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Updated: 27 अक्टूबर, 2021 03:01 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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शूजित सरकार के निर्देशन में बनी विकी कौशल स्टारर फिल्म 'सरदार उधम' ने भारतीय सिने इतिहास में अपना अहम स्थान बना लिया है. जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेने के लिए भरी सभा में माइकल ओ डायर को गोली मारने वाले क्रांतिकारी सरदार उधम सिंह की जिंदगी पर आधारित ये फिल्म एक सोच की बायोपिक है. इस फिल्म की रिलीज के बाद से ही इसे ऑस्कर में भेजने की मांग होने लगे थी. सिनेमा पंडितों को भी यकीन था कि फिल्म ऑस्कर जीतने की क्षमता रखती है.

इसके बाद जब ऑस्कर अवॉर्ड के लिए फिल्मों का चयन होने लगा तो इसको टॉप 14 में जगह भी मिली, लेकिन चयन समिति ने आखिरी समय में तमिल फिल्म 'कूझंगल' को 94वें ऑस्कर में भेजने का फैसल कर लिया. इसके बाद फिल्म के प्रशंसक बहुत निराश और नाराज हो गए. लेकिन सबसे ज्यादा हैरानी तो तब हुई जब चयन समिति के एक सदस्य ने फिल्म 'सरदार उधम' के चयनित नहीं होने के पीछे की वजह बताई. उन्होंने ऐसी वजह बताई है, जो किसी के भी गले नहीं उतर रही है.

650_102721011901.jpgशूजित सरकार के निर्देशन में बनी फिल्म 'सरदार उधम' में विकी कौशल ने कमाल की एक्टिंग की है.

दरअसल ऑस्कर अवॉर्ड्स के लिए ऑफिशियल एंट्री चुनने वाली समिति के एक सदस्य इंद्रदीप दासगुप्ता ने कहा है कि फिल्म 'सरदार उधम' ब्रिटिश के खिलाफ हमारी नफरत को उजागर करती है. हम ऐसी किसी फिल्म को ऑस्कर में नहीं भेजना चाहते थे, जिसमें किसी के खिलाफ घृणा का भाव हो. उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में कहा, ''सरदार उधम कुछ ज़्यादा लम्बी फ़िल्म और जलियांवाला बाग की घटना पर निर्भर है. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक गुमनाम नायक पर एक भव्य फ़िल्म बनाने का यह एक ईमानदार प्रयास है, लेकिन इस प्रक्रिया में यह ब्रिटिश के ख़िलाफ़ हमारी नफ़रत को उजागर करती है. वैश्वीकरण के इस दौर में इतनी नफरत पाले रखना अच्छी बात नहीं है. हालांकि, मुझे यह कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं हो रहा है कि फिल्म को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाया गया है.''

इसी चयन समिति के एक अन्य सदस्य सुमित बसु कहा, ''कई लोगों ने फिल्म सरदार उधम को इसकी सिनेमाई गुणवत्ता के लिए पसंद किया है, जिसमें कैमरावर्क, एडिटिंग, साउंड डिजाइन शामिल है. लेकिन मुझे लगता है कि इस फिल्म की लंबाई एक प्रमुख समस्या है. इसका क्लाइमेक्स बहुत लंबा है. जलियांवाला बाग हत्याकांड के शहीदों और उनके परिजनों के असली दर्द को दर्शकों को महसूस कराने के लिए बहुत लंबा समय लिया गया है, जो फिल्म के खिलाफ जाता है.'' चलिए सुमित बसु की बात तो समझ में आती है, लेकिन इंद्रदीप दासगुप्ता का बयान समझ से परे हैं. आखिर वो किस नफरत और घृणा की बात करते हैं?

इंद्रदीप दासगुप्ता जिसे नफरत और घृणा बता रहे हैं, वो हमारी पीड़ा है. इसे वही समझ सकता है, जिसने उसे जिया हो, जैसे सरदार उधम सिंह ने 20 साल की उम्र में इस वीभत्स नरसंहार को देखा था. साल 1919 में पंजाब के जालियावालाबाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे एक हजार लोगों को गोलियों से भून दिया गया. भारत के लोगों के मन में दहशत फैलाने के लिए इस नरसंहार को जानबूझकर अंजाम दिया गया. इसके बाद भी आजतक इस कुकृत्य के लिए ब्रिटेन न तो शर्मिंदा हुआ, न ही भारत से इसके लिए कभी माफी मांगी. उस वक्त भारत से जाने के बाद पंजाब का गवर्नर रह चुका माइकल ओ डायर अपने देश में अपने निर्णय को सही बताता रहा.

ब्रिटेन जैसे जिस देश ने हिंदुस्तान को करीब 350 साल तक लूटा. करीब 250 साल तक हमें गुलाम बनाए रखा. करोड़ों लोगों की मौत हुई. अरबों डॉलर रुपए हिंदुस्तान से लूटकर ब्रिटेन पहुंचा दिया गया. ब्रिटिश सरकार के दौरान तीन करोड़ के क़रीब भारतीय अकाल के कारण जान से हाथ धो बैठे. अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ मेहनाज़ मर्चेन्ट के मुताबिक तो 1757 से लेकर 1947 तक अंग्रेज़ों के हाथों भारत को पहुंचने वाले आर्थिक नुक़सान की कुल रक़म 2015 के फ़ॉरेन एक्सचेंज के हिसाब से 30 खरब डॉलर बनती है. इतना सबकुछ सहने वाले भारत देश में बनने वाली किसी फिल्म में यदि ये सच्चाई दिखाई गई, तो इसमें नफरत कहां है, इसे घृणा क्यों कहा जा रहा है?

यदि नफरत और घृणा को आधार बनाकर एकेडमी अवॉर्ड के लिए फिल्मों का चयन होता तो हॉलीवुड की कई ऐसी फिल्में हैं, जो ऑस्कर अवॉर्ड कभी न जीत पाती. एक नहीं करीब दर्जन भर ऐसी फिल्मों के उदाहरण हैं, जो किसी न किसी के खिलाफ घृणा पर आधारित हैं, लेकिन उनको कई कैटेगरी में ऑस्कर अवॉर्ड मिल चुका है. इसमें साल 2009 में आई हॉलीवुड फिल्म 'इनग्लोरियस बास्टर्ड्स' (Inglourious Basterds) सबसे प्रमुख है. इस फिल्म में नाजियों (हिटलर) के खिलाफ घृणा को पेश किया गया है. इसमें भयंकर हिंसा के वीभत्स दृश्य हैं. फिल्म 'सरदार उधम' सरदार उधम सिंह लंदन में जाकर अकेले अपने लक्ष्य को अंजाम देते हैं. उसी तरह ब्रिटिश और फ्रांसिसी सेना जर्मनी में जाकर हिटलर को खत्म करने की योजना पर काम करती है. लेकिन इस फिल्म को ऑस्कर के लिए 9 कैटेगरी में चयन किया गया था.

साल 2010 में आयोजित एकेडमी अवॉर्ड समारोह में हॉलीवुड फिल्म 'इनग्लोरियस बास्टर्ड्स' को बेस्ट पिक्चर, बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर, बेस्टमूल पटकथा, बेस्ट छायांकन, बेस्ट फिल्म संपादन, बेस्ट साउंड एडिटिंग और बेस्ट साउंड मिक्सिंग कैटेगरी में नॉमिनेशन मिला था. इसमें क्रिस्टोफ़ वाल्ट्ज को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का ऑस्कर अवॉर्ड मिला था. इसी तरह साल 2012 में रिलीज हुई हॉलीवुड फिल्म 'जैंगो अनचेंड' (Django Unchained) में अंग्रेजों के खिलाफ घृणा दिखाया गया है, लेकिन इसे बेस्ट ओरिजनल स्क्रीनप्ले के लिए ऑस्कर अवॉर्ड मिला था. फिल्म 'शिंडलर्स' (Schindler) में जर्मनी के खिलाफ घृणा को दिखाया गया, लेकिन इसे सात ऑस्कर अवॉर्ड मिले थे. फिल्म 'ग्लेडिएटर' (Gladiator) में "रोम के लिए घृणा" दिखाई गई है. फिल्म के बहुत हिंसक थीम के बावजूद इसे 5 ऑस्कर अवॉर्ड मिले थे.

इस तरह हॉलीवुड की ये सारी फिल्में इस बात की गवाह हैं कि ऑस्कर अवॉर्ड के लिए फिल्म की थीम नहीं देखी जाती, बल्कि उनके लिए फिल्म की कहानी, पटकथा, एक्टिंग, एक्टर, डायरेक्टर, सिनेमैटोग्राफी, साउंड और म्युजिक मायने रखती है. मुझे लगता है कि भारत में ऑस्कर अवॉर्ड्स के लिए ऑफिशियल एंट्री चुनने वाली समिति को भी इन्हीं बिन्दुओं का ध्यान रखते हुए किसी भी फिल्म का चयन करना चाहिए. क्योंकि यदि समिति यहीं से अच्छी फिल्म नहीं भेजेगी, तो अवॉर्ड कहां से मिलेगा. पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में अपने देश में बनती हैं. हॉलीवुड के बाद बॉलीवुड दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री है, लेकिन आज तक किसी फिल्म ने ऑस्कर अवॉर्ड नहीं जीता. कुछ फिल्मों का चयन हुआ भी, उनको अंतिम पांच में जगह भी मिली, लेकिन अंतत: अवॉर्ड हाथ नहीं आया. उसकी वजह तलाशनी चाहिए.

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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