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Updated: 03 अप्रिल, 2022 10:32 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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दुनिया बदल रही है. देश बदल रहा है. समाज बदल रहा है. सियासत बदल रही है. ऐसे में सिनेमा भला कैसे अछूता रह सकता है. समाज और सियासत के साथ सिनेमा भी बदल रहा है. एक वक्त था जब देश में कांग्रेस की तूती बोलती थी. केंद्र में इस राजनीतिक दल ने लंबे समय तक राज किया, जिसकी विचारधारा का प्रभाव हर क्षेत्र में देखने को मिला. लेकिन साल 2014 के बाद हिंदुस्तान की राजनीतिक विचारधारा बदली और केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी. उसके बाद से कांग्रेस की स्थिति लगातार खराब होती गई. आलम ये है कि अब उन राज्यों में भी पार्टी की सरकार नहीं है, जिसे खाटी कांग्रेसी स्टेट माना जाता था. इस वक्त कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. कुछ ऐसा ही हाल हिंदी फिल्म इंडस्ट्री यानी बॉलीवुड का है. पिछले 100 वर्षों से एकछत्र राज कर रहे बॉलीवुड की हालत बिल्कुल कांग्रेस जैसी हो गई है.

1_650_040322084912.jpgसाल 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद समाज के साथ सिनेमा में भी बदलाव दिखा है.

बॉलीवुड के पतन और उसके प्रति लोगों की नफरत की शुरूआत दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मौत के बाद से शुरू हो गई थी. इस घटना ने समूचे देश को झकझोर दिया था. इस वक्त खुलासा हुआ था कि नेपोटिज्म की वजह से सुशांत सिंह राजपूत की जान गई है. इसके बाद कई कलाकारों ने बॉलीवुड के मठाधीशों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी. इसमें सबसे पहला नाम फिल्म मेकर करण जौहर का सामने आया था. उन पर आरोप लगा कि नेपोटिज्म के असली संरक्षक वही हैं. इतना ही नहीं यशराज फिल्म्स वाले आदित्य चोपड़ा पर भी आरोप लगा कि उन्होंने अपने प्रोजेक्ट्स से सुशांत को बाहर कर दिया था, जिसके बाद वो डिप्रेशन में चले गए थे. इसके बाद करण जौहर गैंग बनाकर सुशांत के खिलाफ काम कर रहे थे. इन सभी हालातों से परेशान होकर सुशांत सिंह राजपूत ने मौत को गले लगा लिया. कुछ लोगों ने हत्या की आशंका भी जताई.

सुशांत की मौत हत्या थी या आत्महत्या? इस सवाल का जवाब जानने के लिए देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई के साथ एनसीबी और ईडी को जिम्मेदारी दी गई. इस दौरान एनसीबी ने जब अपनी कार्रवाई शुरू की, तो कई चौंकाने वाले खुलासे होते चले गए. पता चला कि बॉलीवुड में ड्रग्स की खपत बड़े पैमाने पर हो रही है. इस मामले में दीपिका पादुकोण, सारा अली खान, श्रद्धा कपूर, भारती सिंह जैसे बड़े सितारों के नाम सामने आए, तो लोग दंग रह गए. भारती सिंह को तो ड्रग्स रखने के जुर्म में गिरफ्तार भी किया गया था. इस तरह लोगों की आंखों पर जो रूपहला पर्दा पड़ा हुआ था, वो हट गया. कई लोग बॉलीवुड से घृणा करने लगे. उनकी फिल्मों का बायकॉट करने लगे. इसी बीच बॉलीवुड से कुछ फिल्म मेकर और कलाकार निकलकर ऐसे भी सामने आए, जो 'कांग्रेस के ग्रुप 23' की तरह अपनी फिल्म इंडस्ट्री का विरोध करने लगे. उनको दर्शकों की सहानुभूति मिल गई.

कंगना रनौत, अनुपम खेर, विवेक ओबेरॉय, विवेक अग्निहोत्री और आनंद पंडित जैसे लोगों ने उन लोगों से अपना स्वर मिलाना शुरू कर दिया, जो लोग बॉलीवुड का विरोध कर रहे थे.इसी बीच साउथ सिनेमा ने भी अपना पांव पसारना शुरू कर दिया, जिसने रही सही कसर भी निकाल दी. लोगों को बॉलीवुड से बेहतर विकल्प मिल गया. साउथ की फिल्में वैसे भी लोगों को पहले से लुभाती रही हैं. लेकिन साल 2015 में फिल्म 'बाहुबली' की रिलीज के बाद साउथ सिनेमा के प्रति लोगों का आकर्षण ज्यादा बढ़ गया. बीच के समय में बॉलीवुड से ऊबे हुए लोग ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की तरफ चले गए, लेकिन इस साल रिलीज हुई अल्लू अर्जुन और रश्मिका मंदाना की फिल्म 'पुष्पा: द राइज' ने एक बार फिर लोगों को सिनेमाघरों तक खींच लिया. इस फिल्म ने हिंदी पट्टी में 100 करोड़ रुपए से अधिक की कमाई करके ये साबित कर दिया कि यहां लोग बॉलीवुड से ज्यादा साउथ की फिल्में पसंद कर रहे हैं.

साउथ की फिल्में पसंद करने की वजह क्या हो सकती है? ये सवाल भी कई लोगों के मन में उठ रहा होगा. बता दें कि साउथ सिनेमा इस वक्त वही दिखा रहा है, जो कि देश और समाज चाहता है. उनकी फिल्में किसी तरह के प्रोपेगेंडा के लिए नहीं बनाई जाती हैं, बल्कि समाज की सच्ची समस्याओं को उठाती हैं. हमारे महापुरुषों और संस्कृति के गौरवशाली इतिहास को पेश भव्य तरीके से पेश करती हैं. यहां जातीय घृणा पैदा नहीं की जाती, बल्कि उसकी असली तस्वीर दिखाने की कोशिश होती है, ताकि लोग गलत को सही कर सके. वरना बॉलीवुड फिल्मों में अभी तक यही देखा गया है कि ठाकुर अत्याचारी और अपराधी होता है. पंडित शातिर होता है, बच्चन पांडे में तो पंडित को काना और गुंडा भी बना दिया गया. बनिया लालची और सूदखोर होता है. इसके ठीक विपरीत साउथ की कोई भी फिल्म उठाकर देख लीजिए, उसमें जातीय या धार्मिक व्यस्था और संस्था को उसी रूप में दिखाया जाता है, जिस रूप में वो हकीकत में होती हैं. इसके साथ ही हाईटेक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी वजह से उनकी फिल्में हॉलीवुड फिल्मों को टक्कर देती हैं.

कुल मिलाकर, बॉलीवुड की हालत दिन प्रति दिन पतली होती जा रही है. यूं कहे कि बॉलीवुड के लोग अब दो दलों में विभाजित हो चुके हैं. एक दल पहले की तरह सेक्युलर होने का मुखौटा पहने अपने एजेंडे पर काम करना चाहता है, तो दूसरा दल खुद को प्रखर राष्ट्रवाद और हिंदूत्व का प्रहरी घोषित कर चुका है. पहले दल से तेजी से बड़ी संख्या में लोग दूसरे दल में शामिल हो रहे हैं. यहां तक कि बॉलीवुड के मठाधीश कहे जाने वाले करण जौहर, आदित्य चोपड़ा और फरहान अख्तर जैसे लोग तेजी से साउथ की फिल्मों में पैसा लगा रहे हैं, क्योंकि उनको हाल में रिलीज हुई अपनी फिल्मों की हालत देखकर अंदाजा हो चुका है कि उनकी दाल अब गलने वाली नहीं है. यदि लोगों का विरोध ऐसे ही रहा और साउथ सिनेमा का बेहतरीन परफॉर्मेंस जारी रहा, तो वो दिन दूर नहीं जब बॉलीवुड कांग्रेस की तरह अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करता नजर आएगा. समय रहते चेत जाना ही समझदारी है.

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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