशवी साल 2013 में आई फिल्म D-Day में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम कर चुकी हैं. उन्होंने निखिल आडवाणी के साथ मिलकर एक वेब सीरीज 'POW: बंदी युद्ध के' भी डायरेक्ट की थी. लेकिन अनुभव से सबसे बड़ी पाठशाला कही जाती है, जो बतौर निर्देशक काशवी में नहीं दिखती. यदि इस फिल्म को किसी अनुभवी निर्देशक के हाथ में दिया गया होता, तो शायद इसे बेहतरीन बनाया जा सकता था. इंटरवल तक आते-आते फिल्म की पटकथा पटरी से उतर जाती है. इसका नतीजा यह होता है कि ये न तो सोशल और पॉलीटिकल फिल्म बन पाती है, न ही कॉमेडी. 'चौबे जी चले थे छब्बे जी बनने, दुबे जी बन कर रह गए.'
फिल्म 'सरदार का ग्रैंडसन' के डायलॉग अमितोष नागपाल ने लिखे हैं, जिसमें ज्यादातर बेसिर पैर के हैं. इसमें एक जगह पाकिस्तान का चाय बेचने वाला लड़का हीरो से कहता है, 'आपके देश में लोग चाय वाले को अंडरइस्टीमेंट बहुत करते हैं.' ये डायलॉग उसने क्यों बोला, उसकी क्या जरूरत थी, इसका क्या मतलब है, ये सबकुछ समझ से परे है. बस लाइन अच्छी लगी, तो इस्तेमाल कर लिया. जब अंग्रेजी वाले हिन्दी में सोचने की कोशिश करते हैं, तो कुछ ऐसे ही परिणाम दिखते हैं. कुल मिलाकर फिल्म 'सरदार का ग्रैंडसन' खाली समय में एक बार देखी जा सकती है. कमियां तो आपको बहुत नजर आएंगी, लेकिन आपका समय खराब नहीं होगा. कोरोना काल में टूटते संबंध और दरकते रिश्तों की जो अहमियत समझ आई है, उसे ये फिल्म 2-4 डिग्री और आगे ले जाती है. घर में बड़े-बुजुर्गों के प्रति हमारा स्नेह और प्यार कैसा हो, इसकी शिक्षा देती है.
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