पठान बायकॉट के पहले 2 रुझान आ गए, शाहरुख की फिल्म रिलीज होने तक और बदतर हो सकते हैं हालात!
शाहरुख खान की पठान का जबरदस्त विरोध हो रहा है. बेशरम रंग गाने में जिस तरह से कला और डांस के नाम पर फूहड़ता की सारी हदें लांघी गईं, कोई पचाने को तैयार नहीं कि यह जायज है. बायकॉट के दो रुझान फिल्म की रिलीज से पहले ही आ गए हैं जो फिल्म के भविष्य का भी संकेत देते हैं. आइए जानते हैं वे क्या हैं?
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यशराज फिल्म्स के प्रोडक्शन और सिद्धार्थ आनंद के निर्देशन में बनी 'पठान' का ऐतिहासिक विरोध देखने को मिल रहा है. ऐसा विरोध तो ब्रह्मास्त्र और लाल सिंह चड्ढा के खिलाफ भी नजर नहीं आया था. जबकि पठान का अभी तक ट्रेलर भी सामने नहीं आ पाया है. महज कुछ गाने रिलीज किए गए हैं. इसमें से पहले गाने- बेशरम रंग में दीपिका पादुकोण के निरर्थक अंग प्रदर्शन को लेकर लोगों में नाराजगी है. एक ऐसा गाना जिसे इधर-उधर की चीजों को कॉपी पेस्ट करके शायद बना दिया गया है. गाने का सबसे बड़ा आकर्षण डांस के नाम पर दीपिका पादुकोण की अश्लील हरकतें हैं. गाने के बोल में भगवा रंग को निशाना बनाकर एक राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश साफ़ दिखती है. कह सकते हैं बेशरम रंग को इसका फायदा मिला. लेकिन पठान के खिलाफ लोगों में जबरदस्त गुस्सा है और अब उसका असर भी साफ़ साफ़ दिखने लगा है. शायद बेशरम रंग पर विरोध की आक्रामकता को देखकर निर्माता सहम गए हैं. फिल्म की रिलीज में महीने भर से भी कम समय बचा है. ट्रेलर का अब तक नहीं आना कई सवाल खड़े करता है. पठान बायकॉट के दो रुझान आ चुके हैं.
मजेदार यह है कि निर्माताओं ने ट्रेलर रिलीज को लेकर कोई आधिकारिक अनाउंसमेंट भी नहीं की है. फिल्म की स्टारकास्ट को भी इसके बारे में कुछ ठीक ठीक नहीं पता है. यहां तक कि शाहरुख को भी. बावजूद शाहरुख और उनका पीआर दस्ता सोशल मीडिया पर पठान का माहौल बनाने में जुटा है. शाहरुख बिल्कुल ऐसा ही माहौल जीरो के समय भी बना रहे थे जिसे उनकी कमबैक फिल्म ही कहा जा रहा था. दुर्भाग्य से जीरो टिकट खिड़की पर बॉलीवुड के इतिहास का भयावह हादसा ही साबित हुई. शाहरुख ट्विटर पर फैन्स से रूबरू हो रहे हैं और उनके सवालों का जवाब दे रहे हैं. उनका मकसद पठान का प्रमोशन ही है. उनसे एक सवाल ट्रेलर को लेकर भी पूछा गया. पूछा गया कि आपकी फिल्म का ट्रेलर कब आ रहा है? उन्होंने जवाब दिया- "मेरी मर्जी. वो तभी आएगा जब उसे आना होगा." चूंकि पहले ट्रेलर क्रिसमस के त्योहारी मौके पर रिलीज करने की चर्चा थी. क्रिसमस निकल गया और ट्रेलर नहीं आया. आमतौर पर बड़ी फिल्मों का ट्रेलर रिलीज से महीनेभर पहले तक आ ही जाता है. रिपब्लिक डे वीक पर रिलीज हो रही फिल्म का ट्रेलर ना आने की वजह से अंदरखाने की चर्चाएं बाहर निकल रही हैं.
पठान
पठान विरोध के दो रुझान क्या हैं?
अंदरखाने दो चीजें सामने आ रही हैं. चर्चा है कि बेशरम रंग गाने पर जिस तरह से भारतीय समाज ने एकजुट होकर कला के नाम पर गंदगी और उसे भारतीय जनता की पसंद बताने वाले शाहरुख के बयान पर लोगों ने आक्रामक तरीके से गुस्से का इजहार किया है- यशराज बैनर डरा हुआ है. असल में बॉलीवुड की किसी भी फिल्म के खिलाफ इस तरह सांगठनिक गुस्सा नजर नहीं आया था. निर्माताओं को डर है कि बेशरम रंग की वजह से खराब माहौल में ट्रेलर लॉन्च करना उनके खिलाफ जा सकता है. निर्माता अभी नए साल के निकलने का कुछ इंतज़ार करना चाहते हैं. ताकि नए साल के जश्न में लोग बेशरम रंग के विवाद को भूल जाए और फिर ट्रेलर जारी किया जाए. चर्चा यह भी है कि ट्रेलर अब नए साल के पहले हफ्ते में ही रिलीज किया जाएगा. उससे पहले कोई संभावना नहीं है. साफ़ है कि निर्माताओं पर समाज के सामूहिक विरोध का तगड़ा असर है. यशराज का बैनर अब कारोबारी जोखिम उठाने की स्थिति में नहीं है. बैनर की कई फ़िल्में पिछले कुछ महीनों में लगातार पिट चुकी हैं. पठान का पिटना एक तरह से बैनर की बर्बादी का सबब भी बन सकता है. ट्रेलर की रिलीज टलना ऐतिहासिक विरोध का पहला इफेक्ट है.
पठान के विरोध का दूसरा बड़ा रुझान फिल्म के डिजिटल और सेटेलाईट राइट्स की कीमत से भी लगाया जा सकता है. कहा जा रहा कि पठान के राइट्स को 100 करोड़ में बेंचा गया है. पठान के स्केल के हिसाब से यह रकम कम है. आजकल शाहरुख से छोटे एक्टर्स की फ़िल्में भी बड़े आराम से 50-75 करोड़ में बिक तरहीं. ऐसे में शाहरुख की फिल्म की कीमत को उनकी छवि के हिसाब से कम ही कहा जाएगा. पठान को निवेश निकालने के लिए टिकट खिड़की पर कम से कम 150 से 200 करोड़ सिर्फ सिनेमाघरों से निकालने होंगे. जैसी चर्चाएं हुईं, एक्टर्स की सैलरी पर ही करीब 200-225 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. निर्माण और प्रचार के बाकी खर्च भी होंगे. समझा जा सकता है कि फिल्म को कारोबारी रूप से कामयाब होने के लिए सिनेमाघरों से कितना बड़ा कलेक्शन निकालना होगा जो विरोध की वजह से असंभव तो नहीं लेकिन बहुत मुश्किल काम है.
यशराज और धर्मा प्रोडक्शन ने बनाया शाहरुख को बॉलीवुड का किंग
अगर कहा जाए कि यशराज फिल्म्स के बैनर ने टीवी के एक साधारण एक्टर और सपोर्टिंग किरदार से डेब्यू करने वाले शाहरुख को बॉलीवुड का सबसे बड़ा सुपरस्टार बना दिया तो गलत नहीं होगा. अब यशराज ने पिछले आठ साल से किंग खान के बर्बाद करियर को संवारने का संकल्प लिया है. बैनर शाहरुख के लिए अपनी मुहिम में कितना कामयाब होगा यह देखने वाली बात होगी. लेकिन बॉलीवुड में ऐसा चमत्कार दूसरे अभिनेताओं के साथ नहीं हुआ. सपोर्टिंग रोल से डेब्यू और उसके बाद फिल्मों में सीधे मुख्य भूमिकाएं. साल 1992 में दीवाना से डेब्यू करने वाले शाहरुख की उस साल चार फ़िल्में आई थीं. दीवाना के अलावा चमत्कार, राजू बन गया जेंटलमैन और दिल आशना है. दीवाना के अलावा बाकी फ़िल्में औसत ही बताई जाती हैं. इसके ठीक अगले साल उनकी पहला नशा और माया मेम साब रिलीज हुई. ट्रेड सर्किल में इनके कारोबार को भी औसत ही माना जाता रहा है. हालांकि इसी साल आई म्यूजिकल ब्लॉकबस्टर बाजीगर ने दिलचस्प ग्रे किरदार की वजह से शाहरुख को एक बड़ी पहचान दी.
शाहरुख जैसी किस्मत सभी एक्टर्स को कहां मिलती. दीवाना में सपोर्टिंग किरदार में होने के बावजूद फिल्म की सफलता का पूरा श्रेय उन्हें मिला. उन्हें बेस्ट डेब्यू एक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया. लेकिन जब यशराज बौनर की नजर उनपर पड़ी, उनका करियर रातोंरात बुलंदी पर पहुंच गया. यशराज के साथ शाहरुख ने पहली फिल्म डर की थी. इसमें सन्नी देओल और जूही चावला मुख्य भूमिका में थे, लेकिन सपोर्टिंग किरदार में होने के बावजूद शाहरुख महफ़िल ले उड़े. सन्नी देओल जिक्र कर चुके हैं कि कैसे जो कहानी उन्हें सुनाई गई थी बाद में उससे अलग फिल्म का क्ल़ाइमैक्स शूट किया गया. सनी की आपत्ति के बावजूद. इसी फेरबदल ने शाहरुख को डर की यूएसपी बना दिया. वे बेताज बादशाह बन गए. इसके बाद तीन दशक तक शाहरुख- यश चोपड़ा और उनके बहनोई यश जौहर की फिल्मों का जरूरी चेहरा नजर आते हैं.
दो बैनर्स की फ़िल्में निकाल दीजिए तो शाहरुख के पास कुछ भी नहीं बचता
दोनों बैनर्स और शाहरुख के करियर की ब्लॉकबस्टर्स को देखें तो पता चलता है कि किंग खान के करियर में उनका कितना अहम रोल रहा. अगर दोनों बैनर्स की फिल्मों को निकाल दिया जाए तो शाहरुख के पास इक्का दुक्का सफलताएं बचती हैं और वे एक बहुत साधारण अभिनेता नजर आते हैं. शाहरुख का करियर लगभग अमिताभ बच्चन की तरह नजर आता है. बावजूद शाहरुख एक स्टीरियोटाइप अभिनेता हैं. आजतक वे रोमांटिक हीरो की अपनी इमेज नहीं तोड़ पाए हैं. कहना मुश्किल है कि बढ़ती उम्र के साथ आगे वे कैसे एक्टर के रूप में सरवाइव करेंगे. बावजूद कि अमिताभ फिलहाल बॉलीवुड के इतिहास में इकलौते अभिनेता नजर आते हैं जिनका असर आज भी लगभग वैसा ही है जैसा करियर के पीक में था.
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