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Updated: 25 जून, 2022 11:22 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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''हम दोनों हैं, निडर भी और लीडर भी''...फिल्म 'शेरदिल: द पीलीभीत सागा' का ये डायलॉग अभिनेता पंकज त्रिपाठी का किरदार गंगाराम अपने गांव वालों के सामने बोलता है. लेकिन सही मायने में इस फिल्म के ऊपर भी लागू होता है. क्योंकि इस फिल्म को पंकज अकेले अपने कंधों पर उठाकर चलने की कोशिश करते हैं. बेहतरीन अभिनय प्रदर्शन के बावजूद कमजोर पटकथा और निर्देशन की वजह से असफल साबित होते हैं. फिल्म का निर्देशन सृजित मुखर्जी ने किया है, जो कि बंगाली सिनेमा के जाने-माने फिल्म मेकर हैं. आने वाले समय में उनकी फिल्म 'शाबाश मिठू' भी रिलीज होने वाली है, जो कि क्रिकेटर मिताली राज की बायोपिक है. पटकथा सुदीप निगम, अतुल कुमार राय और सृजित मुखर्जी ने मिलकर लिखी है, जो कि उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले की सच्ची घटनाओं पर आधारित है. इसके बावजूद पटकथा रोचक अवधारणा के साथ न्याय करने में असफल साबित होती है.

फिल्म 'शेरदिल: द पीलीभीत सागा' के बारे में समीक्षकों और दर्शकों की तरफ मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. लेकिन ज्यादातर लोग फिल्म देखने के बाद निराश नजर आ रहे हैं. विदित है कि पंकज त्रिपाठी ओटीटी की दुनिया के बेताज बादशाह हैं. उनकी वेब सीरीज और फिल्में ओटीटी पर बेहतर परफॉर्म करती रही हैं. लेकिन बॉक्स ऑफिस पर उनका प्रदर्शन कभी उम्दा नहीं रहा है. मेरे ख्याल से बतौल लीड एक्टर ये उनकी पहली फिल्म है, जो कि सिनेमाघरों पर रिलीज हुई है. उनके जैसे चरित्र अभिनेता को हीरो बनाकर रूपहले पर्दे पर पेश करने की सोच ही गलत लगती है. फिल्म 'कागज' में भी उन्होंने लीड रोल किया था, लेकिन उनकी फैन फॉलोइंग को देखते हुए फिल्म को ओटीटी पर ही रिलीज किया गया था. इस वजह से उस फिल्म का रिस्पांस बहुत बढ़िया था. लेकिन 'शेरदिल' का बॉक्स ऑफिस पर बुरा हाल है. फिल्म पहले दिन एक करोड़ भी नहीं कमा पाई है.

sherdil-650_062522095720.jpgफिल्म 'शेरदिल' पंकज त्रिपाठी की सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली पहली ऐसी फिल्म है, जिसमें वो लीड रोल में हैं.

फिल्म 'शेरदिल' के बारे में वरिष्ठ फिल्म पत्रकार पंकज शुक्ल लिखते हैं, ''पंकज त्रिपाठी के तिलिस्म पर टिकी कमजोर फिल्म है. इसमें सबसे ज्यादा निराश सृजित मुखर्जी ने किया है. सृजित ने अपने साथियों के साथ जो फिल्म लिखी है और जिस तरह से उसे फिल्माया है, वही इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है. पंकज त्रिपाठी के कंधों पर पूरी तरह टिकी फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी उनसे जरूरत से ज्यादा उम्मीद रखना है. पंकज काबिल कलाकार हैं, इसमें कोई शक नहीं लेकिन उनके अभिनय की भी अपनी सीमाएं हैं. वह एक निश्चिय दायरे में बंधे अभिनेता है. उनको ओटीटी का सुपरस्टार कहा जाता है. सिनेमा में उनकी एकल फिल्म रिलीज करने की सोचना ही कारोबार की अंकगणित को गड़बड़ कर देता है, उस पर से फिल्म बनी भी बहुत बोझिल है. इस वीकएंड अगर सिनेमाघरों में जाकर कोई नई फिल्म देखनी ही है तो निर्देशक राज मेहता की फिल्म 'जुग जुग जीयो' बेहतर विकल्प है.''

फिल्मीबीट वेब साइट के लिए माधुरी लिखती हैं, ''किस्मत कभी कभी साधरण आदमी को भी असाधारण बना देता है...इस वॉयसओवर के जरिए श्रीजीत मुखर्जी हमें फिल्म शेरदिल की दुनिया से परिचित कराते हैं. लेकिन अफसोस की बात है कि एक असाधारण अवधारणा पर बनी फिल्म का इतना कमजोर निष्पादन होगा किसी ने सोचा भी नहीं था. भारत-नेपाल सीमा के पास यूपी में पीलीभीत टाइगर रिजर्व में हुई सच्ची घटनाओं से प्रेरित, श्रीजीत मुखर्जी की शेरदिल कागज पर एक ठोस विचार है. लेकिन रूपहले पर्दे पर इसे उतारने में मेकर्स की तरफ से चूक हो गई है. कहने का तात्पर्य ये है कि फिल्म की कहानी बेजोड़ है, सच्ची है, लेकिन इसकी पटकथा और उसके फिल्मांकन का काम ईमानदारी से नहीं किया गया है. पंकज त्रिपाठी भी अपने अभिनय में विभिन्न दिखाने में असफल रहे हैं. नीरज काबी का किरदार बहुत ज्यादा लाउड है. फिल्म सिनेमाघरों में जाकर देखने लायक नहीं है.''

फिल्म पत्रकार नेहा वर्मा लिखती हैं, ''सृजित मुखर्जी के निर्देशन में बनी फिल्म शेरदिल कही मायनों में उलझी नजर आती है. लेखन बहुत ही ढीला होने की वजह से फिल्म का महत्वपूर्ण मैसेज सही तरीके से नहीं पहुंच पाता. फर्स्ट हाफ हद से ज्यादा स्लो है. एक स्टोरीलाइन की तर्ज पर बनी फिल्म को जबरदस्ती लंबा खींचा गया है. इसे छोटा कर क्रिस्प बनाया जा सकता था. पंकज त्रिपाठी का जंगलों में घूमते हुए खुद से बात करना कई जगहों पर बोर करता है. कहीं-कहीं उनकी एक्टिंग ओवर भी लगी है. वहीं सेकेंड हाफ में नीरज काबी की एंट्री और पंकज के साथ उनकी डायलॉगबाजी रोमांच जगाती है. इस पूरी बातचीत के दौरान धर्म, गरीबी, मौजूदा पॉलिटिकल हालात और प्रकृति को लेकर एक अंडरकरंट मैसेज देने की कोशिश की गई है. फिल्म का मजबूत हिस्सा इसकी सिनेमैटोग्राफी है. तियाश सेन ने जंगल को बहुत ही बेहतरीन तरीके से कैप्चर किया है. फिल्म में बहुत कसावट की जरूरत थी. शांतनु मोईत्रा के म्यूजिक डिपार्टमेंट ने अपना काम उम्मीद से बेहतर किया है. चारो गाने आपको जीवन की सीख तो देते ही हैं साथ ही कर्णप्रिय भी हैं.''

Sherdil The Pilibhit Saga का ट्रेलर देखिए...

एनबीटी में रेखा खान ने लिखा है, ''लेखक-निर्देशक के रूप में श्रीजीत मुखर्जी फर्स्ट हाफ में कहानी और किरदारों को स्थापित करने में काफी वक्त लगा देते हैं. गरीबी और पर्यावरण के मुद्दे के विषय की बुनावट और बेहतर की जा सकती थी. मगर फिल्म में कई संवेदनशील मुद्दों को उठाया गया है कि कैसे सालों से इंसान जानवरों की दुनिया में घुस कर अतिक्रमण करते जा रहे हैं, जिसके नतीजे में जानवर इंसान के खेतों और जिंदगी में हाहाकार मचाने को मजबूर हो गया है. फिल्म का पहला सीन ही सरकारी योजनाओं की बखिया उधेड़ता नजर आता है. फिल्म में इस मुद्दे पर भी फोकस किया गया है कि कैसे इंसान जानवर से ज्यादा लालची हो चुका है. फिल्म राजनीति, सटायर और फलसफे जैसे पहलुओं को भी संवादों के जरिए छूती हैं, मगर एक बिंदु पर आकर ये उपदेश लगने लगते हैं. लेखक-निर्देशक गांव की गरीबी की दारुणता को मजबूती से दिखाते, तो ज्यादा बेहतर होता. मगर हां संगीत के मामले में फिल्म की दाद देनी होगी. एक लंबे अरसे बाद हिंदी फिल्म में संत कबीर और गुलजार का फलसफा कहानी को आगे बढ़ाता नजर आता है.''

कुल मिलाकार, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यदि फिल्म 'शेरदिल: द पीलीभीत सागा' को ओटीटी के दर्शकों के हिसाब से बनाकर इसी प्लेटफॉर्म पर रिलीज किया जाता, तो इसे सफलता मिल सकती थी. चूंकि पंकज त्रिपाठी ओटीटी के दर्शकों के चहेते सितारे हैं, इसलिए उनकी फिल्म को लोग हाथों-हाथ ले लेते. सिनेमाघरों में रिलीज करने का फैसला गलत साबित हुआ है. पंकज त्रिपाठी को भी ऐसे लीड रोल करने से बचना चाहिए, जिससे कि उनकी यूएसपी खतरे में न पड़ जाए.

Sherdil The Pilibhit Saga फिल्म के बारे में लोगों की प्रतिक्रिया...

 

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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